डॉ. नरेश कुमार वर्मा के साथ : अविस्मरणीय पल/ डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज

डॉ. नरेश कुमार वर्मा के साथ : अविस्मरणीय पल


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डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज

साहित्यकार डॉ नरेश कुमार वर्मा का परिचय 


भाषाविद्, समीक्षक, साहित्यकार डॉ नरेश कुमार वर्मा जी शासकीय गजानंद अग्रवाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय भाटापारा में हिंदी विभागाध्यक्ष, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर एवं साकेत साहित्य परिषद सुरगी राजनादगांव के प्रमुख सलाहकार थे।
आपका जन्म एक साधारण कृषक परिवार में 13 अगस्त 1959 को ग्राम फरहरा भाटापारा छत्तीसगढ़ में हुआ था उनके जीवन का बचपन से ही यह सपना था कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर प्रोफ़ेसर बनें और वह अपने कठिन संघर्ष व परिश्रम की बदौलत ही उस सपने को साकार भी किया।
वह पहले होशंगाबाद फिर शासकीय स्वशासी दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव फिर गजानन अग्रवाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय भाटापारा जनपद बलौदा बाजार छत्तीसगढ़ में सेवारत रहकर उन्होंने नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
डॉ.वर्मा छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए अपने खून से पत्र लिखने वाले और गरीबों , शोषितों तथा किसान मजदूरों की आवाज बनकर खड़े होने वाले एक नेक इंसान तथा संवेदनाओं से भरे कवि थे, जिन्होंने अपनी कलम को स्याही से ही नहीं खून से भी चलाकर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। तथा असहाय लोगों की पीड़ा को अपनी कविता संग्रह – माटी महतारी में लिखकर समाज के सामने प्रस्तुत कर अविस्मरणीय कार्य किया है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह की तरह उनका साकेत छत्तीसा भाग 1, 2 , 3 भी प्रकाशनोपरांत बहुचर्चित हुआ।
डॉक्टर वर्मा को लगभग 2 वर्ष पूर्व चुनाव के समय लकवा लग जाने से वह शारीरिक रूप से कुछ अस्वस्थ हो गए थे जिनका इलाज रायपुर के बड़े चिकित्सालय में चल रहा था उनकी सेवा में पूरा परिवार ही लगा रहता था परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती मीना व पुत्री सुप्रिया तथा पुत्र मयंक विशेष रूप से अंतिम क्षणों तक इलाज और उनकी देखरेख व सेवा में तत्पर रहे ।
एक माह पूर्व पिता का संसार छोड़कर जाना पुत्र नरेश कुमार वर्मा को अंदर से मानो तोड़ गया और इस दुख को वह सहन नहीं कर सके।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार लगभग प्रत्येक माह रायपुर अपने उपचार हेतु बेटे मयंक के साथ हमेशा की तरह इस बार भी गए और वहां कोरोना संक्रमित हो जाने के कारण 27 अप्रैल 2021 को सदा – सदा के लिए ब्रह्मलीन हो गए।
डॉ. नरेश कुमार वर्मा का मेरा प्रथम परिचय नागरी लिपि परिषद छत्तीसगढ़ इकाई रायपुर में वर्ष 1995 में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में हुआ था ।
इसके बाद जब वह मार्च 1998 में लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ में रिफ्रेशर कोर्स में आए थे तब मुझे आने के पूर्व उन्होंने सूचित कर दिया था कि 1 माह तक लखनऊ में ही हम रहेंगे। बस फिर क्या था वर्मा जी के स्वभाव और व्यक्तित्व से तो मैं बहुत ही अधिक प्रभावित था उनसे संपर्क कर अवकाश में एक दिन उनके सम्मान में साहित्यिक कार्यक्रम दो संस्थाओं के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित कराया तथा जिला पंचायत सभागार रायबरेली में उनका सम्मान और कवियों का काव्य पाठ होली मिलन के साथ ही संपन्न हुआ जिसमें डॉ. वर्मा के साथ पधारे मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि के भी साहित्यकार मित्र कार्यक्रम की सफलता से अत्यधिक प्रभावित और प्रसन्न हुए थे।
तत्पश्चात डॉ वर्मा वर्ष 2000 में मुझे राजनादगांव में जहां पर वह हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे वहां राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में आमंत्रित कर सम्मानित किया ।
मैं उनके आवास पर ही रुका तथा डॉ. वर्मा ने मूर्धन्य कवि समीक्षक गजानन माधव मुक्तिबोध (जन्म 13 नवंबर 1917  मृत्यु 11 सितंबर 1964 ) कृतियां – चांद का मुंह टेढ़ा , काठ का सपना तथा मुक्तिबोध रचनावली आदि का आवास जो दिग्विजय कॉलेज में ही था तथा डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी (जन्म 27 मई 18 94 मृत्यु 28 दिसंबर 1971) कृतियां – 4 अनूदित तथा 6 संपादित और एक  व्यंग संग्रह प्रकाशित ।
आपसे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अत्यधिक स्नेह रखते थे और उनकी रचनाओं को सरस्वती पत्रिका में भी प्रकाशित करते थे ।तथैव द्विवेदी जी ने इनके हाथों सरस्वती पत्रिका का संपादन भी सौंप दिया था जिसे उन्होंने कई वर्षों तक सरस्वती तथा छाया मासिक पत्रिका का कुशलतापूर्वक संपादन भी किया।
अंतिम समय वह अपने जन्म स्थान खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) आकर शिक्षण कार्य करते रहे उन्होंने भी राजनादगांव के इस कॉलेज में प्राध्यापक रहकर अपनी सेवाएं दी थी वह भी मुझे डॉ. वर्मा ने दिखाया तथा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय कराया।
इसी धरती के महान साहित्यकार डॉ. बल्देव प्रसाद मिश्र (जन्म 12 सितंबर 1898 मृत्यु 4 सितंबर 1975) कृतियां100 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है। जिनमें जीव विज्ञान ,कौशल किशोर राम राज्य, साकेत – संत , तुलसी दर्शन ,भारतीय संस्कृति, मानस में राम कथा, मानस माधुरी ,जीवन संगीत ,उदात्त संगीत आदि प्रमुख हैं। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1923 में राजा चक्रधर सिंह के बुलावे पर रायगढ़ आ गए वहां पर 17 वर्षों तक न्यायाधीश ,नायब दीवान और दीवान रहकर अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए ।उन्होंनेअपने 10- 11 वर्ष की आयु से ही कविता लिखनी प्रारंभ कर दिया था तथा वह भारत के ऐसे प्रथम शोधकर्ता के थे जिन्होंने अंग्रेजी शासनकाल में पहला हिंदी में अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत कर डी. लिट् की उपाधि 1939 में प्राप्त किया था।
ऐसी महान साहित्यकारों की पावन भूमि की पूरी चर्चा विस्तार से मेरी व डॉ. नरेश वर्मा जी की हुई तथैव दिग्विजय कॉलेज के समीप प्रसिद्ध भूलन बाग को त्रिवेणी परिसर के रूप में विकसित किया गया है जिसका वर्तमान में सौंदर्य देखने लायक है। इतना रमणीक स्थान प्रदेश में प्रमुख स्थान रखता है यह 2 तालाबों से गिरा हुआ भूखंड पृष्ठ भाग ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दर्शाने वाला मुक्तिबोध परिसर के रूप में स्थापित किया गया है।
जो माधव मुक्तिबोध व पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी तथा बलदेव प्रसाद मिश्र तीनों के महत्व को स्मरण कराता है जिसको जानकर मुझे आत्मानंद की अनुभूति हुई।
तदोपरांत डॉ. वर्मा जी और मैं पुनः वर्ष 2002 में दू.धा.म. स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय रायपुर(छत्तीसगढ़) में साहित्यिक समारोह में एक साथ रहे ।इस प्रकार उनका मेरा पारिवारिक संबंध हो गया और उनके घर भी तीन बार जाने का अवसर प्राप्त हुआ।
लगभग 18 वर्षों तक एक दूसरे से केवल दूरभाष वार्ता ही होती रही लेकिन आने – जाने का अवसर नहीं मिला ,उधर कुछ वर्षों के बाद डॉ. वर्मा राजनांद गांव से भाटापारा स्थानांतरण हो कर आ गए लेकिन उनके कई बार आमंत्रण के बाद भी मैं नहीं पहुंच सका।

डॉ. नरेश कुमार वर्मा के साथ : अविस्मरणीय पल

अचानक मेरे अभिन्न मित्र आनंद सिंघनपुरी ( छत्तीसगढ़) द्वारा 30 जनवरी 2021 को एक विशाल कार्यक्रम में मुझे विशिष्ट अतिथि के रुप में आमंत्रित किया गया। जिसमें छत्तीसगढ़ साहित्य परिवार व नई पीढ़ी की आवाज एवं रामदास अग्रवाल स्मृति साहित्य सम्मेलन व पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में पहुंचने के लिए था। जिस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विनय कुमार पाठक एवं राष्ट्रीय कवि डॉ. ब्रजेश सिंह वरिष्ठ साहित्यकार डॉ .विनोद कुमार वर्मा, केवल कृष्ण पाठक आदि सैकड़ों साहित्यकार शिक्षाविद् भी उपस्थित रहने की सूचना प्राप्त हुई , जो मेरे लिए बहुत प्रसन्नता का विषय था क्यों कि लंबे अंतराल के बाद डॉ. नरेश वर्मा जी से मिलने का सुनहरा अवसर भी था। इसलिए इस कार्यक्रम की सहज स्वीकृति देने की विवशता और अधिक थी।
27 जनवरी 2021 को मैं जैसे ही भाटापारा रेलवे स्टेशन उतरा तो मेरे एक मित्र कन्हैया साहू अमित अपनी बाइक लेकर मुझे रिसीव करने के लिए पहले से ही उपस्थित थे । हम दोनों एक राष्ट्रीय समारोह झांसी में 2 दिन साथ रहे थे और अमित जी डॉ. वर्मा जी के शिष्य भी थे ।
उनके साथ बाइक से मैं उनके आवास सायंकाल पहुंच गया ।और उनके पूरे परिवार से मिलते ही मेरी 2 प्रदेशों से चलकर आने की सारी थकान क्षणभर में सचमुच ही दूर हो गई।
उनकी धर्मपत्नी मीना वर्मा एवं सुपुत्र मयंक वर्मा तथा पुत्री सुप्रिया (मेघा ) के साथ 4 और घर में परिवार के सदस्यों की तरह बोलते, समझदार पक्षी तोता (मिट्ठू) आदि भी प्रसन्नता से ओतप्रोत दिखाई पड़े । कुछ ही देर बाद हम लोग डॉ. वर्मा जी के साथ स्वल्पाहार करने लगे।
डॉ.नरेश कुमार वर्मा को अपनी सद्य: प्रकाशित वर्ष 2020 की 2 पुस्तकें सुनहरी भोर की ओर (काव्य संग्रह )और अञ्जुरी भर प्यास लिये (गीत संग्रह )भेंट किया ।तभी मेघा और मयंक दोनों ने कहा आपकी अंकल जी सभी किताबें हमारे घर में सुरक्षित हैं उनको हम लोग पढ़ते हैं।मैंने कहा क्यों नहीं यह तोसाहित्यकार का घर है बेटा।अब तक मेरी 12 पुस्तकें प्रकाशित हैं जो उन्हें पहले ही भेंट कर चुका था ,उसी समय डॉ.वर्मा जी ने कहा नीरज जी इस वर्ष आपके साहित्य पर विश्वविद्यालय द्वारा शोध कार्य करवाएंगे । मैंने उन्हें इसके लिए कृतज्ञता ज्ञापित किया। यद्यपि ईश्वर को यह शायद मंजूर नहीं था इसीलिए उन्हें उसके पहले ही अपनी शरण में प्रभु ने ले लिया जिससे यह कार्य अब असंभव सा ही है…
कुछ ही देर बाद अंदर बरामदे में डॉ. वर्मा जी व उनकी पत्नी बच्चों के साथ घर पालतू तोतों से कुछ बातचीत किया वह प्यार और प्रसन्नता से अपने पंख खोलकर फड़फड़ा रहे थे । मैंने उनसे पूछा यह क्या कर रहे हैं तब उन्होंने बताया कि आपके आने की खुशी से यह ऐसा कर रहे हैं फिर हम पांचों लोग एक साथ कुछ फोटो उन तोतों के साथ भी खिंचवाई जो मेरे लिए यह पहला और सुखद अनुभव था वैसे तो बहुत घरों में तोते देखे हैं, लेकिन समय से उनकी ऐसी दिनचर्या जो डॉ. वर्मा जी की थी उनके परिवार की थी वैसे ही सुबह से रात्रि 9-10 बजे तक की दिनचर्या कभी नहीं देखी ।
प्रातः चाय नाश्ता फिर भोजन फिर खेलना, झूले में झूलना, टी.वी. 2 घंटे पक्षियों का ही (सीरियल) देख कर सबसे स्पष्ट बातचीत करना और फिर रात्रि भोजन के बाद विश्राम करना उनका बहुत अद्भुत और प्रशंसनीय था।
वर्मा जी के घर में मेहमान नवाजी में दोनों का प्यार पाकर मैं अपने को धन्य समझता हूं वह मेरे कंधों में बैठकर अपनी चोंच से मेरे गाल भी चूमकर अपना प्यार प्रदर्शित किया । मैं गदगद् हो गया वापस आने पर वह चित्र रायबरेली में हिंदी रचनाकार के माध्यम से तोते के साथ मेरा चित्र प्रकाशित भी किया गया था।
28 जनवरी 2021 को प्रातः डॉक्टर वर्मा जी के सुपुत्र मयंक जी ने मुझे अपनी कार से अपने घर से कन्हैया साहू अमित जी के घर ले गए ।क्यों कि उनके घर जाने का मेरा वादा शेष था कुछ ही देर वहां रुकने के बाद तीनों लोगों ने उनके आवास में फोटो खिंचवाया तथा मुझे रायपुर के लिए भाटापारा से ढेर सारी मीठी- मीठी यादें लेकर विदा कर दिया।
मैं नहीं जानता था कि यह मेरा परम मित्र विद्वान आदरणीय डॉ. नरेश कुमार वर्मा से मिलने का अंतिम अवसर ही था… जिनकी अब स्मृति के कुछ मात्र चित्र ही शेष हैं…

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Raebareli Nirala Smriti Sansthan Dalmau

डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज को पांच अलग-अलग संस्थाओं द्वारा भव्य समारोह में राष्ट्रीय गीतकार के रूप में उनकी प्रकाशित कृतियों पर सम्मानित किया गया।


Raebareli Nirala Smriti Sansthan Dalmau:रायबरेली निराला स्मृति संस्थान डलमऊ सहित 21 फरवरी 2021 रविवार को प्रयागराज माघ मेला में आयोजित काव्य रस परिवार द्वारा श्रेष्ठ काव्य सर्जक सम्मान तथा अवध साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य शिरोमणि सम्मान तारिका विचार मंच द्वारा साहित्य विभूति सम्मान एवं भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ द्वारा साहित्यकार अभिनंदन समारोह एवं कवि सम्मेलन ग्रंथ विमोचन के अवसर पर डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज को पांच अलग-अलग संस्थाओं द्वारा भव्य समारोह में राष्ट्रीय गीतकार के रूप में उनकी प्रकाशित कृतियों पर सम्मानित किया गया। उक्त अवसर पर डॉ नीरज सम्मानित करने वाली सभी संस्थाओं के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए कृतज्ञता ज्ञापित किया तथा मां सरस्वती की कृपा और आत्मीय जनों का स्नेह पूर्ण आशीर्वाद बताते हुए अपना एक मुक्तक कवियों की महत्ता बताते हुए प्रयाग कार्यक्रम में प्रस्तुत किया—

उजाला जमाने को देता है रवि अंधेरा दिनों से मिटाता है कवि।
सुनाकर कार्यक्रम को ऊंचाईयां प्रदान किया।

कार्यक्रम संयोजक सर्वश्री डॉ. भगवान प्रसाद उपाध्याय रहे समारोह अध्यक्ष अशोक कुमार स्नेही विशिष्ट अतिथि डॉ. बालकृष्ण पांडे ,श्याम नारायण श्रीवास्तव ,डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज डॉ. शंभुनाथ त्रिपाठी अंशुल ,डॉ कृष्ण कुमार चतुर्वेदी मैत्रेय,दिनेश प्रताप सिंह चित्रेश, रामप्यारे प्रजापति सुल्तानपुर, आनंद सिंघनपुरी( छत्तीसगढ़) जगदंबा प्रसाद शुक्ल तथा स्वामी कल्पनेश जी, योगेंद्र कुमार मिश्र विश्वबंधु रहे मुख्य अतिथि के रुप में ज्योतिषाचार्य डॉ. रामेश्वर प्रपन्नाचार्य शास्त्री जी महाराज रहे।
मुख्य रूप से कार्यक्रम में( म. प्र.)से पधारे प्रो. परमानंद तिवारी प्राचार्य तथा डॉ.कृष्णावतार त्रिपाठी राही भदोही ,जनकवि जय प्रकाश शर्मा प्रकाश ,राम लखन चौरसिया, रामनाथ प्रियदर्शी सुमन, राकेश मालवीय मुस्कान, जगदंबा प्रसाद शुक्ल, डॉ.सीताराम सिंह विश्वबंधु ,विष्णु दत्त मिश्र प्रसून ,डॉ .राजेंद्र शुक्ल, डॉ. वीरेंद्र कुसुमाकर ,रचना सक्सेना, अभिषेक केशरवानी, बालेंदु मिश्र सारंग, आभा मिश्रा, सतीश चंद्र मिश्र चित्रकूट ,आकाश प्रभाकर उत्तराखंड आदि प्रमुखरूप से रहे।

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डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज रायगढ़ छत्तीसगढ़ में सम्मानित.

डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज को रायगढ़ छत्तीसगढ़ में किया गया सम्मानित.

 
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रामदास अग्रवाल के स्मृति में सम्पन्न हुआ साहित्य सम्मेलन

तथा स्मृति अंक सहित दो पुस्तकों का हुआ विमोचन ।

रायगढ़ ( छत्तीसगढ़) में ‘नयी पीढ़ी की आवाज’ व छत्तीसगढ़ साहित्य परिवार द्वारा आयोजित साहित्य सम्मेलन में छत्तीसगढ़ के नामचीन साहित्यकारों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। साहित्य सम्मेलन में प्रख्यात समाज सेवी व साहित्य प्रेमी स्व. रामदास अग्रवाल द्वारा साहित्य के लिए किए गये कार्यों को साहित्यकारों ने याद करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि दी।
समारोह का आरंभ मा सरस्वती के तैलचित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से किया गया। उसके पश्चात उपस्थित साहित्यकारों व साहित्य प्रेमियों तथा रामदास परिवार द्वारा स्व. रामदास अग्रवाल को विनम्र श्रद्धांजलि दी गयी।
यह कार्यक्रम शिक्षाविद व छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक के मुख्य आतिथ्य और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विनोद कुमार वर्मा की अध्यक्षता तथा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रसिक किशोर सिंह ’नीरज’के विशिष्ट आतिथ्य में तथा केवल कृष्ण पाठक, राष्ट्रीय कवि डॉ. ब्रजेश सिंह की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर प्रो.विनय कुमार पाठक ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्यकारों को साहित्य सृजन के साथ-साथ सामाजिक कार्य करते रहना चाहिए। आज जिस विभूति की स्मृति में यह कार्यक्रम का आयोजन किया गया है, उनसे मैं कुछ समय पूर्व रामकथा के दौरान मिला था। उनके विचारों और कार्यों को मैं इस अवसर पर नमन करता हूं। साहित्यकार समाज को दिशा देने का कार्य करता है। इसीलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहते हैं। उन्होने साहित्यकारों से इसी तरह समाज को दिशा देने हेतु साहित्य सृजन करते रहने का भीआह्वान किया।
इस अवसर पर विमोचित पत्रिका नयी पीढ़ी की आवाज स्मृति अंक व आनन्द सिंघनपुरी की किताब ’दिल की आहट’ तथा बाल साहित्यकार शंभूलाल शर्मा ’वसंत’ के ’मैना के गउना’ के बारे में भी प्रकाश डाला।

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सम्मेलन में उपस्थित वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. के. के. तिवारी, डॉ .बृजेश सिंह, डॉ .रसिक किशोर सिंह नीरज (रायबरेली), गजलकार केवल कृष्ण पाठक, डॉ. विनोद कुमार वर्मा, शिव कुमार पांडेय, शम्भू लाल शर्मा ’वसंत’ ने रामदास अग्रवाल को श्रद्धांजलि देते हुए साहित्य पर वक्तव्य दिए। तथा डॉ.नीरज ने अपनी ग़ज़ल – ‘ गहराईयां नदी की किनारों से पूछिये’ सुनाकर समां बांध दिया।
रामदास द्रौपदी फाउंडेशन के चेयरमैन समाजसेवी सुनील रामदास ने कहा कि पूज्य बाबूजी द्वारा दिखाए गये रास्ते परचलकर हम सदैव साहित्य और समाज के कार्यों में सहयोगी बने रहेंगे।
उक्त कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार श्याम नारायण श्रीवास्तव ने किया।

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इस साहित्य सम्मेलन में स्थानीय साहित्यकारों में आशा मेहर, डॉ. डी. पी. साहू, सरला साहा, रुसेन कुमार, आनन्द कुमार केड़िया, ऋषि वर्मा, रमेश शर्मा, सुखदेव पटनायक, अरविंद सोनी, मनमोहन सिंह ठाकुर, राकेश नारायण बंजारे ने भी अपने विचार व्यक्त किये। शहर के नन्द बाग में आयोजित इस सम्मेलन में जय शंकर प्रसाद, तेजराम नायक प्रफुल्ल पटनायक, प्रदीप कुमार, रामरतन मिश्रा, धनेश्वरी देवांगन, प्रियंका गुप्ता, हरप्रसाद ढेंढे, पवन दिव्यांशु, राघवेंद्र सिंह, गीता उपाध्याय, प्रदीप उपाध्याय, सनत, हेमंत चावड़ा, डॉ. मणिकांत भट्ट, प्रशांत शर्मा व अन्य बहुत से साहित्यकार उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव पर नयी पीढ़ी की आवाज के ’स्मृति अंक’ में प्रकाशित रचनाकारों को भी रामदास द्रौपदी फाउन्डेशन द्वारा सम्मानित भी किया गया।
कार्यक्रम के अंत में सुशील रामदास अग्रवाल ने स्व. रामदास अग्रवाल के स्मृति में आयोजित सफल कार्यक्रम के लिए नयी पीढ़ी की आवाज परिवार व साहित्यकारों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
डॉ.नीरज को रायगढ़ छत्तीसगढ़ में सम्मानित किए जाने पर रायबरेली के साहित्यकारों में हर्ष और उल्लास व्याप्त है । जनपद के कर्मचारियों ने भी उन्हें बधाई दी।