saamaajik chunautiyaan/बाबा कल्पनेश

विषय-सामाजिक चुनौतियाँ

(saamaajik chunautiyaan)

saamaajik chunautiyaan:मानव सभ्यता के उदयकाल से ही मानव समाज को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इन चुनौतियों को पहचान कर इनके समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना हमारे मनीषियों की दैनिक चिंतन चर्या रही है।आज का यह विषय निर्धारण को भी उसी तरह की चिंतन चर्या की संज्ञा से हम अभिहित कर सकते हैं।
मैं जब इंटर का विद्यार्थी था तब अपने गाँव में “हमारे कर्तव्य और अधिकार” शीर्षक से एक परिचर्चा गोष्ठी का आयोजन किया था।मेरे साथ में पढ़ने वाले गाँव के ही एक और विद्यार्थी रमाकर मिश्र जी थे।हम दोनों ने ही संयुक्त रूप से इस आयोजन की रूपरेखा तैयार की थी।पंडित गिरिजा शंकर मिश्र जी हमें हिंदी पढ़ाते थे। विषय प्रतिपादन के लिए हमनें गिरिजा शंकर जी को बुलाया था। आज यहाँ उस गोष्ठी की चर्चा करने का मेरा एक ही लक्ष्य है।वह यह कि आज का व्यक्ति अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए कर्तव्य से अधिक अपने अधिकार की बात करता है।जिस समय मैंने इस तरह की गोष्ठी का आयोजन किया था उसी समय इस तरह की सोच के दर्शन होने लगे थे,पर इतने निम्न स्तर तक सोच गिर नहीं पायी थी।यह सन् उन्नीस सौ अठहत्तर से अस्सी का वर्ष रहा होगा मतबल यह कि आज से करीब चालीस वर्षों के अंतराल में आज स्व-स्व अधिकार की बातें अधिकता से की जानें लगीं हैं। आज तक में व्यक्ति अपने अधिकार के प्रति जितना सचेष्ट हुआ है,अपने कर्तव्य से उतना ही लापरवाह हुआ है।

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इस विषय में नेताओं की गर्हित भूमिका देखने को मिली है।इन नेताओं ने पूरे भारतीय समाज को टुकड़े-टुकड़े में बाँटकर अपना उल्लू सीधा करने के हेतु से अलग-अलग व्यक्ति और अलग-अलग जाति विशेष से मिलकर उन्हें केवल अधिकार बोध की स्तरहीन प्रेरणा दे रहे हैं। ताजा उदाहरण हमारे सामने है किसान आंदोलन। किसान आंदोलन एक गहरा वितण्डावाद है।किसानों के कंधे पर अपनी बंदूक रख अपना कुछ भिन्न प्रकार का शिकार करना चाहते हैं।किसान आंदोलन के नाम पर राजधानी दिल्ली में जो कुछ हो रहा है सर्वथा अक्षम्य है।पर “नंगा नाचे चोर बलैया लेय।”
मैं भी किसान का ही बेटा हूँ। थोड़ी सी खेती है।बाह्य आमदनी कुछ नहीं आवास और भोजन की आवश्यकता तो सब के पास है।मेरे जैसे अल्पतम जीवन साधन वाले कितने लोग हैं पूरे भारत भर में।सत्य जनगणना की जाय कुल कृषक की 80% जनसंख्या मेरे जैसे किसानों की होगी। ऐसे किसानों की समस्या देखने की किस नेता को फुर्सत है।
प्रधान गाँव का हो या प्रदेश का कोई विधायक अथवा सांसद चुनाव के बाद सम्पन्नता का प्रतिनिधि-प्रतीक बन जाता है।चमचमाचम हो जाता है।ये अपने को जन सेवक कहते हैं। जन सेवा के नाम पर जमकर लूट करते हैं और जन समुदाय को कई विभक्तियों में बाँटने का कार्य करते हैं।

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आज की सामाजिक चुनौतियों में एक और विचित्र सी चुनौती उभरकर आई है।वह यह कि गलत को कोई गलत कहने को तैयार नहीं है। कोई भ्रष्टाचार में रत है तो उसकी कोई निंदा करने को तैयार नहीं है। उल्टे उसकी प्रशंसा की जाती है कि अच्छी कमाई करता है।लोग प्रशंसा के पुल ही बाँधते है।उसका कारोबार बड़ा अच्छा है। परिणाम स्वरूप वह श्रेष्ठता का प्रतिमान बन जाता है।फिर महाजनों येन गता स पंथा की स्थिति निर्मित होती है। ऐसे में सामाजिक चुनौतियों का सामना करना एक और टेढ़ी खीर है।
आज का विषय अत्यंत गहन है।यहाँ माघ मेले में नेट की समस्या तो है ही।एकाग्रता भी नहीं सध पा रही है।इस लिए पूर्ण विवेचन संभव नहीं। अपनी एक कविता की निम्न पंक्तियों के साथ बात को यही विराम देना उचित समझता हूँ।

“पालागी पंडित जी कहकर चमरौटी हर्षाता।
पसियाने का गोड़इत आकर सब को रात जगाता।।
दुआ-सलाम कर जुलहाने का नजदीकी पा जाता।
जात-पात के रहने पर भी मेल-जोल का नाता।।”

पर यह नाता आज खंडित हो गया है। यह सामाजिक दरार बढ़ाने वाले कौन से लोग हैं। पहचान करने की जरूरत है। परस्पर दूरियाँ बढ़ी हैं और गहरी बढ़ी हैं।कुछ लोग ऐसे भी हैं जो रोटी यहाँ की खाते है पर अपना रिश्ता अन्य देश से जोड़ते हैं। सामाजिक विसंगतियों की वृद्धि में इनका भी अहम योगदान है।

डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज रायगढ़ छत्तीसगढ़ में सम्मानित.

डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज को रायगढ़ छत्तीसगढ़ में किया गया सम्मानित.

 
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रामदास अग्रवाल के स्मृति में सम्पन्न हुआ साहित्य सम्मेलन

तथा स्मृति अंक सहित दो पुस्तकों का हुआ विमोचन ।

रायगढ़ ( छत्तीसगढ़) में ‘नयी पीढ़ी की आवाज’ व छत्तीसगढ़ साहित्य परिवार द्वारा आयोजित साहित्य सम्मेलन में छत्तीसगढ़ के नामचीन साहित्यकारों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। साहित्य सम्मेलन में प्रख्यात समाज सेवी व साहित्य प्रेमी स्व. रामदास अग्रवाल द्वारा साहित्य के लिए किए गये कार्यों को साहित्यकारों ने याद करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि दी।
समारोह का आरंभ मा सरस्वती के तैलचित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से किया गया। उसके पश्चात उपस्थित साहित्यकारों व साहित्य प्रेमियों तथा रामदास परिवार द्वारा स्व. रामदास अग्रवाल को विनम्र श्रद्धांजलि दी गयी।
यह कार्यक्रम शिक्षाविद व छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक के मुख्य आतिथ्य और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विनोद कुमार वर्मा की अध्यक्षता तथा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रसिक किशोर सिंह ’नीरज’के विशिष्ट आतिथ्य में तथा केवल कृष्ण पाठक, राष्ट्रीय कवि डॉ. ब्रजेश सिंह की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर प्रो.विनय कुमार पाठक ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्यकारों को साहित्य सृजन के साथ-साथ सामाजिक कार्य करते रहना चाहिए। आज जिस विभूति की स्मृति में यह कार्यक्रम का आयोजन किया गया है, उनसे मैं कुछ समय पूर्व रामकथा के दौरान मिला था। उनके विचारों और कार्यों को मैं इस अवसर पर नमन करता हूं। साहित्यकार समाज को दिशा देने का कार्य करता है। इसीलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहते हैं। उन्होने साहित्यकारों से इसी तरह समाज को दिशा देने हेतु साहित्य सृजन करते रहने का भीआह्वान किया।
इस अवसर पर विमोचित पत्रिका नयी पीढ़ी की आवाज स्मृति अंक व आनन्द सिंघनपुरी की किताब ’दिल की आहट’ तथा बाल साहित्यकार शंभूलाल शर्मा ’वसंत’ के ’मैना के गउना’ के बारे में भी प्रकाश डाला।

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सम्मेलन में उपस्थित वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. के. के. तिवारी, डॉ .बृजेश सिंह, डॉ .रसिक किशोर सिंह नीरज (रायबरेली), गजलकार केवल कृष्ण पाठक, डॉ. विनोद कुमार वर्मा, शिव कुमार पांडेय, शम्भू लाल शर्मा ’वसंत’ ने रामदास अग्रवाल को श्रद्धांजलि देते हुए साहित्य पर वक्तव्य दिए। तथा डॉ.नीरज ने अपनी ग़ज़ल – ‘ गहराईयां नदी की किनारों से पूछिये’ सुनाकर समां बांध दिया।
रामदास द्रौपदी फाउंडेशन के चेयरमैन समाजसेवी सुनील रामदास ने कहा कि पूज्य बाबूजी द्वारा दिखाए गये रास्ते परचलकर हम सदैव साहित्य और समाज के कार्यों में सहयोगी बने रहेंगे।
उक्त कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार श्याम नारायण श्रीवास्तव ने किया।

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इस साहित्य सम्मेलन में स्थानीय साहित्यकारों में आशा मेहर, डॉ. डी. पी. साहू, सरला साहा, रुसेन कुमार, आनन्द कुमार केड़िया, ऋषि वर्मा, रमेश शर्मा, सुखदेव पटनायक, अरविंद सोनी, मनमोहन सिंह ठाकुर, राकेश नारायण बंजारे ने भी अपने विचार व्यक्त किये। शहर के नन्द बाग में आयोजित इस सम्मेलन में जय शंकर प्रसाद, तेजराम नायक प्रफुल्ल पटनायक, प्रदीप कुमार, रामरतन मिश्रा, धनेश्वरी देवांगन, प्रियंका गुप्ता, हरप्रसाद ढेंढे, पवन दिव्यांशु, राघवेंद्र सिंह, गीता उपाध्याय, प्रदीप उपाध्याय, सनत, हेमंत चावड़ा, डॉ. मणिकांत भट्ट, प्रशांत शर्मा व अन्य बहुत से साहित्यकार उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव पर नयी पीढ़ी की आवाज के ’स्मृति अंक’ में प्रकाशित रचनाकारों को भी रामदास द्रौपदी फाउन्डेशन द्वारा सम्मानित भी किया गया।
कार्यक्रम के अंत में सुशील रामदास अग्रवाल ने स्व. रामदास अग्रवाल के स्मृति में आयोजित सफल कार्यक्रम के लिए नयी पीढ़ी की आवाज परिवार व साहित्यकारों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
डॉ.नीरज को रायगढ़ छत्तीसगढ़ में सम्मानित किए जाने पर रायबरेली के साहित्यकारों में हर्ष और उल्लास व्याप्त है । जनपद के कर्मचारियों ने भी उन्हें बधाई दी।

साहित्यकार सविता चड्ढा को राष्ट्र रत्न की उपाधि/savita chadha

 

साहित्यकार सविता चड्ढा को राष्ट्र रत्न की उपाधि

 

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सविता चड्ढा

प्रोन्नति फाउंडेशन एवं कंट्री आफ इंडिया न्यूज़पेपर द्वारा 26 जनवरी को आयोजित ऑनलाइन सम्मान समारोह में साहित्य और समाज सेवी जानी मानी हस्तियों को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर दिल्ली की वरिष्ठ साहित्यकार और लेखिका श्रीमती सविता चड्ढा को उनके साहित्यिक योगदान एवं समाज में उत्थान एवं उनकी सक्रियता को देखते हुए “राष्ट्र रत्न उपाधि” से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व भी आपको “साहित्य सुधाकर की उपाधि”, “आदर्श महिला सम्मान”, ” दिल्ली गौरव सम्मान”, “साहित्य गौरव सम्मान”, ” सरस्वती सम्मान” आदि मिल चुके हैं। उल्लेखनीय है कि 30 से अधिक वर्षों से जहां आप नारी सेवा सदन के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए सक्रिय हैं वहीं साहित्य सृजन के द्वारा आप अपनी महती भूमिका निभा रही हैं।

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आपकी साहित्यिक सक्रियता 1984 से बनी हुई है और अब तक आपकी 41 पुस्तकें विभिन्न विषयों पर प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी कहानियों पर जहां फिल्मों का निर्माण किया गया है , वहीं नाटक मंचन भी हुए हैं और 60 से अधिक कहानियां आकाशवाणी से पंजाबी और हिंदी में प्रसारित हो चुकी हैं। पत्रकारिता पर लिखी आपकी तीन किताबें सहायक ग्रंथ के रूप में कई विश्वविद्यालयों में संस्तुत हैं। आपकी लिखी बाल कहानियाँ कक्षा 6,7,8 के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। आपकी कहानियों पर विश्वविद्यालयों में शोध हो चुके हैं। आपकी साहित्यिक यात्रा की बहुत उपलब्धियां है।
समाज सेवी और लेखिका श्रीमती मुक्ता मिश्रा, प्रोन्नति फाउंडेशन की संस्थापक ने श्रीमती सविता चड्ढा का राष्ट्र रत्न उपाधि के लिए चयन किया।

साहित्य सम्मेलन व स्मृति अंक तथा पुस्तक विमोचन

30 जनवरी को  साहित्य सम्मेलन व स्मृति अंक तथा पुस्तक विमोचन

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रायगढ़- रायगढ़ जिला सुर,लय,ताल की नगरी तो है, साथ ही साहित्यिक गतिविधियों में भी अव्वल है। आये दिन विविध विषयों को लेकर कार्यक्रम होते रहते है इसे साहित्यिक गतिविधियों पर यहाँ के साहित्यकारों का गहरा लगाव ही कहा जायेगा। जो इतने तन्मयता और लगन से हर कार्यक्रम को श्रेष्ठ बनाने में कोई कसर नही छोड़ते। लम्बे समय से कोरोना महामारी का हम सबने यातनाएं सहीं।पर समय तो अपनी चाल से निरन्तर चलता रहता है, पूरे निर्लिप्तभाव से। निर्विकार या निर्मिमेष से बिना किसी रुकावट, आधि-व्याधि, रोग-दोष, मोह-माया, राग-द्वेष, अच्छे-बुरे की चिंता कर। दुनिया की सारे दुखों से अनजान अपनी मस्ती में, बस केवल अपने कर्म में डूबा, कितने भी उद्वेलन, खुशियाँ, अवसाद हों समय की गति में कोई अंतर नहीं पड़ता। वह तो बस चैरेवति-चैरेवति की गूँज से आगे बढ़ता ही रहता है। इस महामारी में कितने ही अपने घनिष्ठ जन इस दुनिया से अलविदा हो गए। इसी समय रायगढ़ के पर्यावरण प्रेमी व समाजसेवी रामदास अग्रवाल का दुःखद निधन हो गया। शहर में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों और हर दुःख-सुख में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष उनका सहयोग रहता था। उन्हीं की स्मृति में एक दिवसीय ’साहित्य सम्मेलन’ व नयी पीढ़ी की आवाज में प्रकाशित उनकी स्मृति अंक तथा पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम नंद बाग, कोष्टापारा, नंदेश्वर मन्दिर रोड ’छत्तीसगढ़ साहित्य परिवार व नयी पीढ़ी की आवाज’ के तत्वावधान में आयोजित की गई है। उक्त कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. विनय कुमार पाठक (शिक्षाविद, पूर्व अध्यक्ष, छ. ग.राजभाषा आयोग) और कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. विनोद कुमार वर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार), विशिष्ट अतिथि रायबरेली (उत्तरप्रदेश) से डॉ. रसिक किशोर सिंह ’नीरज’, बिलासपुर से वरिष्ठ साहित्यकार केवल कृष्ण पाठक, डॉ. ब्रजेश सिंह की उपस्थिति रहेगी। पुस्तक विमोचन की कड़ी में रायगढ़ के युवा साहित्यकार आनन्द सिंघनपुरी की किताब ’दिल की आहट’ व ’मैना के गउना’ का आमंत्रित अतिथियों के हाथों लोकार्पण होगा। उक्ताशय की जानकारी नयी पीढ़ी की आवाज परिवार से भानुप्रताप मिश्र, श्याम नारायण श्रीवास्तव, सनत व आनन्द सिंघनपुरी ने दी और बताया कि कार्यक्रम आज दिनांक 30 जनवरी दोपहर 12 बजे से आयोजित है तथा कोविड संक्रमण को ध्यान में रखते हुए मास्क लगाकर आने की अपील की है।

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anubhav Savita Chadha/अनुभव-सविता चडढा

अनुभव

anubhav- Savita- Chadhaसविता चडढा

आज गणतंत्र दिवस की परेड देखी तो बहुत सारी बातें याद आ गई

anubhav Savita Chadha:1960 की बात थी जब मैं अपने पिताजी के साथ यहां पर गणतंत्र दिवस की परेड देखने आई थी ।हम सब थे मेरी नानी जी, मेरी चाई जी, मैं और मेरे भाई बहन। पापा जी कि ड्यूटी गणतंत्र दिवस में लगी हुई थी और हम सब सुबह 6:00 बजे ही यहां पहुंच गए थे। परेड खत्म होने के बाद पापा जी हमें राष्ट्रपति भवन और उसके सामने विदेश मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और सारे भवन दिखा रहे थे ।राजपथ से ऊपर राष्ट्रपति भवन की ओर जाते हुए मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं किसी राज महल की ओर प्रवेश कर रही हूं। अचानक मन में एक विचार आया था कितनी अच्छी जगह है, काश मैं यहां हमेंशा रह सकती।

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उस समय कभी सोचा भी नहीं था कि हम जो सोचते हैं वह हो जाता है लेकिन आज मेरा यह अनुभव यह सिद्ध कर रहा है कि जो भी हम सोचते हैं वह एक एक दिन हो सकता है।
झील कुरंजा, लाल बिल्डिंग, हायर सेकेंडरी स्कूल में जब मैं पढ़ रही थी । उस समय मैं 11वीं कक्षा में थी। उस समय वराह गिरी वेंकट गिरी साहब राष्ट्रपति थे । तब भी एक बार राष्ट्रपति भवन जाने का अवसर मिला था। राष्ट्रपति महोदय के समक्ष हमें एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हमारे स्कूल के अध्यापक गण लेकर आए थे । अब तो वही इच्छा फिर बलवती हुई और फिर मन में विचार आया काश मैं यहां हमेशा यह सकूं।

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1972 में मेरी नौकरी पर्यटन विभाग में लग गई थी उस समय पर्यटन विभाग का कार्यालय रेल भवन में था रेल भवन राजपथ और राष्ट्रपति भवन के पास ही था। 1980 में मुझे नार्थ ब्लॉक, वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ अनुवादक के रूप में चुन लिया गया था। यह वही स्थान था जहां मैंने सोचा था कि मुझे हमेशा आना चाहिए ।जब हम भोजन अवकाश में बाहर निकलते तो सामने राष्ट्रपति भवन और इधर विदेश मंत्रालय और मैं भी तो मंत्रालय में काम करती थी। इस राजपथ पर जितने वर्ष भी मैं रही मैंने अपने भीतर एक अद्भुत उत्साह महसूस किया।
कुछ वर्ष यहां नौकरी करने के पश्चात में प्रमोशन पा कर पंजाब नेशनल बैंक के संसद मार्ग कार्यालय में चली गई थी लेकिन राजपथ यहां से भी दूर नहीं था । उन दिनों संसद भवन के बीच बने रास्ते से दूसरी और आसानी से जाया जा सकता था। संसद भवन, रेल भवन और फिर उसके आगे इंडिया गेट और फिर राजपथ , ये हमेशा ही मेरे बहुत प्रिय स्थल रहे हैं और भगवान का धन्यवाद करती हूं कि उसने मुझे मेरे जीवन के अधिकांश वर्ष इसी स्थान पर रहने का शुभ अवसर भी दे दिया।
मैं कभी-कभी सोचती हूं अगर मैंने बचपन में यहां रहने का सुखद स्वप्न नहीं देखा होता तो क्या मैं यहां आ सकती थी । मुझे पता नहीं यह सच होता कि नहीं पर मुझे लगता है कि यह मेरी मन की इच्छा ईश्वर ने जरूर कहीं ना कहीं सुनी होगी। हमारे कर्मों को वही तो कार्यान्वित करता है और मैं धन्यवाद करती हूं उस परमात्मा का जिसने हमेशा ही मुझे सच्ची राह दिखाने में अपना आशीर्वाद बनाए रखा है।


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Jananayak Karpoori Thakur/कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर

कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर

Jananayak Karpoori Thakur: जिस समय भारत माता परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी हुई थी। उसी समय कर्पूरी जी का जन्म समस्तीपुर के पितौझिया नामक ग्राम में 24 जनवरी 1924 को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गोपाल ठाकुर एवं माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था ।इनके बचपन पर उनके माता-पिता के गुणों का प्रभाव पड़ा ।इनके पिता एक किसान थे ।बाल्यावस्था इनका आर्थिक संघर्षों के बीच ही गुजरा ।
उस समय के वातावरण को देखते हुए इनका मन अपने देश को स्वतंत्र कराने में लगा ।देश भक्ति इनमें कूट कूट कर भरी थी ।भारत छोड़ो आंदोलन के समय इन्होंने 26 बार जेल की यात्रा की ।
कर्पूरी ठाकुर जी का विवाह कुलेश्वरी देवी जी के साथ हुआ।

राजनेता होने के साथ ही साथ यह एक समाज सुधारक भी थे

यह सरल और सरस स्वभाव के राजनेता थे ।राजनेता होने के साथ ही साथ यह एक समाज सुधारक भी थे। इन्होंने समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। निम्न एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को उनके अधिकार एवं कर्तव्य के प्रति जागरूक किया। इनके मुख्यमंत्री काल में ही पिछड़े वर्ग को 27% का आरक्षण प्रदान किया गया । कर्पूरी ठाकुर जी ने एक बार उपमुख्यमंत्री एवं दो बार मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया । एवं दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। लोक नायक जयप्रकाश नारायण एवं समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया इन के राजनीतिक गुरु थे ।राम सेवक यादव जैसे दिग्गज साथी थे । लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार ,रामविलास पासवान और सुनील कुमार मोदी के यह राजनीतिक गुरु थे ।जब यह बोलते थे सारी जनता इनके भाषण को बड़े ही ध्यान से सुनती थी । उनका चिर परिचित नारा था “अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर लड़ना सीखो, जीना है तो मरना सीखो ।
सादा -जीवन ,उच्च विचार इनके जीवन का आदर्श है । यह धन का व्यर्थ व्यय नहीं करते थे ।इनके दल के कुछ नेता अपने यहां की शादियों में करोड़ों रुपया खर्च करते थे परंतु जब इन्होंने अपनी बेटी की शादी की तो उन्होंने एक आदर्श उपस्थित किया और बहुत ही साधारण ढंग से विवाह किया ।एक मुख्यमंत्री की बेटी का विवाह अत्यंत साधारण ढंग से संपन्न हुआ , यह अपने आप में अनोखी बात थी।

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कर्पूरी जी का वाणी पर कठोर नियंत्रण था । वह भाषा के मर्मज्ञ थे। उनका भाषण आडंबर रहित ,ओजस्वी, उत्साहवर्धक एवं चिंतन परक होता था ।कड़वा से कड़वा सच बोलने के लिए वह इस तरह के शब्दों एवं वाक्यों को व्यवहार में लेते थे जिसे सुनकर प्रतिपक्ष तिलमिला तो उठता था लेकिन यह कभी यह नहीं कह पाता था कि कर्पूरी जी ने उसे अपमानित किया। उनकी आवाज बहुत ही शानदार एवं चुनौतीपूर्ण होती थी लेकिन यह उसी हद तक सत्य ,संयम और संवेदना से भी भरपूर होती थी ।इनके गुणों का बखान कहां तक करें जो अपने आप में अवर्णनीय है ।
इनकी लोकप्रियता ने ही इन्हें कर्पूरी ठाकुर से जननायक कर्पूरी ठाकुर बना दिया। 65 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से कर्पूरी ठाकुर जी का निधन हो गया।
इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर निम्न पंक्तियाँ भी प्रस्तुत है—–

हैं पल चांदनी रात की तरह,
जो बीत जाया करते हैं ।
है कर्म की ताकत,तूफ़ान प्रबल पर्वत,
झुक जाया करते हैं।
अक्सर दुनिया के लोग ,
समय के चक्कर खाया करते हैं ।
लेकिन कुछ ऐसे होते हैं ,
जो इतिहास बनाया करते हैं।।

यह उसी कर्मवीर इतिहास पुरुष की,
अनुपम अमर कहानी है ।

ईमानदारी ,कर्तव्यनिष्ठा ,सत्यवादिता,
जिसकी निशानी है।
दूरदर्शी,कुशल वक्ता होना ,
जिसकी पहचान है ।
सादा -जीवन, उच्च -विचार ,
कर्पूरी जी की शान है ।।

कुशल राजनीतिज्ञ बन ,
बिहार का मान बढ़ाया जिसने।
अपमान का घूंट पीकर भी,
प्रेम ही दिखाया जिसने ।
मानवता का पाठ पढ़कर भी,
सहा कारागृह का दुख जिसने ।
मुख्यमंत्री पद पाकर भी ,
अभिमान न दिखाया जिसने।।

वह साहसी ,वीर था ,
या त्यागी -सन्यासी ।
जिसके यश को याद करेंगे,
युग -युग तक भारतवासी ।
जननायक बनकर भी पहले ,
रहा वह देशवासी।
गीता -रामायण के भावों में थी,
उसकी आंखें प्यासी ।

पितौंझिया गांव ,कर्पूरी ग्राम बना,
जिसके नाम से।
दलितों का मसीहा हुआ वह ,
अपने काम से।
उनका कर्म क्षेत्र ,
उनके लिए ही धाम था ।
वेद -पुराणों की वाणी ही ,
उनके जीवन का घाम था ।।

Jananayak- Karpoori- Thakur

रूबी शर्मा
ग्राम व पोस्ट -जोहवा शर्की
जिला -रायबरेली
उत्तर प्रदेश

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tabo monastery in hindi/ताबो-आशा शैली

ताबो मठ कहाँ हैं

tabo monastery in hindi : हिमाचल प्रदेश के दूर-दराज़ के गाँव ‘‘ताबो’’ की चर्चा हिमाचल में हर ज़बान पर है। आइये एक नज़र देखें कि ताबो नाम का यह गाँव क्यों आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।  ताबो मठ किस राज्य में स्थित हैं  हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 365किमी दूर और मनाली से 270कि.मी. दूर लाहुल-स्पिति जि. के मुख्यालय काज़ा से थोड़ा आगे जाने पर ‘ताबो’ नाम का यह गाँव आता है।
शिमला से ताबो जाने के लिए कुफ़री, नारकण्डा, रामपुर बुशहर, ज्यूरी, भाबा होते हुए समदो पहुँचा जा सकता है। यहाँ से 35/40 किमी दूर स्पिति नदी और सतलुज का संगम होता है। इसी स्पिति नदी के किनारे बसा है ‘ताबो’।

tabo -monastery -in -hindi

दूसरे मार्ग से, कुल्लू मनाली होते हुए रोहताँग दर्रे को पार करके लोसर से थोड़ा पहले चन्द्रा नदी के किनारो-किनारे छोटा दर्रा-बड़ा दर्रा पार करके बाथता से 1400फ़ीट की ऊँचाई का कराकुर्रम दर्रा पार करके स्पिति घाटी में प्रवेश किया जाता है। हिमाचल प्रदेश की ऊँची पर्वत शृंखलाओं, चारां ओर ढलानों पर बर्फ़ अथवा रेतीली भूमि से घिरी स्पिति घाटी में स्पिति नदी के तट पर बायीं ओर 100 वर्ग गज भूमि पर चौकोर ईंटों से बना है ‘ताबो महाविहार’, जो ई0 सन् 996 में लामा राजा ज्ञान प्रभ के संरक्षण में महानुवादक रत्नभद्र के द्वारा निर्मित किया गया था। महाविहार के विषय में कुछ भी जानने से पहले रत्नभद्र्र के विषय में जानना भी परमावश्यक है।

की गोम्पा किस लिए प्रसिद्ध है

tabo monastery in hindi

रत्नभद्र का जन्म वर्तमान पश्चिमी तिब्बत के गुगे क्षेत्र में क्युवंग-रदनि में 958ई. में प्रित्यवन-छेने-पो-जेन-नु-बंड छुग (महाभदन्त ईश्वर कुमार) तथा माता कुन-जंङ-शेरब् तनामा (समन्त भद्रा प्रज्ञाशासनी) के घर हुआ। भोट भाषा में रत्नभद्र को रिन्-चेन्-त्साँग-पो के नाम से जाना जाता है। रत्न भद्र तत्कालीन उन 21 विद्यार्थियों में से एक थे जिन्होंने बौद्ध धर्म के सभी अंगों-अभिधर्म, प्रज्ञापारमिता, विनय, सूत्र, तंत्र इत्यादि का विशद अध्ययन किया, तथा पूरे ज्ञान को संग्रहीत व संकलित करके तिब्बती भाषा में उसका अनुवाद किया।
रत्नभद्र ने गुगे, पुरसङ, जम्मू-कश्मीर प्रान्त के लद्दाख़ हिमाचल प्रदेश के लाहुल स्पिति एवं किन्नौर आदि में असंख्य स्तूपों के साथ 108 बौ(बिहारों की स्थापना भी की थी। केवल मात्र किन्नर कैलाश के परिक्रमा पथ में ही पाँच विहार हैं। इन में कुछ क्षतिग्रस्त हैं (चारङ्-रिदङ् रिब्बा), विद्यमान छितकुल एवं ठँगे के विहारों का नवीकरण किया गया है। इस बात का ध्यान रखते हुए कि इनका मूल रूप नष्ट न हो।


रत्नभद्र स्वयं में एक आश्चर्य थे। आपको महानुवादक अथवा लोचारिन पोछे के नाम से याद किया जाता है, मूर्तिकला, भित्ति-चित्रकला, थङ्का (तत्कालीन पट- चित्रकला) के निर्माता, बौद्ध धर्म दर्शन, तन्त्र के ज्ञाता एवं स्थानीय लोकभाषा जंङ-जुङ, भोट व संस्तकृ के मूधर्न्य विद्वान थे।

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रत्नभद्र के बनावाए एक सौ आठ महाविहारों में से ताबो महाविहार ही एक ऐसा मठ है जो अपने पूर्ण गरिमा-मय प्राचीन रूप में विद्यमान है। इतना ही नहीं यह अपनी ऐतिहासिक स्मृति को तथ्यों सहित स्वयं प्रस्तुत कर रहा है। इस मठ की विशेषता केवल प्राचीन और ऐतिहासिक होना ही नहीं है वरन् इसका महत्व इसलिए भी अधिक आंका गया है कि यह दो राजमार्गों पर स्थित होने के कारण कलात्मक, सांस्कृतिक एवं व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र्र रहा है। 84/70/70/64/30 मीटर क्षेत्र में बने ताबो मठ के चारों ओर दो मीटर ऊँची दीवार बनी है। इस परिक्षेत्र में 9 मन्दिर बने हैं। इनमें से 5 मूलसंरचना के मन्दिर माने जाते हैं और चार बाद के। इन नौ कक्षों अथवा मन्दिरों के नाम इस प्रकार हैं।
1.सेर खाङग् अर्थात-स्वर्ण कक्ष
2.क्विल खोरखाङग्-गुहा मण्डल कक्ष
3.द्रोमतोन ल्हाखाङग् चैम्पा-द्रोमतोन का वृहत्त मन्दिर
4.सुगल्हा खाङग्-अकादमी कक्ष
5.ज्हैलमा या गोखाङग्-चित्रविधि का प्रवेश कक्ष
6.गोन-खाङग-महाकाल कक्ष
7.करव्यून ल्हाखाङग-लघुश्वेत मन्दिर
8.व्यमसपा चैम्पोल्हा खाङग् -महामैत्रैय मन्दिर
9.द्रोमतोन ल्हाखाङग् -द्रोमतोन मन्दिर

सुगल्हा खाङग् ताबो का प्रमुख एवं महत्वपूर्ण कक्ष रहा है। प्रवेश द्वार के भीतर दोनों ओर गच (प्रहरी) प्रतिमाएँ हैं। सामने ही महाविरोचन की एक ही आकार की चार प्रतिमाएँ एक-दूसरे की ओर पीठ किए बैठी हैं। मुख्य मूर्ति के दोनों ओर दो मूर्तियाँ हैं, जिन्हें रत्नभद्र और अतिशा की मूर्तियाँ माना जाता है।
सेर खाङग् के भित्ति चित्रों में स्वर्ण का प्रयोग हुआ है इसीलिए इसे स्वर्ण मन्दिर कहा जाता है। गोखाङग् अथवा गोन खाङग् में महाकाल अथवा वज्र भैरव का स्थापित होना सिद्ध करता है कि यह कक्ष तन्त्रशोध के लिए प्रयोग में लाया जाता था, क्योंकि इस कक्ष में आम आदमी का प्रवेश वर्जित था। यहाँ बुद्ध तथा गच (प्रहरी) प्रतिमाएँ हैं। क्विल खोर खाङग् में केवल मण्डप ही बचा है। भीतरी दीवारों में रहस्मय मण्डप चित्रित हैं। यह कक्ष पूरी तरह ताँत्रिक पद्धति पर आधारित हैं। मन्दिर के मुख्य देव विरोचन हैं तथा दायें-बायें अन्य देव चित्रित हैं। छत में अनेक पशु-पक्षी तथा गंधर्वों और किन्नरों का भी चित्रण हुआ है।
द्रोमतोन ल्हा खाङग् का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा या होता रहा। यहाँ शाक्यमुनि अमिताभ व तारा आदि के चित्र भी हैं।
व्यमस-पा-छैम्पों (चैम्पो) ल्हाखाङग् मैत्रैय को समर्पित है। धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में मैत्रैय कमलासन पर विराजमान हैं ताबो के अधिकतर मन्दिरों में गर्भगृह हैं।
बाकी चार मन्दिर बाद में बने हैं जिनका निमार्ण काल (1008.1064) बताया जाता है। इन पाँचों भवनों के अपने-अपने तथागत हैं और हर तथागत के चार-चार देवता पाँचों को मिलाकर वृत, पाँचों वृत्तों को मिलाकर वज्र धातु मण्डल बनाया गया है। ये पाँच तथागत हैं महाविरोचन, अक्षोम्य, रत्नसंभव, अमिताभ और अमोघसि(। इन पाँचां अपने-अपने देवता हैं। आश्चर्य है कि सभी के नाम में आगे अथवा पीछे वज्र शब्द का प्रयोग हुआ है। सम्भवतया इसी कारण इस मण्डल को वज्रधातु मण्डल का नाम दिया गया है। उदाहरण के लिए महाविरोचन के साथ जो चार देवियाँ हैं उनके नाम सत्ववज्री, रत्नवज्री धर्मवज्री और कर्मवज्री हैं। अक्षोम्य के साथ वज्रसत्व, वज्रराज, वज्रराग और वज्रसाधु हैं। इसी प्रकार अन्य तीन तथागतों में भी वज्र नामी देवी देवता हैं। बाहरी परिक्रमा में भी आठ वज्र नामी देवियाँ हैं। चार द्वारपाल भी वज्र नामधारी हैं। इस मण्डल को महामण्डल कहा जाता है। इसे महामण्डल इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसमें भद्र-कल्प के सभी हजार बुद्धों को दर्शाया गया है।
इस महामण्डल की दूसरी विशेषता है हजार बुद्धों का एक सा चित्रण। कला के इस अनोखे नमूने के भित्ति चित्रों में महात्मा बुद्ध के जीवन की झलकियाँ जातक कथाएं और बुद्ध उपदेश आदि उपलब्ध हैं जो छत के टपकने के कारण क्षति ग्रस्त हो गये हैं। दीवारों पर बहुत से लेख हैं जो फ्रेंक ने खोजे थे जिनमें ताबो की स्थापना के बारे में उल्लेख किया गया है। महाविरोचन के साथ उनकी देवियाँ नहीं हैं जो वर्णित हैं। सम्भवतया वे तोड़-फोड़ की शिकार हो गईं हैं।
बाद के बने चार मन्दिरों में से कर-अब्यूनल्हा-खाङग् श्वेत मन्दिर अथवा देवी मन्दिर के नाम से जाना जाता है। यह ‘ताबो’ मठ की सीमा से बाहर है। इस मन्दिर में भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध, मैत्रैय और मंजुश्री के चित्र हैं जो खराब हो गये हैं। इस भवन का निर्माण बाद में जोमो (भिक्षुणियों) के लिए हुआ।
मठ के ऊपर भिक्षुओं के आवास के लिए 19 गुफ़ाएँ थीं जिनमें से अब एक ही बची है इसे फ़ो-गोम्पा कहा जाता है। इस जनहीन गुफ़ा में पूजा न होने पर भी ‘ताबो’ आने वाला हर यात्री यहाँ आता अवश्य है। चार कमरों की इस गुफ़ा का टु-खाङग् (सभाग्रह) 7/50/4/20 मीटर है। यहाँ भी बुद्ध, शक्यमुनि एवं तारा आदि के चित्र हैं।
फ्रैंक के अनुसार (1909) ताबो में उस समय लगभग 5 फुट ऊँचे पाण्डुलिपियों के दो ढेर थे। एक ढेर में सुन्दर लिखावट में सैकड़ों खुले पृष्ठ थे, जो प्रज्ञापारमिता की बारह पुस्तकों का तिब्बती अनुवाद प्रतीत होता था। फ्रैंक ने सिक्ख सेनापति जोरावर सिंह द्वारा इस महाविहार को क्षति पंहुचाए जाने से इन्कार किया है, किन्तु टुकी (1933) इस बात को नहीं मानते। इसके बाद भी फ्रैंक अधिक उचित प्रतीत होते हैं। क्येंकि जोरावर सिंह के हमलों और मुसलमान मूर्ति भंजकों के कारण हुए महाविनाश के बाद भी ताबो महाविहार को क्षति न पहुँचना इस बात का सबूत है कि यहाँ होने वाले साहित्यक कार्यों के कारण ताबो पूर्ण-रूपेण सुरक्षित रहा। फ्रैंक ने जिन प्रतियों की चर्चा की है वे सम्भवतया रिन-चैन-त्साँग-पो (रत्नभद्र) अथवा उसके साथियों के अनुवाद का परिणाम हैं। इनसे निश्चित ही बौद्ध धर्म तथा अनुभवकों को आसानी से समझा जा सकता है।
ताबो के ‘टु-खाङग्’’ (सभाग्रह) में जो पुस्तकें आज भी विद्यमान हैं वे हैं, ‘‘अध समयालंकार लोक, विनय संग्रह’ पंच सहस्रिका प्रज्ञापारमिता, सतसहस्रिका प्रज्ञा पारमिता, अष्ट सहस्रिका प्रज्ञा पारमिता, बौद्धवर्यावतार, सद्धर्मपुष्टिका’ ‘सत्यदयावतार’, संक्षिप्त मण्डल सूत्रावृत्ति’’।
बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ ही दसवीं शताब्दि के अन्तिम चरण में परम्परित-प्रचलित चित्र कला शैली के अद्भुत और विलक्षण नमूने एक हजार वर्षों के बाद भी प्रमाणों सहित केवल इसी एक महाविहार में पूर्ण रूपेण सुरक्षित हैं। कालान्तर में चीन में विकसित चित्र कला का प्रभाव भी बाद में निर्मित 4 मन्दिरों में स्पष्ट है। इसके कक्षों में रचा गया साहित्य कालान्तर में ‘रत्न सिद्ध’ द्वारा संकलित तंजूर ग्रन्थ संग्रह का एक विशिष्ट भाग बना।
ताबो महाविहार को राजाश्रय के साथ ही अन्तर्देशीय व्यापारियों, धर्म प्रचारकों, कलाकारों एवं वास्तु शिल्पियों के आश्रय स्थल रहने के कारण ही अन्य समुदायों का भी सहयोग प्राप्त रहा।
जहाँ रत्नभद्र के बाद भी अन्य कला शैलियों के प्रमाण इस महाविहार के कक्षों में भित्ति चित्रों एवं आलेखों के रूप में मिलते हैं वहाँ मठ की सीमा के दायरे में कुछ स्तूप रत्नभद्र काल से पूर्व के भी बने हैं। इन स्तूपों के भीतरी भाग भी चित्रों से सुसज्जित हैं। इस से सिद्ध होता है कि रत्नभद्र से पूर्व भी ताबो बौद्ध धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। इस महाविहार के समान प्रचीन और निरन्तर क्रियाशील सम्भवतया शायद ही कोई और संस्थान हो। इसके बारे में बने भित्ति चित्रों में इतनी अधिक मुखरता है कि उनके परिशीलन से इनका इतिहास जाना जा सकता है। इस कार्य को मठ की दीवारों पर अंकित आलेखों ने और सरल कर दिया है।
कक्षों के आकार से स्पष्ट होता है कि यह महाविहार एकांत साधना के लिए नहीं बना था, अपितु सामूहिक कार्यकलापों के लिए इसका निर्माण हुआ था। इस बात का प्रमाण फ़र्श से ऊपर अचित्रित पट्टिका और कक्षों में प्रतिमाओं का न होना है। केवल ‘सुग-ल्हा-खाङग्’तथा ‘‘व्यसम-पा-चैन-पो-ल्हा-खाङग्’’ ही ऐसे मन्दिर हैं जहाँ प्रतिमाएँ स्थापित हैं वह भी ऐसे कि कक्ष का प्रयोग बैठक के लिए हो सके।
स्पष्टतया इस महाविहार का उद्देश्य साहित्य संकलन, सम्पादन, अनुवादक और संवर्धन आदि को सम्पन्न करना रहा है। यही कारण है कि टु-खाङग् में भी गच प्रतिमाएँ दीवार पर बहुत ऊँचे स्थापित की गई हैं। ताबो कक्ष मेंं बैठने वाले विद्वानों को असुविधा न हो। ताबो महाविहार के निमार्ण में येगदान देने वाले बहुत से विद्वानों, कलाकारों के नाम प्रकाश में आये हैं। इनमें काश्मीर के तन्त्र विशेषज्ञ ‘ज्ञानश्री’ नालाफ़ें, नीमशरण और कश्मीरी मूर्तिकार विधिक के नाम प्रमुख हैं।
1992 में इस क्षेत्र के सर्वोक्षण में चट्टानों पर खुदाई से बनी आकृतियों में स्वास्तिक का अंकन बहुतायत से पाया गया। स्वास्तिक का प्रयोग अतिप्राचीन काल में प्रभावी बौन धर्म के धार्मिक चिन्ह के रूप में किया जाता था। अतः चट्टानों पर खुदे स्वास्तिक चिन्हों से यह प्रमाणित होता है कि ताबो न केवल एक हजार वर्ष पूर्व रत्नभद्र के प्रयासों का फल है वरन् उससे पूर्व काल के चित्रित स्तूपों और बौन धर्म के प्रतीक स्वास्तिक चिन्हों के द्वारा युगों पुरानी कहानियाँ सुनी जा सकती हैं। कहीं भी इतने अधिक चिन्ह उस युग-धर्म अथवा सम्प्रदाय की हलचलों की कहानी कहते हैं।
इतना ही नहीं, इस महाविहार के मूल कक्षों में बने चित्र, शैली-शिल्प एवं विषय वस्तु के आधार पर नालन्दा के भित्ति चित्रों के समरूप लगते हैं। अतः इन्हें प्रचलित धारणानुसार कश्मीरी शिल्प शैली से नहीं जोड़ा जा सकता। कश्मीरी कला का प्रभाव केवल मात्र विधिक के मूर्तिकार होने से ताबो की प्रतिमाओं पर स्पष्ट परिलक्षित होता है।
भित्ति चित्रों में पाल चित्र शैली का प्रभाव पूर्ण तथा स्पष्ट है। इसके साथ ही रंगों में नीले रंग का बाहुल्य, घुमावदार, लहरीलेपन का रेखाँकन भाव-मंगिमाओं में तीखापन आदि बाद के बने कक्षों में चीनी चित्र कला के प्रभाव को स्पष्ट करते हैं और इन कक्षों के निर्माण काल का समय इंगित करते हैं।
सम्प्रति तीस से भी अधिक किशोर भिक्षुओं को शैक्षणिक और आध्यात्मिक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है। आज भी यहाँ बौद्धधर्म एवं बौद्धदर्शन तथा साहित्य का अध्ययन किया जाता है।
ताबो महाविहार की स्थापना के एक हजार वर्ष पूरे होने पर बौद्धधर्मावलम्बियों द्वारा 15 दिन का एक शिक्षा उत्सव आयोजित किया गया जिसमें प्रमुख दलाई लामा ने 1996 में ताबो में अध्ययन रत किशोर भिक्षुओं को रत्नभद्र्र की शृंखला से जोड़ने के लिए काल-चक्र की शिक्षा दी। इस उत्सव में भाग लेने देश-विदेश से लाखों बौद्ध यात्री, जिज्ञासु, पत्रकार एवं पर्यटक दोनों मार्गों से ताबो पहुँचे। भारी वर्षा के कारण स्थान-स्थान पर मार्ग अवरुद्ध होने के कारण बहुत सारा मार्ग पैदल तय कर साहसी लोग ताबो पहुँचे। 1996 में सम्पन्न हुए काल-चक्र को नमन करके हजारों बौद्ध लामाओं, लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों ने इस शीत मरुभूमि को रमणीक तीर्थ स्थली की रज लेकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये।

ha mera desh| हा-मेरा देश/सीताराम चौहान पथिक

ha mera desh : सीताराम चौहान  पथिक की रचना हा-मेरा देश वर्तमान स्थिति हिंदुस्तान की दर्शाता है कि जहां एक रोटी के लिए बचपन श्रम करने के लिए मजबूर है लोग अभी भी भूखे मर रहे है गरीबी का आलम यह है कि तन पर लपेटने के लिए कपड़ा नहीं है मायूसी में किसान और सैनिक खुदखुशी करने पर मजबूर हैं लेखक का सन्देश साफ़ है कि देश में खुशहाली हो अमीर और गरीब में मतभेद न हो हर व्यक्ति को समान्य अवसर मिले प्रस्तुत है रचना ।

 

हा — मेरा देश ।


चेहरे पर मासूमियत, मजबूरी की छाप ,
मुरझाया बचपन चला- बूढ़ी दादी के साथ,
कैसे गुजरेगा ये दिन- कैसे गुजरेगी रात ,
फ़िक्र यही , बस किस तरह बुझे पेट की आग।

हाय — मेरे देश की यह कैसी तक़दीर ,
भूखे मरते इक तरफ-नोटो में तुले अमीर ,
ऐसा कैसे हो गया, हाय- गांधी का देश ॽ
गांधी के बंदर सभी , हंसते बेच ज़मीर ।

देख ग़रीबी देश की , बापू जी गये पसीज ,
किया अलविदा सूट को- लंगोटी पर रीझ ,
बापू बंदर  आपके– बिगड़ गये है तीन ,
तुम्ही सुधारों अब इन्हें – सीखें ज़रा तमीज ।

मायूसी में जी रहा

धरती पुत्र किसान ,
सरहद पर है जूझता-

मन से दुखी जवान ,
किसान और जवान गर,

करें खुदकुशी हाय ,
रहनुमाओं — बुनियाद पर

थोड़ा सा दो ध्यान ।

ना तोलो जात ग़रीब की

इंसानी  फ़र्ज़ निभाओ ,
हे राजनीति के जयचंदो ,

दामन पाकीज बनाओ ,
घुन देश- भक्ति को लगा

तरसती भारत माता ,

दुश्मन के सिर पर चढ़ो , मौत बन जाओ ।

यह देश शूरवीरों का है–
घिघियाने की भाषा छोड़ो ,

दुश्मन ललकार रहा घर में ,

दोनों बाजू उसके तोड़ो ,
राणा प्रताप के भामाशाह ,

आगे बढ़ कर आहुतियां दो ,

जो बिखर गई कड़ियां उनको,

दानशबंदी से फिर जोड़ों ।

कोई भूखा- नंगा ना रहे ,

इंसाफ  और खुशहाली हो ,
बुढ़िया दादी का हाथ पकड़ ,

फिर से ना कोई सवाली हो ,
हो ऐसा हिन्दुस्तान मेरा

हर देश-भक्त भारतवासी ,
ध्वज पथिक तिरंगा फहराये ,

ना कहीं कोई बदहाली हो ।।
ha - mera-desh
सीताराम चौहान पथिक
दिल्ली

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  1.  शिक्षा का मूल्यांकन 
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shiksha ka moolyaankan/सीताराम चौहान पथिक

shiksha ka moolyaankan: सीताराम चौहान पथिक की रचना शिक्षा का मूल्यांकन जो वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर कटाक्ष है प्रस्तुत है –


शिक्षा का मूल्यांकन ।

विश्व विद्या्लय ज्ञान का विश्व-मन्दिर ।
अथवा उच्च शिक्षा का

आधुनिक फैशन- रैम्प ॽ
वहां- फैशन रैम्प – पर

टिकटों द्वारा प्रवेश होता है ,
यहां- शिक्षा परिसर – रैम्प पर

प्रवेश निशुल्क है ।

प्रातः से सांय तक रंग- बिरंगे

डिजाइनदार अल्प – परिधानों मे ,
तितलियों की कैटवाक होती है

शोख अदाओं के साथ ,
शिक्षा – परिसर नहीं ,

मानों फिल्मी स्टूडियो हो ।
रैगिंग प्रतिबंधित होने से

भ्रमरो को थामना पड़ता है
दूर से कलेजा अपने हाथ । जी हां ,

यही शिक्षा का विश्व – विद्यालय परिसर है ।
शिक्षा- संस्कृति और सभ्यता का केन्द्र ।
किन्तु शिक्षा कैसी — कक्षाओं में

छात्र नदारद
कैंटीनों में चटपटे व्यंजनों का
रसास्वादन करते ,
रोमांस करते छात्रों की टोलियां ।।

संस्कृति के नाम पर

पश्चिम का भद्दा अंधानुकरण ।
भारतीय भाषाओं का उपहास ।
दासता की प्रतीक अंग्रेजी का वर्चस्व ।
यही है हमारे राष्ट्रीय नेताओं
की कथनी-करनी का अन्तर।
भारत की राष्ट्रीयता पर
कुठाराघात ।
नैतिकता का गिरता स्तर ।

अब समय आ गया है ,
मैकाले की शिक्षा – प्रणाली पर

पुनर्विचार करने का ,
अर्धनग्न फैशन – प्रवॄति को
करना होगा दृढ़तापूर्वक हतोत्साहित ।
छात्रों को स्कूलों की तरह देना होगा ,
राष्ट्रीय ड्रेस – कोड ।
शिक्षा – परिसर में

महापुरुषों की अमॄत -वाणी का
गुंजाना होगा जय – घोष ।

देश- भक्त  क्रान्ति कारियो के

उल्लेखनीय योगदान का ,
पाठ्य- पुस्तको में करना होगा

निष्ठापूर्वक समावेश ।
तभी होगी भारतीय शिक्षा सार्थक एवं निर्दोष

shiksha- ka- moolyaankan
सीताराम चौहान पथिक

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जीवन परिचय सीताराम चौहान पथिक

जीवन – परिचय ।

aatm-vedana-sitaram-chauhan-pathik
सीताराम चौहान पथिक
  • नामसीताराम चौहान पथिक
  • जीवन संगिनीस्व रंजना चौहान
  • जन्म तिथि: 5 जुलाई, 1940
  • जन्म स्थान- बठिंडा, पंजाब
  • योग्यता-एम ए हिंदी, बी-एड, साहित्य रत्न, प्रभाकर ,अनुवाद में डिप्लोमा ।

प्रकाशित पुस्तकें:


  • घूंट-कुछ कड़वे कुछ मीठे ।
    (कहानी- संग्रह)
  • नारी तुम केवल श्रद्धा हो (नारी-प्रधान नाटक संग्रह )
  • दर्पण — कविता संग्रह
  • वेदनाओ के ज्वाला- मुखी(कविता- संग्रह )
  • लावा ( कविता – संग्रह )
  • पीड़ा- घटते मूल्यों की( कविता – संग्रह )
  • कृष्ण- सुदामा मैत्री (खण्ड- काव्य )
  • स्वाभिमानी महाराणा प्रताप (खण्ड- काव्य)
  • गुरुकुल शिक्षा- एक स्वर्णिम अध्याय( खण्ड- काव्य )
  • बचपन और पचपन (बाल- गीत संग्रह)

साहित्यिक-उपलब्धियां


अब तक 100 सम्मान, जिनमे प्रमुख हैं

  1. राष्ट्रीय महा – महोपाध्याय विदश्री,
  2. जीवनोपलब्धि सम्मान,
  3. विद्या- वाचस्पति सम्मान,
  4. लाइफ- टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड ,
  5. अभिनन्दन -पत्र,
  6. भाषा – भूषण सम्मान आदि।

अन्यान्य —


  1. यूनेस्को के अन्तर्गत पुस्तक- एच आई वी काउन्सलिंग गाइड का हिन्दी अनुवाद,
  2. फ्रैंक माॆॅरिस की अंग्रेजी पुस्तक– जवाहरलाल नेहरू का हिन्दी अनुवाद,
  3. दिल्ली सरकार के वरिष्ठ विद्यालयों में हिंदी अध्यापन का 40 वर्षीय अनुभव ।

सम्प्रति —


  • सेवा- निवॄत हिन्दी शिक्षक , स्वतन्त्र साहित्य सॄजन , अध्ययन -मनन ।।

सम्पर्क —


  • सी-8 , 234ए , केशव पुरम, नयी दिल्ली — 110035
  • मोबाइल – 09650621606
  • दूरभाष-011-27106239
  • ई-मेल ChauhanSr40@gmail.com 
  • राष्ट्र-हित में नेत्रदान संकल्प

सीताराम  चौहान पथिक की रचना हिंदीरचनाकर पर