baba kalpnesh ke geet- कलम मेरी गही माता/बाबा कल्पनेश
कलम मेरी गही माता
(baba kalpnesh ke geet)
कलम मेरी गहो माता सदा उर नेह की दाता।
चले यह नित्य करुणा पथ यही मुझको सदा भाता।।
भरम यह तोड़ती जग का उठाए प्रेम का छाता।
जगाए राष्ट्र भारत को बढ़ाए आत्म का नाता।।
निबलता देश की टूटे बनें सब वीर व्रत धारी।
चलें सब साथ होकर के सजे यह राष्ट्र फुलवारी।।
महक आकाश तक फैले यशी हों साथ नर-नारी।
मनुजता मूल्य पाए निज हटे जो मोह भ्रम भारी।।
सभी का श्रम बने सार्थक सभी को मूल्य मिल पाए।
नहीं हों दीन भारत में कलम यह गीत लिख गाए।।
सुने नित विश्व सारा ही सभी को गीत यह भाए।
भरत का देश जागा है समय शुभ लौट कर आए।।
पुरातन शौर्य वह जागे भरत जब शेर से खेला।
वही यह राष्ट्र प्यारा है बनाकर विश्व को चेला।।
भरा करता रहा सब में मनुज के भाव का रेला।
लगे संगम किनारे जो अभी भी देख लें मेला।।
नहीं कोई करे ऐसा यहाँ निंदित पड़े होना।
जगत अपमान दे भारी मिला जो मान हो खोना।।
जगे फिर दीनता हिय में पड़े एकांत में रोना।
लुटेरे लूट लें सारा हमारी निधि खरा सोना।।
जगे यह राष्ट्र-राष्ट्री सब सभी सम्पन्नता पाएं।
सभी जन राष्ट्र सेवा में श्रमिक सा गीत रच गाएं।।
निकल निज देश के हित में स्वयं अवदान ले आएं।
सदा हर जीव का मंगल रचें कवि गीत-कविताएं।।
२. हे राम
(baba kalpnesh ke geet )
हे राम जैसे आप हैं, यह जग कहाँ-कब मानता।
निज कल्पना के रूप में, कल्पित तुम्हे है तानता।।
व्यवहार कर कुछ और ही,प्रवचन करे कुछ और ही।
जो वेद का व्याख्यान है, इस जगत लागे बौर ही।।
यह वेद को पढ़ता भले,पर कामना रत नित्य ही।
निज मापनी आकार में, निज को कहे आदित्य ही।।
यह ज्ञान का भंडार है, उर में सदा ही ठानता।
हे राम जैसे आप हैं, यह जग कहाँ है मानता।।
सम्मान दे माता-पिता,आचरण वैसा अब नहीं।
दुत्कार दे बैठे रहो,आदर नही कोई कहीं।।
आदेश कैसे मानता,ज्ञानी हुआ हर पूत है।
हनुमान को लड्डू खिला,बनता स्वयं हरि दूत है।।
यह देखता टीवी भले,निज बाप कब पहचानता।
हे राम जैसे आप हैं, यह जग कहाँ है मानता।।
ओंकार अथवा राम ही,जपता भले कर माल ले।
आशय नहीं पर मानता,गुरुदेव वाणी भाल ले।।
चंदन भले माला भले,आजान का स्वर तान ले।
कर्तव्य अपना जान ले,जो शास्त्र सम्मति मान ले।।
गुरु वाग केवल बोलता, पर कुछ कहाँ है जानता।
हे राम जैसे आप हैं, यह जग कहाँ-कब मानता।।
३. साध्य
कविता हमारी साध्य हो,साधन करें जो आज हो।
साधन हमारी भावना,हमको उसी की लाज हो।।
संसार सारा निज सखे,आओ इसे हम प्यार दें।
बोले सभी यह संत हैं, जिसपर हमें अति नाज हो।।
सब कुछ यहाँ परमात्मा, कुछ भिन्न जानो है नहीं।
बस एक ही यह ज्ञान है,इस ज्ञान से ही काज हो।।
जो मंत्र गुरुवर से मिला,उसको हृदय में धार लें।
तब धन्य जीवन धन्य हो, निज शीश पर जग ताज हो।।
जो योग है वह जान लें, निज आत्म को विस्तार दें।
पाकर जिसे हर आदमी, मेटे उसे जो खाज हो।।
यह जीव-जीवन क्यों मिला,यह प्रश्न उत्तर खोज लें।
इस जग चराचर क्या भरा,हम जान लें जो राज हो।।
आओ लिखें वह गीतिका, जिसमें सरित सी धार हो।
हिय की कलुषता सब बहे,ऐसा सरस अंदाज हो।।
बाबा कल्पनेश
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