दूसरा भगवान | सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कहानी
दूसरा भगवान | सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कहानी
प्रोफ़ेसर ब्रजनंदन प्रसाद को सेवानिवृत्त हुए अभी तीन महीने ही नहीं हुए थे कि उनकी ज़िंदगी में उथल-पुथल मच गया। तीन महीने पहले से ही मां वैष्णो देवी के धाम जाने का उन्होंने निश्चय किया। दरअसल जब तक कालेज में थे, एक मिनट की फ़ुरसत नहीं थी। कालेज में पढ़ाने लिखाने में उनकी कोई सानी नहीं थी। मध्यकालीन इतिहास हो या प्राचीन सब पर उनकी गहरी पकड़ थी। छात्रों के बीच में बेहद लोकप्रिय थे। इतिहास से इतर विद्यार्थी भी उनकी कक्षा में आकर चुपचाप बैठकर विषय का रसपान किया करते थे। प्रोफ़ेसर साहब घर से ही तांबूल खाकर कालेज आते थे, और खूब रस लेकर पढ़ाते थे। शेरो शायरी पर भी ज़बरदस्त पकड़ थी। बिहारी के शृंगार के कुछ दोहों को भी उन्होंने कंठस्थ कर लिया था।
अरी दहेड़ी जिन धर जिन तू लेहि उतारि
नीके है छींकें छुअत ऐसी ही रहत नारि
छात्रों को इतिहास के साथ-साथ हिंदी साहित्य की गंगा में भी डुबो देते थे। इसलिए छात्र सबसे ज्यादा इतिहास ही पढ़ना पसंद करते थे। उनकी इस मांग की वजह से जहां प्राचार्य उनसे खुश रहते थे वहीं उनके वे सहकर्मी जो हिंदी पढ़ाते थे स्टाफ रूम में उन्हें कोसते हुए पाए जाते थे। घर पर भी शोध छात्रों का जमावड़ा लगा रहता था। पत्नी जयलक्ष्मी कभी-कभी झल्ला कर कहती थी कि आपको खाने- पीने का भी वक़्त नहीं है। आप ही एक प्रोफ़ेसर हैं या और दूसरे भी। प्रोफ़ेसर अवस्थी को देखिए कालेज से भी पहले आ जाते हैं, आराम करके शाम को पार्क भी टहलने परिवार के साथ जाते हैं, और बच्चों को माल भी घुमाने ले जाते हैं और एक आप हैं कि पूरे कालेज को सिर पर उठा लिया है।
प्रोफ़ेसर साहब पत्नी से ज्यादा तर्क़ वितर्क नहीं करते थे। वे जानते थे कि बात बिल्कुल सही है। आज से पच्चीस साल पहले जब जयलक्ष्मी डॉक्टर साहब के घर आयी थी; तो उसके भी अपने कुछ स्वप्न थे। न जाने कौन- कौन सी ख़्वाहिश उसके मन में पल रही थी। भीतर ही भीतर वह खुश रहती थी। उसकी मंद- मंद मुस्कान पर डाक्टर साहब फ़िदा थे। पारिजात का फूल भी तोड़कर लाने के लिए तैयार थे। पति-पत्नी का दाम्पत्य जीवन सुखमय था, लेकिन समय के डायनामाइट ने अरमानों के पर्वत को चकनाचूर कर दिया था। विवाह के पंद्रह साल बीत जाने पर भी प्रोफ़ेसर साहब के आंगन में बाल किलकारी नहीं गूंज सकी। तमाम दवा झाड़ फूंक करवाया गया लेकिन उसका कोई लाभ नहीं। कछ लोगों ने राय दी कि भाई के बच्चे को प्रोफेसर साहब गोद ले लीजिए। आपके भाई साहब के पांच बच्चे हैं इस महंगाई में उनका भी बोझ हल्का हो जाएगा और आपको अपत्य सुख भी मिलेगा। लेकिन डॉक्टर साहब जानते थे कि अपना अपना ही होता है।
कुछ लोगों ने किराए की कोख की भी चर्चा की, लेकिन जयलक्ष्मी इसके लिए तैयार नहीं हुई। वक्त के थपेड़े और संतान की चिंता ने जयलक्ष्मी को ऐसी मार मारी कि वह असमय बूढ़ी हो गई। डॉक्टर साहब को भी चिंता रूपी सर्पिणी रह- रहकर डंक मार ही दिया करती थी; इसलिए वह ज़रूरत से ज़्यादा व्यस्त रहने लगे।अध्ययन व अध्यापन को ही जीवन जीने का आधार बना लिया। इसीलिए जयलक्ष्मी के क्रोध की लपट जब आकाश छूती थी तो डाक्टर साहब उसे बहस के घी से नहीं बल्कि प्रेम- जल के छीटें से उसे बुझा देते थे। उन्होंने कहा लक्ष्मी बस जनवरी में सेवानिवृत्त हो रहा हूं। कालेज के काम से भी मुक्त हो जाऊंगा। कोई और जिम्मेदारियां कन्धों पर नहीं होगी तो हम लोग आराम से मार्च के महीने में मां के धाम में मत्था टेकने जायेंगे। समय बड़ा बलवान होता है। ईश्वर की व्यवस्था अपने ही तरह से संचालित होती है। उसमें किसी का हस्तक्षेप नहीं हो सकता। भगवान राम के राज्याभिषेक को एक ही दिन रह गया था लेकिन पूरा नहीं हो सका। विधि की लेखनी को कोई मिटा नहीं सकता। मार्च का महीना था। होली बीत चुकी थी। दो दिन बाद प्रोफ़ेसर साहब की ट्रेन जम्मू की थी। टिकट उन्होंने पहले ही बुक करा ली थी। तैयारियां जाने की ज़ोरों से चल रही थी। डाक्टर साहब ने कहा कि जयलक्ष्मी दस दिन का कार्यक्रम है बाहर का। कुछ सूखी चीज भी बना लेना। सफ़र में यही सब काम आता है।
जयलक्ष्मी ने तंज़ कसते हुए कहा कि आप घर गृहस्थी की चिंता कब से करने लगे। आप बस अपना सामान जो ले जाना है उसे पैक कर लीजिए; यही मेरे लिए बहुत है।
आज सुबह से ही घर में उत्साह का माहौल है जयलक्ष्मी कभी सामान को इस बैग में तो कभी उस बैग में रख रही है। डाक्टर साहब ने मजाकिया अंदाज में कहा कि माना कि मैं बूढ़ा हो गया हूं लेकिन कभी- कभी हमको देख लिया करो। दिल से अभी भी जवान हूं। जयलक्ष्मी ने कहा धत्त!
जयलक्ष्मी हड़बड़ाकर उठी और वाशरूम की तरफ़ जैसे ही आगे बढ़ी उसका पैर स्लिप हो गया और हड्डी के चटकने की तेज़ आवाज़ आयी। वह वहीं बैठ गई। ज़ोर- ज़ोर से चिल्लाने लगी। असहनीय दर्द से वह छटपटा रही थी। डाक्टर साहब किंकर्तव्यविमूढ़ थे। इसी बीच एक दो पड़ोसी भी चिल्लाने की आवाज़ सुनकर आ गए। स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए पड़ोसियों ने कहा कि प्रोफ़ेसर साहब पहले इनको हड्डी के अच्छे डाक्टर के पास ले चलिए। क्योंकि मैम को असहनीय दर्द है एकाक इंजेक्शन दर्द का लग जाएगा तो इनको कुछ राहत मिल जायेगी। शहर के नामचीन डाक्टर के पास प्रोफेसर साहब अपनी पत्नी को ले गए। डाक्टर साहब ने पैर देखा और कहा कि इनकी हड्डियां काफ़ी कमजोर हो गईं हैं। पैर बुरी तरह से फ्रैक्चर हो गया है। अभी एक इंजेक्शन दे रहा हूं; दर्द से कुछ राहत मिल जायेगी। कल आपरेशन करेंगे।
अगले दिन आपरेशन- कक्ष में जयलक्ष्मी को ले जाया गया। आपरेशन सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया; लेकिन जैसे ही डॉक्टर साहब आपरेशन थियेटर से बाहर जाने लगे; उनकी नजऱ पेशेंट के गले पर पड़ गईं। बायीं तरफ़ एक गांठ दिखलाई पड़ी। डाक्टर साहब ने प्रोफेसर साहब से अंदेशा जताया कि आप एक बार वायोप्सी टेस्ट करा लीजिए। शायद मेरा अंदेशा गलत ही हो।
दस दिन बाद वायोप्सी टेस्ट की रिपोर्ट आ गई। डाक्टर साहब का अंदेशा सच निकला। रिपोर्ट प्रोफ़ेसर साहब ने कैंसर के बड़े डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने थ्रोट कैंसर बताया।
एक महीने बाद जब जयलक्ष्मी को पैर से आराम मिला। तब प्रोफेसर साहब मुंबई शहर के एक प्रसिद्ध कैंसर अस्पताल में जयलक्ष्मी को कीमोथेरेपी और अन्य इलाज के लिए ले गए। उसके गले में डाक्टरों ने एक नली लगा दी, जिससे वह कुछ तरल पदार्थ ले सके। इस समय वह जीवन और मृत्यु से वह संघर्ष कर रही है। डाक्टर दूसरा भगवान होता है। प्रोफ़ेसर साहब को इस दूसरे भगवान से ही अब कुछ उम्मीद है।
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874