लाल बहादुर शास्त्री स्मृति दिवस पर कविता
lal bahadur shastri smriti divas :सीताराम चौहान पथिक की लाल बहादुर शास्त्री स्मृति दिवस पर कविता ,श्री लाल बहादुर शास्त्री का जंन्म २ अक्टूबर १९०४ को उत्तरप्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता शिक्षक थे । जब शास्त्री जी डेढ वर्ष के थे उनके पिता का देहांत हो गया उनकी माँ अपने तीनो बच्चों के साथ अपने पिता के यहाँ बस गयी । शास्त्री जी जब ११ वर्ष के थे तभी उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था । १९२७ में उनकी शादी हो गयी दहेज के नाम पर एक चरखा मिला और हाथ के बनाये हुए कुछ कपडे थे वास्तव में इस दहेज से बहुत खुश थे कुल ७ वर्ष तक ब्रिटिश जेलों में रहें एक रेल दुर्घटना जिसमे कई लोग मारे गए थे , के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्मदिवस पर 2 अक्टूबर को शास्त्री जयंती व उनके देहावसान वाले दिन 11 जनवरी को लालबहादुर शास्त्री स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
लाल बहादुर शास्त्री जी
पुण्यतिथि पर कविता
(lal bahadur shastri smriti divas)
श्री लाल बहादुर शास्त्री ,
शत्-शत नमन तुम्हे ।
राष्ट्र- प्रेम और सादगी ,
नैनन भरा स्नेह ।
हे सौम्य- मूर्ति है युग – पुरुष ,
नैतिकता के दूत ।
देखो , भारत वर्ष में ,
नेता की करतूत ।
लूट – लूट कर खा रहे ,
फिर भी नहीं अघाए ।
इनके काले कर्म सब ,
खादी मैं छिप जाए ।
भ्रष्ट – आचरण स्वार्थी ,
पद – लोलुप मंत्री सभी ।
सीधी- सादी प्रजा अब ,
दुःख किस्से कहें कभी ।
नैतिकता दम तोड़ती ,
नेता रंगे सियार ।
कुर्सी प्राणों से बंधी ,
आत्मा करें पुकार ।
जय जवान और जय किसान
दोनों हुए हताश ।
आ जाओ बहादुर शास्त्री ,
आँखे हुई उदास ।
तुम जैसा निस्वार्थी ,
राजनीति आदर्श ।
लाएं कहां से खोज कर ,
स्वाभिमान उत्कर्ष ।
रोज बट रही रेवड़ी ,
अपनों – अपनों के बीच ।
प्रतिभा पिसती है यहां ,
आरक्षण के बीच ।
कोई भी ऐसा नहीं ,
सुनें प्रजा की पीर ।
बगुलों में जो हंस हो ,
करें नीर और क्षीर ।
ऐसे संकट के समय ,
मुख से वचन कहै ।
धूर्त पडौसी देश से ,
कैसे मुक्त रहै ॽ
लाल बहादुर शास्त्री ,
फिर आओ इक बार ।
आकर फिर लाहौर तक ,
खींचो इक दीवार ।
भारत – मां के हे सपूत ,
तुम पर है अभिमान ।
पथिक उज्ज्वल नक्षत्र तुम ,
भारत की पहचान ।
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