Corona time painful story | पिता और बेटे की दर्द भरी कहानी

Corona time painful story| पिता और बेटे की दर्द भरी कहानी

रुका न पंछी पिंजरे में

Corona time painful story -धनेसर को यह समझ में नहीं आ रहा है कि क्या हो गया है, जिसको देखो वहीं मास्क लगाए हुए है। हर आदमी के चेहरे पर काला, नीला, पीला, हरा, सफेद, लाल कपड़ा न जाने कहाँ से आ गया। ये सब लोग एकाएक डागडर वाला मास्क क्यों लगा लिये ? पिछले साल होली के तीन दिन पहले साथ में काम करने वाले अकरम का एक्सीडेंट हुआ था तो देखा था डागडर बाबू लोग ऐसे ही लगाए हुए थे चेहरे पर। केवल आँखें ही दिख रही थी। होली के पहले तो ऐसा कुछ नहीं था। इस बार होली में वह घर गया था, तो आते वक्त अपने इकलौते बेटे मोहित को भी साथ लाया था । मोहित की माँ कुसुमी मोहित के जन्म के साल भर बाद ही टायफायड से चल बसी थी। पूरे गाँव में वह दिन भर इधर-उधर लफेरिया की तरह घूमता रहता। धनेसर की माँ पार्वती भी तो अब बूढ़ी हो गई है, कहाँ-कहाँ देखे उसे?  कभी आम –अमरूद तोड़ने, तो कभी मछली पकड़ने, तो कभी गाँव के चरवाहों के साथ कबड्डी-चिक्का खेलने में मग्न रहता। इस साल जुलाई में पाँच साल का  होने वाला है।
फैक्ट्री के गेट के सामने ही नया- नया स्कूल खुला है। रामबरन कह रहा था कि नर्सरी से किलास पाँच तक बच्चों तक का सकुल है। रंगरेजी मेडियम में पढ़ाई होगी। उसने अपने बेटे रीतेश को नर्सरी में डाला है। फीस तो ज्यादा है लेकिन बच्चें के भविष्य को बनाने के लिए थोड़ा कष्ट उठा लेंगे। खर्चा में काट-कटौती करेंगे। अच्छा सकुल में पढ़ेगा तभी तो बाबू बनेगा। यहीं सब सोच-गुन कर वह भी अपने मोहित को लाया है। एक दिन नाईट ड्यूटी ऑफ में जाकर पता लगाया तो साफ-साफ गोर-गोर मैडेम जो काउंटर पर बैठती हैं बोली “ बच्चा कितने साल का है ?’’ तो बताया कि चार पूरा होई गवा है। जुलाई में पाँच साल को होई जावेगा। मैडेम बोली थी कि “ले आओ, लकेजी में डमिशन हो जायेगा।‘’
घर से यहाँ आया तो पता चला कि फैट्री बंद है। करओना  नाम की कोई नई बीमारी चली है इसी  कारण फैट्री बंद होई गवा है। अब धनेसर के लिए बड़ा ही लमहर मुसीबत होई गवा है। पहले गाँव-जवार के चार-पाँच मजदूरों के साथ रहता था तो क्वाटर भाड़ा भी कम पड़ता था, खाना-खुराकी भी कम लगता था। रामबरन से बात करने के बाद मोहित को यहाँ लाने को मन बनाया तो सोचा, बच्चा को पढ़ाना-लिखाना है तो क्वाटर सेपरेट होना चाहिए। यहीं सोचकर उसी मुहल्ले में एक कमरे का क्वाटर ढूँढ़ा।  लैट्रीन-बाथरूम शेयरिंग है। रूम बड़ा है, किचेन के लिए भी काफी जगह है। किराया सुनकर तो तिलमिला गया था लेकिन बच्चे के केरियर का सवाल है , सोचकर कहा ‘ ठीक है साहेब !’’

अन्य कहानी पढ़े : पोती की डायरी 
धनेसर जनवरी में अपने नए क्वाटर में आ गया। खाने-पीने का अपना अलग व्यवस्था कर लिया। एक फोल्डिंग चारपाई भी खरीद लाया। आखिर बच्चे को तो नीचे नहीं न सुला सकता है, वो भी पढ़ने वाला बच्चा। जनवरी से उसका दरमाहा एक हजार रुपये बढ़ा है। पहले सात हजार मिलता था अब आठ हजार मिलेगा। इसी बल पर उसने सारा पिलान किया था। मगर भगवान् को कुछ दूसरा ही मंजूर था।
धनेसर के नए मकान-मालिक प्रभूदयाल त्यागी, मेरठ के रहने वाले थे। गुड़गाँव में उनका  इलेक्ट्रॉनिक की दुकान है। बारह कमरे और तीन लैट्रीन-बाथरूम उन्होंने बनवाया है। ज्यादातर यूपी-बिहार के मजदूर इनमें रहते हैं। कुछ परिवार वाले तो कुछ अकेले। प्रभूदयाल जी ने धनेसर को बता दिया था कि किराया एडवांस में देना होगा यानी फरवरी का भी किराया जनवरी में देना होगा। किराया तीन हजार रुपये प्रति माह तय हुआ है। जनवरी में आठ हजार रुपये तनख्वाह मिली, तो वह जनवरी-फरवरी के किराया और राशन-पानी में ही चला गया।
मार्च में होली की छुट्टी जाते समय ही उसे मार्च और अप्रैल का किराया चुकाना पड़ा था। घर से आते वक्त केवल एक हजार रुपये ही बचे थे। सोचा था वहाँ फैट्री पहुँचने पर सब ठीक हो जायेगा लेकिन यहाँ तो सबकुछ बंद पड़ा है।
एक दिन घूमते-घूमते कॉन्वेंट की तरफ गया तो देखा ताला लगा हुआ है। मोहित भी साथ गया था। बड़ा खुश था वह स्कूल जाने के नाम पर, लेकिन वहाँ तो मायूसी  ही हाथ लगी थी। आते समय राशन दुकान वाले लाला रघुवंश अग्रवाल मिल गये। देखते ही बोले “ धनेसर ! तुम्हारे नाम पर सात सौ रुपये बाकी हैं। दो महीने से ज्यादा हो रहे हैं। कब दोगे ?’’
“ पा लागी लाला जी ! फैट्री खुलने तो दो सब चुका देंगे। कभी मेरे ऊपर बकाया रहा है क्या ? धनेसर ने पास आकर कहा।
“ सो तो ठीक है, लेकिन आजकल बड़ी कड़की चल रही है। कोरोना महामारी पूरे दुनिया में छाई गवा है – फैक्ट्री सब बंद हो गये हैं —  न जाने कब खुलेंगे — सब मज़दूर अपने गाँव जा रहे हैं। हमारी हालत भी पतली हो गई है। प्रेम से दे दो , जोर जबरदस्ती करना ठीक नहीं लगता है।‘’ लाला ने अपनी टेढ़ी निगाह से धनेसर को देखते हुए कहा।
“ हाँ- हाँ ! ठीक है , ये लीजिए पाँच सौ रुपये। बाकी के लिए थोड़ा धीरज रखिए ,वो भी दे दूँगा।‘’ शर्ट के भीतर वाले पॉकिट से पाँच सौ का नोट निकाल लाला को थमाते हुए धनेसर ने नरम आवाज में कहा।
क्वाटर में जो राशन था, बड़े मुश्किल से सात दिन तक चला। अब आगे क्या होगा? कैसे चलेगा ? धनेसर को कुछ समझ नहीं आ रहा था। रामबरन, अशरफ, मकेशर, फूलचंद, शशिभूषण, चंदेसर, गणेश , सब गाँव-जवार वाले बार-बार घर जाने की बात कर रहे थे। जब यहाँ फैक्ट्री बंद होई गवा तो हम लोग यहाँ क्या करेंगे ? जब सब कुछ सब जगह बंद है तो क्या किया जाए ? सरकार टेलीविजन पर कह रही है कि घर से बाहर नहीं निकलो नहीं तो कोरोना पकड़ लेगा। टी. वी. पर खबर देख कर बहुत डर लग रहा है। बाहर कोई काम नहीं घर के अंदर खाने के लिए अन्न का दाना नहीं। ऐसे में कोरोना से मरे या ना मरे लेकिन भूखे जरूर सब मर जायेंगे। सब मिलकर फाइनल किए कि जब मरना ही है तो अपने धरती पर मरेंगे। वहाँ एक-दो मुट्ठी जो भी मिल जायेगा गुजारा कर लेंगे। जैसे पहले ज़िनगी काटते थे वैसे फिर काटेंगे। यहाँ परदेस में कोई पूछने वाला नहीं ,वहाँ तो अपना गाँव-समाज है। अपनी माटी की बात ही कुछ और होती है। मरने पर चार आदमी कंधा देने वाला तो मिलेगा। यहाँ तो कुत्ता-कौवा की तरह भी पूछने वाला कोई नहीं।
धनेसर बड़ा असमंजस में था। उसने पड़ोसी परमेसर के मोबाइल पर अपने माई से बात किया।
“ प्रणाम माई ! ‘’
“खुश रह बेटा ! युग युग जी-अ  –।‘’
“ माई ! यहाँ तो फैट्री बंद है। सब कुछ बंद है। यहाँ तक कि ट्रेन-बस भी बंद है। क्या करे ?  उस पर से मोहित भी साथ है। माई ! कल से उसे बुखार है।  कुछ समझ नहीं आवत है? ‘’
“ तू किसी तरह चली आव बेटा ! मोहित का चेहरा मन से बिसरत नाहीं हवै। मोहित को देखने को मन छछनअ ता । तू  बेकार ही मोहित को ले गइल –। चली आव  बेटा ! कइसे  भी चल आव —  मोहित को देखे  बड़ी मन करत बा बेटा —  मोहित को ले आव  बेटा —  मोहित को  ले आव व–   ले आव–  ।‘’
“ठीक है माई !’’ कहकर धनेसर ने फोन काट दिया।
गाजीपुर और बलिया के आस-पास के सभी मज़दूरों ने अपने गाँव जाने का निर्णय लिया। सब एक साथ मोटरी-गेठरी बाँध चल पड़े। रास्ते में हर दस–बीस किलो मीटर की दूरी पर यूपी- बिहार के मजदूरों का झुंड दिखाई देता। कहीं- कहीं टेम्पु या पीक-अप  जैसे छोटे-मोटे वाहन भी दिख जाते थे जिनपर धान की बोझा की तरह लदे हुए स्त्री-पुरुष और बच्चें दिखाई पड़ते। जो जैसे है वैसे ही अपने घर की तरफ बढ़ता दिखाई देता। बड़ा भयावह मंजर था। मानवता का ऐसा विवश- विकल रूप शायद ही कभी देखने को मिला हो। बाप के कंधे पर बैठी बेटी, माँ के गोद रोता दूधमुँहा बच्चा,  माथे पर  बैग  को रखे चल रहे किशोरावस्था के लड़के-लड़कियाँ हृदय में अजीब-सी करुणा जगा रहे थे।  मोहित बुखार में बड़बड़ा रहा था – दादी— — दादी–  दादी–। उसका शरीर गर्म तवे की तरह तप रहा था। धनेसर उसे रास्ते में पारले-जी बिस्कुट देकर पानी पिलाता फिर कंधे पर लाद चल देता। पूरा काफिला पैदल ही चल रहा था।  ट्रेन-बस बंद, सारे साधन बंद, पूरा देश बंद लेकिन इनको इनकी धरती बुला रही थी। वे चल पड़े थे एक जुनून के साथ अपने गाँव, अपनी धरती के लिए।
जहाँ एक ओर किराया न दे पाने के कारण घर से सामान बाहर फेकने वाले गुड़गाँव के मकान-मालिक थे, राशन का बकाया वसूलने के लिए मार-पीट पर उतारु लाला-साहू- महाजन –बनिया थे वहीं इसी देश में राह चल रहे इन बेबस-मज़बूर मज़दूरों के लिए लंगर चला रहे लोग भी। रास्ते में जहाँ लंगर दिखता वहीं काफिला रुक जाता। दयालु लोग अपने-अपने घरों से खाना बनवा कर लाते। भरपेट खिलाने के बाद रास्ते के लिए भी देते। आखिर यह देश राजा बलि, दानवीर कर्ण, महावीर जैन, गौतम बुद्ध, कबीर और नानक का देश है। खाने-पीने के साथ-साथ दवा-दारू की व्यवस्था भी कर रहे थे लोग। धनेसर ने मोहित को लंगर के एक सज्जन को दिखाया।
“अरे ! इसका शरीर तो गर्म तवे की तरह तप रहा है। कुछ दवा दिया या नहीं।‘’
“ साहेब ! जो भी पैसा था सब राशन-पानी में खर्च हो गया। मकान-मालिक अगले महीने का किराया नहीं देने पर क्वाटर से निकाल दिया। जिस फैट्री के नौकरी के भरोसे पर बेटे को लाया था वहीं फैट्री बंद होई गवा , साहेब – क्या करें —– कुछ समझ में नहीं आवत है – साहेब–  ।’’ धनेसर फफक –फफक कर रोने लगा।
“चलो,कोशिश करते हैं। हमारे पास जो दवा है देते हैं,लेकिन स्थिति बहुत खराब हो गई है। बचने का चांस बहुत कम है। दूसरे में कोरोना का ऐसा कहर है कि यदि गलती से पता चल जाए तो तुम्हें और तुम्हारे बच्चे दोनों को चौदह दिनों के लिए क्वारेंटाइन सेंटर में डाल देंगे।‘’  उस सज्जन ने ठण्डी साँस लेते हुए कहा।
उन्होंने दो टेब्लेट को आधा-आधा टुकड़ा और एक टेब्लेट पूरा मोहित को खिलाया लेकिन दवा खाने के एक मिनट बाद ही मोहित ने उल्टी कर दी। सज्जन अपना माथा पकड़ कर बैठ गए।
धनेसर रोये जा रहा था। उस सज्जन ने धनेसर के बगल में बैठे अशरफ को को अपने पास बुलाकर कहा “ देखो ! तुम्हारे साथी का लड़का दो-तीन घण्टे का ही मेहमान है। इसकी अंतिम घड़ी आ गई है।  इससे अपनी भाषा में समझाना कि रास्ते में यह किसी को पता न चलने दे कि इसके कंधे पर लदा चार साल का बच्चा मरा हुआ है। यदि किसी को पता चल गया तो बच्चे का चीड़ –फाड़ करेंगे और उसे कम-से-कम चौदह दिनों के लिए क्वारेंटाईन कर देंगे। फिर तो घर जाना भूल ही जाना पड़ेगा। ठीक से समझ गए न ।‘’ इतना कह सज्जन अपने आँखों में आए आँसुओं को पोछने लगे।
धनेसर अपने पीठ पर मोहित को लादे चल रहा था। अशरफ ने उसके कंधे पर हौले से हाथ रख कहा “ देखो धनेसर भाई ! खुदा की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती शायद मोहित का तुम्हारा साथ इतने ही दिनों का हो। अगर मोहित चला जाता है तो किसी को पता नहीं चलने देना नहीं तो इसका मरा मुँह भी इसकी दादी नहीं देख पायेगी। यदि ज़रा भी भनक लग गया तो इसके शरीर को अस्पताल में ले जाकर चीड़-फाड़ करेंगे और तुम्हें  भी कम-से-कम चौदह दिनों के लिए क्वारेंटाईन कर देंगे। उस ऊपर वाले के आसरे ही हम लोग हैं। ध्यान रखना, धनेसर भाई– ।‘’
धनेसर को माई की बात याद आ गई “मोहित को देखे  बड़ी मन करत बा बेटा —  मोहित को ले आव  बेटा —  मोहित को  ले आव —   ले आव— – मोहित को —-।‘’
धनेसर ने मोहिता ! मोहिता ! पुकारा  लेकिन मोहित के शरीर में कोई हलचल नहीं थी । पिंजड़े का पंछी उड़ा चुका था।

अन्य  रचना  पढ़े : अनुभव 
 धनेसर और अशरफ दोनों सड़क किनारे झाड़ी में जा बैठे। मोहित को कंधे से उतारकर धनेसर ने नब्ज टटोला। नब्ज कब का बंद हो चुकी था। वह पथराई आँखों से मोहित के शव को देख रहा था। वह एकाएक झोके से उठा और मोहित के शव को अपने कंधे पर डाल चल पड़ा।
रास्ते में जहाँ कहीं भीड़ या पुलिस दिखाई देती, धनेसर के मुँह में जुबान आ जाती।
“बेटे !  अब बस दो दिनों में हम पहुँच जायेंगे अपने घर , दादी के पास — ।‘’
“ हाँ !  हाँ !  ठीक है , दादी के हाथ का बना महुआ का हलवा खाना —  हाँ—हाँ —   खाना भाई  — खूब   जमके खाना — ।‘’
“ क्या —  मकई की रोटी – भैस के दूध में   — चीनी मिलाकर खाओगे – ठीक है  खाना – खाना  नाक डुबो – डुबो के खाना — ।‘’
चाँदनी रात में आकाश में चमकता चन्दा अपनी चाँदनी धरती पर दिल  खोलकर लुटा रहा था । धनेसर  मोहिता को अपने कंधे पर डाले  काफिले का साथ अपने धुन में बढ़े जा रहा था। वह चंदा को देख कर गाने लगा-
चन्दा मामा —
आ – रे – आव
वा-रे -आव
नादिया किनारे आव
चांदी के कटोरिया में
दूध -भात लेले आव
हमारा मोहित के
मुहवा में गुटुक—– कहकर पीठ पर लदे मोहित के मुँह में अपने दाहिने हाथ को कौर बना-बना  कर डालने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने  मोहित को  सच में दूध-भात खिला रहा हो। वह प्रमुदित -आनंदित बच्चे की भाँति उछल-उछल कर मग्न बढ़े जा रहा था।
घर पहुँचते ही धनेसर ने मोहित को खाट पर लिटा दिया और स्वयं  धम्म से जमीन पर बैठते हुए बोला “  देखो माई ! मैं ले आया तुम्हारे मोहिता को ।‘’
खाट पर पड़े मोहित को हिलाते हुए बोला “ मोहित ! देखो – दादी – दादी – बात करो  दादी से  । पाय लागो अपने दादी को —  मोहित उठो – उठो-  — अब काहे नहीं बोलत हव– —  रास्ते  में  तो बहुत  बोलत  रह – दादी – दादी — –।‘’
धनेसर का पड़ोसी परमेसर धनेसर की आवाज सुनकर आ गया। खाट से उठती सड़ाध के भभका से मन मिचलाने लगा। उसने खाट के पास जाकर मोहित को ध्यान से देखा। वह बिल्कुल निस्पंद पड़ा था। उसके चेहरे पर मक्खियाँ भिनभिना रही थी। उसने मोहित के नब्ज को टटोला । हाथ बिल्कुल ठण्डा था। उसे समझते देर न लगी कि मोहित को मरे हुए दो-तीन दिन हो चुके हैं। उसने धनेसर के कंधे पर हाथ रखकर कहा “  धनेसर भाई ! मोहिता तो मर चुका है । कैसे बोलेगा ? ‘’
“बाक पगला ! मोहित और हम रास्ते भर बात करते आए हैं। तोहे कोई भरम हुआ है । देखो—देखो—कैसा सुग्गा नियर नाक है , देखो – देखो—होठ  देखो — —   अरे – अभी नींद में है — – – तोहे पता नाही रास्ते में खूब बोलत रहे — रतिया में दूध -भात भी खइलक  –गुटुक – गुटुक —   खूब  दादी  — दादी – करत रहे —  —  सो के उठिहै तो  अपने दादी के गोद में चली  जैहे — –  — — ।  छोड़  द — – सुते दै  ओह के —  ।‘’  धनेसर एक रौ में बोल गया।
“माई ! बड़ी भूख लगी है । कुछ खायके होये तो लाओ , माई !‘’ कहकर धनेसर बाहर चापाकल पर हाथ मुँह धोने चला गया।
“ चाची ! धनेसर तो पगला गया है । तुमको तो सुधी है , देखो—ई – देखो  — मोहित मर गया है। हाथ पकड़ के देखो, नब्ज कब से बंद पड़ी है। शरीर एकदम ठण्डा है। आँख-नाक पर मक्खियाँ भिनभिना रही है। अब तो सड़ाध भी आने लगी है–   चाची–  ।‘’ परमेसर ने खाट पर पड़े मोहित का हाथ पार्वती के हाथ में देते हुए कहा।
पार्वती बार- बार मोहिता का नब्ज पकड़ कर देखती है।नब्ज कब की बंद पड़ी है। कहीं  लेशमात्र भी जीवन शेष नहीं है। उसका शरीर एकदम ठंडा पड़ चुका था। वह पछाड़ खाकर मोहित के शरीर पर गिर पड़ती है “  ओ—हमार—मोहिता – रे – मोहिता – तू तो – दगा दे कर चला गया रे रे – मोहिता  ।‘’ बदहवास हो अपना सिर पटकने लगती है।
जैसे ही धनेसर आँगन में आता है पार्वती उसके गले से लिपट पुक्काफाड़ कर रोने लगती है “ बेटा – हो – बेटा —  — मोहिता  तो दगा देकर चला गया हो – बेटा —  —  मोहिता —  हम सब के छोड़ के चला गया – हो बेटा–  — अरे—मोहिता – रे मोहिता — ।‘’
“ माई ! तुम क्या कह रही हो ? काहे रो रही हो ? तुम भी लोगों के कहे में आ गई।   अरे–   मोहिता बीमार था  इसीलिए नींद नहीं खुल रही है–  चलो – ले चलते है – डॉक्टर के पास  — चलो – चलो– ।‘’
वह झटके से मोहित को उठाकर चल दिया। दो कदम चलने के बाद लड़खड़ा कर औंधे मुँह गिर पड़ा। परमेसर ने दौड़कर उठाया। सीधा करने पर देखता है कि उसके आँखों की पुतलियाँ उलट गई हैं। शरीर बिल्कुल निस्पंद हो गया है । वह मोहिता  को लाने मोहिता के पास जा चुका था।

corona-painful-story-father-son

आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव
 सहायक आचार्य, हिंदी विभाग 
 भवंस मेहता महाविद्यालय ,भरवारी ,कौशम्बी – 212201
 मोबाइल – 7972465770, 7767031429

Corona time painful story | पिता और बेटे की दर्द भरी कहानी रुका न पंछी पिंजरे में/आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव की रचना कैसी लगी।  अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य बतायें , पसंद आये तो समाजिक मंचो पर शेयर करे इससे रचनाकार का उत्साह बढ़ता है

हिंदीरचनाकार (डिसक्लेमर) : लेखक या सम्पादक की लिखित अनुमति के बिना पूर्ण या आंशिक रचनाओं का पुर्नप्रकाशन वर्जित है। लेखक के विचारों के साथ सम्पादक का सहमत या असहमत होना आवश्यक नहीं। सर्वाधिकार सुरक्षित। हिंदी रचनाकार में प्रकाशित रचनाओं में विचार लेखक के अपने हैं और हिंदीरचनाकार टीम का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।|आपकी रचनात्मकता को हिंदीरचनाकार देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है| whatsapp के माद्यम से रचना भेजने के लिए 91 94540 02444, ९६२१३१३६०९ संपर्क कर कर सकते है।

Potee kee diray/सविता चडढा

पोती की डायरी

(Potee kee diray)


मेरी दादी को थोड़े-थोड़े दिन बाद अपने घर में लोगों, जिन्हें आप कवि, लेखक, साहित्यकार कहते है, को बुलाकर कविताएं पढ़वाना,उनकी काव्य गोष्ठियां, खातिर और सम्मान करना और कहानी पाठ करवाने की बुरी लत है । घर में ऐसा करने से उन्हें कोई मना नहीं करता। दादू बताते है, पिछले 30 से अधिक वर्षो से वे ऐसे आयोजन करती आ रही है । मैं भी 20 वर्ष की हो गयी हूँ और पिछले वर्ष से तो मैं इन सबकी साक्षी हूँ। एक जरुरी बात आपको कहनी होगी, मेरी दादी खुद बहुत अच्छी लेखिका है और बहुत सारे लोग उन्हें जानते हैं। इसलिए वे जब भी किसी को आमंत्रित करती हैं तो लेखक लोग उनके बुलावे का मान रखते ही हैं।

पिछले हफ्ते दादी ने बहुत ही उत्साह से मुझे बताया ” इस बार विदेश से दो लेखक आ रहे हैं, हो सकता हैं मेरे घर भी आ जाये। फेसबुक के जरिये उनसे काफी बातचीत हुई हैं । अपने देश के लोग हैं ।”

अन्य रचना पढ़े : अनुभव/सविता चडढा

दादी बहुत उत्साहित लग रही थी। मैं उन्हें कुछ कहना चाहती थी पर मन में सोचती रह गई और कह नहीं पाई । दादी की कई किताबें भी चाप चुकी है और हमारे घर आने वाली गोष्ठियों में देश के जाने माने साहित्यकार, लेखक, कवि, साहित्य को प्रेम, करने वाले राजनेता भी कई बार पधार चुके हैं पर दादी कभी इतनी उत्साहित नहीं हुई, इस बार क्यों ? खैर मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा। वह प् हर दिन तैयारियों में लग गयी। छत से लेकर, हर दिवार पर अपने हाथ से कभी झाड़ू से, कभी कपड़े से दीवारों को साफ करने लगी । अपनी किताबों के रेक, उन्हें मिली बहुत सारी शील्डें , सारी किताबें साफ करने लगी। उन्हें हमेशा लगता है कि लोग उन्हें तंदरुस्त और स्वस्थ समझे, उनकी दुर्बलता कहीं प्रकट न हो जाये, मुझे लगता है ये भय ही उनके उत्साह का कारण बना रहता है ।

भारत में आने के बाद से, जगह जगह उस विदेशी लेखक मोहित का सम्मान हो रहा था। दादी सिर्फ एक बार उस लेखक से पिछले साल के पुस्तक मेले में मिली थी । दादी उसे मिलकर निमंत्रण देना चाहती थी। अपने घर से लगभग एक घंटे की दूरी पर होने वाले आयोजन में दादू-दादी दोनों मोहित को आमंत्रित करने गए, मैं भी उनके साथ थी । वह लेखक सब मित्रो को मिल रहा था। दादी ने कल के लिए निमंत्रण दिया और 3 बजे हमारे घर उसका कहानी पाठ का समय तय हो गया ।

दादू, मैं और दादी हम कार्यक्रम समाप्ति से पहले घर के लिए निकल पड़े थे। रास्ते में दादी कुछ नहीं बोल रही थी, दादी सोचती रही कैसे होगा, क्या-क्या करना है।

अगले दिन सुबह दादी जब मंदिर गयी तो लौटने पर उनके हांथो में फूल मालाओं का बैग था। बैग देखते ही मैंने पूछा था “आप तो कभी फूलों की माला नहीं लाती, इस बार क्यों ?”

वह हंस पड़ी, कुछ कहाँ नहीं। रसोई में खुद ही अपने लिए चाय बनाई, दो बिस्कुट के साथ चाय पीकर वह बोली जरा मेरे साथ बाजार तक चलो, सुबह के 10 बजे थे, मैंने कहा “दुकानें तो खुलने दो.” वह मुस्कराई, वह गुस्से में बहुत कम आती हैं, उन्हें क्रोधी लोग बिलकुल पसंद नहीं। मैं चुपचाप उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गई । दुकान पर अभी साफ सफाई हो रही थी ,उन्होंने चन्दन की दो बड़ी मालाएं खरीदी, दो खूबसूरत शाल लिए, मोतियों की मालाएं ली। थोड़ा आगे आने पर वे एक दुकान के सामने रुक गई। ये एक बेकरी की दुकान थी, ऊँची शानदार दुकान । दादी हर चीज का मुआयना करने लगी । आखिरी उन्होंने मसालेदार काजू का आर्डर दिया। ड्राई फ्रूट वाला नमकीन मिक्सचर लिया। सबसे सुंदर दिखने वाले स्वादिष्ट फ्रंटियर के बिस्कुट ख़रीदे। मैं चुपचाप उन्हें देख रही थी। वैसे तो हर बैठक की तयारी वे खुद करती हैं पर इस बार काजू, मिक्सचर भी। मैं चुप रही । वे रिटायर हैं और उन्हें पेंशन मिलती है, अपनी अधिकांश पेंशन वे यूं ही खर्च करती हैं। इतने पर भी वे रुकी नहीं। मिठाइयों में उन्होंने छोटे गुलाब जामुन ख़रीदे। ढोकला, समोसे, कचौड़ी, मट्ठी का आर्डर वे पहले ही दे चुकी थी।

घर पहुंचकर वह खाने की तैयारी में लग गयी। मेरी माँ भी उनका पूरा साथ दे रही थी पर आज उनकी तबियत ख़राब थी । पिछले दो दिन से मां का पेट ख़राब चल रहा है । डॉक्टर कह रहा था ड्रिप लगवा लो पर दादी ने घर में ही सब व्यवस्था कर दी थी, इलेक्ट्रॉल के कई पैकेट मंगवा दिए और माँ को कहा “कुछ नहीं होगा, मुझे तो अक्सर ऐसा होता रहता है। आज की बात है थोड़ा सहयोग दो।”

माँ पूरा साथ दे रही थी परन्तु दादी को पता था माँ ज्यादा देर रसोई में खड़ी नहीं हो पायेगी। दादी ने सारा खाना रेस्तरां से मंगवाया, मिक्स वेजिटेबल, दाल मक्खनी, फ्रूट रायता, मिस्सी और सादी रोटी। मम्मी ने मटर-पनीर और वेज-पुलाव घर ही बना लिया। एक बजे सब आ गए और खाना शुरू हो गया। किसी को पता नहीं चलने दिया कि खाना बाहर से मंगवाया है। दादी सब का ध्यान रख लेती है, वह बीच-बीच में कहती रही “मेरी बहु बहुत अच्छा खाना बनाती है। उसे पिज्जा भी बहुत अच्छा बनाना आता है । ” पता नहीं कोई उनकी बात सुन रहा था कि नहीं पर उन्होंने कई बार ये बात बोली। सबने खाने की जमकर तारीफ की और आये लेखक महोदय ने कहाँ ” कहानी पाठ से पहले ही चाय हो जानी चाहिए। थोड़ा गला अच्छा महसूस करेगा।” उनके साथ ही लंदन से पधारी एक बहुत ही शालीन, सौम्य, राजनीतिज्ञ और लेखिका जीनत साहिबा भी थी , उनके दिल्ली में रह रहे भाई-भाभी भी उनके साथ आए थे। जीनत जी ने कहा “मैं काफी लूंगी।” दादी ने फ़ौरन कहा , बहु कॉफ़ी बहुत अच्छी बनाती है। चाय -कॉफ़ी का दौर चल ही रहा था कि और लेखक कवि आने शुरू हो गए । मौसम थोड़ा ठंडा ही था, जनवरी का महीना, कोल्ड ड्रिंक छोटे-छोटे गिलास में डाले गए। पता नहीं कोई पियेगा के नहीं। दादी कहती “सब लोग चाय नहीं पीते, इसलिए कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक सब रखने है।” बिसलेरी की छोटी पानी की बोतले भी मंगवाकर रख ली थी। साढ़े तीन बज गए तो सबने कहानी पाठ शुरू करने के लिए कहा। दादी ने माइक संभाल लिया और आये सभी अथितियों का स्वागत किया । आये सब लेखकों का परिचय कराया गया मोहित और जीनत का फूलमाला, चन्दन की माला, मोतियों की माला, शाल, अभिनन्दन पत्र भेंट कर स्वागत किया गया। देश की प्रतिष्ठित पत्रिका के संपादक आशुतोष भी मुख्य अथिति के रूप में आये हुए थे. उनका भी फूल माला, शाल मोतियों की माला भेंट कर स्वागत किया। दादी घर आये मेहमानों को बहुत ही आदर-सत्कार देना चाहती थी. उन्होंने अपने पोते राज को अपनी नई पेंटिंग पर उपस्थित मेहमानों के हस्ताक्षर करवाने के लिए आमंत्रित किया। मोहित और जीनत साहिबा और आशुतोष जी ने चित्र पर हस्ताक्षर किये। समय की गति को देख अब मोहित को कहानी पाठ के लिए निवेदन किया गया ।

अन्य कहानी  पढ़े : इकतरफा प्रेम की परिणीति नशा और पागलपन 

कहानी शुरू हुई । बहुत ही सवेंदनशीलता और आकर्षक आवाज़ के साथ कहानी शुरू हुई। विषय कुछ खास नहीं था अस्पताल के एक कमरे में बीमार पति के साथ बिताये एक पत्नी के 15 दिन और बीमार पति की माँ की उपस्थिति का भरपूर चित्रण था कहानी में। कहानी पढ़ते हुए लेखक कभी सिसक रहा था, कभी हिचकियाँ ले रहा था, लग रहा था मानों रो रहा है, उसकी आंखे भी रुआंसी हो रही थी, कहानी पढ़ते हुये 10 मिनट हो गए थे कि दादी को मेरी माँ दिखी जो दो दिन से कॉफ़ी अस्वस्थ थी, वह खुद को रोक नहीं पायी और माँ के पास आकर उसे कुछ कहा और कहानी पाठ में उपस्थित एक लेखिका सरस्वती को नमस्तें कर ली। कहानी पाठ करने वाले लेखक मोहित ने अपना चश्मा गुस्से से उतार कर टेबल पर दे मारा और चीखते हुए बोला ” WHAT THE HELL ” हो गई कहानी” वह आगे कहानी नहीं पढ़ना चाहता था। दादी और हम सब हक्के-बक्के रह गए। दादी ने माफ़ी मांगी और कहा” जरुरी काम से मुझे उठना पड़ा, आप कहानी पढ़िए। खैर मोहित ने बहुत मुश्किल से खुद को शांत करने की कोशिश की, खुद ही अपने सर पर चार-पांच थपड लगाए और जब चश्मा पहनने लगे तो वह टूट चुका था, उसकी एक डंडी नदारद थी। लेखक उठा और अपने झोले से नया चश्मा निकाल कर कहानी पढ़ने लगा।

जहाँ तक मुझे लगता है इस ख़राब नाटक के बाद किसी की रूचि कहानी सुनने में नहीं होगी परन्तु हम भारतीय मुखौटा लगाने में माहिर है, कहानी पाठ चलता रहा। कहानी के दौरान कई बार लेखक चीखा, रोया, जोर-जोर से बोलता रहा ताकि कहानी प्रभावशाली बने । कहानी तो प्रभावशाली थी ही लेकिन लेखक के कहानी वाचन की शैली ने उसे हास्यापद बना दिया था। यहाँ तो सब लिखने वाले ही कहानी सुन रहे थे।

कहानी ख़त्म हुई तो सबने कुछ न कुछ कहा । सबसे पहले दादी ने कहा “मै आपको बड़ी बहन होने के नाते एक सलाह देना चाहती हूँ , आप अपनी सेहत का ध्यान रखें। कहानी पढ़ते हुए इतने उतार-चढ़ाव आपको नुकसान पहुंचा सकते है। पाठक और प्रशंसा से बड़ी अपनी सेहत है उसे ध्यान में रखिये। “

मैँ देख रही थी दादी सीधे-सीधे बहुत कुछ कह सकती थी परन्तु सयंम से उन्होंने अपनी बात की और कहानी की प्रशंसा भी की। उपस्थित लेखकों ने भी दादी की बात से सहमति जताई और उनको क्रोध पर नियंत्रण करने की सलाह दी। एक से लेकर 15 तक सभी ने कहानी की प्रशंसा की।

जीनत साहिबा को जब सम्बोधन के लिए बुलाया गया तो उन्होंने “दादी को इस आयोजन की बधाई दी और उपस्थित अतिथियों को इस कहानी के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा ये कहानी मोहित जी की नहीं है, ये विषय मैंने ही इन्हें बताया था, कहानी का नायक मेरा भांजा है और नायिका मेरे भांजे की पत्नी। इस कहानी की माँ मेरी बहन है। जब मैंने ये घटना इन्हें सुनाई तो मोहित ने मुझसे ये कह दिया था, आप इस विषय पर कहानी नहीं लिखोगी मैं लिखूंगा। मोहित ने बहुत ही खूबसूरती से इस विषय पर लिखा है। पात्रो के नाम बदले है। वास्तविक नाम आप सुनेंगे तो कहानी से तारतम्य बिठा नहीं पायेंगे।”

वह कुछ सोचने लगी फिर उन्होंने वास्तविक पात्रों के नाम बताये, वे नाम इस्लामिक नाम थे और कहानी के नाम पंजाबी थे।

सबसे अंत में पत्रिका के संपादक और सवेंदनशील कवि, लेखक आशुतोष ने दादी का बहुत आभार किया और लेखक मोहित को कहानी पाठ और अभिनन्दन पर बधाई दी। दादी ने घर आये सभी अतिथियों को विदा किया लेकिन आठ दस लोग अभी बैठे हुए थे और फिर से चाय बन रही थी। वे लोग दादी का चेहरा देख रहे थे पर वे ऐसे शांत थे मानो कुछ हुआ ही न हो। सब लोग दादी के बोलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। दादी सबके मन की बात शायद समझ गई थी, वे बोली “आज मेरी क्या सच में कोई गलती थी जो मोहित जी कहानी पाठ के दौरान क्रोधित हो गए।”

वह सच में जानना चाहती थी। गोष्ठी के बाद रुके हुए पांच पुरुष और पांच महिलाएं थी उन्होंने दादी को कहा ” आपकी कोई गलती नहीं थी। ये तो उस लेखक का क्रोध या उसका अहंकार था। भला उसके कहानी पाठ के दौरान क्या कोई अपनी जगह से उठ नहीं सकता। नौटंकी साला।” एक ने कहाँ। दूसरे ने कहाँ “कहानी भी कोई ख़ास नहीं थी।”

तीसरे ने कहाँ “कहानी सुनाने और कहानी पढ़ने में अंतर होता है। ये तो कहानी अभिनीत कर रहे थे या कहानी का मंचन। हर पात्र के अनुसार कभी सिसकिया, कभी रोने का अभिनय, कभी चीखना, कभी हिचकियाँ। बहुत बुरा कथा वाचन था।”

महिलाएं तो बहुत आहत थी । एक तो होस्ट दूसरी महिला, तीसरा जिसके घर में वह कहानी पाठ कर रहा है, उसके साथ ही ऐसी बदसलूकी, गुस्से से अपना चश्मा तोड़ लेना। पुस्तक मेले में कैसे लड़कियों के साथ दांत फाड़कर बतिया रहा था, साला फरेबी मक्कार।” एक ने कहाँ।

मै सोच रही थी, ये कैसे लेखक है जो उसके सामने तो उसकी प्रशंसा में बिछे जा रहे थे और उसके जाते ही सब….. । मैं समझ नहीं पा रही थी यह मोहित का अहंकार था या उपस्थित लेखकों की ईर्ष्या, दूसरे के व्यव्हार को समझना बहुत कठिन है। दादी को उस रात हमारे घर में सबने डांटा ” कौन हैं ये मोहित , क्यों बुलाया उसे।”

दादी सबको समझा रही थी “मैंने कहाँ पढ़ा है इसे, मैं तो कुछ नहीं जानती । फेसबुक में कुछ लेखकों ने हुड़दंग मचा रखा है। हर रोज उछल कूद, लगता है बस ये ही महान लेखक है । मैं भी उसके झांसे में आ गयी। सोचा था की मोहित की कहानी के साथ मैं भी अपनी कहानी पढूंगी , पर मोहित ने आते ही मना कर दिया था, ये कहकर कि आज तो मैं ही अकेला कहानी पाठ करूँगा, पर इसने तो माहौल ही ख़राब कर दिया। “

अब अंत मेँ बारी थी मेरे पापा की, वह आज तक कभी दादी के सामने नहीं बोले थे। आज वह भी दादी से गुस्से में पूछ रहे थे “आपने उस मोहित के साथ फोटो खिंचवाने के लिए मुझे क्यों कहा।”

दादी ने जवाब दिया था ” जो घर आते है, उन्हें अच्छा लगता है और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।”

आपको पता है मोहित ने अपने पास बुलाते हुए मुझे क्या कहा ” Let your mother be happy.” बतमीज़ लेखक, ऐसे आदमी को तो….अपने दांत पीसते मेरे पापा बाहर चले गए। …………….. ।
पापा बाहर चले गए तो दादी चेहरा फक्क हो गया । शायद वो अब भी सोच रही थी “दिखने में तो मोहित ऐसा नहीं लगता , आज क्या हो गया उसे। दादी को पता ही नहीं चल पाया, उसे क्या हो गया था। “

अगली सुबह दादी की बहन का फ़ोन आया, वह भी कल की गोष्टी में शामिल थी, उसने उस लेखक के व्यव्हार की जी भरकर भर्त्सना की । फिर उसके बाद एक, दो, तीन, चार कई लेखकों के फ़ोन आते रहे, दादी को सब सांत्वना दे रहे थे और कह रहे थे अच्छा हुआ, आपने क्रोध नहीं किया।”

छोटी दादी ने तो यहाँ तक कह दिया था “मेरे घर कोई ऐसा करता तो मैं कह देती “कहानी गई भाड़ में, Get out from my home.”

पत्रिका के संपादक श्री आशुतोष का फ़ोन आया, दादी की बात मैं सुन पा रही थी पर वे क्या कह रहे थे मेँ सुन नहीं पाई, आखिर मैंने पूछा “क्या कह रहे थे आशुतोष ।”

“कल के किये दुःख जाहिर कर रह रहे थे। जो बातें उन्होंने कही है वे मार्गदर्शन करने वाली है। कई बार उम्र में छोटे भी बड़ी-बड़ी बातें कर हमें प्रकाशित कर जाते है। ” दादी ने मुझे कुछ नहीं बताया पर 20-25 मिनट होने वाली बात में बहुत कुछ ऐसा था जो दादी ने छिपा लिया था।

अभी मैं बात ही कर रही थी कि विदेशी लेखक मोहित जी का फ़ोन आ गया । कल के व्यव्हार के लिए क्षमा तो वे कल ही मांग गए थे । आज वो दादी की किसी कहानी पर अपनी राय बता रहे थे। कहानी को ऐसे लिखे, कहानी को ऐसे पढ़ो ….। दादी को बहुत लोगों ने पढ़ा -सुना है । प्रसाद विमल ने तो दादी को कहा था” तुम जैसा लिखती हो वैसा ही लिखती रहो। उनकी किताबों पर बड़े बड़े लेखकों ने लिखा है । “

मैने दादी को इतना कहते सुना था “आपका शक्रिया आप मेरे घर कहानी पढ़ने आये, अब मेरे पास आपकी दो-चीज़े हमेशा सुरक्षित रहेंगी , एक तो आपका दिया परफ्यूम और दूसरा आपकी ऐनक की टूटी हुई डंडी। जो अगले दिन कमरे की सफाई में मुझे मिल गयी ।

मुझे दादी की कविता की ये पंक्तियां अक्सर याद आ जाती हैं और बहुत अच्छी लगती हैं , शायद इन पंक्तियों में दादी, दूसरों को दुख देने वाले, बुरी सोच रखने वाले ही अधिक दुख में रहते हैं, को प्रकट कर रही हैं, “पांडव बनवास में इतने दुखी नहीं रहे, जितना दुर्योधन अपने महलों में रहा।” मैंने देखा दादी शांत चित्त होकर कुछ लिखने बैठ गई थी पर मैं लेखकों की दुनिया और साहित्य प्रेमियों के कल के अभिनीत मुखोटों को देख कर बहुत हैरान हूँ। मैंने अपने मन की बात लिख तो ली है, डर भी लग रहा है , कहीं लेखक वर्ग और दादी इसे पढ़कर नाराज़ न हो जाएँ।
क्या केवल लेखक को ही लिखने का हक़ है?

Potee- kee- diray

सविता चडढा,

899, रानी बाग़ , दिल्ली-110034

आपको Potee kee diray/सविता चडढा की हिंदी कहानी कैसी लगी अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य बतायें , पसंद आये तो समाजिक मंचो पर शेयर करे इससे रचनाकार का उत्साह बढ़ता है।हिंदीरचनाकर पर अपनी रचना भेजने के लिए व्हाट्सएप्प नंबर 91 94540 02444, 9621313609 संपर्क कर कर सकते है। ईमेल के द्वारा रचना भेजने के लिए  help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है|

 

Patthar dil laghukatha-डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

 पत्थर दिल – लघुकथा

(Patthar dil laghukatha)

बहुत खुश थी सुहानी। आज उसे केन्द्र सरकार के एक प्रतिष्ठित विभाग में नौकरी मिल गई। खुशी का ठिकाना नहीं था। उसकी प्रसन्नता उसके चेहरे से साफ़ दिखाई पड़ रही थी। इधर कई वर्षों से सिविल सेवा की तैयारी में जी जान से लगी थी। सुहानी आज सत्ताइस साल की पूरी हो गई। घर में अपाहिज़ पिता जो पिछले दस वर्षों से ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। उनके दवा की जिम्मेदारी से लेकर छोटे भाई के पढ़ाने का खर्च और बूढ़ी मां के कैंसर जैसे जानलेवा बीमारी जिसमें रोगी का अटेंडेंट बिल्कुल टूट जाता है, यह सब कुछ वह एक छोटी सी प्राइवेट नौकरी और वहां से छूटने पर कुछ छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर किसी तरह से घर को चला रही थी। जिस शहर में सुहानी रहती है उसी शहर में उसके मुंहबोले एक मामा भी रहते हैं। शुरूआती दौर में वह अक्सर भांजी के यहां आया करते थे जब उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी। पिता को पच्चीस हजार का पगार मिल जाता था, लेकिन दुर्भाग्यवश उस घटना में फ़ालिज मार देने के कारण कुछ दिन तो मालिक ने आधा वेतन दिया, बाद में वह भी बंद कर दिया। मुफ़लिसी में खुले दरवाजे भी बंद हो जाते हैं। जो अच्छे समय पर डींगे हांकते थें चौबीस घंटे वहां डटे रहते थे उन्होंने भी किनारा कर लिया। मुंहबोले मामा से सुहानी ने सिर्फ़ दो हजार रुपए मांगे थे, मुसीबत में अपनों का ही सहारा होता है यह समझकर उसने मामा से मदद मांगी थी लेकिन मामा ने स्पष्ट मना कर दिया कहा कि मुझे अपनी बच्ची की फीस जमा करनी है और बेटे सोनू को ट्यूशन जाने के लिए एक नई साइकिल खरीदनी है कहकर पलड़ा झाड़ लिया। कहा गया है कि जब विपत्ति आती है तो कुछ अनिष्ट भी कर जाती है। कैंसर से जूझ रही मां के कीमों थेरेपी के लिए अपने पिता के आफिस गई। कंपनी के मालिक से अपनी हालत बयां कर डाली, लेकिन मालिक ने कहा तुम्हारे पिता के इलाज के लिए पहले से ही बहुत पैसा मैंने दे दिया है अब मैं नहीं दे सकता। सुहानी ने कहा कि मुझे कुछ पैसे और दे दीजिए मैं पाई-पाई आपका चुका दूंगी। थोड़ा सा वक्त दे दीजिए, समय एक जैसा नहीं रहता है। यह कहते- कहते उसकी आंखों से आंसू चू पड़े, लेकिन मालिक का पत्थर दिल नहीं पसीजा। निराश होकर जब घर पहुंची तो देखा दरवाजे पर भीड़ लगी हुई थी। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। उसकी मां इलाज़ के अभाव में इस नश्वर संसार से अपने सारे संबंध तोड़कर देवलोक के लिए महाप्रस्थान कर चुकी थी।

Patthar- dil- laghukatha
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
फूलपुर प्रयागराज
7458994874

अन्य रचना पढ़े :

आपको Patthar dil laghukatha-डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र की रचना कैसी लगी अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य बताये।

moral story in hindi -पवन शर्मा परमार्थी

इकतरफा प्रेम की परिणिति, नशा और पागलपन

(moral story in hindi)

भैया बात दुःख की है, पर मेरा मानना है कि उसकी मृत्यु नहीं उसे मुक्ति मिली है, अच्छा हुआ, क्योंकि ऐसे दुःख उठाने से तो ठीक है, पीड़ा से मुक्ति पा जाना । ऐसी ही मुक्ति मिली है मनोज को। हालांकि परिवार के किसी  सदस्य का परलोक सिधार जाना बहुत ही दुःखद विषय होता है । परन्तु, उन्हें मनोज के पागलपन से मुक्ति मिल जाने पर कोई……।

ये वाक्य थे मृतक मनोज के दोस्त व पड़ोसी रमेश के । क्योंकि उससे ज्यादा मनोज के बारे में कोई नहीं जानता था । दोनों ही बचपन के साथी थे, साथ-साथ, खेले-कूदे और पढ़े-लिखे थे । दोनों एक दूसरे के सुख-दुःख में सम्मिलित रहते थे । यूँ कहिए कि प्रगाढ़ पारिवारिक सम्बन्ध थे । दोनों एक-दूजे के लिए सदैव समर्पित भी रहते थे ।

मनोज के जाने का परिवार को तो दुःख था ही, रमेश को भी पीड़ा कम न थी । सामने पड़े मनोज के निर्जीव शरीर को देख रहा था वह । उसकी आँखों से आँसुओं की बूँदे रमेश की कमीज पर गिर रही थीं, अहसास करा रहीं थीं उसकी पीड़ा का । अपने आँसुओं को रुमाल से पोंछते हुए रमेश मनोज अपनी मित्र की स्मृतियों में खो गया–कितना अच्छा था वह कभी । मनोज, पढ़ने-लिखने, खेल-कूद में बहुत होशियार था । सभी के साथ हँस-बोलकर, घुल मिलकर रहना उसकी विशेष आदत थी । उसने स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की थी, वह भाग्यशाली था कि थोड़ा परिश्रम करने पर ही उसे सरकारी नौकरी मिल गई थी ।

दिल्ली नगर निगम में लिपिक (क्लर्क) के पद पर उसकी नियुक्ति हुई । वह बहुत ही पूर्ण परिश्रम व निष्ठा के साथ काम करता था । कार्यालय में सभी साथी एवं अधिकारी उससे बहुत प्रसन्न रहते थे।

अन्य कहानी पढ़े : बचपन की यादें

मनोज भी नौकरी मिलने से बहुत प्रसन्न था । यूँ तो परिवार में वह सबसे छोटा था (उसके दो बड़े भाई और दो बहनें थीं, जिनकी शादी हो चुकी थी, बस वही घर में कुंवारा था) पर बड़े की तरह सबका ध्यान रखता था । यह समझिए कि वह परिवार के प्रति अपने दायित्व को भलि-भाँति समझता था । दोस्ती के रिश्ते को भी बहुत अच्छी तरह समझता था। घर पर या कार्यालय में जो भी जाता, उसका वह अच्छी तरह से मान-सम्मान करता था, चाय-पानी से लेकर भोजन से अतिथि सत्कार करता था । किसी को यदि आर्थिक आवश्यकता होती तो जो भी सम्भव हो सकता था, मदद करता था । इसी कारण  दोस्त व रिश्तेदार उससे बहुत-सी अपेक्षाएं रखते थे और उसे एक होनहार व्यक्ति मानते थे ।

यहाँ एक बात पर गौर करने की आवश्यकता है कि जो व्यक्ति सज्जन होता है, उसके कई शत्रु भी होते हैं या ईर्ष्या में शत्रु बन जाते हैं । मनोज को नौकरी करते हुए लगभग चार वर्ष हो गए थे एक ही कार्यालय में कार्य करते हुए । कार्यालय में भी उसके  सद्व्यवहार के कारण परिवार जैसा ही वातावरण बन गया था । ऐसा होना स्वभाविक भी होता है, शायद इसलिए सभी के साथ प्रेम व विश्वास बन गया था । पूर्ण ईमानदारी के साथ वह काम के प्रति सदैव निष्ठावान बना रहता था, अपने काम के साथ कोई व्यक्ति लापरवाही करे तो उसे बरदाश्त नहीं होता था । यही कारण था कि कई लोग उससे अन्दर ही अन्दर कटुता का भाव रखते थे । लेकिन वह ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देता था ।

संयोग की बात थी कि उसी कार्यालय में एक नेहा नाम की  लड़की भी काम करती थी, जिसकी नियुक्ति कुछ ही दिन पहले उसी कार्यालय में हुई और उसकी सीट भी मनोज के साथ में ही थी । क्योंकि एक ही कार्यालय में एक ही साथ काम करते थे तो व्यवहार में रहना, खाना-पीना, हँसना-बोलना स्वाभाविक था । कार्यालय की दिनचर्या दोनों की प्रतिदिन एक जैसी ही थी तो उनमें एक दूजे के प्रति आकर्षण होना कोई बड़ी बात नहीं थी, दोनों एक दूजे से घुलमिल गए थे, दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित दिखाई देने लगे । वे एक दूसरे के प्रति आसक्त हैं, ऐसा लोग अनुभव करने लगे । इसी तरह लगभग एक वर्ष कैसे बीत गया, पता भी नहीं चला ? वे अगर् कभी न मिलें तो एक-दूसरे की कमी महसूस करते । इसी तरह समय का चक्र घूमता रहा, आखिर एक दिन मनोज ने नेहा के सामने शादी का प्रस्ताव रख ही दिया । शादी का प्रस्ताव सुनकर पहले तो नेहा चौंकी लेकिन सम्भलकर बोली–

“अच्छा, किससे कर रहे हो शादी, जरा हमें भी तो पता चले ।”
नेहा की बात सुनकर मनोज ने भावुक होकर कहा–“नहीं, नेहा शादी करनी जरूरी है, शायद तुम नहीं जानती कि….।”
“क्या नहीं जानती, तनिक स्पष्ट कर बोलो तो मनोज, मैं क्या….?”
“यही कि मैं…मैं…तुमसे ही शादी करना चाहता हूँ, क्योंकि….।”
“क्या मतलब, तुमने ऐसा सोच कैसे लिया, मैंने तो कभी ऐसा सोचा ही नहीं, फिर….?”,
“लेकिन नेहा मैं तो तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और शायद तुम भी मुझसे….।”
“नही, मनोज गलतफहमी मत पालो, मैं तुम्हें प्यार नहीं करती, मैं केवल तुम्हें अपना एक अच्छा दोस्त मानती हूँ, दोस्ती और प्रेम में अन्तर होता है, इसलिए….।”
“परन्तु, मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ । शायद तुम्हें नहीं पता,  मैं तुमसे अथाह प्रेम करता हूँ कि अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता….।”
इतना सुनकर नेहा कहने लगी—“मनोज क्या तुम्हें कोई गलतफहमी नहीं हो रही है । मैं भी तुम से कम प्यार नहीं करती हूँ, केवल दोस्त समझ कर ।  हाँ, यह बात सही है कि तुम मेरे एक अच्छे दोस्त हो,  दोस्त की तरह ही सोचती हूँ, न कि प्रेमिका के रूप में, अगर तुम ऐसा सोच रहे हो तो गलत….।”
“लेकिन ऐसा क्यों नेहा ?”
इस पर नेहा कुछ देर तो चुप रही और फिर बोली–“मनोज ऐसा नहीं है कि तुम जानते नहीं कि दोस्ती और प्रेम में कितना अन्तर होता है ?”
“हाँ नेहा, यह तो मैं भूल ही गया था, भावनाओं में बहकर, प्रेम के वशीभूत मुझे याद ही नहीं रहा कि बिन तुम्हारी मर्जी के मैं भला….।”
“हाँ, मनोज मित्र और मीत में अन्तर होता है, मैं तम्हें केवल अपना अच्छा मित्र मानती हूँ, प्रेमी नहीं । मैं चाहकर भी तुमसे शादी नहीं कर सकती, क्योंकि मैं किसी और से प्रेम करती हूँ । मेरे मन में तुम्हारे प्रति आदर है, सम्मान है । परन्तु….।”

मनोज पर मानो पहाड़ टूटकर गिर गया हो, उसकी हालत देखते ही बनती थी । वह क्या-क्या सपने सँजोये बैठा था, कितने अरमान थे उसके दिल में नेहा से शादी करने के लिए, जो एक पल में धराशायी हो गए ? उसका दिमाग झन्ना गया चाहकर भी उसका दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं था कि….। क्योंकि मनोज उसके प्यार में पूरी तरह गिरफ्त हो चुका था, उसके मन-मस्तिष्क में सिर्फ नेहा ही नेहा बस चुकी थी, जिसकी गिरफ्त से बाहर निकलना शायद उसके बस में नहीं रह गया था ।

मनोज वास्तव में उससे असीम प्रेम करने लगा था, उसके मन-मस्तिष्क में केवल नेहा की छवि इस प्रकार बस गई कि जिससे बाहर निकल पाना उसके बस से बाहर हो गया था । वह चाहकर भी उसे भूल नहीं पा रहा था । उसके साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ था, उसका प्यार इकतरफा बनकर रह गया, उसे इसका सदमा लगा । उसे नहीं पता था कि उसके साथ नेहा की ओर से इस प्रकार का….। उसने कई बार उससे फिर से  विचार करने  की विनती भी की, परन्तु, उसकी तरफ से उत्तर न में ही मिला । जिसने मनोज को तोड़कर रख दिया । नेहा ने भी धीरे-धीरे उससे किनारा कर लिया और कुछ दिन बाद वह अपना तबादला करवाकर दूसरे कार्यालय में चली गई । उसके चले जाने के बाद तो मनोज का जो हाल हुआ बस….।

अन्य कहानी पढ़े : वीडियो

मनोज प्यार में धोखा खाकर कुछ दिन तो बिल्कुल मौन रहा, दिल में  लगी ठेस को वह सहन नहीं कर पा रहा था, न उसका काम में मन लगता, न ही घर पर । उसने लगभग सभी से बात करना भी बन्द कर दिया । दफ्तर भी कभी जाता, कभी नहीं जाता । उसकी स्थिति एक बुझे हुए दीपक की तरह हो गई । कार्यालय में भी दिन भर उसी की चर्चा रहती पर उसे किसी से भी कोई शिकायत नहीं होती । बस उसी के ख्यालों में खोया इधर से उधर भटकने लगा । आखिर एक दिन ऐसा आया कि जब वो सब देखने को मिला जिसकी कभी आशा न की  थी । मनोज ने अपना ग़म भुलाने के लिए नशे का सहारा ले लिया, यानि कि उसने शराब पीनी शुरू कर दी । यह सिलसिला निरन्तर चलता रहा । इसी तरह लगभग एक वर्ष निकल गया । कार्यालय कभी चला जाये, कभी नहीं, कार्यालय में भी अधिकारी उससे कुछ नहीं कहते, उसे चेतावनी देकर इतिश्री कर देते ।

मनोज ने खुद को पूरी तरह नशे में डुबो दिया, अब उसने अफीम, गांझा भी लेना शुरू कर दिया था। उसकी हालत और खराब होती चली गई, चौबीस घण्टे नशे में डूबा रहता । उसने फिर कार्यालय जाना भी बन्द कर दिया । अब अधिकारियों ने भी सहयोग करना छोड़ दिया, और एक दो बार नौकरी पर आने को नोटिस भी भेजा, परन्तु नतीजा शून्य रहा । मनोज की ओर से कोई उत्तर न मिलने के कारण उसे नौकरी से निकाल दिया गया । मनोज को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, नशे से उसका दिमाग बिल्कुल शून्य हो चुका था, उसके अन्दर सोचने समझने की कोई क्षमता नहीं रह गई थी, क्योंकि वह पागल हो चुका था । अब लोग उसे मनोज नहीं, पागल कहकर पुकारने लगे।

पागल की स्थिति क्या होती है, बताने की आवश्यकता नहीं ? अब न उसे किसी प्यार का पता था, न  ग़म का । न उसे हँसने का पता था, न रोने का । न जागने का पता था, न सोने का । न भूख का पता था, न खाने का । न दिन का पता था न रात का । न शराब का पता था न अन्य….। बस इसी तरह कभी बस्ती में, तो कभी जंगल में ही भटकते देखा जाता ।उसकी नींद हराम हो चुकी थी । कुछ दिनों से उसे कभी सोता नहीं देखा गया। बस, इसी हालत में उसने कई  वर्ष बिता दिए और आज उसकी नरकीय जिन्दगी का अन्त होने पर बेचारा पागलपन से मुक्त हुआ ।

रमेश की तन्द्रा लौटी, सभी लोग उसे अंतिम संस्कार के लिए तैयारी कर चुके थे । कुछ समय पश्चात उसकी अन्तिम यात्रा निकली, अंतिम यात्रा के बाद उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया । एकतरफा प्रेम की परिणिति नशा और पाग़लपन होगा ऐसा किसी ने  सोचा न था और सबके मुख से एक ही वाक्य निकला कि इकतरफा प्यार के में पागल आज बेचारा पागलपन से मुक्त हुआ । ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे ।

 
culmination-intoxication-insanity-unrequited-love

पवन शर्मा परमार्थी

कवि-लेखक

9911466020

दिल्ली, भारत ।

आपको moral story in hindi /इकतरफा प्रेम की परिणिति, नशा और पागलपन प्रेरक कहानी पवन शर्मा परमार्थी की रचना कैसी लगी अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य बतायें।

book review /अञ्जुरी भर प्यास लिये-डॉ. त्रिलोकी सिंह

पुस्तक-समीक्षा

(book review )


कृति : अञ्जुरी भर प्यास लिये
[ गीत-संग्रह]
गीतकार : डाॅ०रसिक किशोर सिंह ‘ नीरज ‘
शिक्षा : एम०ए०,पी-एच०डी०,जी० डी०एम०एम०,एल०एल०बी०
प्रकाशक : आरती प्रकाशन,साहित्य सदन,इन्दिरा नगर-2,नैनीताल।
पृष्ठ संख्या – 120 , मूल्य – 250/=
समीक्षक : डाॅ. त्रिलोकी सिंह


book review : लगभग डेढ़ दर्जन उच्चकोटि की अनुपम कृतियों के प्रणेता डॉ० रसिक किशोर सिंह ‘नीरज’ के विशिष्ट एवं स्तरीय गीतों का संग्रह है- “अञ्जुरी भर प्यास लिए” इस संग्रह में समाविष्ट उनके गीतों में जीवन के विविध रंग दृष्टिगोचर होते हैं, जिनके अवलोकनोपरान्त यह सहज ही कहा जा सकता है कि कृतिकार के उरोदधि में प्रवहमान भावोर्मियाँ गीतों में ढलकर जनमानस की तृषा-तृप्ति हेतु पर्याप्त सक्षम हैं। उन्होंने जीवन के उतार-चढ़ाव, जीवनानुभूतियों, सामाजिक विसंगतियों,परिवार-समाज की विघटनकारी स्थितियों एवं घनिष्ठ सम्बन्धों के मध्य उत्तरोत्तर बढ़ते अन्तराल को बखूबी अपने गीतों में उतार दिया है,जिससे ये गीत पाठकों को मानव-मन की वेदनाओं-संवेदनाओं, कुंठाओं, मनोवृत्तियों की अनुभूति अवश्य कराते हैं। डॉ०नीरज के गीतों में प्रेम है, तो प्रेम की चुभन भी है ; निराशा- हताशा के बीच आशा का संचार भी है; मिथ्या के बीच सत्य का उद्-घाटन भी है; विप्रलम्भ की असह्य वेदना है तो सुखद संयोग का अपरिमित आनन्द भी है; और जीवन-पथ में चुभने वाले शूल हैं तो सुवास विकीर्ण करके अन्तस्तल को प्रमुदित एवं आह्लादित करने वाले सुगन्धित प्रसून भी हैं। इस प्रकार डॉ०नीरज जी के गीत अयस्कान्त की भाँति पाठकों को अपनी आकर्षण-शक्ति से खींच लेते हैं। इतना ही नहीं,हृदयोद्भूत उनके गीत अंतर को तोष व आनन्द प्रदान करने की शक्ति रखते हैं।
वास्तव में डॉ०नीरज जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी तो हैं ही,एक सशक्त, स्तरीय एवं विशिष्ट गीतकार भी हैं, जिन्होंने अपने गीतों के माध्यम से समाज में एक अभिनव जागृति लाने का सार्थक प्रयास किया है। वे समाज की समस्याओं को रेखांकित कर उनका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने जीवन के आदर्श पक्ष को प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष रूप में व्यक्त करने का सफल प्रयास किया है, जिससे मनुष्य दुःखों से उबर कर सुख का अनुभव कर सकता है। कभी उनका भावुक हृदय प्रकृति-क्रोड में क्रीड़ा करने लगता है तो कभी प्रकृति के विनाशकारी कोप से क्षुब्ध हो जाता है। सत्शास्त्रों के अध्येता डॉ०नीरज जी को अनेक भगवत्परायण सन्त- महात्माओं का सान्निध्य प्राप्त होने के कारण उनके गीतों में अध्यात्म का सुखद संस्पर्श भी है मिलता है। उनके कतिपय गीतों में दार्शनिकता के भी दर्शन होते हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ०रसिक किशोर सिंह “नीरज” के सद्यः प्रकाशित आलोच्य गीत-संग्रह-“अञ्जुरी भर प्यास लिये” में विभिन्न विषयों पर केंद्रित कुल 61 गीत और 111 दोहे संगृहीत हैं। परम्परानुसार वाग्देवी सरस्वती-वन्दना के अनन्तर जन-जागरण हेतु वे संकल्पबद्ध होकर नई पीढ़ी को प्रेरित- प्रोत्साहित करते हुए कहते हैं-

नया ओज लेकर सुपथ पर बढ़ें हम
नई सीढ़ियाँ नित प्रगति की चढ़ें हम
नया भाव मनुजत्व का ओजमय हो
बढ़े नव सृजन का नया स्वर गढ़ें हम
( ‘नया जागरण हो नयी रोशनी हो’ गीत से)

भाई-भाई के घनिष्ठ सम्बन्धों में दिन-प्रतिदिन बढ़ रही दूरी एवं मनोमलिनता की झाँकी डॉ०नीरज जी के “भाई ने भाई के तोड़े” शीर्षक गीत में द्रष्टव्य है-

अरमानों को रहे सँजोते,जीवन भर अपने।
भाई ने भाई के तोड़े,क्षण भर में सपने।
अपने एक दोहे में भी वे इसी भाव को व्यक्त करते हुए कहते हैं-
भाई-भाई में ठनी,घर-घर में है द्वन्द्व।
सत्य दिखे कैसे भला,मन के दृग हैं बन्द।।

वास्तव में गीतों में अर्थवत्ता तो होनी ही चाहिए,अन्यथा वे अन्तस्तल का संस्पर्श करने में समर्थ नहीं हो सकते। भावशून्य गीत ना तो मन को तोष प्रदान कर सकते हैं और ना ही जीवन में सकारात्मक परिवर्तन। ठीक इसी भाव पर केंद्रित अपनी निम्नांकित पंक्तियों में डॉक्टर नीरज जी यह सन्देश देते हैं कि गीतों के अर्थ एवं रिश्तो में प्रेम का होना अत्यावश्यक है अन्यथा इनका कोई मूल्य नहीं-

जिन गीतों का अर्थ नहीं कुछ,
व्यर्थ उन्हें फिर गाना क्या?
जिन रिश्तो में प्रीत नहीं उन,
रिश्तों को अपनाना क्या ?
( “जिन गीतों का अर्थ नहीं कुछ”- गीत से उद्धृत)

एक सच्चे प्रेम-पिपासित की भूमिका का निर्वहन करते हुए डॉक्टर नीरज जी ने अपने गीत- “सचमुच प्यार करो” में लिखा है-

तेरे पीछे परछाईं हूँ, मत प्रतिकार करो
जितना प्यार किया है मैंने,उतना प्यार करो।

गीतकार का मन अपनी प्रेयसी के सौन्दर्य में इतना निमग्न हो जाता है कि उसकी प्रेम-पिपासा बढ़ती ही जाती है। गीतकार के शब्दों में-

देख तुम्हारी सुन्दरता को,बढ़ जाती है प्यास
और अधिक अभिलाषाओं की, जग जाती है आस
(“नील गगन की चन्दा जैसी”- शीर्षक गीत से उद्धृत)

डॉक्टर नीरज जी के गीत- “परहित कर कुछ” में स्वहित की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर परोपकार करने की प्रेरणा तो दी ही गई है, साथ ही जीवन में स्वावलम्बी बनने पर भी बल दिया गया है। इतना ही नहीं,इसी सारगर्भित गीत में दुःख का यथार्थ कारण और उसका निवारण भी है-

अपना और पराया ही तो,दुख का कारण है
दूरी रखना जग से केवल, दुःख निवारण है

डॉ०नीरज राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत हैं। वे एक स्वाभिमानी शूर की भाँति देश पर कुदृष्टि डालने वाले पाक को चेतावनी देते हुए कहते हैं-

सुनो पाक अब नहीं खिलायेंगे तुमको हम खीर
शेर यहाँ अब दिल्ली में हैं,सेना में हैं वीर
लेके रहेंगे पाक अधिकृत, पूरा ही कश्मीर
राजाओं की शक्ति देख लो, बनकर यहाँ वज़ीर
‘नीरज’ हर अभिमान मिटा दें, टूटेगा यदि धीर
बम भी अपने पास यहाँ पर,हैं अर्जुन के तीर।

(“बँटवारे की झेली हमने पीर”- शीर्षक गीत से उद्धृत)
“जिन्दगी तमाम हुई” शीर्षक गीत में डॉक्टर नीरज जी ने जीवन की तीनों अवस्थाओं-बचपन,यौवन और वार्द्धक्य का यथार्थ चित्रण किया है-

खेल-खेल में बचपन बीता
रंग जवानी में
चढ़ा अनोखा रूप रंग
मन की मनमानी में
गाढ़े दिन दे गया बुढ़ापा
नींद हराम हुई
इसी तरह से तो अपनी
जिन्दगी तमाम हुई ।

सनातन धर्म एवं सत्शास्त्रों में अटूट विश्वास होने के कारण डॉक्टर नीरज जी भी यह स्वीकार करते हैं कि कर्म ही मानव का भूत,वर्तमान और भविष्य निर्धारित करता है। सुकर्म से सुगतिऔर निन्दनीय कर्म से दुर्गति की प्राप्ति होती है।अर्थात् धर्मसम्मत कर्म से जीवन सुखमय होता है तो पाप- कर्मों से मनुष्य दुःख पाता है। इन्हीं भावों पर केन्द्रित उनकी पंक्तियाँ मनुष्य को पाप-कर्म से विरत होने और धर्मयुत् कर्म में रत होने की सत्प्रेरणा देती हैं-

सदा धर्मयुत् कर्म करें हम
तो जीवन है सुखमय होता
पाप-कर्म करने से नीरज
सदा-सदा ही दुख में रोता
धर्म शास्त्र की बातें अपनी
हैं जानी पहचानी
कर्म सजा ले प्राणी ।
(“समरसता आसव को पी ले”- शीर्षक गीत से)

सामाजिक उच्चादर्शों एवं मानवीय मूल्यों के पोषक एवं पक्षधर डॉ०नीरज जी ने सत्य, दया, करुणा, परहित, प्रेम आदि सद्भावों को अपने गीतों में इस प्रकार पिरोया है कि इनसे मानव के अन्तर्मन को एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है और वह कलुषता एवं मनोमालिन्य का त्याग कर जीवन- मूल्यों को अपने जीवन में अपनाकर जीवन को कृतकृत्य करने की दिशा में सचेष्ट हो जाता है। वे जन-जन को प्रबोधित करते हुए कहते हैं-

‘नीरज’ अब खुद ही करो चिन्तन और विवेक
मानवता यदि मर गयी क्या सोचोगे नेक?
पाश्चात्य सभ्यता को करें न अंगीकार
सादा जीवन हो यहाँ ऊँचे सदा विचार

book review :निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि “अञ्जुरी भर प्यास लिये” गीत- संग्रह में डाॅ० रसिक किशोर सिंह ‘नीरज’ ने अपने उच्चकोटि के स्तरीय गीतों का संग्रह किया है। उनके सभी गीतों में भावपक्ष की प्रधानता तो है ही,कलात्मक सौष्ठव भी कम नहीं है। भावानुकूल शब्दों के प्रयोग में डॉक्टर नीरज जी पूर्ण दक्ष हैं। उनके भावमय गीतों में तत्सम शब्दों के साथ आवश्यकतानुसार तद्भव व देशज शब्द भी प्रयुक्त हैं ,जिनसे गीतों में सहजता एवं स्वाभाविकता आ गई है। उनके गीत मानव को सन्मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा तो देते ही हैं, जीवन को संस्कारित भी करते हैं। उनके गीतों में अभिव्यक्त लौकिक और अलौकिक प्रेम की पावन सरिता में अवगाहन कर पाठक आत्मविभोर एवं तृप्त हो जाते हैं। अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा एवं रूपकादि अलंकारों की सुन्दर छटा से उनके गीतों की महनीयता में स्वाभाविक रूप से वृद्धि हुई है। इस महार्घता के युग में सुन्दर एवं नयनाभिराम आवरण-पृष्ठ के साथ ग्लेज कागज पर मुद्रित 120 पृष्ठीय विवेच्य कृति का निर्धारित मूल्य अधिक नहीं कहा जा सकता।
अन्त में हम पूर्ण आशान्वित हैं कि डॉक्टर नीरज जी यावज्जीवन ऐसी ही सार्थक कृतियों का प्रणयन कर हिन्दी साहित्य के कोष में अभिवृद्धि करते रहेंगे । हम ऐसे शीर्षस्थ साहित्यकार डॉ०रसिक किशोर सिंह “नीरज” के स्वस्थ व सुदीर्घ जीवन की प्रभु से मंगलकामना करते हैं।
**
समीक्षक — डॉ. त्रिलोकी सिंह हिन्दूपुर,करछना,प्रयागराज(उ०प्र०)

अन्य रचना  पढ़े :

डाॅ. रसिक किशोर सिंह ’नीरज’ ने मा. कुलपति नरेशचन्द गौतम को पुस्तक भेंट की

डाॅ. रसिक किशोर सिंह ’नीरज’ ने मा. कुलपति नरेशचन्द गौतम को पुस्तक भेंट की रायबरेली से चलकर चित्रकूट पहुॅचे डाॅ. रसिक किशोर सिंह ’नीरज’ चित्रकूट 28 फरवरी 2021 को महात्मा गाॅधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय सतना म.प्र.देश के प्रख्यात वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. रसिक किशोर सिंह ’नीरज’ ने अपनी सद्यः प्रकाशित (गीत संग्रह) ’अंजुरी भर प्यास लिये’ माननीय कुलपति महोदय को भेट किया, जिनकी अभी तक 12 पुस्तके गद्य पद्य में प्रकाशित हैं डाॅ. नीरज मूलतः गीतकार के रूप में जाने जाते हैं उन्हे अभी तक 70 सम्मानो से अधिक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जिनमें उन्हे साहित्य श्री, राष्ट्र सचेतक, महाकवि जायसी, सरस्वती सम्मान, निराला सम्मान, साहित्य भूषण, अकबर इलाहाबादी, साहित्य शिरोमणि सम्मानो से विभूषित किया जा चुका है।
जिनकी विश्वविद्यालय में साहित्य पर सार्थक वार्ता क्रम में मा. कुलपति ने साहित्य पर गहन चर्चा करते हुये डाॅ. नीरज को मंगलकामनायें दी।


जय प्रकाश शुक्ल
जन संपर्क अधिकारी
म.गां.चि.ग्रा.विश्वविद्यालय

 

Raebareli Nirala Smriti Sansthan Dalmau

डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज को पांच अलग-अलग संस्थाओं द्वारा भव्य समारोह में राष्ट्रीय गीतकार के रूप में उनकी प्रकाशित कृतियों पर सम्मानित किया गया।


Raebareli Nirala Smriti Sansthan Dalmau:रायबरेली निराला स्मृति संस्थान डलमऊ सहित 21 फरवरी 2021 रविवार को प्रयागराज माघ मेला में आयोजित काव्य रस परिवार द्वारा श्रेष्ठ काव्य सर्जक सम्मान तथा अवध साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य शिरोमणि सम्मान तारिका विचार मंच द्वारा साहित्य विभूति सम्मान एवं भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ द्वारा साहित्यकार अभिनंदन समारोह एवं कवि सम्मेलन ग्रंथ विमोचन के अवसर पर डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज को पांच अलग-अलग संस्थाओं द्वारा भव्य समारोह में राष्ट्रीय गीतकार के रूप में उनकी प्रकाशित कृतियों पर सम्मानित किया गया। उक्त अवसर पर डॉ नीरज सम्मानित करने वाली सभी संस्थाओं के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए कृतज्ञता ज्ञापित किया तथा मां सरस्वती की कृपा और आत्मीय जनों का स्नेह पूर्ण आशीर्वाद बताते हुए अपना एक मुक्तक कवियों की महत्ता बताते हुए प्रयाग कार्यक्रम में प्रस्तुत किया—

उजाला जमाने को देता है रवि अंधेरा दिनों से मिटाता है कवि।
सुनाकर कार्यक्रम को ऊंचाईयां प्रदान किया।

कार्यक्रम संयोजक सर्वश्री डॉ. भगवान प्रसाद उपाध्याय रहे समारोह अध्यक्ष अशोक कुमार स्नेही विशिष्ट अतिथि डॉ. बालकृष्ण पांडे ,श्याम नारायण श्रीवास्तव ,डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज डॉ. शंभुनाथ त्रिपाठी अंशुल ,डॉ कृष्ण कुमार चतुर्वेदी मैत्रेय,दिनेश प्रताप सिंह चित्रेश, रामप्यारे प्रजापति सुल्तानपुर, आनंद सिंघनपुरी( छत्तीसगढ़) जगदंबा प्रसाद शुक्ल तथा स्वामी कल्पनेश जी, योगेंद्र कुमार मिश्र विश्वबंधु रहे मुख्य अतिथि के रुप में ज्योतिषाचार्य डॉ. रामेश्वर प्रपन्नाचार्य शास्त्री जी महाराज रहे।
मुख्य रूप से कार्यक्रम में( म. प्र.)से पधारे प्रो. परमानंद तिवारी प्राचार्य तथा डॉ.कृष्णावतार त्रिपाठी राही भदोही ,जनकवि जय प्रकाश शर्मा प्रकाश ,राम लखन चौरसिया, रामनाथ प्रियदर्शी सुमन, राकेश मालवीय मुस्कान, जगदंबा प्रसाद शुक्ल, डॉ.सीताराम सिंह विश्वबंधु ,विष्णु दत्त मिश्र प्रसून ,डॉ .राजेंद्र शुक्ल, डॉ. वीरेंद्र कुसुमाकर ,रचना सक्सेना, अभिषेक केशरवानी, बालेंदु मिश्र सारंग, आभा मिश्रा, सतीश चंद्र मिश्र चित्रकूट ,आकाश प्रभाकर उत्तराखंड आदि प्रमुखरूप से रहे।

   अन्य रचना पढ़े :

 
 

Ashok kumar gautam biography in hindi

अशोक कुमार गौतम का जीवन परिचय 

(Ashok kumar gautam biography in hindi)


जीवन संगिनी- श्रीमती किरन
आँखों के तारे- चित्रांशी, वेदांश प्रताप
जन्मतिथि- 10 दिसंबर 1978
जन्मस्थान- सरेनी, जनपद रायबरेली
शैक्षणिक योग्यता- एम0ए0, बी0एड0, यू0जी0सी0 नेट (2 बार)


सम्पादन


  1. महावीर स्मृति (वार्षिक पत्रिका)
  2. निष्कम्प दीपशिखा : डॉ0 चम्पा श्रीवास्तव (आस्था ग्रंथ)

शोध पत्र प्रकाशन


  1. 10 अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार में आलेख,
  2. 15 राष्ट्रीय सेमिनार में आलेख,
  3. 25 स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में लेख।

सहभागिता

Ashok kumar gautam biography in hindi


  1. 93 राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय वेबीनॉर,
  2. समाजोपयोगी रेडियो सन्देश प्रसारण,
  3. विभिन्न समाचार पत्रों और यूट्यूब चैनलों में छात्रों और आमजन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर लेखन और वक्तव्य।

सम्मान, प्रशस्ति पत्र


  1. गयत्रीकुंज हरिद्वार द्वारा सम्मान (2012 ई0)
  2. सरस्वती सम्मान, भारत विकास परिषद शाखा रायबरेली (2015 ई0)
  3. मतदाता जागरूकता अभियान के लिए जिलाधिकारी रायबरेली द्वारा सम्मान (2017 ई0)
  4. गणितज्ञ रामानुजन सम्मान (2018 ई0)
  5. कलमकार सम्मान (2019 ई0)
  6. टीचर इन्नोवेशन अवार्ड, नई दिल्ली (ZIIEI 2019 ई0)
  7. व्योम और निर्माण संस्था लखनऊ प्रशस्ति पत्र 2023

  • मूल मंत्र- अंग्रेजी के अल्पज्ञान ने हिंदी को पंगु बना दिया।

संप्रति


  • असिस्टेंट प्रोफेसर, कुलानुशासक,
  • श्री महावीर सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हरचंदपुर, रायबरेली।
  • सम्पर्क सूत्र- 9415951459, 9415819451
  • ईमेल- asstprofashok@gmail.com
  • वर्तमान पता-सरयू-भगवती कुंज 172/6 शिवा जी नगर, जनपद- रायबरेली, उत्तर प्रदेश

अन्य रचना पढ़े :

हिंदीरचनाकार (डिसक्लेमर) : लेखक या सम्पादक की लिखित अनुमति के बिना पूर्ण या आंशिक रचनाओं का पुर्नप्रकाशन वर्जित है। लेखक के विचारों के साथ सम्पादक का सहमत या असहमत होना आवश्यक नहीं। सर्वाधिकार सुरक्षित। हिंदी रचनाकार में प्रकाशित रचनाओं में विचार लेखक के अपने हैं और हिंदीरचनाकार टीम का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।|आपकी रचनात्मकता को हिंदीरचनाकार देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है| whatsapp के माद्यम से रचना भेजने के लिए 91 94540 02444, ९६२१३१३६०९ संपर्क कर कर सकते है।

saamaajik chunautiyaan/बाबा कल्पनेश

विषय-सामाजिक चुनौतियाँ

(saamaajik chunautiyaan)

saamaajik chunautiyaan:मानव सभ्यता के उदयकाल से ही मानव समाज को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इन चुनौतियों को पहचान कर इनके समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना हमारे मनीषियों की दैनिक चिंतन चर्या रही है।आज का यह विषय निर्धारण को भी उसी तरह की चिंतन चर्या की संज्ञा से हम अभिहित कर सकते हैं।
मैं जब इंटर का विद्यार्थी था तब अपने गाँव में “हमारे कर्तव्य और अधिकार” शीर्षक से एक परिचर्चा गोष्ठी का आयोजन किया था।मेरे साथ में पढ़ने वाले गाँव के ही एक और विद्यार्थी रमाकर मिश्र जी थे।हम दोनों ने ही संयुक्त रूप से इस आयोजन की रूपरेखा तैयार की थी।पंडित गिरिजा शंकर मिश्र जी हमें हिंदी पढ़ाते थे। विषय प्रतिपादन के लिए हमनें गिरिजा शंकर जी को बुलाया था। आज यहाँ उस गोष्ठी की चर्चा करने का मेरा एक ही लक्ष्य है।वह यह कि आज का व्यक्ति अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए कर्तव्य से अधिक अपने अधिकार की बात करता है।जिस समय मैंने इस तरह की गोष्ठी का आयोजन किया था उसी समय इस तरह की सोच के दर्शन होने लगे थे,पर इतने निम्न स्तर तक सोच गिर नहीं पायी थी।यह सन् उन्नीस सौ अठहत्तर से अस्सी का वर्ष रहा होगा मतबल यह कि आज से करीब चालीस वर्षों के अंतराल में आज स्व-स्व अधिकार की बातें अधिकता से की जानें लगीं हैं। आज तक में व्यक्ति अपने अधिकार के प्रति जितना सचेष्ट हुआ है,अपने कर्तव्य से उतना ही लापरवाह हुआ है।

अन्य लेख पढ़े:संकल्प

इस विषय में नेताओं की गर्हित भूमिका देखने को मिली है।इन नेताओं ने पूरे भारतीय समाज को टुकड़े-टुकड़े में बाँटकर अपना उल्लू सीधा करने के हेतु से अलग-अलग व्यक्ति और अलग-अलग जाति विशेष से मिलकर उन्हें केवल अधिकार बोध की स्तरहीन प्रेरणा दे रहे हैं। ताजा उदाहरण हमारे सामने है किसान आंदोलन। किसान आंदोलन एक गहरा वितण्डावाद है।किसानों के कंधे पर अपनी बंदूक रख अपना कुछ भिन्न प्रकार का शिकार करना चाहते हैं।किसान आंदोलन के नाम पर राजधानी दिल्ली में जो कुछ हो रहा है सर्वथा अक्षम्य है।पर “नंगा नाचे चोर बलैया लेय।”
मैं भी किसान का ही बेटा हूँ। थोड़ी सी खेती है।बाह्य आमदनी कुछ नहीं आवास और भोजन की आवश्यकता तो सब के पास है।मेरे जैसे अल्पतम जीवन साधन वाले कितने लोग हैं पूरे भारत भर में।सत्य जनगणना की जाय कुल कृषक की 80% जनसंख्या मेरे जैसे किसानों की होगी। ऐसे किसानों की समस्या देखने की किस नेता को फुर्सत है।
प्रधान गाँव का हो या प्रदेश का कोई विधायक अथवा सांसद चुनाव के बाद सम्पन्नता का प्रतिनिधि-प्रतीक बन जाता है।चमचमाचम हो जाता है।ये अपने को जन सेवक कहते हैं। जन सेवा के नाम पर जमकर लूट करते हैं और जन समुदाय को कई विभक्तियों में बाँटने का कार्य करते हैं।

अन्य लेख पढ़े: कलम मेरी गही माता
आज की सामाजिक चुनौतियों में एक और विचित्र सी चुनौती उभरकर आई है।वह यह कि गलत को कोई गलत कहने को तैयार नहीं है। कोई भ्रष्टाचार में रत है तो उसकी कोई निंदा करने को तैयार नहीं है। उल्टे उसकी प्रशंसा की जाती है कि अच्छी कमाई करता है।लोग प्रशंसा के पुल ही बाँधते है।उसका कारोबार बड़ा अच्छा है। परिणाम स्वरूप वह श्रेष्ठता का प्रतिमान बन जाता है।फिर महाजनों येन गता स पंथा की स्थिति निर्मित होती है। ऐसे में सामाजिक चुनौतियों का सामना करना एक और टेढ़ी खीर है।
आज का विषय अत्यंत गहन है।यहाँ माघ मेले में नेट की समस्या तो है ही।एकाग्रता भी नहीं सध पा रही है।इस लिए पूर्ण विवेचन संभव नहीं। अपनी एक कविता की निम्न पंक्तियों के साथ बात को यही विराम देना उचित समझता हूँ।

“पालागी पंडित जी कहकर चमरौटी हर्षाता।
पसियाने का गोड़इत आकर सब को रात जगाता।।
दुआ-सलाम कर जुलहाने का नजदीकी पा जाता।
जात-पात के रहने पर भी मेल-जोल का नाता।।”

पर यह नाता आज खंडित हो गया है। यह सामाजिक दरार बढ़ाने वाले कौन से लोग हैं। पहचान करने की जरूरत है। परस्पर दूरियाँ बढ़ी हैं और गहरी बढ़ी हैं।कुछ लोग ऐसे भी हैं जो रोटी यहाँ की खाते है पर अपना रिश्ता अन्य देश से जोड़ते हैं। सामाजिक विसंगतियों की वृद्धि में इनका भी अहम योगदान है।

डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज रायगढ़ छत्तीसगढ़ में सम्मानित.

डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज को रायगढ़ छत्तीसगढ़ में किया गया सम्मानित.

 
dr-rasik-kishore-singh-neeraj-raigad-honored-chhattisgarh

रामदास अग्रवाल के स्मृति में सम्पन्न हुआ साहित्य सम्मेलन

तथा स्मृति अंक सहित दो पुस्तकों का हुआ विमोचन ।

रायगढ़ ( छत्तीसगढ़) में ‘नयी पीढ़ी की आवाज’ व छत्तीसगढ़ साहित्य परिवार द्वारा आयोजित साहित्य सम्मेलन में छत्तीसगढ़ के नामचीन साहित्यकारों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। साहित्य सम्मेलन में प्रख्यात समाज सेवी व साहित्य प्रेमी स्व. रामदास अग्रवाल द्वारा साहित्य के लिए किए गये कार्यों को साहित्यकारों ने याद करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि दी।
समारोह का आरंभ मा सरस्वती के तैलचित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से किया गया। उसके पश्चात उपस्थित साहित्यकारों व साहित्य प्रेमियों तथा रामदास परिवार द्वारा स्व. रामदास अग्रवाल को विनम्र श्रद्धांजलि दी गयी।
यह कार्यक्रम शिक्षाविद व छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक के मुख्य आतिथ्य और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विनोद कुमार वर्मा की अध्यक्षता तथा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रसिक किशोर सिंह ’नीरज’के विशिष्ट आतिथ्य में तथा केवल कृष्ण पाठक, राष्ट्रीय कवि डॉ. ब्रजेश सिंह की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर प्रो.विनय कुमार पाठक ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्यकारों को साहित्य सृजन के साथ-साथ सामाजिक कार्य करते रहना चाहिए। आज जिस विभूति की स्मृति में यह कार्यक्रम का आयोजन किया गया है, उनसे मैं कुछ समय पूर्व रामकथा के दौरान मिला था। उनके विचारों और कार्यों को मैं इस अवसर पर नमन करता हूं। साहित्यकार समाज को दिशा देने का कार्य करता है। इसीलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहते हैं। उन्होने साहित्यकारों से इसी तरह समाज को दिशा देने हेतु साहित्य सृजन करते रहने का भीआह्वान किया।
इस अवसर पर विमोचित पत्रिका नयी पीढ़ी की आवाज स्मृति अंक व आनन्द सिंघनपुरी की किताब ’दिल की आहट’ तथा बाल साहित्यकार शंभूलाल शर्मा ’वसंत’ के ’मैना के गउना’ के बारे में भी प्रकाश डाला।

अन्य  लेख पढ़े : अनुभव

सम्मेलन में उपस्थित वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. के. के. तिवारी, डॉ .बृजेश सिंह, डॉ .रसिक किशोर सिंह नीरज (रायबरेली), गजलकार केवल कृष्ण पाठक, डॉ. विनोद कुमार वर्मा, शिव कुमार पांडेय, शम्भू लाल शर्मा ’वसंत’ ने रामदास अग्रवाल को श्रद्धांजलि देते हुए साहित्य पर वक्तव्य दिए। तथा डॉ.नीरज ने अपनी ग़ज़ल – ‘ गहराईयां नदी की किनारों से पूछिये’ सुनाकर समां बांध दिया।
रामदास द्रौपदी फाउंडेशन के चेयरमैन समाजसेवी सुनील रामदास ने कहा कि पूज्य बाबूजी द्वारा दिखाए गये रास्ते परचलकर हम सदैव साहित्य और समाज के कार्यों में सहयोगी बने रहेंगे।
उक्त कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार श्याम नारायण श्रीवास्तव ने किया।

अन्य  लेख पढ़े:आधुनिक भारत के निर्माण में स्वामी विवेकानन्द के विचार

इस साहित्य सम्मेलन में स्थानीय साहित्यकारों में आशा मेहर, डॉ. डी. पी. साहू, सरला साहा, रुसेन कुमार, आनन्द कुमार केड़िया, ऋषि वर्मा, रमेश शर्मा, सुखदेव पटनायक, अरविंद सोनी, मनमोहन सिंह ठाकुर, राकेश नारायण बंजारे ने भी अपने विचार व्यक्त किये। शहर के नन्द बाग में आयोजित इस सम्मेलन में जय शंकर प्रसाद, तेजराम नायक प्रफुल्ल पटनायक, प्रदीप कुमार, रामरतन मिश्रा, धनेश्वरी देवांगन, प्रियंका गुप्ता, हरप्रसाद ढेंढे, पवन दिव्यांशु, राघवेंद्र सिंह, गीता उपाध्याय, प्रदीप उपाध्याय, सनत, हेमंत चावड़ा, डॉ. मणिकांत भट्ट, प्रशांत शर्मा व अन्य बहुत से साहित्यकार उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव पर नयी पीढ़ी की आवाज के ’स्मृति अंक’ में प्रकाशित रचनाकारों को भी रामदास द्रौपदी फाउन्डेशन द्वारा सम्मानित भी किया गया।
कार्यक्रम के अंत में सुशील रामदास अग्रवाल ने स्व. रामदास अग्रवाल के स्मृति में आयोजित सफल कार्यक्रम के लिए नयी पीढ़ी की आवाज परिवार व साहित्यकारों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
डॉ.नीरज को रायगढ़ छत्तीसगढ़ में सम्मानित किए जाने पर रायबरेली के साहित्यकारों में हर्ष और उल्लास व्याप्त है । जनपद के कर्मचारियों ने भी उन्हें बधाई दी।