Jananayak Karpoori Thakur/कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर
कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर
Jananayak Karpoori Thakur: जिस समय भारत माता परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी हुई थी। उसी समय कर्पूरी जी का जन्म समस्तीपुर के पितौझिया नामक ग्राम में 24 जनवरी 1924 को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गोपाल ठाकुर एवं माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था ।इनके बचपन पर उनके माता-पिता के गुणों का प्रभाव पड़ा ।इनके पिता एक किसान थे ।बाल्यावस्था इनका आर्थिक संघर्षों के बीच ही गुजरा ।
उस समय के वातावरण को देखते हुए इनका मन अपने देश को स्वतंत्र कराने में लगा ।देश भक्ति इनमें कूट कूट कर भरी थी ।भारत छोड़ो आंदोलन के समय इन्होंने 26 बार जेल की यात्रा की ।
कर्पूरी ठाकुर जी का विवाह कुलेश्वरी देवी जी के साथ हुआ।
राजनेता होने के साथ ही साथ यह एक समाज सुधारक भी थे
यह सरल और सरस स्वभाव के राजनेता थे ।राजनेता होने के साथ ही साथ यह एक समाज सुधारक भी थे। इन्होंने समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। निम्न एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को उनके अधिकार एवं कर्तव्य के प्रति जागरूक किया। इनके मुख्यमंत्री काल में ही पिछड़े वर्ग को 27% का आरक्षण प्रदान किया गया । कर्पूरी ठाकुर जी ने एक बार उपमुख्यमंत्री एवं दो बार मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया । एवं दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। लोक नायक जयप्रकाश नारायण एवं समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया इन के राजनीतिक गुरु थे ।राम सेवक यादव जैसे दिग्गज साथी थे । लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार ,रामविलास पासवान और सुनील कुमार मोदी के यह राजनीतिक गुरु थे ।जब यह बोलते थे सारी जनता इनके भाषण को बड़े ही ध्यान से सुनती थी । उनका चिर परिचित नारा था “अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर लड़ना सीखो, जीना है तो मरना सीखो ।
सादा -जीवन ,उच्च विचार इनके जीवन का आदर्श है । यह धन का व्यर्थ व्यय नहीं करते थे ।इनके दल के कुछ नेता अपने यहां की शादियों में करोड़ों रुपया खर्च करते थे परंतु जब इन्होंने अपनी बेटी की शादी की तो उन्होंने एक आदर्श उपस्थित किया और बहुत ही साधारण ढंग से विवाह किया ।एक मुख्यमंत्री की बेटी का विवाह अत्यंत साधारण ढंग से संपन्न हुआ , यह अपने आप में अनोखी बात थी।
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कर्पूरी जी का वाणी पर कठोर नियंत्रण था । वह भाषा के मर्मज्ञ थे। उनका भाषण आडंबर रहित ,ओजस्वी, उत्साहवर्धक एवं चिंतन परक होता था ।कड़वा से कड़वा सच बोलने के लिए वह इस तरह के शब्दों एवं वाक्यों को व्यवहार में लेते थे जिसे सुनकर प्रतिपक्ष तिलमिला तो उठता था लेकिन यह कभी यह नहीं कह पाता था कि कर्पूरी जी ने उसे अपमानित किया। उनकी आवाज बहुत ही शानदार एवं चुनौतीपूर्ण होती थी लेकिन यह उसी हद तक सत्य ,संयम और संवेदना से भी भरपूर होती थी ।इनके गुणों का बखान कहां तक करें जो अपने आप में अवर्णनीय है ।
इनकी लोकप्रियता ने ही इन्हें कर्पूरी ठाकुर से जननायक कर्पूरी ठाकुर बना दिया। 65 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से कर्पूरी ठाकुर जी का निधन हो गया।
इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर निम्न पंक्तियाँ भी प्रस्तुत है—–
हैं पल चांदनी रात की तरह,
जो बीत जाया करते हैं ।
है कर्म की ताकत,तूफ़ान प्रबल पर्वत,
झुक जाया करते हैं।
अक्सर दुनिया के लोग ,
समय के चक्कर खाया करते हैं ।
लेकिन कुछ ऐसे होते हैं ,
जो इतिहास बनाया करते हैं।।
यह उसी कर्मवीर इतिहास पुरुष की,
अनुपम अमर कहानी है ।
ईमानदारी ,कर्तव्यनिष्ठा ,सत्यवादिता,
जिसकी निशानी है।
दूरदर्शी,कुशल वक्ता होना ,
जिसकी पहचान है ।
सादा -जीवन, उच्च -विचार ,
कर्पूरी जी की शान है ।।
कुशल राजनीतिज्ञ बन ,
बिहार का मान बढ़ाया जिसने।
अपमान का घूंट पीकर भी,
प्रेम ही दिखाया जिसने ।
मानवता का पाठ पढ़कर भी,
सहा कारागृह का दुख जिसने ।
मुख्यमंत्री पद पाकर भी ,
अभिमान न दिखाया जिसने।।
वह साहसी ,वीर था ,
या त्यागी -सन्यासी ।
जिसके यश को याद करेंगे,
युग -युग तक भारतवासी ।
जननायक बनकर भी पहले ,
रहा वह देशवासी।
गीता -रामायण के भावों में थी,
उसकी आंखें प्यासी ।
पितौंझिया गांव ,कर्पूरी ग्राम बना,
जिसके नाम से।
दलितों का मसीहा हुआ वह ,
अपने काम से।
उनका कर्म क्षेत्र ,
उनके लिए ही धाम था ।
वेद -पुराणों की वाणी ही ,
उनके जीवन का घाम था ।।
रूबी शर्मा
ग्राम व पोस्ट -जोहवा शर्की
जिला -रायबरेली
उत्तर प्रदेश
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