तुम धुआं हवन का हो जाते/ सृष्टि कुमार श्रीवास्तव
तुम धुआं हवन का हो जाते
कुछ प्रश्नो के उत्तर होते हैं
कुछ प्रश्न स्वयं उत्तर होते।
लहरें आ आ कर टकराती
तन मन को बोझिल कर जातीं
फिर गीत घुमड़ते सीने मेँ
आँखें आंसू से भर आतीं
ऐ काश नदी तुम हो जाते
हम घाटों के पत्थर होते।
सब कुछ कहकर भी लगता है
कुछ बातें फिर भी रह जातीं
होंठों के बस की बात नही
जो मौन निगाहें कह जातीं
शब्दों से ज्यादा अर्थवान
भावों के विह्वल स्वर होते।
पीड़ा के पर्वत का गलना
गंगा की लहरों का नर्तन
धरती अम्बर की बांहों मे
कुछ और नही ये आकर्षण
तुम धुआं हवन का हो जाते
हम मंत्रों के अक्षर होते।
सृष्टि कुमार श्रीवास्तव