उदैया चमार : अंग्रेजों को धूल चटाने वाले वीर योद्धा

उदैया चमार : अंग्रेजों को धूल चटाने वाले वीर योद्धा

अक्सर उच्च कुलीन लोगों द्वारा कहा जाता है कि दलितों ने समाज और देश के लिए क्या किया? सिर्फ वो सेवा ही तो करते थे। ऐसे प्रश्न करने वाले लोगों ने शायद इतिहास को गंभीरता से नहीं पढ़ा, या उन पुस्तकों तक पहुँच नहीं पाये हैं। ये भी विडंबना रही है कि दलितों को पढ़ने का अधिकार नहीं था, इसलिए उनका ओजस्वी इतिहास के स्वर्णिम पन्नों से गुम हो गया था।
वैसे तो स्वाधीनता संग्राम का श्रीगणेश तिलका मांझी के द्वारा सन 1771 में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध से माना जाना चाहिए।
उसके बाद दूसरी बार सन 1804 में अंग्रेजों के खिलाफ चिंगारी भड़की थी। दुबले- पतले छहररे बदन वाले फुर्तीले उदैया चमार छतारी में चमड़े का व्यापार करते थे। उदैया अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुण व दुश्मनों को चकमा देने में माहिर थे।
छतारी जिला अलीगढ़ के नवाब नाहर खान व उनके पुत्र ने सन 1804 में अंग्रेजों के खिलाफ भीषण युद्ध लड़ा। इस लड़ाई में उदैया चमार ने 100 से अधिक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था। अन्ततः नवाब नाहर खान की जीत हुई।
पुनः सन 1807 में नवाब नाहर खान और उदैया चमार ने साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी, जिसमें फिरंगी बुरी तरह परास्त हुए और उन्हें छतारी छोड़ कर भागना पड़ा।
दूसरी बार अपनी पराजय से बौखलाए अंग्रेजों ने कुछ दिन बाद नई कूटनीति से पूरी तैयारी के साथ आकर घेरा बनाकर उदैया चमार को गिरफ्तार कर लिया और सन 1807 में ही अंग्रेजों ने कुछ दिन ही मुकदमा चलाकर उदैया चमार को सरेआम छतारी गाँव के चौराहे पर फांसी दे दी थी।
अलीगढ़ के आसपास आज भी उदैया चमार के चर्चे होते हैं। कुछ जगह तो उदैया की पूजा भी होती है। वीर सपूत उदैया मातृभूमि के लिए शहीद हो गए, किंतु शूद्र होने के कारण उनका नाम गुम हो गया।

डॉ अशोक कुमार
रायबरेली UP
मो 9415951459