पुस्तक विमोचन: पुष्पलता श्रीवास्तव ‘शैली’ का प्रथम काव्य संग्रह ‘देहरी’

पुष्पलता श्रीवास्तव, शैली का प्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह, ‘देहरी’, लोक संपृक्ति के प्रसंगों को समाविष्ट किए हुए भावों एवं विचारों का ऐसा समन्वय सहेजे है कि इससे गुजरते हुए मन रस आप्लावित हो उठता है।
अत्यंत सहज रूप से भावों की अभिव्यक्ति, आडम्बरहीन तरीके से उद्गारों को शब्द देना पुष्पा जी की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता है। गहन संवेदना की अभिव्यक्ति इतने सरल, प्राकृतिक रूप में वही कलम कर सकती है जिसे कविता रचनी नहीं पड़ती वरन् जो कविता को जीती है। अत्यंत सशक्त संप्रेषण शक्ति है पुष्पा जी की कलम में। कविता के रचे जाने और पढ़े जाने का सम्पूर्ण प्रकरण कुछ ऐसा है कि लिखने वाले के मन में जो भाव उठे वे सीधे जा कर पढ़ने वाले के मन में घर कर जाने की क्षमता रखते हैं।

पुस्तक ख़रीदने का लिंक : देहरी


लोक जीवन के विश्सनीय दृश्य, ग्राम्य संवेदना और संस्कृति में लिपटे परिवेश का एक सोंधी मिठास से परिपूर्ण ऐसा चित्रण हैं देहरी में संकलित कविताओं में कि कविताओं को पढ़ते हुए मन में जैसे खेत से ताजा तोड़े गन्ने की गड़ेरियों का रस बूंद बूंद भीतर उतरने लगता है।ग्रामीण दृश्यों का सहज लोक भाषा में स्निग्ध चित्रण है किंतु मात्र शब्द चित्र नहीं हैं वे, वरन् भरपूर वैचारिक सम्पन्नता भी है। सीख है, आग्रह है, विसंगतियां है, विपन्नता है, अपने पूरे ठेठ स्वरूप में यथार्थ है। शब्दों, भावों और विचारों का जो समन्वय है वही कविताओं की ग्राहयता को बढ़ा जाता है।
संदर्भित संग्रह में एक कविता है—’गाँव की महक’। इस कविता में कोयल की कूक है, आम महुए से आराम से बतिया रहे हैं, बाँस के झुरमुट से झांकता सूरज है, साँझ के गीत हैं..गरज यह की मन को माधुर्य से सिंचित करते बहुत से ग्रमीण संदर्भ के चित्र हैं पर कविता का असली उद्देश्य है बेटियों से इन सबको आत्मसात करने का आग्रह। इतना ही नहीं पारिवारिक संबंधों की सुदृढ़ता और इन्हें उचित मान देने पर भी बात की गई है। इसी कविता में कच्चे आंगन में जलते चूल्हे की सोंधी महक है, बिटिया के लिए रोटी सेंकती ताई भी हैं, रात भर दूध औटाती काकी भी हैं और ताऊ के प्यार की खनक भी है। अपनी जड़ों और पारिवारिक संबंधों के संरक्षण के प्रति कवियत्री की यह निष्ठा कविता को बेशकामती बना जाती है।इसी कविता की अंतिम पंक्तियों में गाँव के कुएं के संदर्भ में घूंघट से निकली बात का जिक्र आता है। जिन्हें गाँव के कुएं और पनघट पर पर एकत्रित गाँव की बहुओं वाले उस दृश्य और उसकी आत्मा का अनुभव होगा वह पाठक स्वयं को कवियत्री की इस बात से जोड़ पायेगा, ‘बात घूँघट के नीचे से निकली मगर, चुपके- चुपके हवा में पतंग बन गई।‘
देहरी में माँ और माँ की देहरी से संबंधित, माँ को संबोधित अत्यंत भाव प्रवण कवितायें हैं।
‘अम्मा जब मिलने आऊँगी, मुझको गले लगा लेना।
उलझे हुए मेरे बालों को तुम पहले सुलझा देना।‘
माँ और बेटी के अंतरंग, साख्य भाव से परिपूर्ण क्षणों का सर्वाधिक सटीक और मनभावन चित्र है, अम्मा के सामने बाल खोले बैठी बिटिया और तेल लगाती, बाल सुलझाती माँ, किंतु यहाँ भी बात वहीं तक तो सीमित नहीं है। माँ की देहरी से ससुराल की बखरी में प्रविष्ट हुई बिटिया के मन की बहुत सी उलझने सुलझाने, ढांढस बंधाने और रास्ता दिखाने का काम भी माँ ही करती है और इस बात को अभिव्यक्त करने के लिए अत्यंत आत्मीय बिम्ब हैं इस कविता में।
बात माँ की बनाई ‘तरकारी की सोंधी महक’ की हो या ‘कोठरी में बस मेरा सामान रखना’ का प्यारा सा अनुरोध हो, ऐसी हर कविता से गुजरते हुए मन में बरसों पहले छूटी देहरी की स्म़ृतियाँ बरबस घनीभूत हो उठती हैं। माँ ही क्यों यह कविता संग्रह पारिवारिक संबंधों फिर वो भाई- भाभी हो, बिटिया हो या ससुराल पक्ष के संबंध, के प्रति, उनके जीवन में होने के प्रति अनेक भावांजलियाँ समेटे है अपने आप में।
समसामायिक विषयों , सामाजिक समस्यायों के प्रति उदासीन नहीं है कवियत्री, पर्यावरण का असंतुलन, पारिवारिक विघटन के दौर में घर के बुजुर्गों का बढ़ता अकेलापन, कन्यायों- महिलाओं पर होते शारीरिक दुष्कर्म, बारिश में ढहती कच्ची छतें, कृषक के संघर्ष, सब पर दृष्टि गई है पुष्पा जी की और प्रत्येक विषय को अत्यंत संवेदनशील ढंग से सहेजा है उन्होंने अपनी कविताओ में।
प्रणय गीत भी हैं संग्रह में। ‘मन से मन जब मिला, तम लजा कर गिरा, लाज की ओढ़नी फिर बाँधनी पड़ी’, है कहीं तो कहीं, ‘साँकलों की खटक सुन प्रिये, लाज को छोड़ बैठे नयन’, चाँद है, चाँदनी है और हरसिंगार की महक भी, गरज यह कि हथेली पर पंख फड़फड़ाती तितली सरीखे भावों की कोमलता है इन प्रणय गीतों में। किंतु हम जिस कविता की ओर आपका ध्यानाकर्षण करना चाहेंगे वह है— ‘बेमतलब की डाँट तुम्हारी, प्रियतम नहीं सहूँगी।‘ इस कविता में प्रेयसी पत्नी का कहना है कि उसे भौतिक सुख और विलासता की बहुत चाह नहीं है। आर्थिक सामर्थ्य के बाहर उसे कुछ नहीं चाहिए किंतु किसी भी प्रकार का अन्याय, मानसिक प्रताड़ना वह नहीं सहन करेगी। इस कविता में पुष्पा जी ने स्त्री का जो रूप प्रतिष्ठित किया है, वही हमारी संस्क़ृति, नारी मन और पारस्परिक प्रेम का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है।
देशज शब्दावली, लोक राग, लोक भाषा के शब्दों का प्रयोग और सहज अभिव्यक्ति शैली ‘देहरी’ की कविताओं को मन में रोपने में अत्यंत सहायक हुए हैं।
‘देहरी’ के विषय में कही गई बातें अधूरी रह जायेंगी यदि इसमें संकलित भूमिकाओं का जिक्र न किया गया। साहित्य जगत में स्थापित हस्ताक्षरों द्वारा लिखित भूमिकायें तो देहरी का मान बढ़ा ही रही हैं किंतु इसे विशिष्ट बनाती हैं परिवार जनों के भावों की अभिव्यक्ति और स्वयं पुष्पा जी की कही बात। भावों की सहज, ईमानदार, कोमल, कवितामयी अभिव्यक्ति से ओत- प्रोत ये भूमिकायें देहरी की कविताओं का वह प्रवेश द्वार हैं, जिससे भीतर जा बाहर निकलने का मन ही नहीं करता।
देहरी का विमोचन हो चुका है। पुस्तक आप सबके मध्य है। आनंद उठाइये। पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’ को हमारी अगाध शुभकामनाएं। वे अपनी साहित्यिक यात्रा के पथ पर निरंतर अग्रसर हों पर हमें देहरी पर के नीम और घर के बखरी, दालान से जोड़े रहे उनकी कलम, यह हमारा अनुरोध है।
नमिता सचान सुंदर

हजारी लाल तिवारी काव्य भूषण सम्मान’ से लखनऊ में सम्मानित हुए वरिष्ठ कविगण

Lucknow: कल दिनाॅंक 14.07.24 को वरिष्ठ कवि श्री सत्येन्द्र तिवारी जी के लखनऊ स्थित आवास पर आदरणीय भूपेन्द्र सिंह ‘होश’, शैलेन्द्र शर्मा, उपेन्द्र वाजपेई तथा कमल किशोर ‘भावुक’ जी को पं . हजारी लाल तिवारी काव्य भूषण सम्मान ‘ से सम्मानित किया गया।

आत्मीय साहित्यिक समागम के विशेष आयोजन में देश के सुप्रसिद्ध पर्वतारोही/फोटोग्राफर उपेन्द्र वाजपेई जी के साथ कानपुर के वरिष्ठ कवि आदरणीय शैलेन्द्र शर्मा जी की रचनाओं को सुनकर लोग वाह-वाह कर उठे। आदरणीय भूपेन्द्र सिंह ‘होश’, कमल किशोर ‘भावुक’, कुलदीप ‘कलश’ के साथ सत्येन्द्र तिवारी के गीतों ने कार्यक्रम को अद्भुत ऊॅचाइयाॅं प्रदान कीं। संजय ‘सागर’, रश्मि ‘लहर’, आदर्श सिंह ‘निखिल ‘ जी सहित कई रचनाकारों की उपस्थिति से समारोह ने एक भव्य स्वरूप ले लिया। कार्यक्रम का प्रारंभ सत्येन्द्र तिवारी के नातियों क्रमशः दिव्यांश एवं अर्णव द्वारा संस्कृत की वाणी वन्दना से किया गया। कार्यक्रम की समाप्ति पर सत्येन्द्र तिवारी ने सभी का आत्मीयता से आभार व्यक्त किया।

अवधी भाषा में लिखी मधुरस पंखुड़ियां साझा काव्य संग्रह पुस्तक का हुआ विमोचन

रायबरेली: अवधी भाषा में लिखी मधुरस पंखुड़ियां साझा काव्य संग्रह पुस्तक का हुआ विमोचन । अवधी भाषा अवध के क्षेत्र की भाषा है जिसे आगे बढ़ाने के लिए साहित्यकारों का एक समूह काम कर रहा है जिसका एक पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम रायबरेली में आयोजित हुआ l

अवधी मधुरस कला समन्वय समिति अमेठी के तत्वाधान में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भाषा सलाहकार डॉ संतलाल उपस्थित रहे संयुक्त रूप से प्रकाशित मधुरस पंखुड़ियां साझा काव्य संग्रह पुस्तक में अवधी भाषा में लिखी कविताओं को संकलित किया गया है l
कार्यक्रम में अनिल कुमार सिंह, शिव कुमार सिंह ‘शिव’ डॉ रामगोपाल जायसवाल, डॉ मनोज सिंह ,जितेंद्र सिंह और अंकित सैनी के साथ अवधी भाषा के प्रख्यात विद्वान इंद्रेश भदोरिया व हिंदी रचनाकार समूह के संस्थापक अभिमन्यु सिंह भी मौजूद रहे l

मुख्य अतिथि डॉक्टर संतलाल ने बताया कि अवधी भाषा का इतिहास रामायण काल से माना जाता है इसलिए यह पुरानी भाषाओं में गिनी जाती है भले ही शहर के लोग इसे बोलने में संकोच करते हैं लेकिन गांव क्षेत्र में आज भी यह भाषा प्रचलित है जिसे संकलित करके आगे बढ़ाने की आवश्यकता है l

पत्रकारों के लिए बहुत ही उपयोगी पुस्तक “मैं और मेरे साक्षात्कार” लोकार्पण संपन्न हुआ

पत्रकारों के लिए बहुत ही उपयोगी पुस्तक “मैं और मेरे साक्षात्कार” लोकार्पण संपन्न हुआ

श्रीमती सविता चड्डा की नवीनतम प्रकाशित कृति ” मैं और मेरे साक्षात्कार ” का लोकार्पण माननीय पूर्व उपमहापौर वरयाम कौर और वरिष्ठ पत्रकार हरीश चोपड़ा ,लतांत  प्रसून, डा  कल्पना पांडेय द्वारा किया गया।  इस अवसर पर इस पुस्तक में जिन पत्रकारों, लेखकों के इंटरव्यू शामिल है वे भी इस अवसर पर उपस्थित थे ।

कार्यक्रम का शुभारंभ और संचालन करते हुए वरिष्ठ कवि और लेखक अमोद कुमार ने कहा कि ” यह एक दुर्लभ कृति है जिसमें सविता चड्ढा के लेखन और समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण के दर्शन होते हैं ।

इस अवसर पर लेखिका ने उपस्थित सभी महानुभावों का स्वागत और अभिनंदन किया । उन्होंने कहा कि जब मैं पत्रकारिता का डिप्लोमा कर रही थी और  जब  मेरी पुस्तक “नई पत्रकारिता और समाचार लेखन ” प्रकाशित हुई थी तब मुझे इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं था कि कभी मेरे भी इंटरव्यू लिए जाएंगे और वह पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित  भी होंगे । उन्होंने कहा कि जिन लेखकों पत्रकारों ने मेरे इंटरव्यू लिए हैं मैं उनके प्रति बहुत आभारी हूं । सविता जी ने उन सब लेखकों, पत्रकारों को याद किया जिन्होंने 30 – 35 -40 वर्ष पूर्व उनके इंटरव्यू लिए और वे सब पत्र-पत्रिकाओं में , देश और विदेश में प्रकाशित किए हुए । उन्होंने  इस पुस्तक के कवर पर मुरारीलाल त्यागी जी के चित्र का उल्लेख करते हुए बताया कि यह चित्र उस अवसर का है जब त्यागी जी मेरे ही निवास पर वे कल्पांत पत्रिका के लिए मेरा इंटरव्यू करने आए थे।  

इसी अवसर पर श्रीमती वरयाम कौर, पूर्व उपमहापौर दिल्ली ने सविता चड्डा की पारिवारिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए कहा कि इन्हें लेखन के संस्कार इनकी माताजी से ही मिले हैं । उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण बात का उल्लेख किया , उन्होंने कहा कि सविता जी की माता  जी जो स्कूल चलाती थी मैं उसी की विद्यार्थी रही हूं।  उन्होंने इस पुस्तक को बहुत ही उपयोगी कहा और यह भी कहा कि वह उनके द्वारा किए गए लेखन और परिश्रम की वे कद्रदान है । 

इस अवसर पर पंजाब केसरी के पत्रकार हरीश चोपड़ा ने लेखिका को  इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए बधाई देते हुए इस पुस्तक की बहुत सराहना की और कहां इस पुस्तक की उपयोगिता पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत अधिक होने वाली है। उन्होंने बताया कि लगभग 30 वर्ष पूर्व जब उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया था  तब उन्होंने सविता जी का इंटरव्यू लिया था । उन्हें बहुत खुशी है कि उस इंटरव्यू को आज इस पुस्तक में शामिल किया गया है।

 इसी अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार लतांत प्रसून ने कहा कि सविता चड्डा एक बहुत ही कर्मठ महिला है और पत्रकारिता पर इनका बहुत बड़ा कार्य है।  यह पुस्तक भी पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

लोकार्पण समारोह में बोलते हुए डॉ रवि शर्मा ‘मधुप’ ने कहा कि यह पुस्तक अपने आप में अनूठी है। इसमें संगृहीत 23 साक्षात्कार (17 हिंदी में और 6 अंग्रेज़ी में) लेखिका सविता चड्ढा के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों को उद्घाटित करते हैं। साहित्य लेखन और परिवार के दायित्व, नारी की स्थिति, बच्चों का पालन-पोषण, भारत में हिंदी, साहित्यकार की भूमिका आदि विविध विषयों पर आपके विचार इस पुस्तक को पूर्णता प्रदान करते हैं। इस पुस्तक में संगृहीत मेरे द्वारा लिए गए साक्षात्कार में सविता जी ने भारत में हिंदी की विभिन्न रूपों में उपस्थिति और भविष्य की संभावनाओं पर विशद चर्चा की है। उन्होंने महत्त्वपूर्ण पुस्तक के लिए लेखिका को हार्दिक बधाई दी।

डा कल्पना पांडे ने सविता चड्ढा को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए अपने एहसास काव्य के माध्यम से इस प्रकार प्रस्तुत किए।

ख़ूबसूरत ज़िंदगी का तुम नया अंदाज़ हो 

भाव में हर राग में सुंदर सी इक आवाज़ हो

नित नई आराधना में तुम समर्पित राग हो 

खिलखिलाती ज़िंदगी का तुम ही तो आगाज़ हो

लेखनी से भर ही देती तुम नया एहसास हो 

गीत हो या की ग़ज़ल हो प्रेम का सद्भाव हो

दर्द में तन्हाइयों में तुम मधुर सा साज़ हो 

तुम हो सविता तुम किरण हो रूपसी संसार हो

झिलमिलाती धूप में शीतल सुखद सी छांँव हो

मांँ हो तुम बेटी तुम्हीं हो सारे रिश्ते की हो खान

खूबसूरत प्यारी बगिया का तुम्हीं सविता हो नाम।

पंडित प्रेम बरेलवी अपने वक्तव्य में कहा

 आदरणीय सविता चड्ढा जी की आज एक और किताब ‘मैं और मेरे साक्षात्कार’ हम सबके समक्ष है। इससे पहले उनकी कृतियों में उपन्यास, कहानियों, कविताओं, स्त्री विमर्श, बाल साहित्य और पत्रकारिता की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। रेडियो, टेलिविज़न के लिए भी आपका योगदान सराहनीय है। सविता जी ने समाज की बुराइयों, कमियों को समाप्त करने, नये सुसंस्कृत समाज और सुदृढ़ राष्ट्र के निर्माण करने को ध्यान में रखकर साहित्य सृजन किया है। आपका साहित्य आज की बहकती हुई पीढ़ी के मार्गदर्शन के लिए बहुत उपयोगी है। अत्यधिक संघर्षरत जीवन में इतना अनमोल साहित्यिक सृजन हर कोई नहीं कर पाता। आपके लिए मेरा शे’र है- 

“आग से खेलना भी पड़ता है। 

आदमी यूँ बड़ा नहीं होता।। 

इस पुस्तक में प्रकाशित सविता जी का साक्षात्कार 15-16 साल पहले मैंने किया था। इस पुस्तक में उस साक्षात्कार को जगह देकर आपने मुझे भी कृतज्ञ किया है। ऐसी साहित्य विभूति सविता जी को उनकी इस पुस्तक के विमोचन और जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ, बधाई।

जितेंद्र प्रीतम ने एक चैनल के लिए सविता जी का साक्षात्कार लिया था उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा,

अत्यन्त सरल व सहज व्यक्तित्व की स्वामिनी, माननीया श्रीमति सविता चडढा जी को उनके जन्मदिवस तथा उनकी सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘मैं और मेरे साक्षात्कार’ के लोकार्पण के इस शुभ दिन पर हृदयतल से अनन्त व अशेष हार्दिक शुभकामनाऐं ।

सविता चडडा जी का व्यक्तित्व एवं व्यवहार दोनो बहुत चुम्बकीय हैं,

उनसे मिलने वाले लोग,उनकी सरलता से मंत्रमुग्ध हुए बिना नही रह सकते ।

पहली बार मिलने पर भी प्रतीत होता है जैसे हमारा इनसे न जाने कितना पुराना परिचय है ।

एक सफल प्रशासनिक अधिकारी, एक सम्मानित लेखिका, एक कुशल गृहिणी, तथा एक समर्पित माँ जैसे अनेकानेक महत्वपूर्ण दायित्वो का निर्वहन सविता चडढा जी ने जिस कुशलता के साथ किया है, वो अवर्णनीय है ।

आपके जन्मदिवस पर, ईश्वर से यही प्रार्थना है कि साहित्य और स्वास्थ्य दोनो का धन आपको प्रचुरता से उपलब्ध रहे ।

“आपके व्यक्तित्व की पहचान,

आपकी निर्मल निश्छल मुस्कान

आपके होठों पर सदैव रहे विद्यमान”

इन्ही पंक्तियों के साथ, आपको पुनः जन्मदिवस की बहुत-बहुत बधाई ।

इस अवसर पर  राजेंद्र नटखट नीनू कुमार, लतिका बत्रा,  पूनम मनकटोला ज्योति वर्धन साहनी  ने लेखिका को शुभकामनाएं दी और लेखिका के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला । पुस्तक के प्रकाशक और निदेशक धर्मेंद्र कुमार ने भी इस अवसर पर लेखिका का अभिनंदन किया  और उनके समग्र लेखन को अत्यंत सारगर्भित और समाजोपयोगी लेखन बताते हुए लेखिका को अपनी शुभकामनाएं दी। 

जिन लेखकों ने इंटरव्यू इस पुस्तक में शामिल है उन्हें प्रतीक चिन्ह, अंगवस्त्रम  माला  द्वारा उनका सम्मान भी किया गया । उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त को लेखिका सविता चड्डा का जन्मदिन भी होता है।