टूटती सांसे कहानी / अभय प्रताप सिंह
टूटती सांसे कहानी / अभय प्रताप सिंह
शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर हरे भरे पेड़ – पौधे और नदी के किनारे बसा एक छोटा सा खूबसूरत गांव जिसमें सैकड़ों घर बसे हुए थे और उन्ही घरों के बीच एक शुकुल जी का भी घर था। हर एक व्यक्ति उस गांव में अपने रोज़ के कामों में ही विलीन रहता था जिससे उन सभी लोगों को अधिक समय लोगों से मिलने के लिए नहीं मिलता था। शुकुल जी का परिवार बहुत ही खुशहाल था जिसमें सदस्यों की कोई कमी नहीं थी और इनके साथ – साथ खुशियों का भी कोई ठिकाना नहीं था ।
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हर एक व्यक्ति अपने निजी कामों में अक्सर व्यस्त ही रहता था और थोड़ा बहुत दूसरों की परवाह करते हुए अपने दिन को किसी तरह प्रसन्न चित्त होकर बिताने का प्रयास करता था । शुकुल जी के परिवार में शुकुल जी , शुकलाइन , दो बेटे और एक बेटी भी थी। शुकुल जी का बड़ा बेटा और बड़ी बेटी तो ख़ैर समझदार हो चले थे पर उनका छोटा बेटा किशोर अभी भी उस बचपन वाले चोले में डूबा हुआ था मानो अभी उसका बचपन खत्म ही नहीं हुआ हो ।
शुकुल जी के परिवार में एक सदस्य और थी उनकी बुढ़ी मां, वैसे तो किशोर 14 बरस का हो गया था पर उसकी हरकतें मानो अभी भी 14 माह की हों , माना की किशोर तन से बड़ा हो गया था पर मन से अभी भी बच्चा था परंतु किशोर अपनी दादी मां के दिल के बहुत करीब था तभी तो शायद किशोर की मां जो कुछ भी दादी मां को खाने के लिए देती थी तो वो उसका अधिकांश भाग किशोर के लिए छिपा कर रख लेती थी, यहां तक उनको जो पेंशन राशि मिलती थी उसका भी अधिकांश अंश वो किशोर के लिए छिपा कर रख लेती थी और किशोर के आने के बाद वो उस राशि को बड़े नाती और नातिन से छिपा कर किशोर को दे देती थी ।
एक दिन शुकुल जी की मां की तबियत ज्यादा ख़राब हो गई थी और किशोर अपने कमरे में उस रात को अपने दोस्तों से बात करने में मस्त था , उसके घर में क्या चल रहा है मानो उसे कुछ पता ही न हो। इधर किशोर अपने कमरे में अपने दोस्तों से बात कर रहा था पर दूसरी तरफ़ उनकी दादी अपने पोते की याद में मानो बियोग कर रही हों लेकिन किशोर को इन सब चीजों से कोई वास्ता नहीं था।
धीरे – धीरे पूरी रात बीतने को थी और अब घर के सभी सदस्य सुबह होने के इंतजार में थे लेकिन दूसरी तरफ़ किशोर अपने कमरे में दूरभाष यंत्र चला रहे थे और अभी भी उनको इस बात का भनक नहीं पड़ी थी की उनके घर में क्या चल रहा है। पूरी रात बीत चुकी थी और अब सुबह होने वाली थी , सुबह के क़रीब चार बज गए थे इसलिए अब सब्र का बांध भी मानो टूट चुका था , सभी लोग दादी का चेहरा देखे जा रहे थे लेकिन दादी मानो सिर्फ़ किशोर को ही याद कर रही हों , तभी धीरे से शुकुल जी के कानों में एक आवाज़ पड़ी कि –
” कोई किशोर को बुला दो “
शुकुल जी उस बात को सुनने के बाद अपनी बेटी को, किशोर को बुलाने के लिए इशारा किए और शुकुल जी की आज्ञा सुनकर उनकी बेटी किशोर के कमरे में गई और किशोर को बुलाते हुए उस रात घटित कहानी बताने लगी। बहन की बात सुनकर किशोर दौड़ कर जैसे ही अपनी चहेती दादी मां के पास आया और अपनी बुढ़ी दादी को गोद में बिठाने की कोशिश करने लगा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी किशोर जैसे ही अपनी दादी मां को गोद में बिठाए ठीक उसी वक्त उनकी दादी मां उन सबको छोड़ कर अपनी आखिरी सांसे ले चुकी थी।
नोट – इस कहानी से हमें ये सीख मिलती हैं कि हमें सिर्फ़ सोशल मीडिया , दोस्त , और दूरभाष यंत्रों के विषय में ही नहीं बल्कि घर , परिवार और परिवार के सदस्यों के विषय में भी सोचना चाहिए , हमें सिर्फ कंप्यूटर , दूरभाष यंत्रों को ही नहीं बल्कि किशोर की दादी जैसे लाखों दादियों का सहारा बनना चाहिए , उनको वक्त देना चाहिए।