कुमारी सुनीति चौधरी : नाबालिग उम्र में ही अंग्रेज जिला कलेक्टर की गोली मारकर की हत्या
कुमारी सुनीति चौधरी : नाबालिग उम्र में ही अंग्रेज जिला कलेक्टर की गोली मारकर की हत्या
भारत में स्त्री और पुरुष को एक गाड़ी के दो पहिए कहा जाता है। वैसे कहने को तो भारत पुरुष सत्तात्मक देश है, फिर भी स्त्री का त्याग, तपस्या, ममता, स्नेह, बलिदान, संघर्ष सर्वोपरि है। स्त्री के बिना कोई कार्य पूर्ण नहीं हो सकता। कहा जाता है– *यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता।* अर्थात् जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। भारत में एक ओर नारियों की पूजा होती है, तो दूसरी ओर जब परिवार, समाज या देश पर संकट आता है, तब कोमल हृदय वाली नारी रणचंडी बन तलवार उठाकर रणभूमि की ओर निकल पड़ती है। ऐसी ही असंख्य वीर नारियों ने सन 1857 के स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए थे, इतना ही नहीं, अपने प्राण न्योछावर कर दिए। हम ऐसी ही क्रांतिकारी वीरांगना कुमारी सुनीति चौधरी की अमर शौर्यगाथा की बात कर रहे हैं। जिस उम्र में नाबालिक बच्चे खेलते कूदते हैं, उस उम्र में कुमारी सुनीति ने अंग्रेज अफसर को गोली से उड़ा दिया था। कुमारी सुनीति चौधरी का जन्म बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत कोमिला जिला (तत्कालीन बांग्लादेश) में 22 मई सन 1917 को हुआ था। पिता उमाचरण चौधरी अंग्रेजी सरकार में सरकारी मुलाजिम और माता सुर सुंदरी कुशल ग्रहणी थी। मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली कायस्थ समाज की होनहार बेटी सुनीति चौधरी लिखने पढ़ने में होशियार थी। तत्कालीन परिस्थितियों में बालिकाओं को पढ़ने का अधिकार न के बराबर था। किंतु माता-पिता ने पुत्री स्नेह और उसकी हठधर्मिता के कारण स्कूल में दाखिला करा दिया था। वह बांग्लादेश के ही पैतृक गांव कोमिला में पढ़ने लगी थी। सुनीति तीरंदाजी, तलवारबाजी, लाठी चलाना, बंदूक चलाना, खेलकूद आदि में भी अव्वल थी। हाजिर–जवाबी उसकी विशेषता थी। कुमारी सुनीति चौधरी कोमिला के ही फैजिन्निशा गवर्नमेंट हाई स्कूल में कक्षा 8 की छात्रा थी। उनका मन पढ़ाई से ज्यादा क्रांतिकारी गतिविधियों में लगता था। इसलिए सर उल्लासकर दत्त को अपना क्रांतिकारी गुरु मानने लगी थी, क्योंकि उल्लासकर दत्त पहले ही फिरंगियों के खिलाफ बहुत मोर्चा खोल चुके थे। उनकी रणनीति व कूटनीति से अंग्रेज परेशान और भयभीत होने लगे थे। कुमारी सुनीति चौधरी बाद में त्रिपुरा जाकर पढ़ने लगी थी। वहां भी स्कूली गतिविधियों में अव्वल रहती थी। सन 1931 में वरिष्ठ सहपाठी प्रीतिलता ब्रम्हा की सलाह और प्रेरणा से कुमारी सुनीति चौधरी, शांति घोष क्रांतिकारी युगांतर समूह में शामिल हो गईं। प्रीतिलता ने लड़कियों का संघ बनाया। उस कमेटी में सुनीति चौधरी कप्तान, शांति घोष सचिव और प्रीतिलता अध्यक्ष चुनी गई। क्रांतिकारी बरुण भट्टाचार्य से सुनीति चौधरी और शांति घोष ने पिस्तौल शूटिंग और अन्य मार्शल आर्ट में प्रशिक्षण लेना प्रारंभ कर दिया। गर्म खून वाली सुनीति ने फिरंगियों का विरोध करते हुए कहा– “हमारे खंजर और लाठी के खेल का क्या मतलब, अगर हमें वास्तविक लड़ाई में भाग लेने का मौका ही नहीं मिले?”
त्रिपुरा के कॉलेज में प्रति वर्ष 6 मई को वार्षिकोत्सव धूमधाम से मनाया जाता था। जिसमें आदिवासी समुदाय के लोगों की भी बढ़-चढ़कर भागीदारी होती थी। इसी क्रम में 6 मई सन 1931 को आयोजित वार्षिकोत्सव में कुमारी सुनीति चौधरी को महिला स्वयंसेवी संस्था का लीडर, अस्त्र–शस्त्र व गोला बारूद का संरक्षक बनाया गया। साथ ही ‘मीरा देवी’ उपनाम दिया गया था। सुनीति की काबिलियत के कारण कई पद मिल चुके थे, इसलिए उनके अंदर अब उत्साह दोगुना हो गया था।
कु. सुनीति चौधरी अपने परिवार और अन्य लोगों से अंग्रेजों के काले कारनामों के विषय में सुना करती थी कि अंग्रेजों के जुल्म की दास्तां सुनकर हर भारतीय की आंखों में आंसू आ जाते हैं। फिरंगियों ने भारत के महिलाओं, बच्चों, पुरुषों, विकलांगो तक नहीं छोड़ा था। गरीबों के कारण जो व्यक्ति अंग्रेजों का टैक्स नहीं अदा कर पाता था, उन्हें अंग्रेज लोहे की कील लगे चमड़े के पट्टा से मारते थे। अंग्रेज सिपाही तो बेकसूर लोगों पर कोड़ा बरसाना और बंदूक चलाना अपना शौक समझते थे। जिस गांव से अंग्रेज दरोगा घोड़ा पर बैठकर निकल जाता था, उस गांव के घरों में सारे दरवाजे–खिड़की बंद हो जाते थे। अंग्रेज अपनी हवस मिटाने के लिए भारत की महिलाओं लड़कियों को घरों से उठा लेते थे और उनके साथ छावनी में बारी-बारी से दुष्कर्म और अप्राकृतिक संबंध बनाते थे। जो महिलाएं विरोध करती थी, उनके गुप्तांगों में बंदूक की नाल रखकर फायर कर देते थे, जिससे महिलाओं का शरीर के चीथड़े उड़ जाते थे और तुरंत ही उनकी मृत्यु हो जाती थी। ऐसे क्रूर अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारियों ने बिगुल छेड़ रखा था। अंग्रेज अफसर और सिपाही, क्रांतिकारियों के घर वालों को तो और अधिक परेशान करते थे। हाथ पैरों में नुकीली कील ठोक देते थे। अंग्रेज शोषण, दमनकारी नीति, अधिक टैक्स वसूली आदि लगातार थोंप रहे थे। इस प्रकार के अमानवीय कृत्य करने में एक अफसर नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत के लगभगअंग्रेज अफसर शामिल रहते थे। कु. सुनीति चौधरी ये सब जुल्म–ओ–सितम अपनी आंखों से देख–सुन रही थी। इसलिए वीरांगना सुनीति चौधरी के मन में दिन–प्रतिदिन अंग्रेजों के खिलाफ क्रूरता भरी बाते सुन कर आक्रोश बढ़ता ही जा रहा और उनका खून उबाल मार रहा था।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन चल रहा था, जिसे चार्ल्स जेफ्री बकलैंड स्टीवंस ने दबाने की हरसंभव कोशिश की। जिसके कारण सुनीति चौधरी बहुत खफा थी।
लगभग 14 वर्षीय कुमारी सुनीति चौधरी और लगभग 15 वर्ष की कुमारी शांति (सेंटी) घोष ने त्रिपुरा के स्कूल में पढ़ाई कर रही थीं, इसलिए वहीं प्लान बनाया कि त्रिपुरा के अंग्रेज कलेक्टर के दफ्तर में जाकर अपने स्कूल में तैराकी प्रतियोगिता आयोजित करने की अनुमति के लिए प्रार्थना पत्र देंगे। उसी क्षण गोली मारकर उसकी हत्या भी कर दी जाएगी। इस प्लान की किसी को कानों–कान खबर नहीं हुई।
14 दिसंबर सन 1931 को दोपहर का समय, त्रिपुरा के मैजिस्ट्रेट के बंगले के बाहर एक गाड़ी से दो किशोरियाँ हँसते हुए उतरीं। दिसंबर में भीषण ठंड होने के कारण दोनों ने साड़ी के ऊपर से गर्म ऊनी शॉल ओढ़ रखा था, जिससे किसी को शक न हो। उन लड़कियों ने दफ्तर के अंदर अपने छद्म नाम (मीरा देवी और इला सेन) से पर्ची भेजा, जिसके बाद एसडीओ नेपाल सेन के साथ मैजिस्ट्रेट बाहर निकले। मैजिस्ट्रेट को स्विमिंग क्लब में आमंत्रित किया गया था, कलक्टर वहां जाने की जल्दबाजी में थे। दोनों वीरांगनाओं ने अंग्रेज सिपाहियों को प्रसन्न करने के लिए वार्तालाप में बड़ी मासूमियत से चापलूसी से भरे शब्दों का प्रयोग कर रही थीं, जिससे अंग्रेजों को अपनी ईमानदारी पर कोई संदेह नहीं होने दिया। लड़कियाँ स्वीकृति मिलने के लिए बेचैन हो रही थीं। मजिस्ट्रेट अपने चेंबर में गया और फाइल में रखे कुछ कागज पढ़ते हुए दोनों किशोरियों को कार्यालय के अंदर बुलवाया था।
दो सहेलियों कुमारी सुनीति चौधरी और कुमारी शांति (सेंटी) घोष पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार अपने स्कूल में तैराकी प्रतियोगिता कराने का प्रार्थना पत्र और शॉल के अंदर ऑटोमेटिक पिस्तौल छिपाकर त्रिपुरा के अंग्रेज कलेक्टर चार्ल्स जेफ्री बकलैंड स्टीवेंस के दफ्तर में पहुंच गई। मजिस्ट्रेट चार्ल्स जेफ्री फाइल रखे कुछ पेपर्स पढ़ ही रहे थे। तभी मौका पाकर दोनों कुमारी वीरांगनाओं ने अपने–अपने कपड़ों में छिपी पिस्तौल निकालकर एक साथ ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर उसकी हत्या कर दी। मजिस्ट्रेट को संभलने तथा अंग्रेज सिपाहियों को पोजीशन लेने तक का मौका नहीं मिला। बाद में ब्रिटिश सिपाहियों ने दोनों लड़कियों को गिरफ्तार कर लिया। त्रिपुरा क्षेत्र बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आता था, इसलिए कोलकाता न्यायालय में लगभग 8 माह मुकदमा चला। चूंकि दोनों किशोरियां नाबालिक थी, इसलिए न्यायाधीश ने उन्हें फांसी देने के बजाय, 10 वर्ष का सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
क्रूर अंग्रेजों ने उम्मीद के मुताबिक कु. सुनीति चौधरी की दुश्मनी उनके परिवार के साथ निकालना शुरू किया। पिता जी को मिलने वाली सरकारी पेंशन बंद करा दी। दो निर्दोष अग्रजों को जेल में डाल दिया गया और अनुज की भूख से असमय मृत्यु हो गई।
गांधीवादी युग की शुरुआत हो चुकी थी। राष्ट्रपिता अहिंसावादी महात्मा गांधी अपने दबाव से कुछ निर्णय भारतीयों के हित में कर लिया करते थे। ऐसे समय में महात्मा गांधी और अंग्रेज अफसर के मध्य कुमारी सुनीति चौधरी को लेकर सफल वार्ता हुई। सुनीति और सेंटी घोष की सजा 10 वर्ष से घटाकर 7 साल करके सन 1939 में रिहा कर दिया गया। एक बार एक पत्रकार ने कुमारी सुनीति से जेल मैनुअल के विषय में पूछा, तो उन्होंने उत्तर देते हुए बताया कि– “घोड़े के अस्तबल में रहने से, मरना बेहतर है।” फिर भी भारत के वीर सपूतों ने हार नहीं मानी और लगभग 90 वर्ष का संघर्ष करने के बाद आजाद भारत में हमें जीने का अवसर मिला है। भारत में सबसे कम उम्र में क्रांतिकारी बनने वाली वीरांगना कुमारी सुनीति चौधरी और शांति घोष थी।
जेल से रिहा होने के बाद कुमारी सुनीति ने अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने पर जोर दिया। कोलकाता स्थित कैम्पबेल मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. (तत्कालीन एम.बी. डिग्री) की पढ़ाई करके कुशल चिकित्सक बन गई। तत्पश्चात गरीब, किसान, मजदूर वर्ग की चिकित्सीय उपचार व सेवा करती रहीं। लोग उन्हें लेडी मां कहकर बुलाते थे। भारत स्वतंत्र होने पर, अर्थात् सन् 1947 में कुमारी सुनीति चौधरी ने बंगाल के प्रसिद्ध व्यापारी और व्यापार संघ के अध्यक्ष प्रद्योत कुमार घोष के साथ सात फेरे लेकर परिणय सूत्र में बंध गई थी। उनके दोनों भाई जेल से रिहा हो गए। परिवार पटरी पर दौड़ने लगा था। दुर्भाग्य से यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही, 71 वर्ष की उम्र में 12 जनवरी सन 1988 को श्रीमती सुनीति चौधरी घोष का स्वर्गवास हो गया था।
डॉ. अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिवा जी नगर, रायबरेली
मो० 9415951459