“विलक्षण विरह” | भारमल गर्ग ‘विलक्षण’ की लेखनी से उपजा अमर प्रेम।
“तृष्णा से तपस्या तक” | प्रेम की व्यथा और आत्मा की यात्रा।
प्रिय महादेवी,
जब से वाराणसी की संकरी गलियों से तुम्हारी छवि लुप्त हुई है, तब से यह आत्मा गंगा के तट पर बैठे किसी सन्यासी के समान तृष्णा से व्याकुल है। वैशाली की यह भूमि, जहाँ कदम्ब के वृक्षों पर मयूर अब भी प्रेम-गीत गुंजारते हैं, किन्तु मेरे हृदय की वेदना उनकी मधुर लय में भी शोक घोल देती है। क्या तुम जानती हो, महादेवी, तुम्हारे अभाव में यह नगर कितना निर्जन प्रतीत होता है? मानो दीपक बिना ज्योति, साधक बिना समाधि…
तुम्हारे वाराणसी की गंगा कभी मेरे प्राणों में भी प्रवाहित होती थी। वहाँ के घाटों पर उदित होते सूर्य की लालीमा में तुम्हारे नयनों का प्रतिबिम्ब ढूँढ़ता हूँ, परंतु विधाता ने हमारे मध्य अमावस्या की एक अखंड रेखा अंकित कर दी है। समाज के वे नियंता, जिन्हें प्रेम का स्वरूप ही अज्ञात है, उन्होंने हमारे मिलन को “अधर्म” की संज्ञा दे डाली। क्या धर्म उस परमतत्त्व से श्रेष्ठ है, जो दो आत्माओं को एक सूत्र में गूँथ देता है?
स्मरण करती हो क्या तुम? वैशाली के उस वन-प्रांत में, जहाँ हमने अशोक के पत्रों पर प्रेम के मन्त्र अंकित किए थे। आज वे पत्र शुष्क हो चुके होंगे, किन्तु मेरी स्मृतियों में वे आज भी हरित हैं, मानो कालचक्र ने उन्हें स्पर्श करने का साहस ही न किया हो। तुम्हारे अधरों की वह लघु मुस्कान, तुम्हारे वस्त्र की सुवास… कभी-कभी भ्रम होता है, मैं तुम्हें नहीं देख रहा, स्वप्नलोक में विचरण कर रहा हूँ।
परन्तु हे देवि! यह प्रेम मृगतृष्णा नहीं, वरन् वह संध्याकालीन आरती है जो हमारे पूर्वजन्म के वासनाओं से प्रदीप्त हुई है। जिस प्रकार गंगा और यमुना का संगम अदृश्य सरस्वती के बिना अपूर्ण है, उसी प्रकार मेरी साधना तुम्हारे सान्निध्य के अभाव में। क्या हम अगले जन्म में उन तारकाओं का रूप धारण करेंगे, जो एक-दूसरे के विना क्षणभर भी प्रकाशित नहीं रह सकतीं?
मेरी यह लेखनी से उत्पन्न पत्र तुम तक पहुँचे अथवा न पहुँचे, किन्तु इन शब्दों की प्रत्येक बूँद तुम्हारे नाम के जप के समान प्रवाहित होगी। यदि कभी गंगा की तरंगों में तुम्हें कोई करुण स्वर सुनाई दे, तो जान लेना—वह मेरी वियोग-व्यथा का स्तोत्र है, जो तुम्हारे चरणों में मुक्ति की याचना कर रहा है।
प्रेमपूर्ण, तुम्हारा अनन्त-अपूर्ण
पण्डित विलक्षण
/- भारमल गर्ग “विलक्षण”
सांचौर राजस्थान (३४३०४१)