एक कप दूध | Hindi Story | डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
आज रामसिंगार बाबू के घर सुबह से ही ज़ोर ज़ोर से चीखने की आवाज़ आ रही थी। दरअसल कल उनका अपनी पत्नी से किसी बात पर बहस हो गई थी। बहस लंबी चली। मानों दोनों बहस के युद्ध में पूरी तैयारी से उतरे हों। रामसिंगार बाबू की पत्नी शहर के एक प्रतिष्ठित बैंक में कैशियर के पद पर कार्यरत हैं। कल रात सात बजे थकी मांदी घर पहुंची। अमूमन वे छ: बजे तक घर पहुंच जाया करती थी, लेकिन आज कैश काउंटर पर बड़ी भीड़ थी। जिस काउंटर पर कैश जमा होता था, वे साहब आज अवकाश पर थे। एक ही काउंटर पर लेन- देन दोनों हो रहा था। शाम को साढ़े चार बजे काउंटर क्लोज होने पर उनकी पत्नी दीक्षा ने हिसाब मिलाया तो दस हजार रुपए कम था। वे घबरा गई। ऐसा प्रतीत हुआ कि उनके पैर से जमीन खिसक गई हो। पसीना उनके माथे से निकलकर उनकी पूरी साड़ी को भिगोने लगा। इस महंगाई में दस हजार रुपए का नुक़सान एक बड़ा नुक़सान था। वे सोचने लगी कि अभी मकान मालिक का किराया भी देना है। बच्चों की फीस भी बाकी है। घर के चूल्हे की मद्धिम और तेज लौ दीक्षा की सैलरी के लाइटर पर ही निर्भर रहती थी। शहर के एक निजी कंपनी में उनके पति एक मामूली सा काम करते थे, वे अपना खर्च निकाल लें यही दीक्षा के लिए बहुत था। इसी बात को लेकर आए दिन दीक्षा के अहंकार की तलवार राम सिंगार के ऊपर चल जाया करती थी। राम सिंगार अपनी इन कमज़ोरियों से पूरी तरह वाकिफ थे। इसलिए पत्नी के क्रोध के तेज़ाब से वे हमेशा अपने को बचाते थे लेकिन कभी-कभी उसके छींटें से वे बच नहीं पाते थे।
उधर दीक्षा रुआंसा चेहरा लेकर मैनेजर के पास गयी। बोली सर आज मेरा हिसाब नहीं मिल रहा है। मैंने पूरा बाउचर चेक कर लिया है सर दस हजार रुपए कम आ रहे हैं, अगर बंटी को मेरे कैश मिलान के लिए कह दें तो मुझे सर सुविधा हो जायेगी।
मैनेजर ने कहा, देखिए मैम यह आपका रोज़ रोज़ का है। कभी हिसाब नहीं मिलता है कभी बाउचर पर मुहर लगाना भूल जाती हैं और आए दिन कुछ न कुछ गलतियां!
आए दिन लेट आती हैं यह सब नहीं चलेगा। दरअसल मैनेजर मैम को ऊपरी तौर पर तो डांट रहा था, लेकिन उसकी वासनात्मक आंखों की कड़ाही में मैम के सौंदर्य की मछली नृत्य रही थी। वह इस मछली को किसी भी तरह से पाने के लिए अपनी गिद्ध दृष्टि गड़ाए हुए था। आज मछली फंस गई थी।
मैनेजर शंभूसिंह जब से इस बैंक में आएं हैं उनकी इस हरकत से बैंक में कार्यरत तमाम महिलाएं अपना ट्रांसफर करवाकर दूसरे अन्य बैंक में चली जाती थीं। दीक्षा को आए इस बैंक में चार महीने ही हुए थे वह अपने काम में निपुण थी। बैंक मैनेजर को शिकायत का कभी मौका भी नहीं देती थी लेकिन जब संयोग खराब हो तो सावधान जानवर भी विदग्ध आखेटक के जाल में फंस जाता है और असहाय महसूस करते हुए दया की भीख मांगता है। आज दीक्षा की भी यही स्थिति है। बेचारी आज जाल में फंस चुकी थी। उसने कहा सर आज मुझे बहुत जल्दी है। बंटी से कह दीजिए कि वह मेरा सहयोग कर दे। मैनेजर ने संकेत संकेत में बंटी को मना कर दिया था।
बेचारी अपने केबिन में आकर रोने लगी। वह किंकर्तव्यविमूढ़ थी। तभी मैनेजर ने मैम को चैंबर में बुलाकर कहा कि ठीक है मैम आप घर जाइए! मैं हिसाब मिलवा लूंगा। दीक्षा को एक पल की खुशी तो मिली लेकिन वह मैनेजर की गिद्ध दृष्टि की आंखों में वासना की बनती बिगड़ती रेखाओं को पढ़ चुकी थी।
वहां से घर आने में सात बज चुके थे। उसे भूख और प्यास लगी थी। आते ही वह कटे वृक्ष की तरह विस्तर पर गिर चुकी थी।
अपने पति राम सिंगार को आवाज देते हुए चाय बनाने के लिए कही।राम सिंगार भी दिन भर का भूखा था,उसने कहा तुम खुद बना लो!
इतना सुनते ही वह बिगड़ैल बैल की तरह भड़क उठी और उसने अपनी ज्वलनशील वाणी के तेज़ाब में पति को इस तरह नहलाया कि अगल बगल की बिल्डिंग भी इस छींटें से नहीं बच सकी। रामसिंगार अपने क्रोध को अपने विवेक के जल से
नहीं शांत करते,तो आज कुछ भी हो सकता था। रात के ग्यारह बजे रहे थे। अंधेरी रात थी। झमाझम बारिश हो रही थी। दीक्षा कोपभवन में जा चुकी थी। राम सिंगार को बहुत ज़ोर से भूख लगी थी दोपहर में भी उसने कुछ नहीं खाया था। जाकर रसोईघर में देखा तो सारे बर्तन जूठे पड़े थे। फ्रिज में एक कप दूध रखा था। रात को कुछ बनाने की स्थिति में नहीं था। रामसिंगार ने दूध गरम होने के लिए रख दिया। रसोईं में कुछ ढूँढ़ रहे थे कि दूध के साथ खाकर सो जाया जाए कि अचानक पत्नी की सुध आई और पता नहीं क्या हुआ कि बड़ी ख़ामोशी से उन्होंने जूठे बर्तन साफ़ किए और भगोने में दाल चावल डाल कर खिचड़ी चढ़ा दी।
अपनी ज़िंदगी को कोसती दीक्षा भूख अपमान और क्रोध से करवटें बदल रही थी। सिर फटा जा रहा था। अचानक उठी कि किचन में जाकर कुछ खा लूँ और क्रोसीन ले कर सो जाऊँ कि अचानक बत्ती जली और देखा कि रामसिंगार एक हाथ में खिचड़ी की थाली और दूजे में पानी का गिलास लिए सामने खड़े हैं और खिचड़ी से देशी घी की सुगंध नथुनों में ज़बरदस्ती घुसी जा रही थी।
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874