हिंदी कहानी मुट्ठी भर जिंदगी | अभय प्रताप सिंह

मुट्ठी भर जिंदगी “

शहर से दूर गंगा नदी के किनारे बसा एक ऐसा गांव और उस गांव में बसा महतो काका का परिवार मानों ” सोने पर सुहागा ” वाले कहावत से मिलता जुलता हो , जितना सुंदर वो गांव उससे कई गुना ज्यादा सुंदर महतो काका का परिवार भी था। महतो काका अपने छोटे से घर को गांव से हटकर चौराहे से करीब 500 मीटर मीटर दूर बनवाए थे, ईंट गारा से बना घर और उसके पास लगे तमाम प्रकार के पेड़ पौधे घर की सुन्दरता को और बढ़ा रहे थे , घर के एक तरफ़ फ़ल देने वाले पौधे तो दूसरी तरफ़ प्यारी सी खुशबू देने वाले कुछ फूलों के पौधे भी लगे हुए थे। इन सबके साथ – साथ महतो काका के घर को सुंदर बनाने में उनके पांचों बेटे और दोनों बेटियों का भी बहुत बड़ा हांथ था। घर के सभी सदस्य संस्कारो और गांव, घर के रीति रिवाजों से बंधे हुए थे , सभी सदस्यों का शिक्षण कार्य भी खत्म हो गया था और अब महतो जी के पांचों बेटे विद्यालय में पढ़ाने लगे थे इन सभी के अंदर ज्ञान तो इतना भरा था मानो ज्ञान रूपी गंगा बह रही हो। खुशहाली का दूसरा नाम कहा जाने वाला महतो जी का घर रोज़ एक नए अंदाज़ में अपनी जिंदगी को जिया करते थे और सभी सदस्यों के बीच एक समझदारी वाला भाव हमेशा साफ़ – साफ़ देखा जा सकता था। महतो जी का परिवार गांव के लोगों से थोड़ा अलग इसलिए दिखता था क्योंकि यहां जलन, लालच , छल , कपट से सभी सदस्य कोषों दूर या यूं कहें कि कोसों अंजान थे।

महतो जी के पांचों बेटों में उनका बड़ा बेटा जगमोहन विवाह योग्य हो गया था जिसके लिए रिश्तों का आवागम भी होने लगा था लेकिन मन न मिलने की वजह से बहुत सारे रिश्तों को जगमोहन के द्वारा ठुकरा दिया गया था। लेकिन मानो वो दिन दूर नहीं था आज फिर से जगमोहन के लिए एक रिश्ता उनके मामा जी के द्वारा लाया गया था और परिवार के सभी सदस्यों से बात करने के बाद, उनके मत लेने के बाद आज उस रिश्तों को महतो काका के द्वारा हां करके रिश्ते को तय कर दिया गया , रिश्ता तय होने के कुछ महीने बाद जगमोहन का विवाह गीतारानी से कर दिया गया । आज महतो काका का देखा हुआ वर्षों का सपना साकार होते दिख रहा था और दोनों दंपती सबका आशीर्वाद लेने के बाद शादी के जोड़े में मानो हमेशा हमेशा के लिए बंध गए हों ।

जगमोहन की शादी के बाद परिवार के सभी सदस्य अथाह खुश थे क्योंकि उस परिवार में किसी के अंदर किसी भी प्रकार की कोई बुराई नही थी जिसकी वजह से गीतरानी महज़ कुछ दिनों में उस परिवार को अपना परिवार मान ली थी। घर में इतनी खुशियां थी जिसकी कोई मोल नहीं थी और गीतारानी भी परिवार के सभी सदस्यों को खुश देखकर अपने आप को महफूज़ समझ रही थी। ये खुशियां उस दिन और दोगुनी हो गई थी जब गीतारानी एक नन्ही सी बच्ची को जन्म दी थी लेकिन मानो ऊपर वाले को कुछ और मंजूर ही था जिस घर में खुशहाली थी या जिस घर में बच्ची के आगमन से गाने बजाने होने वाले थे उसी घर में अचानक दुखों का पहाड़ टूट गया ।

बच्ची की वजन कम होने से महतो काका के परिवार के सदस्यों को 15 दिन के लिए बच्ची को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ गया था और इधर गीतारानी की भी तबियत थोड़ी बहुत ख़राब होने लगी थी , घर के सभी सदस्य गीतारानी को अच्छे से अच्छे अस्पताल में दिखाते थे और दिखाने के बाद जब गीतारानी घर वापस आती थी तो सभी सदस्य एक बच्चे की भांति उनकी सेवा में लग जाते थे । डॉक्टर्स भी महंगे से महंगे दवाईयां गीतारानी को खाने को देते थे लेकिन गीतारानी उन दवाओं को खाने की जगह छिपा कर रख देती थी और घर के सदस्यों को लग रहा था की वो दवाएं खा रही हैं।


ये सिलसिला कई महीनों से चल रहा था , गीतारानी को दवाईयां लाकर दी जाएं और वो न खाएं। इसलिए एक समय घर के सदस्यों को लगने लगा की शायद ये झूठ बोल रही हैं इनको कोई बिमारी नहीं है जबकि यकीनन गीतारानी को तकलीफें थी बस दवाओं और डॉक्टरों के डर के कारण वो किसी से बताती नहीं थी बस यही कारण था की गीतारानी को उसका खामियाजा भुगतना पड़ गया था, गीतरानी के आखरी वक्त में महतो काका के परिवार के सभी सदस्य लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उन्हें बचाने में असमर्थ रहे और गीतारानी विवाह वक्त से महज एक साल और मां बनने के बाद महज़ एक माह में ही घर के सभी सदस्यों के साथ – साथ उस नन्हीं सी जान को भी हमेशा के लिए छोड़कर उन सबसे बहुत दूर चली गई।

नोट – इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की कैसे छोटी सी गलतफहमी और छोटा सा डर हमें परिवार के सदस्यों से दूर करा देता है। इसलिए अगर आप लोगों के बीच भी कोई ” गीतारानी ” हों तो उन्हें ” मुट्ठी भर जिंदगी ” न बनने दें और एक हंसते खेलते परिवार को हमेशा के लिए उजड़ने से बचाएं।