साहित्य की दुनिया में रायबरेली का नाम रोशन कर रहे अभय प्रताप सिंह

जनपद रायबरेली, निवासी बेनीकोपा ( कबीरवैनी ) के रहने वाले युवा साहित्यकार अभय प्रताप सिंह अब उत्तर प्रदेश के बाद अन्य राज्यों जैसे बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, गोवा, मध्य प्रदेश, हरियाणा, आदि में भी अपने नाम का परचम लहरा रहे हैं। अभय हाल ही में ‘ लेखनशाला ‘ नाम का एक ‘ संस्था ‘ स्थापित किए जोकि हर रोज नई बुलंदियों को स्पर्श कर रहा है।

इस संस्था का उद्देश्य उन तमाम रचनाकारों को जगह देना है, उनकी लिखी रचनाओं को प्रकाशित करना है जिनके पास प्रतिभा है, मेहनत करने का जुनून है, लेखनी का शौक है। उसके बावजूद वो अपनी रचनाओं को प्रकाशित करवाने में असमर्थ हैं।

संस्था संस्थापक, अभय जी से बात करने पर उन्होंने बताया कि लेखनशाला संस्था की स्थापना 13 जुलाई 2024 को की गई थी। जिसका मकसद हर उस शख्स तक पहुंचना है जो लिखना चाहते हैं, पढ़ना चाहते हैं, साहित्य में रुचि रखते हैं लेकिन उनके पास किसी भी प्रकार की कोई विकल्प नहीं है जिससे वो अपनी बातों को लोगों के मध्य रख पाएं। इसलिए हमारा उद्देश्य यही है कि हम हर उस शख्स तक पहुंचे जो इन परेशानियों से जूझ रहे हैं और साहित्यिक सेवा भी करना चाहते हैं। हमारी ये संस्था सभी लेखकों, पाठकों और तमाम सहपाठियों के लिए लाभप्रद होगी। हम हर संभव प्रयास करेंगे की इस संस्था के माध्यम से हम पाठकों के लिए हर रोज़ कुछ न कुछ नया लाएं जिससे उन पाठकों को थोड़ी आसानी प्राप्त हो।

उन्होंने ने ये भी कहा कि लेखनशाला ( शब्दों की उड़ान ) संस्था में संस्था के कई सारे प्रोडक्ट भी शामिल किए गए हैं। हमारी संस्था हमारी पूरी टीम, सभी भाषा सलाहकार इस छोटी सी मुहीम में अपना हिस्सा लिए और संस्था को मजबूत बनाए। मैं सिर्फ़ संस्था का संस्थापक हूं लेकिन संस्था के सफ़लता के पीछे का सारा योगदान, टीम और भाषा सलाहकारों को जाता है।

अमर शहीद जोधा सिंह अटैया : सत्तावनी क्रांति के अग्रदूत, जो 51 क्रान्तिकारियों संग एक साथ फांसी पर झूल गए

भारत प्राचीन काल से ही संपदा संपन्न, सुखी व समृद्ध रहा है। अखिल विश्व में भारतवर्ष की अलग पहचान सदियों से रही है। जल-थल-नभ में बहुमूल्य खनिज सम्पदा, औषधियां, हीरा जवाहरात आदि उत्पन्न होते थे। शायद इसीलिये भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, किन्तु अनेक विदेशी आक्रांताओं ने कई बार भारत की अस्मिता पर हमला किया। पराधीनता की अंतिम दास्ताँ को भी समाप्त करने की शुरुआत सन् 1857 से पहले हो चुकी थी। उसके बाद सम्पूर्ण भारत में एक स्वर में सन् 1857 में जंग-ए-आजादी का परवान चढने लगी थी। तब अनेक क्रांतिकारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए भारत माता की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर कर दिया।

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ऐसे ही फतेहपुर के क्रांतिकारी अमर शहीद जोधा सिंह अटैया थे। जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजों से अपनी रियासत मुक्त कराई थी।
जोधा सिंह अटैया का जन्म उत्तर प्रदेश सूबे के फतेहपुर जनपद में बिंदकी के निकट रसूलपुर पंधारा में हुआ था।
शहीद जोधा सिंह के नाम के साथ जुडे ‘अटैया’ शब्द की भी अपनी अलग कहानी है। अटैया शब्द इक्ष्वाकु वंश से संबंधित है, जिसके अन्तर्गत ‘गौतम’ गोत्र वाले क्षत्रिय आते हैं। गौतम वंशीय क्षत्रिय उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में अधिक संख्या में निवास करते हैं। ये लोग ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, राष्ट्रप्रेमी, हृदय के साफ और दुश्मनों से बदला लेने में भी माहिर होते हैं।
भगवान गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) के कहने पर गुरु शालण्य ने कपिलवस्तु से अलग राज्य स्थापित करने के लिए गौतम वंश की नींव डाली थी। ‘गौतम’ शब्द संस्कृत में गो + तम से बना है। इसलिए गौतम का अर्थ अंधकार को आध्यात्मिक ज्ञान से दूर करने वाला अर्थात ‘उज्जवल प्रकाश’ होता है।
कहा जाता है कि गौतम बुद्ध के वंशज फ़तेहपुर के शासक हरि वरण सिंह अटैया थे, जिन्होंने मुगलों से कई बार युद्ध करके उन्हें पराजित किया था। राजा हरि वरण सिंह के वंशज ही राजा जोधा सिंह अटैया थे।
इतिहासकार श्री शिव सिंह चौहान ने अपनी पुस्तक “अर्गल राज्य का इतिहास” में लिखा था कि फ़तेहपुर परिक्षेत्र इलाहाबाद (प्रयागराज) रेजीडेंसी के अन्तर्गत आता था, जिसे पश्चिमी इलाहाबाद और पूर्वी कानपुर के नाम से संबोधित किया जाता था। मुगलकाल का अंतिम दौर और ब्रिटिश काल का प्रारंभिक समय तक फ़तेहपुर नाम का कोई अस्तित्व नहीं था। कालांतर में अंग्रेजों ने यथाशीघ्र अपने साम्राज्य का विस्तार करने के उद्देश्य से सन् 1826 में फ़तेहपुर जनपद का गठन किया था।
भारत की दो पवित्र नदियाँ माँ गंगा (सुरसरि) और यमुना (कालिंदी) के मध्य फ़तेहपुर जनपद में स्थित हैं। फतेहपुर जनपद के उत्तर में गंगा और दक्षिण में यमुना के हजारों वर्षों से अनवरत कल-कल की मधुर ध्वनि के साथ बहती हुई प्रतिदिन लाखों लोगों को जीवन दान देती हैं।
अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह का जन्म फ़तेहपुर से दक्षिण-पश्चिम में स्थित बिंदकी के समीप रिसालपुर के राजवाड़ा परिवार में हुआ था।
फ़तेहपुर छावनी में हमेशा भारी मात्रा में गोला बारूद का जखीरा रहता था। मातादीन वाल्मीकि ने जब शहीद मंगल पाण्डेय का जातिवाद के तंज पर आक्रोशित होकर कहा कि सुअर और गाय की चर्बी लगी करतूस मुँह से खींचते हो, तब तुम्हारी पंडिताआई कहाँ चली जाती है। इतना सुनते ही मानो अमर शहीद मंगल पाण्डेय के चक्षु खुल गए हों। मंगल पाण्डेय ने पश्चिम बंगाल स्थित बैरकपुर में 10 मार्च सन् 1857 को बगावत करते हुए ब्रिटिश अधिकारी मेजर ह्यूसन को गोली मार दी। उसके बाद 10 मई सन् 1857 को मेरठ में पूर्ण रूप से क्रांति की चिंगारी भड़की थी। यह क्रान्ति की चिंगारी ही नहीं, भारतीयों को आजादी पाने और भारत के उद्धार की लौ थी। यही चिंगारी ठीक एक माह बाद 10 जून को फ़तेहपुर में आग का गोला बनकर भड़क उठी थी। फ़तेहपुर के राजा ठाकुर जोधा सिंह पहले से ही सतर्क और घात लगाये बैठे थे कि यथाशीघ्र फिरंगियों पर हमला किया जा सके। इसलिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ अपने नज़दीकी नाना साहब सहमति पाकर फिरंगियों के ख़िलाफ़ फतेहपुर में जंग-ए-आजादी का आगाज़ कर दिया।
फ़तेहपुर के तत्कालीन कलेक्टर हिकमतुल्ला कहने को तो ब्रिटिश सरकार के नौकर थे, लेकिन उनका रक्त सच्चा हिंदुस्तानी था। इसलिए कलेक्टर ने क्रांतिकारियों का हर कदम पर सहयोग किया। उनके सहयोग से क्रांतिकारियों ने कचहरी परिसर में झंडा फहरा दिया। फ़तेहपुर की आज़ादी की घोषणा होते ही कलेक्टर हिकमतुल्ला को चकलेदार/ रिसालेदार नियुक्त कर दिया था। ‘चकलेदार’ का अर्थ- ‘कर Tax वसूलने वाला अधिकारी’ होता है। फ़तेहपुर की आज़ादी की घोषणा का स्वर लंदन पर जाकर सुनाई दिया था। तब फिरंगी इनसे भयभीत हो गए थे।
सन 1857 के गदर में शहीद जोधा सिंह का नाम कुशल रणनीतिकारों की श्रेणी में अग्रणी रहता था। अपनी रणनीति के तहत जोधा सिंह अटैया ने अवध और बुन्देलखण्ड के क्रान्तिकारी राजाओं से बेहतर ताल मेल बैठाया। सभी रियासतों के राजाओं और क्रान्तिकारियों ने एक साथ मिलकर उचित अवसर देखकर धीरे-धीरे सम्पूर्ण भारत में फिरंगियों और उनकी दमनकारी नीतियों के खिलाफ संग्राम छेड़ दिया था।
अंग्रेज सैनिक अपने गुप्तचरों के साथ मिलकर, जोधा सिंह अटैया को खोज रहे थे। इस बीच जोधा सिंह को अपने गुप्तचरों से जानकारी हुई कि अंग्रेज सिपाही दरोगा दीवान आदि महमूद पुर गाँव में डेरा डाल चुके हैं। तब जोधा सिंह अटैया और उनके क्रांतिकारी साथियों ने गाँव में घुसकर 27 अक्तूबर सन् 1857 को सभी अंग्रेजों को एक घर में कैद करके आग के हवाले कर दिया। कई अंग्रेज सैनिकों की आग से जलकर मृत्यु हो गई थी। जोधा सिंह को पता चला की एक स्थानीय गद्दार रानीपुर पुलिस चौकी में छिपा है। जोधा सिंह ने साथियों को 7 दिसम्बर सन् 1857 को नाव से गंगा पार भेज कर देशद्रोही गद्दार को भी मरवा दिया था। अब तो अंग्रेजों में दशहत बढ़ती ही जा रही गई थी। अंग्रेज अधिकारी भी ठाकुर जोधा सिंह का नाम सुनते ही थर-थर काँपने लगे थे।
लंदन की अंग्रेज सरकार ने कर्नल पॉवेल को फतेहपुर का दमन करने के लिए भेजा। कर्नल पॉवेल ने जोश के साथ अपने सैनिकों को ठाकुर जोधा सिंह अटैया और उनकी सेना पर हमला करने के लिए भेजा। किन्तु अंग्रेज सैनिकों को उल्टे पैर भागने को मजबूर होना पड़ा। तब कर्नल पॉवेल आग बबुला हो गए। जोधा सिंह अटैया ने अवसर मिलते ही कर्नल पॉवेल को भी घेर कर सिर को धड़ से अलग करके मार डाला। भारत में चारों तरफ फ़तेहपुर की क्रांति की चर्चा हो रही थी। लंदन का सिंहासन भी डोलने लगा था।
अंग्रेज गवर्नर ने अब अत्यंत क्रूर कर्नल नील को फ़तेहपुर की क्रांति का दमन करने के लिए भेजा। कर्नल नील ने अपनी भारी मात्रा में सेना को फ़तेहपुर में जोधा सिंह व उनका रजवाड़ा को तहस-नहस करने का आदेश जारी किया। कर्नल नील बेकसूर लोगों को भी बहुत प्रताड़ित कर रहा था। क्रांतिकारियों को तो तत्काल मार देता था। इस प्रकार जोधा सिंह अटैया की सेना कमजोर पढ़ने लगी थी, लेकिन हौसला और उत्साह दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था।
गोरिल्ला युद्ध में निपुण जोधा सिंह अटैया ने नए सिरे से पुराने सैनिकों के साथ ही युवाओं को भी क्रांतिकारी, देशप्रेमी के रूप में प्रशिक्षण देकर फिर से नई फ़ौज तैयार किया। उसके बाद जोधा सिंह अटैया ने अपना गुप्त स्थान फ़तेहपुर से स्थानांतरित करते हुए खजुहा बना लिया था। खजुहा में जोधा सिंह का गोपनीय स्थान अंग्रेज नहीं जानते थे। किंतु स्थानीय देशद्रोही ने लालचवश क्रांतिकारी जोधा सिंह अटैया का गोपनीय ठिकाना अंग्रेजों को बता दिया। देशद्रोही की मुखबरी के कारण कर्नल नील ने अपनी घुड़सवार सेना के साथ घोरहा गांव के पास जोधा सिंह अटैया व उनके 51 साथियों को चारों तरफ से गिरफ़्तार कर लिया था।
28 अप्रैल सन 1858 का वह मनहूस दिन था, जब अंग्रेजों ने बिना किसी अदालत की सुनवाई के ही जोधा सिंह अटैया समेत बावन साथियों को बिंदकी के निकट मुगल रोड पर खजुहा ग्राम स्थित इमली के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दिया था। फांसी देने के बाद कर्नल नील ने आस-पास के गाँव में मुनादी करवा दी कि, जो व्यक्ति इन शवों को नीचे उतारेगा, उन्हें भी फांसी दे दी जाएगी। लगभग 18 दिन तक शव पेड़ पर लटके रहे और चील कौवा माँस नोच-नोच कर खाते रहे। आज इस पावन धरा को बावनी इमली के नाम से जाना जाता है।
महाराज राजा भवानी सिंह ने भारी तादाद में अपने सैनिकों के साथ 4 जून सन् 1858 की रात में सभी शवों को नीचे उतार कर शिवराजपुर स्थित गंगा तट पर अंतिम संस्कार किया था।
शिवराजपुर में भगवान श्री कृष्ण का प्राचीन मंदिर है। जिसे मेवाड़ राज्य के राजा भोजराज सिंह की पत्नी, कृष्ण भक्त मीराबाई ने स्थापित किया था।
फ़तेहपुर जनपद में खजुहा का भी अपना अलग पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व है। खजुहा को ‘छोटी काशी’ कहा जाता है। इस छोटे से कस्बे में लगभग 118 शिव मंदिर है। औरंगजेब के समय की मुगल रोड आज भी है। कहा जाता है कि दशहरा का दिन यहां पर रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि उनकी पूजा होती है। दशहरा में मेला लगता है। 52 क्रान्तिकारियों के शहादत की अंतिम विदाई देने वाला मूक गवाह इमली का पेड़ आज भी सुरक्षित और संरक्षित है। जिसमें 28 अप्रैल सन 1858 को 52 क्रान्तिकारी परवाने भारत माँ की रक्षा करते हुए फांसी पर झूल गए थे।
खजुहा ग्राम को भी अब बावनी ‘इमली’ ग्राम से जाना जाता है। ‘बावनी इमली’ स्थल पर शहीद स्मारक बना हुआ है, जहाँ पर प्रतिवर्ष 28 अप्रैल को शहीदों की स्मृतियों को जीवन्त रखने के लिए अनेक साँस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। मेला जैसा उत्सव मनाया जाता है।

डॉ अशोक कुमार गौतम
असिस्टेन्ट प्रोफेसर, लेखक, सम्पादक
शिवा जी नगर, दूरभाष नगर, रायबरेली UP
मो. 9415951459

निश्छल भाव की प्रेरक लघु कथा | Hindi Story | आकांक्षा सिंह ‘अनुभा’

निश्छल भाव की प्रेरक लघु कथा | Hindi Story | आकांक्षा सिंह ‘अनुभा’

एक छह वर्ष का लड़का अपनी चार वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था। अचानक उसे लगा कि उसकी बहन पीछे रह गयी है। वह रुका, पीछे मुड़कर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने की दुकान के सामने खड़ी कोई चीज़ निहार रही है।

लड़का पीछे आता है और बहन से पूछता है, “कुछ चाहिये तुम्हे?” लड़की एक गुड़िया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।

बच्चा उसका हाथ पकड़ता है और एक जिम्मेदार बड़े भाई की तरह अपनी बहन को वह गुड़िया दे देता है और बहन बहुत खुश हो जाती है।

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दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का प्रगल्भ व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ।

अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, “कितनी कीमत है इस गुड़िया की?”

दुकानदार एक शांत व्यक्ति था, उसने जीवन के कई उतार चढाव देखे थे। उन्होंने बड़े प्यार और अपनत्व से बच्चे से पूछा, “बताओ बेटे, तुम क्या मूल्य दे सकते हो?”

बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को दे देता है जो उसने थोड़ी देर पहले बहनके साथ समुंदर किनारे से चुन-चुनकर लाया था।

दुकानदार वो सब लेकर ऐसे गिनता है जैसे पैसे गिन रहा हो।
सीपें गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला, “कुछ कम है क्या?”

दुकानदार बोला, “अरे नहीं-नहीं ये तो इस गुड़िया की कीमत से कहीं बहुत ज्यादा है, ज्यादा मैं वापिस देता हूं।” यह कहकर उसने चार सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापस दे दी। बच्चा बड़ी खुशी से वो सीपें जेब में रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।

यह सब उस दुकान का कामगार देख रहा था। उसने आश्चर्य से मालिक से पूछा, “मालिक! इतनी महंगी गुड़िया आपने केवल चार सीपों के बदले मे दे दी?”

दुकानदार एक स्मित हास्य करते हुये बोला, “हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस छह साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है और अब इस उम्र में वो नहीं जानता कि पैसे क्या होते हैं। पर जब वह बड़ा होगा और जब उसे याद आयेगा कि उसने सीपों के बदले बहन को गुड़िया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरूर आयेगी और तब वह सोचेगा कि, यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भरा हुआ है।”

यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टिकोण बढाने में मदद करेगी और वो भी अच्छा इन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा।

टूटती सांसे कहानी / अभय प्रताप सिंह

टूटती सांसे कहानी / अभय प्रताप सिंह

शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर हरे भरे पेड़ – पौधे और नदी के किनारे बसा एक छोटा सा खूबसूरत गांव जिसमें सैकड़ों घर बसे हुए थे और उन्ही घरों के बीच एक शुकुल जी का भी घर था। हर एक व्यक्ति उस गांव में अपने रोज़ के कामों में ही विलीन रहता था जिससे उन सभी लोगों को अधिक समय लोगों से मिलने के लिए नहीं मिलता था। शुकुल जी का परिवार बहुत ही खुशहाल था जिसमें सदस्यों की कोई कमी नहीं थी और इनके साथ – साथ खुशियों का भी कोई ठिकाना नहीं था ।

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हर एक व्यक्ति अपने निजी कामों में अक्सर व्यस्त ही रहता था और थोड़ा बहुत दूसरों की परवाह करते हुए अपने दिन को किसी तरह प्रसन्न चित्त होकर बिताने का प्रयास करता था । शुकुल जी के परिवार में शुकुल जी , शुकलाइन , दो बेटे और एक बेटी भी थी। शुकुल जी का बड़ा बेटा और बड़ी बेटी तो ख़ैर समझदार हो चले थे पर उनका छोटा बेटा किशोर अभी भी उस बचपन वाले चोले में डूबा हुआ था मानो अभी उसका बचपन खत्म ही नहीं हुआ हो ।

शुकुल जी के परिवार में एक सदस्य और थी उनकी बुढ़ी मां, वैसे तो किशोर 14 बरस का हो गया था पर उसकी हरकतें मानो अभी भी 14 माह की हों , माना की किशोर तन से बड़ा हो गया था पर मन से अभी भी बच्चा था परंतु किशोर अपनी दादी मां के दिल के बहुत करीब था तभी तो शायद किशोर की मां जो कुछ भी दादी मां को खाने के लिए देती थी तो वो उसका अधिकांश भाग किशोर के लिए छिपा कर रख लेती थी, यहां तक उनको जो पेंशन राशि मिलती थी उसका भी अधिकांश अंश वो किशोर के लिए छिपा कर रख लेती थी और किशोर के आने के बाद वो उस राशि को बड़े नाती और नातिन से छिपा कर किशोर को दे देती थी ।

एक दिन शुकुल जी की मां की तबियत ज्यादा ख़राब हो गई थी और किशोर अपने कमरे में उस रात को अपने दोस्तों से बात करने में मस्त था , उसके घर में क्या चल रहा है मानो उसे कुछ पता ही न हो। इधर किशोर अपने कमरे में अपने दोस्तों से बात कर रहा था पर दूसरी तरफ़ उनकी दादी अपने पोते की याद में मानो बियोग कर रही हों लेकिन किशोर को इन सब चीजों से कोई वास्ता नहीं था।

धीरे – धीरे पूरी रात बीतने को थी और अब घर के सभी सदस्य सुबह होने के इंतजार में थे लेकिन दूसरी तरफ़ किशोर अपने कमरे में दूरभाष यंत्र चला रहे थे और अभी भी उनको इस बात का भनक नहीं पड़ी थी की उनके घर में क्या चल रहा है। पूरी रात बीत चुकी थी और अब सुबह होने वाली थी , सुबह के क़रीब चार बज गए थे इसलिए अब सब्र का बांध भी मानो टूट चुका था , सभी लोग दादी का चेहरा देखे जा रहे थे लेकिन दादी मानो सिर्फ़ किशोर को ही याद कर रही हों , तभी धीरे से शुकुल जी के कानों में एक आवाज़ पड़ी कि –

” कोई किशोर को बुला दो “

शुकुल जी उस बात को सुनने के बाद अपनी बेटी को, किशोर को बुलाने के लिए इशारा किए और शुकुल जी की आज्ञा सुनकर उनकी बेटी किशोर के कमरे में गई और किशोर को बुलाते हुए उस रात घटित कहानी बताने लगी। बहन की बात सुनकर किशोर दौड़ कर जैसे ही अपनी चहेती दादी मां के पास आया और अपनी बुढ़ी दादी को गोद में बिठाने की कोशिश करने लगा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी किशोर जैसे ही अपनी दादी मां को गोद में बिठाए ठीक उसी वक्त उनकी दादी मां उन सबको छोड़ कर अपनी आखिरी सांसे ले चुकी थी।

नोट – इस कहानी से हमें ये सीख मिलती हैं कि हमें सिर्फ़ सोशल मीडिया , दोस्त , और दूरभाष यंत्रों के विषय में ही नहीं बल्कि घर , परिवार और परिवार के सदस्यों के विषय में भी सोचना चाहिए , हमें सिर्फ कंप्यूटर , दूरभाष यंत्रों को ही नहीं बल्कि किशोर की दादी जैसे लाखों दादियों का सहारा बनना चाहिए , उनको वक्त देना चाहिए।

तीन हज़ार से 20 लाख तक कमाने की कहानी -Rodez web technologies Success story in hindi

Rodez web technologies Success story in hindi : नमस्कार मित्रो आज हम इस कहानी में रायबरेली जिले के एक स्टार्ट अप की कहानी के बारे में बताएंगे। जिसने 2016 में अपने स्टार्ट अप की शुरुआत मात्र 3000 से की लेकिन आज अप्रैल 2020 से अब तक लॉकडाउन में 20 लाख तक टर्नओवर कर चुके है, आज रायबरेली नहीं लखनऊ, दिल्ली जैसे महानगरों से प्रोजेक्ट लेकर आ रहे है अपने स्टार्ट अप के लिए ,चलिए जानते है। Rodez web technologies  की   सफलता का कहानी  :-

Rodez web technologie के संस्थापक अमन सिंह की कहानी

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 Rodez web technologie के संस्थापक  का  नाम अमन सिंह है। अमन सिंह का जन्म 14 फरवरी 1998 दिल्ली में हुआ था। उन्होंने  एमिटी विश्वविद्यालय से स्नातक किया है और कंप्यूटर अनुप्रयोगों में मास्टर्स पूरा किया है अमन सिंह के पिता दीपेंद्र सिंह रायबरेली के प्रथम कंप्यूटर विज्ञान के शिक्षक है , जिनके द्वारा 1989   से रायबरेली में कंप्यूटर संस्थान अमन कंप्यूटर एजुकेशन  के माध्यम से हज़ारो युवाओ को कंप्यूटर का ज्ञान करवाया गया है। इस संस्थान के माध्यम से अमन सिंह भी अपना अनुभव शेयर करते है युवा जो इस संस्थान से वेब डेवलमेन्ट, वेब डिजाइनिंग ,ऐप डेवलपमेन्ट , डिजिटल मार्केटिंग का कोर्स करते है।  उन्हें रोजगार के काबिल कोर्स को करते हुए तैयार करते है  अपने मार्गदर्शन में।  

जाने Rodez web technologies की शुरुआत की कहानी 

अमन सिंह ने  भविष्य का लक्ष्य रखा है  ये स्टार्ट अप कॉर्पोरेट सेक्टर में अपनी उपस्थिति दर्ज करायें  और आम आदमी तक इसकी पहुंच हो उन्होंने अपनी बात को कुंवर नारायण की पंक्तियों से समाप्त किया कि “कोई भी लक्ष्य इंसान के साहस से बड़ा नहीं होता हारा वो जो कभी लड़ा नहीं “

अमन सिंह जब १२ साल के थे 2012 में  उनके पिता का किडनी प्रत्यारोपण हुआ था, इस घटना से काफी दुःखी थे , उन्होंने अपनी जिम्मेदारी लेना प्रांरभ कर दिया वे कंप्यूटर संस्थान को लीड करने लगे , एमिटी विश्वविद्यालय में स्नातक के द्वारन 2016 में 3000 रुपए की पहली वेबसाइट बनाई। स्टार्ट अप  की शुरूआत  हो चुकी थी , अब नाम  रखने की बारी  थी।  rodez की  हिंदी अर्थ   राजा होता है , जो एक फ्रांस शहर के नाम पर है। Rodez web technologies स्टार्ट अप का नाम  रखा है जो वेबसाइट डेवलपमेंट, ऐप्प डेवलपमेन्ट का कार्य करती है जो उचित मूल्य पर रायबरेली जैसे जिले में रहकर उच्च गुणवक्ता की वेबसाइट कुछ ही दिनों में तैयार कर देते है , इसलिए इनके ऑफिस लखनऊ , दिल्ली जैसे शहर में भी सेवा दे रहे है अपनी कोर वैल्यू के साथ कि हमे अपने कस्टमर को जो समस्या को देखते हुए उसके अनुसार वेबसाइट को डिज़ाइन करना है।  अपने प्रॉब्लम सॉल्विंग प्रोडक्ट के साथ इस स्टार्ट अप ने 150 से ज्यादा वेबसाइट डिज़ाइन कर दी है , सभी क्लाइंट इस कंपनी की सेवाओ से संतुष्ट है।  आज इस स्टार्ट अप की ब्रांड वैल्यू का असर है कि इस स्टार्ट अप का रायबरेली  जिले में  90 परसेंट का मार्केट है , लोकल बिज़नेस , लोकल न्यूज़ वेबसाइट , पर्सनल ब्लॉग  के लिए रोडीज़ वेब से सम्पर्क करते है।

जाने Rodez web technologies Success story in hindi से जुडी महत्वपूर्ण बातें 

  • अमन सिंह अपने पिता और एलान मस्क को जीवन का आदर्श मानते है उन्ही को अपने जीवन की सफलता का श्रेय देते है।
  • Rodez web technologies में वर्तमान में 18 लोगो की टीम है जो रायबरेली नहीं अमेरिका, कनाडा , जैसे शहरों में अपनी सेवा दे रही है।
  • २०२० -२०२१ का स्टार्टअप का टर्नओवर 20 लाख रहा है।
  • अमन सिंह मानते है युवा जॉब क्रिएटर बने उन्हें दुःख होता है युवा अपना महत्वपूर्ण समय सरकारी नौकरी की तैयारी में व्यतीत कर देते है , जबकि वह तैयारी के साथ ऐसे कोर्स करते हुए अपनी पैसिव इनकम कर सकते है साथ वह माता – पिता को आर्थिक रूप से कुछ मदद भी कर पाएंगे। इन कोर्स को करने के बाद युवा घर से 20 हज़ार से १ लाख तक का कार्य कर सकता है बस संकल्प शक्ति के साथ एक्शन लेना होगा तभी परिणाम मिलेंगे।
  • रोडीज़ वेब अब सरकारी प्रोजेक्ट के लिए भी इस साल तैयार है संस्थापक अमन सिंह का कहना है कि सरकारी विभाग उनके सम्पर्क में है , जल्द ही सरकारी प्रोजेक्ट पर अपनी सेवाओं को शुरू करने जा रहे है।
  • Rodez web technologies मोबाइल ऐप पर कार्य कर रही है वर्तमान में 25 प्रोजेक्ट उनके पास है।
  • रोडीज़ वेब का लक्ष्य है २०२१-२०२२ में   १००० युवाओ को वेबसाइट डिज़ाइन का कोर्स कराके मार्केट के हिसाब से तैयार करना है जो बहुत सरल है।
  • Rodez web technologies के संस्थापक का कहना है कि ऐसे स्टार्ट अप गांव का लड़का भी खड़ा कर सकता है बस उसको स्किल सेट की जरूरत है जो अमन कंप्यूटर अकादमी में हम तैयार करते है।

आपको Rodez web technologies Success story in hindi रायबरेली जिले के स्टार्टअप की कहानी कैसी लगी, अगर आपको इससे प्रेरणा मिलती है तो सोशल मीडिया पर शेयर करे।