Baisavaara Ka Sarenee Vikaas Khand | बैसवारा का सरेनी विकास खण्ड : इतिहास, भूगोल और संस्कृति

Baisavaara Ka Sarenee Vikaas Khandबैसवारा का सरेनी विकास खण्ड : इतिहास, भूगोल और संस्कृति

रायबरेली जनपद के बैसवारा क्षेत्र का व्यापारिक केंद्र अथवा राजधानी भले ही लालगंज रहा हो लेकिन सांस्कृतिक राजधानी के रूप में सरेनी ही प्रसिद्ध है। रायबरेली जनपद में 18 विकास खंड (ब्लॉक) हैं, जिसमें प्रमुख विकासखंड सरेनी में 71 ग्राम पंचायतें हैं। सरेनी में थाना की स्थापना सन 1891 में हुई थी। गुप्त काल के पूर्व से इस क्षेत्र का अस्तित्व माना जाता है। प्रमाण स्वरूप सरेनी गांव के उत्तर पूर्व में प्रसिद्ध सिद्धेश्वर मंदिर में गुप्तकालीन मूर्तियाँ विद्यमान हैं। सरेनी की बाजार रायबरेली के पुराने बाजारों में गिनी जाती है। यहाँ पर उन्नाव, फतेहपुर, रायबरेली के व्यापारी खरीद-फरोख्त करने आते हैं।

ब्रिटिश काल के स्वाधीनता संग्राम में 18 अगस्त 1942 का ‘सरेनी गोलीकांड’ जिले का गौरवशाली इतिहास

ब्रिटिश काल के स्वाधीनता संग्राम में 18 अगस्त 1942 का ‘सरेनी गोलीकांड’ जिले का गौरवशाली इतिहास प्रतिबिंबित करता है। देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने को हजारों की संख्या में सरेनी विकासखंड निवासी देशभक्त तिरंगा फहराने के लिए थाने की ओर बढ़ने लगे। ब्रिटिश पुलिस की गोलियां इन वीरों के कदमों को न रोक सकी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार सरेनी क्षेत्र के चौकीदारों ने रामपुर कला निवासी ठाकुर गुप्तार सिंह के नेतृत्व में 11 अगस्त 1942 को सरेनी बाजार में बैठक की और निर्णय लिया गया कि सरेनी थाने में तिरंगा फहराया जाएगा। 15 अगस्त 1942 को हैबतपुर में विशाल जनसभा में गुप्तार सिंह ने आंदोलन को अंतिम रूप देते हुए तिरंगा फहराने की तिथि 30 अगस्त 1942 निर्धारित की। कुछ वसंती चोले वाले वीर युवकों ने 30 अगस्त के बजाय 18 अगस्त को ही तिरंगा फहराने की ठान ली। युवाओं के आह्वाहन पर हजारों की संख्या में भीड़ सरेनी बाजार में एकत्रित हुई। तत्कालीन थानेदार बहादुर सिंह ने भीड़ को आतंकित करने के लिए नवयुवक सूरज प्रसाद त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया। यह खबर आग की तरह फैलते ही आजादी के दीवानों ने थाने पर हमला कर दिया। थानेदार और सिपाहियों ने थाने की छत पर चढ़कर निहत्थे जनता पर गोलियां चलाना शुरू कर दी। इस गोलीकांड में भारत माँ के 5 सपूत टिर्री सिंह (सुरजी पुर), सुक्खू सिंह (सरेनी), औदान सिंह (गौतमन खेड़ा), राम शंकर त्रिवेदी (मानपुर), चौधरी महादेव (हमीर गांव) शहीद हो गए। रणबाकुरों ने अपनी शहादत स्वीकार की। ब्रिटिश हुकूमत के आगे न डरे, न झुके। देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले पाँच शहीदों की याद में थाने के ठीक सामने शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया। इसके ठीक बगल में शहीद जूनियर हाई स्कूल परिसर में छोटा शहीद स्मारक का भी निर्माण कराया गया। शहीद स्मारक पर सन 1997 से प्रतिवर्ष 18 अगस्त को विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। मेला जैसा हर्ष उल्लास का वातावरण रहता है। तब जगदंबिका प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ की काव्य पंक्तियाँ सार्थक हो जाती हैं-

“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी ही जमीं होगा अपना ही आसमां होगा।”

सरेनी विकासखण्ड और जनपद रायबरेली की अपराधियों से सुरक्षा की दृष्टि से थाना सरेनी परिक्षेत्र में दो पुलिस चौकियाँ स्थापित की गई हैं। थाना सरेनी की एक पुलिस चौकी सरेनी से उन्नाव तरफ जाने पर भोजपुर में, दूसरी पुलिस चौकी सरेनी, रायबरेली से फतेहपुर जाने पर गेगासो में स्थापित की गई है। इन दोनों चौकियों से काफी हद तक अपराध में नियंत्रण रहता है।
सरेनी विकासखंड के उत्तर-पश्चिम दिशा का विस्तृत भूभाग की सीमा उन्नाव जनपद को या यूँ कहें उन्नाव जनपद के दो थाना, बारा-सरवर और बिहार थाना को स्पर्श करती है। दक्षिण में भारत की सबसे बड़ी नदी माँ गंगा का एक छोर सरेनी क्षेत्र को स्पर्श करता है तो दूसरा छोर फतेहपुर जिला की सीमा को स्पर्श करता है।

सरेनी विकासखंड की जमीन अत्यंत उपजाऊ है। इस क्षेत्र में दोमट, चिकनी, बलुई मिट्टी पाई जाती है। इस क्षेत्र में रबी, खरीफ और जायद की फसलें खूब होती हैं। इस विकासखंड के दक्षिण में भारत की सबसे लंबी नदी सदानीरा माँ गंगा अनवरत बहती हैं। पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हुई गंगा नदी रालपुर के निकट स्वतः ही सर्पिणी की तरह लहरें लेते हुए उत्तर दिशा की ओर मुड़ जाती है। इसलिए इस क्षेत्र को उत्तरवाहिनी गंगा क्षेत्र कहा जाता है। यहाँ का प्राकृतिक वातावरण हरे भरे वृक्षों से आच्छादित होने के कारण मनोरम हैं।

प्रपत्रों में भी सरेनी क्षेत्र को डार्क जोन घोषित किया जा चुका है

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्यकाल में सन 1980 में उन्नाव जिले के अमर शहीद राजा रावराम बख्श सिंह की रियासत डौडिया खेड़ा में गंगा नदी से निकलने वाली डलमऊ बी गंग नहर की नींव रखी गई थी। जो लगभग 5 वर्ष में बनकर तैयार हुई। इस गंग नहर से अनेक छोटी-छोटी नहरें/अल्पिकाएँ निकाली गई। इससे उन्नाव एवं रायबरेली के सीमावर्ती भागों की सिंचाई होती थी और जल स्तर भी ऊपर रहता था। दुर्भाग्य है! कि शासन-प्रशासन की उदासीनता के कारण सरेनी विकास खण्ड की भूमि बंजर होने के कगार पर है। इस नहर में 7 पंप लगे हैं, जिसमें 5 पंप प्रतिदिन चलने का प्रावधान है। प्रपत्रों में भी सरेनी क्षेत्र को डार्क जोन घोषित किया जा चुका है, फिर भी धरातल पर कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं।

इस विकास खण्ड के उत्तर में समरई नाला और उन्नाव जिला के पुरवा के पास की झील से निकलने वाली लोन नदी बहती हैं। इन दोनों पर बनाये बाँधों में जल भंडारण से लगभग 7 से 8 माह तक यहाँ के खेतों की सिंचाई हो जाती है। बाद में समरई नाला लोन नदी में समाहित हो जाता, तत्पश्चात लोन नदी शौर्य और पौराणिक स्थली डलमऊ के निकट माँ गंगा में पुण्य प्राप्त करते हुए विलीन हो जाती है।

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सरेनी क्षेत्र मुरारमऊ के राजा दिग्विजय सिंह की रियासत में आता था, जिसे अंग्रेजों ने सौंपा था। इस विकासखंड में सैकड़ों वर्ष पुराने भव्य मंदिर विद्यमान हैं। शिहोलेश्वर, दरियाश्वर, गहिरेश्वर, नर्मदेश्वर, मंगलेश्वर, अंबिका देवी मंदिर, दशा रानी मंदिर, संकटा देवी मंदिर (गर्ग ऋषि आश्रम) महामाई मंदिर, शीतला मंदिर, ठाकुर वीर बाबा मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर आदि प्रमुख हैं। ध्यातव्य है कि ग्राम सरेनी में ही पूर्वी छोर में पवनसुत हनुमानजी के भक्त ठाकुर वीर बाबा की समाधि स्थित है। जिस पर अनेक प्रयासों के बावजूद कोई मंदिर या चहारदीवार नहीं बन सकी है, क्योंकि बाबा की अंतिम मुँखवाणी थी कि मेरी समाधि इसी स्थान पर बनेगी किंतु भविष्य में इस पर कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकेगा। इस समाधि रूपी मंदिर में मार्गशीर्ष (अगहन) माह में पड़ने वाले सभी मंगलवार को आस पास के ही नहीं, दूर दराज के जनपदों से दर्शनार्थी अपनी मनौती माँगने आते हैं। इस स्थल पर चढ़ावा/प्रसाद रूप में मिट्टी के कलश हजारों की संख्या में चढ़ाए जाते हैं, जिनकी कीमत वर्तमान समय में 40 से 50 रुपये के मध्य होती है। खास बात यह है कि अगले दिन सुबह सभी कलश टूटे-बिखरे मिलते हैं। मान्यता है कि नव-दंपत्ति ठाकुर वीर बाबा की समाधि स्थल पर आकर अपनी मनौती माँगते हैं, तो उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

गर्ग पीठ के 11वें अधिष्ठाता, भगवान श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार करने वाले महर्षि गर्ग की तपोस्थली को कालांतर में गर्गाश्रम कहा जाता था, जिसका नाम धीरे-धीरे गेगासो पड़ गया है। जो गंगा नदी के पावन तट पर स्थित है। मंदिर के स्थापना के विषय में कहा जाता है कि 12 वीं शताब्दी में भार शिव शासकों का पराभव और बैस क्षत्रियों के उन्नयन का समय चल रहा था। बैसवारा के क्षत्रिय राजा त्रिलोकचंद निःसंतान थे, उन्हें अनेक मनौतियों से संतानोत्पत्ति के पश्चात इस तपोभूमि पर मंदिर स्थापित किया गया था। माँ भगवती के 32 शक्तिपीठों में 16 वां शक्तिपीठ माता संकटा देवी मंदिर है। जनश्रुति है कि बक्सर जिला उन्नाव स्थित माँ चंद्रिका देवी और यहां गेगासो स्थित माँ संकटा देवी बहन हैं।

सरेनी विकासखंड के ग्राम सभा गोविंदपुर में शिहोलेश्वर मंदिर है

यह मंदिर लगभग 1000 वर्ष पूर्व का बताया जाता है। इस स्थान पर इतना विशाल वट वृक्ष है जिसके नीचे मंदिर, ऋषि मुनियों की कुटिया, महाशिवरात्रि और श्रावण मास में लगने वाला संपूर्ण मेला समाहित हो जाता है। इतना विशालकाय वट वृक्ष रायबरेली जनपद में मिल पाना मुश्किल है। मुरारमऊ में माँ अंबिका देवी मंदिर है जिसके पृष्ठ भाग में विशाल तालाब बना हुआ है जिसमें ब्रिटिशकाल में राजा दिग्विजय सिंह और राजा भगवती बक्स सिंह की रानी और उनकी दासियाँ स्नान करने आती थी। मान्यता है कि इस तालाब में एक बार स्नान करने से खाज-खुजली ठीक हो जाती है। पुनः यह रोग नहीं होता है।

सरेनी विकासखंड की भूमि समतल है जिससे आवागमन के साधन एवं सड़कें सर्व सुलभ हैं फिर भी स्वतंत्रता के बाद से अद्यतन यह विकास खंड रेलवे लाइन से पूर्णतः अछूता है। समतल भूमि होने के कारण आम, महुआ, नीम, पाकर, वट, पीपल, जामुन, अमरुद, बबूल आदि वृक्ष बहुतायत पाए जाते हैं। प्राचीन काल से ही भाईचारे का प्रत्येक मेले का महत्व रहा है। श्रेणी विकासखंड के अंतर्गत तेजगाँव, मलकेगाँव, गोविंदपुर, मुरारमऊ में महीनों मेले (हटिया) लगे रहते हैं, जिसमें अन्य प्रांतों के भी व्यापारी व्यापार करने के लिए आते हैं। जिन्हें मेला मंडल की तरफ से हर संभव सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

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अध्यापक श्री कलदार सिंह

इस क्षेत्र में लोकगीतों और लोक परम्परा की बात की जाये तो सोहर, कजरी, सावन गीत, विवाह में गारी, नकटा, नौटंकी, रामलीला, फाग, वीर रस से ओत-प्रोत आल्हा आदि प्रसिद्ध हैं। आल्हा गायन लुप्तप्राय हो रहा था जिसे पुनः जीवंत करने के लिए समाज के चितेरे, अध्यापक श्री कलदार सिंह ने अपना गुरु महरूम महबूब खां को माना। उनसे सीखकर श्री कलदार सिंह आज भी अवधी आल्हा गाते हैं। इस गुरु-शिष्य परम्परा को भी हिन्दू-मुस्लिम एकता के रूप में देखा जा सकता है।

सरेनी विकास खंड में हिंदू-मुस्लिम धर्म के सभी जातियों के लोग आपस में मिल जुल कर रहते हैं। इस क्षेत्र में खड़ी बोली हिंदी उर्दू, अवधी बोलियां बोली जाती हैं। सरेनी गाँव का ही वैशाख माह की अमावस्या को सालाना उर्स तथा शारदीय नवरात्रि की दुर्गा पूजा हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है। मस्जिद के ठीक सामने हिन्दू व्यक्ति की भूमि पर जून माह में सालाना उर्स संपन्न होता है, तो वहीं मस्जिद के ठीक बगल में स्वर्गीय हरिशंकर सिंह (सेवानिवृत्त शिक्षक) की भूमि पर दुर्गा पूजा पंडाल सजता है, जिसमें 1 सप्ताह तक पूजा होती है। दोनों धर्म के लोग एक दूसरे धर्म के कार्यक्रमों में यथासंभव चंदा देते और बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लेते हैं। तब सुगंधित वातावरण में अजान और आरती एक साथ होती हैं।

सर्वप्रथम जनता विद्यालय इंटर कॉलेज पूरेपांडेय की स्थापना

देश को स्वतंत्रता मिलने के उपरांत सरेनी विकासखंड में माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा के लिए कोई विद्यालय और महाविद्यालय नहीं था, तब क्षेत्र में सर्वप्रथम जनता विद्यालय इंटर कॉलेज पूरेपांडेय की स्थापना सन 1953 में हुई थी। श्री स्वयंबर सिंह का जन्म जुलाई 1936 में रायपुर मझिगवां सरेनी में हुआ। आप क्षेत्र के सबसे पुराने जनता विद्यालय इंटर कॉलेज पूरेपांडेय के संस्थापक सदस्य अध्यक्ष, शिक्षक तथा प्रधानाचार्य होने के साथ-साथ वरिष्ठ साहित्यकार और शिव भक्त हैं। 87 वर्ष की उम्र में भी साहित्य से आपका रिश्ता जुड़ा हुआ है। आप की काव्य कृति तृष्णा, तृप्ति प्रकाशित हो चुकी हैं। जिसमें जन्म से लेकर मोक्ष प्राप्ति तक का मार्ग प्रशस्त किया गया है। ‘तृष्णा’ काव्य कृति में आपने सत्य का मार्ग दिखाते हुए लिखा है-

बताया था बहुत पहले, कि मैं हूँ एक परदेसी।
चला जब छोड़ दुनिया को, शिकायत फिर कैसी?

तत्पश्चात विकासखंड के चतुर्दिक विकास के लिए अंबिका इंटर कॉलेज मुरारमऊ, श्री गोविंद सिंह इंटर कॉलेज रौतापुर, नर्मदेश्वर इंटरमीडिएट कॉलेज रामबाग, शिव भजन लाल जनहित इंटर कॉलेज रायपुर मझिगवां की स्थापना की गई। सभी कालेजों का उद्देश्य निस्वार्थ भाव से शिक्षा प्रदान करना था। आज तो भौतिकवादी युग में सैकड़ों विद्यालय स्थापित हो चुके हैं। उच्च शिक्षा की आवश्यकता की पूर्ति के लिए शिवभक्त, शिक्षानुरागी और दानवीर स्वर्गीय रतनपाल सिंह ने सन 1973 में कमला नेहरू डिग्री कॉलेज, तेजगाँव की स्थापना की, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के बालक बालिकाओं व पड़ोसी जनपदों के छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित नहीं होना पड़ा। इस महाविद्यालय का अनुशासन, अध्ययन और अध्यापन का शैक्षिक स्तर लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ (पूर्ववर्ती – छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर) में आज भी अग्रणी स्थान रखता है। वर्तमान समय में दानवीर ठाकुर रतनपाल सिंह के सपुत्र तेजगांव निवासी श्री सुरेंद्र बहादुर सिंह (पूर्व विधायक) निःस्वार्थ भाव से आवश्यकतानुसार लाखों रुपए का दान करते रहते हैं। इस विकासखंड में इस समय लगभग 9 महाविद्यालय स्थापित होकर उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

सरेनी विकासखंड के अंतर्गत दौलतपुर में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (सन 1864-1938) का जन्म हुआ। द्विवेदी जी जीविकोपार्जन के लिए रेलवे में नौकरी करते थे, किंतु रुचि साहित्य में थी। आपने सन 1900 में द्विवेदी युग की स्थापना की और पुनर्जागरण काल को नई दिशा दी। साहित्य लेखन और देश प्रेम के लिए रेलवे की नौकरी छोड़ दी। तत्पश्चात सन 1903 में सरस्वती पत्रिका का संपादन किया। द्विवेदी जी ने हिंदी भाषा की उत्पत्ति, मेघदूत, नाट्यशास्त्र, संपत्तिशास्त्र गद्य ग्रंथ और देवी स्तुति, काव्य मंजूषा, कविता विलाप आदि पद्य ग्रंथ लिखे हैं। उसुरू निवासी मधुकर खरे ने ‘ये मेरा बैसवारा, सामने बैठ तुम हार गूँथा करो’ काव्यग्रथों की रचना की। आप की निम्न काव्य पंक्तियां बैसवारा क्षेत्र को अर्श पर पहुँचा देती हैं-

हमारी मातृभाषा बहुत है, नाम है प्यारा।
ये मेरी बैसवारी, यह है मेरा बैसवारा।।

सरेनी विकासखंड के अंतर्गत छींटी ग्राम निवासी रघुनंदन शर्मा ने विश्व विख्यात ग्रंथ ‘मटेरीना डिवाइना, अक्षर विज्ञान, वैदिक संपत्ति’ लिखे हैं। रीतिकाल के प्रमुख कवि सुखदेव मिश्र जैसे महान साहित्यकारों को जन्म देकर इस क्षेत्र की मिट्टी वंदनीय हो गई है।
केंद्र या प्रदेश की राजनीति में विकास खंड सरेनी और विधानसभा क्षेत्र सरेनी का दखल स्वतंत्रता प्राप्ति से निरंतर चला आ रहा है। सत्ता पक्ष या विपक्ष के शीर्ष नेता और जनप्रतिनिधि इस क्षेत्र में निरंतर अपनी-अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं। इस क्षेत्र में धर्म, वंश, लिंग, जाति आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है। तब अजमल सुल्तानपुरी की गजल- मुसलमां और हिंदू की जान, कहाँ है मेरा हिंदुस्तान, मैं उसको ढूंढ रहा हूँ, सार्थक हो जाती है।
कलम-कृपाण और अध्यात्म की नगरी विकासखंड सरेनी निरंतर बुलंदियों की ओर बढ़ती रहे। मैं इस पावन भूमि और स्वयं मेरी जन्म भूमि को शत-शत नमन करता हूँ।

अशोक कुमार गौतम,
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिवाजी नगर (दूरभाष नगर) रायबरेली
सम्पर्क- 9415 9514 59

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Ans :1 . रायबरेली जनपद में 18 विकास खंड (ब्लॉक) हैं

Ans : 2 . सरेनी में थाना की स्थापना सन 1891 में हुई थी।

Ans : 3 सरेनी विकासखंड में शिहोलेश्वर, दरियाश्वर, गहिरेश्वर, नर्मदेश्वर, मंगलेश्वर, अंबिका देवी मंदिर, दशा रानी मंदिर, संकटा देवी मंदिर (गर्ग ऋषि आश्रम) महामाई मंदिर, शीतला मंदिर, ठाकुर वीर बाबा मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर आदि प्रमुख हैं।