साबुन की बट्टी | रत्ना भदौरिया | Hindi Short Story

इन दिनों अक्सर कमरे के सामने माल और वहां पर जीनों पर काफी बैठने की जगह होने की वजह से मैं भी जाकर बैठ जाती हूं। जिस दिन काम कम होता है उस दिन चार बजे से लेकर रात आठ नौ तक बैठी रहती हूं,जिस दिन काम ज्यादा होता है उस दिन थोड़ी देर ही बैठ पाती हूं लेकिन बैठती जरुर हूं। एक व्यक्ति रोज हाथ फैलाये इसी वक्त मिल ही जाता है मैं भी ज्यादा नहीं लेकिन पांच रुपए वाला बिस्किट का पैकेट जरूर थमा देती हूं। वो खुशी -खुशी ले भी लेता है।

आज उसने मुझसे कहा -मैडम बिस्किट नहीं आज साबुन की एक बट्टी दे दीजिए या फिर दस रुपए। आज साबुन क्यों ? गर्मी हो‌ रही है न मैडम बदबू आने पर लोग भीख भी नहीं देंगे। अरे आजकल तो इलेक्शन चल रहे हैं आजकल महकने की नहीं वोट की जरूरत है। वोट देने पर पेंट भर राशन मिल जायेगा। क्या बात करती है मैडम आप भी ? पेट भर राशन मिल जाता तो धक्के क्यों खाता और पांच किलो में भला महीना कैसे पूरा होगा ?आप ही बताओ न मैडम ! अच्छा ये बताओ तुम्हें देखती हूं तुम हर दिन सुबह शाम भीख क्यों मांगते हो ?पूरा दिन क्यों नहीं मांगते ? और यदि नहीं तो कोई काम क्यों नहीं करते ?अभी तो तुम्हारी उम्र काम लायक अच्छी खासी है ।

मैंने उससे यह सवाल इसलिए पूछा क्योंकि अक्सर आते जाते बाकी समय उसे सड़क किनारे सोते देखा है। मैडम काम मुझे कैसे मिलेगा ?मेरे से ज्यादा पढ़े लिखे मुझसे ज्यादा जवान लड़के लड़कियां बेरोजगार सड़कों पर घूम रहे हैं उन्हें ही भला काम मिल जाये ,उनके पास रोजगार होगा तो पेट मेरा भर ही जायेगा। ये कहते हुए व्यक्ति मुस्कुराते हुए वहां से चल पड़ा —-! अरे -अरे साबुन की बट्टी तो लेते जाइये मैं कहती रही वो वहां से चला गया —–?

रत्ना भदौरिया रायबरेली उत्तर प्रदेश