पाश्चात्य संस्कृति का असर । Paashcaaty snskrti kaa asr।
पाश्चात्य संस्कृति का असर ऐसा पड़ा कि भारतीय समाज अपने आदर्शों और नैतिक मूल्य को भूल गया सीताराम चौहान ने अपनी कविता में इन्हीं बिंदुओं को अपनी कविता के माध्यम से पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है किसी भी देश की संस्कृति की पता लगाने के लिए उसके खानपान, संस्कृति, शिक्षा, रहन-सहन से देश के नागरिकों का दृष्टिकोण सामने आता है। पाश्चात्य संस्कृति का असर आज परिवार टूट रहे हैं बच्चों को गुरुकुल पद्धति वाली उच्च आदर्शों वाली शिक्षा नहीं मिल पा रही है आधुनिकता की दौड़ में हम अपने मूल को खोते जा रहे हैं अपनी मातृभाषा का सम्मान नागरिकों में नहीं रहा है।
पश्विमी — हवा ।
बाबा बच्चों से कहें , उठो प्रात गोपाल ।
बच्चो से भी क्या कहें , देख बड़ों के हाल ।।
पश्विम से चल कर हवा , जब पूरब में आई ।
संस्कृति की लुटिया डुबी , बे -शरमी है छाई ।।
मां बच्चों से कह रही , कहो माॅम और डैड ।
सूट – बूट और टाई संग , सिर पर रखो हैट ।
अंग्रेजी के सीख कर , अक्षर दो और चार ।
हिन्दी पर है हंस रहा , बिल्लू बीच बाज़ार ।।
भाषा – संस्कृति डस-रहा , मैकाले विष – नाग ।
नेता अंग्रेजी पढ़े , लगा रहे हैं आग ।।
हिन्दी – दिवस मना रहे , मंत्रालय में लोग ।
हिन्दी से अनभिज्ञ हैं , अंग्रेजी का रोग ।।
हिन्दी भाषा के बिना , सद्गति कैसे होय ।
अंग्रेजी की गठरिया , गर्दभ बन क्यों ढोय ।।
डाक सदा मिलती रही , आंधी हो बरसात ।
हरकारा अब मस्त है , डाक नदी में जात ।।
राष्ट्र – भावना सो गयी , हुआ अनैतिक तन्त्र ।
लूटो , जी भर लूट लो , राजनीति का मंत्र ।।
पश्विम से ही सीख लो , राष्ट्र – भक्ति के भाव ।
समय – नियोजन से बढे , प्रगति और सद – भाव ।।
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