hindi kavita sine media darpan /सिने – मीडिया दर्पण|
हिंदी रचनाकार का प्रयास रहता है hindi kavita sine media darpan समाज से जुडी कविता पाठकों के सामने प्रस्तुत हो वरिष्ठ साहित्यकार सीताराम चौहान पथिक की रचना सिने – मीडिया दर्पण उस कथन को चरित्रार्थ कर रही हैं । २०२० में ऐसा ही हुआ जब जाने- माने अभिनेता ने अपने मायानगरी निवास पर आत्महत्या कर ली जब इस मामले को जनता के सामने प्रस्तुत किया तो बहुत सवाल सभी के मन में थे कि जाने -माने अभिनेता ने सब कुछ होते हुए भी खुदखुशी क्यों की इन सभी बिंदुओं को अपनी लेखनी में संजोया हैं वरिष्ठ साहित्यकार सीताराम चौहान पथिक ने अपनी रचना में ,हमें आशा है कि काफी सवाल आपके इस कविता को पढ़ने के बाद हल होंगे ।
सिने – मीडिया दर्पण
(hindi kavita sine media darpan )
कहां गयी संवेदना,
कहां गए सुविचार ।
मर्यादाएं सो गयी,
जाग रहा व्यभिचार ।
नैतिकता सिर धुन रही,
फूहड़ता का राज ।
कामुक फिल्में शीर्ष पर,
जुबली मनती आज ।।
कहां ॽ सिनेमा स्वर्ण- युग,
राष्ट्र – भक्ति के गीत ।
ओजस्वी पट- कथा पर,
संवादों की नीति ।।
बच्चे- बूढ़े औ तरुण,
भिन्न मतों के लोग ।
फिल्में थीं तब आईना ,
प्रेरित होते लोग ।।
लौटेगा क्या फिर कभी ॽ
स्वर्ण- काल सुर- धाम ।
धर्म – नीति – इतिहास पर ,
फिल्में बनें तमाम ।।
अब फिल्में विष घोलती ,
अपराधों की बाढ़ ।
बलात्कार है शिखर पर ,
लज्जा हुई उघाड़ ।।
परिधान अल्प,
अध- नग्न तन बालाओं की धूम ।
सिने – मीडिया मस्त है ,
लोग रहें हैं झूम ।।
मायानगरी को लगा ,
चरित्र – हनन का रोग ।
बच्चे कामुक हो रहे ,
निश्चिन्त दीखते लोग ।।
भारतीय संस्कृति का ,
नित – नित होता लोप ।
कब चेतेगा सिनेमा ॽ
बरसेगा जब कोप ।।
है भारत- सरकार से,
साहित्य – कार की मांग ।
अंकुश कसो प्रमाद पर
पथिक-रचो नहिं स्वांग ।।
सीताराम चौहान पथिक
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