कहानी | ठंडा पड़ गया शरीर | सम्पूर्णानंद मिश्र

कहानी | ठंडा पड़ गया शरीर | सम्पूर्णानंद मिश्र

चाय का कप लेकर बेडरूम में जैसे ही दीप्ति पहुंचती है वैसे ही सुमित के मोबाइल की घंटी घनघना उठती है।‌ सुमित हड़बड़ाकर बिस्तर से उठता है उस समय घड़ी सुबह के नौ बजा रही थी उसे लगा कि आज फिर दफ़्तर के लिए लेट हो जाऊंगा। उसने अपनी पत्नी को डांटते हुए कहा कि तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं आज बास फिर डांटेंगे हो सकता है कि अंकित का फ़ोन हो! आज हम दोनों को दफ़्तर में जल्दी बुलाया गया था हे भगवान ! अब क्या होगा। इसी उधेड़बुन में मोबाइल के घण्टी की घनघनाहट बंद हो गई। लेकिन जैसे ही मिस्ड काल को सुमित ने देखा तो वह थोड़ा सकपका गया उसे लगा कि चाचा तो कभी मुझे याद नहीं करते थे आज क्या बात है।‌ उसने अनमने भाव से चाचा को काल किया तो चाचा ने कहा कि बेटा तुम्हारे पापा अस्पताल में भर्ती हैं उन्हें रक्त की बहुत ज़रूरत है उनका प्लेटलेट्स बन नहीं रहा है।‌

स्वास्थ्य उनका गिरता जा रहा है तुम दो चार दिन की छुट्टी लेकर आ जाओ। उसने कहा कि चाचा उन्होंने मेरे लिए किया ही क्या है! बिजनेस के लिए उस समय पचास हजार रुपए मांगा था तो उन्होंने किस तरह से मुझे फटकारा था और कहा कि तुम्हें देने के लिए मेरे पास एक पाई नहीं है और किस तरह से उस घर में मेरे साथ भेदभाव किया गया था मैं नहीं भूल सकता हूं बड़े भैया के बेटे सिब्बू को एक लाख रुपए देकर बड़े शहर में पढ़ाने के लिए भेजे थे। कलक्टरी की पढ़ाई के लिए तो फिर मुझसे क्यों उम्मीद करते हैं वे जिएं या मरें मुझसे मतलब नहीं है। चाचा ने कहा बेटा वो तुम्हारे पिता हैं अगर तुम्हें कुछ कड़वी बात कह दी हो तो दिल पर मत लगाओ। इस समय पुत्र के दायित्व का निर्वहन करो। यह कठिन समय है अतीत की बातों को घोट जाओ। एक बार आ जाओ ! शायद तुम्हें और तुम्हारे बेटे अर्थ को देखने की उनकी बहुत इच्छा है।‌ उसने कहा कि चाचा मेरे और मेरी पत्नी के साथ उन्होंने बहुत दुर्व्यवहार किया है मुझसे किसी चीज की उम्मीद न करें ।

मेरा उनसे किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं रह गया है।‌ मां जब मेरी पत्नी दीप्ति के बालों को घसीट कर धक्का देकर घर से निकाल रही थी, तब वो कहां थे‌ उस समय तो वो भीष्म पितामह बने हुए थे। मैं नहीं आऊंगा! चाचा ने कहा बेटा समझाना मेरा काम था, बाकी तुम्हारी इच्छा। दरअसल कामता प्रसाद सिंचाई विभाग के आफिस सुपरिटेंडेंट पद से 2000 में सेवानिवृत्त हो गए थे। घर में खुशियां ही खुशियां थीं। दो बेटे और दो बेटियां थीं। भरा पूरा परिवार था किसी चीज की कमी नहीं थी बड़ी बिटिया सुरेखा का हाथ उन्होंने आज के तीस साल पहले ही पीला कर दिया था।‌ अच्छे घर में वह चली गई थी खाता पीता परिवार था। किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं थी। उनके जीवन के आंगन में खुशियों का हरा भरा बगीचा बहुत दिनों तक लहकता रहा। लेकिन न जाने किसकी नज़र उस परिवार पर पड़ी कि पूरा परिवार बिखर गया। दूसरी बिटिया की असामयिक मौत पीलिया से हो गई । कामता प्रसाद और उनकी पत्नी सुशीला पूरी तरह से टूट गए ।

आज भी रह रहकर वह दर्द उभर आता है। धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य हो ही रही थीं कि उनका बड़ा बेटा सुशील जो धीर गंभीर था। माता- पिता की सेवा में हमेशा लगा रहता था। सारे रिश्तेदार उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे। एक दिन अपने दोनों बच्चों और पत्नी को छोड़कर किसी आश्रम में चला गया। बाद में पता चला कि वह साधु बन गया। न जाने कौन सी आंधी आई कि कामता प्रसाद की खुशियों की मंड़ई को उड़ाक चली गई। सुशीला के ऊपर विपत्तियों ने ऐसा बज्र गिराया कि जहां से निकलना पूरी तरह से असंभव था। इधर अस्पताल में कामता प्रसाद जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे थे। एक दिन उनका साधु बेटा उन्हें देखने आया तो लोगों ने घर चलने का आग्रह किया लेकिन उसने कहा कि साधु और घर में छत्तीस का आंकड़ा है। पिता के स्नेह ने उसे यहां तक खींचकर तो लाया लेकिन भावनाओं की बेड़ियों को वह तुड़ाकर दूसरे ही दिन चला गया। उसी साधु का बेटा सिब्बू दिन -रात दादा की सेवा करता रहा।‌अस्पताल से एक मिनट के लिए नहीं हटता था। साथ में उसकी बुआ भी थी जो अपनी गृहस्थी को छोड़कर पिता की सेवा लगी रही।‌


कामता प्रसाद अपने नौकरी पीरियड में बहुतों का उद्धार किया। किसी की नौकरी लगवाई तो किसी की बेटी की शादी के लिए बहुत दूर तक चले जाते थे अपने कष्ट की परवाह किए।‌ जहां तक होता था सबकी मदद करते थे लेकिन आज जब उन्हें ज़रूरत है तो उनके संबंधी और उनसे अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों ने उन्हें मझधार में छोड़ दिया। कामता प्रसाद का शरीर आज कुछ ठंडा पड़ गया। कल ही उन्हें जनरल वार्ड से आई०सी० यू० में स्थानांतरित किया गया था।‌ चिकित्सकों ने अथक प्रयास किया लेकिन उन्हें नहीं बचा सके।
मृत्यु का समाचार सुनकर भी उनके दोनों बेटे नहीं आए।
उनके पौत्र सिब्बू ने ही मुखाग्नि दी और मृत्यु के बाद की सारी क्रियाएं, लोकाचार और लोकरीतियों का उसने ही निर्वहन किया। सिब्बू आज सदमे में है क्योंकि दादा के पेंशन से ही घर चल रहा था।

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874