आपाधापी जिंदगी (कहानी) / रत्ना भदौरिया

घर की खूब धड़ल्ले से चल रही साफ -सफाई बयां कर रही थी कि कोई त्यौहार आने वाला है लेकिन इस बात से मैं कोसों दूर थी कि आखिर कौन सा त्योहार आयेगा ? रोज सोचती तो मां से या घर में अन्य किसी सदस्य से पूछूं तो सही कि कौन सा त्यौहार आयेगा लेकिन सुबह छः बजे घर से निकल जाता तो रात को ग्यारह बजे वापस आता।

अब आप ये सोच रहे होंगे कि इतनी सी बात पूंछने के लिए आखिर समय ही कितना लगेगा। बिल्कुल सही बात है मगर सुबह याद रहता तो शाम को भूल जाता और शाम को अभी पूछेंगे तभी पूछेंगे के चक्कर में कब खाकर सो जाता पता ही नहीं चलता। समय का पहिया अपने आप सबकुछ पता करवा ही देता है। वो दिन भी आ गया था जिस दिन के लिए घर की एक एक चीजें साफ की जा रही थी।

सुबह उठा तो देखा मां रसोई में लगी हुई हैं पास जाकर मां को बोला- क्या बात है मां ? तुमने बताया नहीं कि त्यौहार आने वाला है वो तो कल जब आफिस में छुट्टी के लिए बोला गया तो पता चला कि कल राखी का त्यौहार है। मां आप ऐसा क्यों करती हैं आजकल ?पहले तो ऐसा कभी नहीं करती थी। मां फीकी सी हंसी हंसते हुए बेटा आज त्यौहार के दिन मैं कुछ नहीं कहना चाहती इसलिए कल बात करेंगे इस बारे में आज ———–।

जा फ्रेश होकर नहा धो ले तेरी बहन ससुराल से आती होंगी और हां राखी बंधवाने के बाद ही कहीं जाना , साल में एक बार तो ऐसा मौका आता है। बेटा सुन बहू भी तो जायेगी अपने मायके सड़क तक मुझे भी छोड़ देना उसी गाड़ी में आगे टैक्सी करके मैं अपने यहां चली जाऊंगी इतना कहकर मां फिर कामों में लग गयी। बेटा -मां अगर वो बात बता देती तो मैं निश्चिंत होकर सब काम करता । नहीं बेटा आज कुछ नहीं कहना है कल बताऊंगी तुम निश्चिन्त रहो। ठीक है जैसी आपकी मर्जी कहते हुए बेटा चला गया। अभी एक घंटा भी नहीं बीता था कि खटपट की आवाज सुनाई पड़ी जैसे ही मां ने पीछे देखा तो बेटा और बहू तैयार खड़े थे।

मां कुछ कहती कि उसके पहले ही बेटे ने कहा -मां बहन पता नहीं कब आयेगी समिता अपने घर पहुंचने में लेट हो जायेगी इसलिए हम लोग निकल रहें हैं। बहन को कह देना रात को राखी बांध देगी या फिर रखकर चली जायेगी मैं खुद से बांध लूंगा और हां मां आपके लिए टैक्सी बुक कर दूंगा आप उसी से मामा के यहां चली जाना। अच्छा अब ——–।

मां की आवाज बेटा बस तेरी बहन पहुंचने ही वाली होगी पन्द्रह मिनट और रुक जा फिर —। मां बता तो दिया हमें देर हो रही है कहते हुए दोनों बाहर निकल गये। महज पन्द्रह मिनट के बाद मां —मा के मुलायम स्वर से मां ने दुबारा पीछे देखा तो बेटी आ खड़ी थी । अरे !बेटी तुम आ गयी तुम्हारे भाई भाभी को लेकर उनके घर गये हैं शाम तक आ जायेंगे। मां आपने रोंका क्यों नहीं ? क्या भाई के पास इतना भी समय नहीं है? की वो थोड़ी देर रुक जाता। बेटी भाभी के भाई तो इंतजार कर रहे होंगे, कोई बात नहीं शाम को राखी बांध देना। चलो गरमा गरम कचौड़ी खाओ, मैं भी तैयार होने जा रही हूं कहते हुए मां ने कचौड़ी की प्लेट बेटी के हाथ में थमा दी और खुद अपने मायके जाने की तैयारी करने लगी।

कुछ ही छड़ में तैयार होकर मां भी अपने मायके की तरफ चली तो बेटी ने कहा मां आप भी जा रही हैं,भाई- भाभी भी चले गये पापा बचे हैं तो वे घर देख लेंगे मैं भी अपने घर जाऊंगी अब ये राखी रखी है भाई आयें तो कह देना कि खुद ही राखी बांध लें और जब यहां किसी के पास समय नहीं तो मेरे पास भी कहां —-? कहते हुए बेटी चल पड़ी।तभी मां ने बेटी को पैसे पकड़ाते हुए कहा बेटी ये राखी बांधने का तुम्हारा उपहार है भाई को समय नहीं मिला इसलिए कोई चीज नहीं ला पाया,तुम खुद से खरीद लेना। मां की बात पर बेटी का जवाब -मां भाई से कहना कि तेरी बहन को कुछ नहीं चाहिए बस तेरी इस आपाधापी की जिंदगी में से कम से कम साल में एक बार समय चाहिए वो जब हो तो बता देना —–।

मां ने भी नम आंखों से ठीक है बेटी कह दिया था। दूसरे दिन जब बेटा- बहू वापस आये तब तक मां आ चुकी थी। दोनों अन्दर घुसते ही मां sorry कल नहीं आ पाये बहन की राखी रखी होगी ,अभी बांध लेंगे और तुम मामा के यहां गयी थी एक बार फोन कर देती टैक्सी कर देता ध्यान से उतर गया और मामा के यहां सब ठीक है।

अच्छा मां थोड़ा आराम कर लें बहुत थक गये हैं फिर आते हैं कहकर अंदर चले गये। मां ने कुछ नहीं कहा वो भी चुपचाप चाप बैठी रहीं। आराम करते करते दोपहर के एक बज गए तब बेटा -बहू बाहर निकल कर आये,बहू मां वो मां हम लोग बहुत थक गये थे और आंख लग गयी न आपने उठाया और न ही खाने में कुछ बनाया चलो रहने दो कुछ बाहर से मंगवा लेते हैं कहते हुए बहू फोन लेकर आर्डर करने लगी‌। तभी मां ने बेटे को पास बुलाकर बिठाया और बोली कल तू पूंछ रहा था न कि मैं कितना बदल गयी हूं तो सुन बेटा मैं नहीं तू बदल गया है। मां की बात पर बेटे का स्वर -कैसे मां क्या आपको कोई चीज की कमी है हर चीज तो लाकर देता हूं फिर भी आप —–और उदाहरण देने के लहजे से सामने देखो रमेश को उसके मां- बाप न तो इतना अच्छा पहनते हैं और न खा पाते हैं और उन्हें कुछ चाहिए होता है तो जिस दिन कहते हैं उसके चार दिन बाद रमेश लाकर दे पाता है और मैं आपके मुंह से निकला लाकर देता हूं बताओ न मां —–।

बेटा बात ठीक है लेकिन एक बार अपने बचपन के दिन याद कर जब तू सोकर उठता तो मैं तुझे दूध की बोतल , बिस्किट का पैकेट, चिप्स और जो भी खाने के लिए चाहिए सब देने के बावजूद तू जिद्द करता कि मैं तेरे पास बैठूं। रात को तू नहीं सोता तो मुझे भी नहीं सोने देता इसलिए कि तू बोर होगा। ये बातें कहते हुए मां की आंखें भर आयीं थीं और हां बेटा तू रमेश की बात कर रहा था न कि भले ही चीजें देर से लाता है लेकिन बैठता हर दिन है कभी- कभी तो पूरा पूरा दिन बैठे देखा है उसे अपने मां -बाप के साथ —-। पहले से तुम्हें मैंने नहीं तुमने खुद नहीं जाना कि ये साफ -सफाई आखिर क्यों—-? बेटा सब सुनकर मुंह नीचे लटकाये बैठा रहा, मां बोलती रही —–।