पीत बसन धरती ने ओढ़ी, यौवन फसलों का गदराया, अंग-अंग में अंगड़ाई है, मधुमास लौट फिर से आया।टेक।
नयनों में सतरंगी सपने, आते-जाते लगते अपने, सुधि की मोहक अमराई में, चॉद लगा मन को चुभने। धरा वधूटी सी सज-धज कर, नव नेहिल वारिद मॅडराया। पीत वसन धरती ने ओढ़ी, यौवन फसलों का गदराया।1।
लूट लिया था पतझर ने कल, तरु-तर उपवन रूप विमल, कोंपल,किसलय,लतिका मचले-, कलिका बिहॅसे मधुर धवल। रोम-रोम में मादक सिहरन, कुंज-निकुंज शलभ बौराया। पीत वसन धरती ने ओढ़ी, यौवन फसलों का गदराया।2।
कल आयेगी भोर सुहावन, भर जायेगी डेहरी-ऑगन, पुलक धिरकते खग-कुल देखो-, नवल व्योम छवि रूप लुभावन। भंग पिये बिन मस्त भृंग से, मधु माधव ने फिर बिखराया। पीत वसन धरती ने ओढ़ी, यौवन फसलों का गदराया।3।
रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।
कोहरे में सनें शहर- गांव, लगता है चारों तरफ छांव। दूर तक धुंधलापन दिखता, धरती का नया रूप खिलता। जिधर देखो धुआं- धुआं है, पास का नहीं कुछ भी दिखता। सूरज ने सबको दिया दांव, कोहरे में सनें शहर- गांव। ठंडक नें रूप है दिखाया, जैसे मेहमान नया आया। सर्दी से बचने की खातिर, लोगों ने आग है जलाया। ठंडक से जकड़े हाथ पांव, कोहरे में सनें शहर- गांव। चौपाये ठंड से हैं कांपते, पक्षी भी घोसलों से झांकते। कहीं अगर जाने की सोचो, नज़र नहीं आते हैं रास्ते। नदिया में चलती नहीं नाव, कोहरे में सनें शहर- गांव। नीचे को गिर रहा पारा, अब केवल आग का सहारा। कैसे कटेगी रात मेरी, सोचता है बुधिया बेचारा। दूसरा नहीं कोई ठांव,
जो बचा है उसको जतन कीजिए बने हैं राजा रंक यहां पर दिलों में दीपक जला दीजिए मिली जो शोहरत नहीं मुकम्मल कौन है अपना नहीं है मुमकिन बोया है जैसा वही मिलेगा अजीब करिश्मा समझ लीजिए दिलों में दीपक जला दीजिए माता-पिता है जहां में भगवन प्रकृति का मकसद समझ लीजिए सागर की लहरें आती है जाती मैल दिलों के समन कीजिए उम्मीद तुमसे किया जो अपने वही करे जो फर्ज समझिए नापूरी होगी ख्वाहिश सभी की माया की नगरी समझ लीजिए जो बचा है उसका जतन कीजिए अभी सवेरा यतन कीजिए
– जनकवि सुखराम शर्मा सागर
मर्म
सुख दुख के भव सागर में अपने मन की प्यास छिपाए तन मन हारा हारा है फर्ज हमारा मर्म तुम्हारा जब था सब कुछ पास हमारे अपना बनाया बन सबके प्यारे बिरले दुख में बने है साथी हकदार बने अब सभी बाराती अपनों ने मजधार में मारा फर्ज हमारा मर्म तुम्हारा अपने प्रसाद में बने प्रवासी भ पसीना था सपन संजोया जेसीबी हो अब नियति तुम्हारी माया में किया को जरा अपनों से ही अपनों ने हार फर्ज हमारा मर्म तुम्हारा बसंत सुहाना आए जाए पतझड़ से ना विस्मित हो जाए यस अपयस रह जाए सारा सुखसागर ही एक सहारा अपनों ने मजधार में मारा फर्ज हमारा मर्म तुम्हारा
shiksha ka moolyaankan: सीताराम चौहान पथिक की रचना शिक्षा का मूल्यांकन जो वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर कटाक्ष है प्रस्तुत है –
शिक्षा का मूल्यांकन ।
विश्व विद्या्लय ज्ञान का विश्व-मन्दिर ।
अथवा उच्च शिक्षा का
आधुनिक फैशन- रैम्प ॽ
वहां- फैशन रैम्प – पर
टिकटों द्वारा प्रवेश होता है ,
यहां- शिक्षा परिसर – रैम्प पर
प्रवेश निशुल्क है ।
प्रातः से सांय तक रंग- बिरंगे
डिजाइनदार अल्प – परिधानों मे ,
तितलियों की कैटवाक होती है
शोख अदाओं के साथ ,
शिक्षा – परिसर नहीं ,
मानों फिल्मी स्टूडियो हो । रैगिंग प्रतिबंधित होने से
भ्रमरो को थामना पड़ता है
दूर से कलेजा अपने हाथ । जी हां ,
यही शिक्षा का विश्व – विद्यालय परिसर है ।
शिक्षा- संस्कृति और सभ्यता का केन्द्र ।
किन्तु शिक्षा कैसी — कक्षाओं में
छात्र नदारद
कैंटीनों में चटपटे व्यंजनों का
रसास्वादन करते ,
रोमांस करते छात्रों की टोलियां ।।
संस्कृति के नाम पर
पश्चिम का भद्दा अंधानुकरण ।
भारतीय भाषाओं का उपहास ।
दासता की प्रतीक अंग्रेजी का वर्चस्व ।
यही है हमारे राष्ट्रीय नेताओं
की कथनी-करनी का अन्तर।
भारत की राष्ट्रीयता पर
कुठाराघात ।
नैतिकता का गिरता स्तर ।
अब समय आ गया है ,
मैकाले की शिक्षा – प्रणाली पर
पुनर्विचार करने का ,
अर्धनग्न फैशन – प्रवॄति को
करना होगा दृढ़तापूर्वक हतोत्साहित ।
छात्रों को स्कूलों की तरह देना होगा ,
राष्ट्रीय ड्रेस – कोड ।
शिक्षा – परिसर में
महापुरुषों की अमॄत -वाणी का
गुंजाना होगा जय – घोष ।
देश- भक्त क्रान्ति कारियो के
उल्लेखनीय योगदान का ,
पाठ्य- पुस्तको में करना होगा
निष्ठापूर्वक समावेश ।
तभी होगी भारतीय शिक्षा सार्थक एवं निर्दोष
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हिंदी रचनाकार का प्रयास रहता है hindi kavita sine media darpan समाज से जुडी कविता पाठकों के सामने प्रस्तुत हो वरिष्ठ साहित्यकार सीताराम चौहान पथिक की रचना सिने – मीडिया दर्पण उस कथन को चरित्रार्थ कर रही हैं । २०२० में ऐसा ही हुआ जब जाने- माने अभिनेता ने अपने मायानगरी निवास पर आत्महत्या कर ली जब इस मामले को जनता के सामने प्रस्तुत किया तो बहुत सवाल सभी के मन में थे कि जाने -माने अभिनेता ने सब कुछ होते हुए भी खुदखुशी क्यों की इन सभी बिंदुओं को अपनी लेखनी में संजोया हैं वरिष्ठ साहित्यकार सीताराम चौहान पथिक ने अपनी रचना में ,हमें आशा है कि काफी सवाल आपके इस कविता को पढ़ने के बाद हल होंगे ।
वरिष्ठ कवि सृष्टि कुमार श्रीवास्तव की’हिंदी कविता शब्द का हूं मै पुजारी-hindi kavita shabd pujaareeहिंदी रचनाकार के पाठकों के लिए प्रस्तुत है। कविता मे लेखक ने अपने अनुभवों को पक्तियों के माध्यम से हिंदी कविता शब्द का हूं मै पुजारी- मे पिरोया है पाठक कविता को समझे और अपने भाव कमेंट के रूप मे व्यक्त करें ।
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