shiksha ka moolyaankan/सीताराम चौहान पथिक

shiksha ka moolyaankan: सीताराम चौहान पथिक की रचना शिक्षा का मूल्यांकन जो वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर कटाक्ष है प्रस्तुत है –


शिक्षा का मूल्यांकन ।

विश्व विद्या्लय ज्ञान का विश्व-मन्दिर ।
अथवा उच्च शिक्षा का

आधुनिक फैशन- रैम्प ॽ
वहां- फैशन रैम्प – पर

टिकटों द्वारा प्रवेश होता है ,
यहां- शिक्षा परिसर – रैम्प पर

प्रवेश निशुल्क है ।

प्रातः से सांय तक रंग- बिरंगे

डिजाइनदार अल्प – परिधानों मे ,
तितलियों की कैटवाक होती है

शोख अदाओं के साथ ,
शिक्षा – परिसर नहीं ,

मानों फिल्मी स्टूडियो हो ।
रैगिंग प्रतिबंधित होने से

भ्रमरो को थामना पड़ता है
दूर से कलेजा अपने हाथ । जी हां ,

यही शिक्षा का विश्व – विद्यालय परिसर है ।
शिक्षा- संस्कृति और सभ्यता का केन्द्र ।
किन्तु शिक्षा कैसी — कक्षाओं में

छात्र नदारद
कैंटीनों में चटपटे व्यंजनों का
रसास्वादन करते ,
रोमांस करते छात्रों की टोलियां ।।

संस्कृति के नाम पर

पश्चिम का भद्दा अंधानुकरण ।
भारतीय भाषाओं का उपहास ।
दासता की प्रतीक अंग्रेजी का वर्चस्व ।
यही है हमारे राष्ट्रीय नेताओं
की कथनी-करनी का अन्तर।
भारत की राष्ट्रीयता पर
कुठाराघात ।
नैतिकता का गिरता स्तर ।

अब समय आ गया है ,
मैकाले की शिक्षा – प्रणाली पर

पुनर्विचार करने का ,
अर्धनग्न फैशन – प्रवॄति को
करना होगा दृढ़तापूर्वक हतोत्साहित ।
छात्रों को स्कूलों की तरह देना होगा ,
राष्ट्रीय ड्रेस – कोड ।
शिक्षा – परिसर में

महापुरुषों की अमॄत -वाणी का
गुंजाना होगा जय – घोष ।

देश- भक्त  क्रान्ति कारियो के

उल्लेखनीय योगदान का ,
पाठ्य- पुस्तको में करना होगा

निष्ठापूर्वक समावेश ।
तभी होगी भारतीय शिक्षा सार्थक एवं निर्दोष

shiksha- ka- moolyaankan
सीताराम चौहान पथिक

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हम साधारण लोग – सीता राम चौहान पथिक

सीता राम चौहान पथिक की कलम से ” हम साधारण लोग” हिंदी कविता साधारण लोग की वेदना को प्रदर्शित करती सुन्दर रचना आपके सामने प्रस्तुत है

 हम साधारण लोग  

हम साधारण लोग
नहीं जानते ज्ञान – गूढ़ तत्व की बातें ,
  वेदांत की गहराइयां ,
थोथे उपदेशों की तलछट
तुम्हारे बौद्धिकता के जंगल में ,
उभरती खर – पतवारें ।
तुम्हारी महत्त्वाकांक्षाओं के टेढ़े मेढे पायदान ,
जिनकी बलि चढ़ती निर्दोष मानवता लहू – लुहान ।।
नहीं – नहीं      राष्ट्रीय नेताओं ,
 हम हैं सीधे सरल इनसान ।
हमें चाहिए तुम्हारा निश्छल – प्रेम विश्वास ।
हम जी लेंगे अभावों के बीच ,
केवल हमें दो अपना वीरोचित आत्म – विश्वास ।
अपने स्वार्थ , भ्रष्टाचार , अनैतिकता के आवरण ,
हटा कर तनिक देखो हमारी तरफ
हम हैं साधारण लोग फटे – हाल ।
 हमारे माथे की शिकनो में उभरते कई सवाल ।
तुम हो प्रजातंत्र के प्रतिनिधि ,
वोटों के केवल खरीदार ।।
हमारी गरीबी , भुखमरी , आत्म – हत्याओं पर तनिक करो विचार ,
हमारी ओर बढ़ रहे आतंकवादियों
के  पारावार ,
हमारी रक्षक सेनाओं को दो अत्याधुनिक हथियार ,
हम सीधे सरल – साधारण लोग
हमें चाहिए सूदृढ सूरक्षा तन्त्र ,
जिनमें तुम सूरक्षित हो
ना हो जाए निर्दोष मानवता बलिदान ।
हम हैं सीधे सरल इनसान ।।
हमने तुम्हें ‌ बनाया है महान
कर्तव्यों का तुम्हें नहीं है भान ।
हम यदि चाहें , छीन सकते हैं ,
तुम्हारा हठीला अभिमान ।।
प्रजा तन्त्र को होने ना देंगे यूं बदनाम ,
ज्ञम है  सीधे सच्चे सरल इनसान ।
   सीता राम चौहान पथिक दिल्ली