ha mera desh| हा-मेरा देश/सीताराम चौहान पथिक
ha mera desh : सीताराम चौहान पथिक की रचना हा-मेरा देश वर्तमान स्थिति हिंदुस्तान की दर्शाता है कि जहां एक रोटी के लिए बचपन श्रम करने के लिए मजबूर है लोग अभी भी भूखे मर रहे है गरीबी का आलम यह है कि तन पर लपेटने के लिए कपड़ा नहीं है मायूसी में किसान और सैनिक खुदखुशी करने पर मजबूर हैं लेखक का सन्देश साफ़ है कि देश में खुशहाली हो अमीर और गरीब में मतभेद न हो हर व्यक्ति को समान्य अवसर मिले प्रस्तुत है रचना ।
हा — मेरा देश ।
चेहरे पर मासूमियत, मजबूरी की छाप ,
मुरझाया बचपन चला- बूढ़ी दादी के साथ,
कैसे गुजरेगा ये दिन- कैसे गुजरेगी रात ,
फ़िक्र यही , बस किस तरह बुझे पेट की आग।
हाय — मेरे देश की यह कैसी तक़दीर ,
भूखे मरते इक तरफ-नोटो में तुले अमीर ,
ऐसा कैसे हो गया, हाय- गांधी का देश ॽ
गांधी के बंदर सभी , हंसते बेच ज़मीर ।
देख ग़रीबी देश की , बापू जी गये पसीज ,
किया अलविदा सूट को- लंगोटी पर रीझ ,
बापू बंदर आपके– बिगड़ गये है तीन ,
तुम्ही सुधारों अब इन्हें – सीखें ज़रा तमीज ।
मायूसी में जी रहा
धरती पुत्र किसान ,
सरहद पर है जूझता-
मन से दुखी जवान ,
किसान और जवान गर,
करें खुदकुशी हाय ,
रहनुमाओं — बुनियाद पर
थोड़ा सा दो ध्यान ।
ना तोलो जात ग़रीब की
इंसानी फ़र्ज़ निभाओ ,
हे राजनीति के जयचंदो ,
दामन पाकीज बनाओ ,
घुन देश- भक्ति को लगा
तरसती भारत माता ,
दुश्मन के सिर पर चढ़ो , मौत बन जाओ ।
यह देश शूरवीरों का है–
घिघियाने की भाषा छोड़ो ,
दुश्मन ललकार रहा घर में ,
दोनों बाजू उसके तोड़ो ,
राणा प्रताप के भामाशाह ,
आगे बढ़ कर आहुतियां दो ,
जो बिखर गई कड़ियां उनको,
दानशबंदी से फिर जोड़ों ।
कोई भूखा- नंगा ना रहे ,
इंसाफ और खुशहाली हो ,
बुढ़िया दादी का हाथ पकड़ ,
फिर से ना कोई सवाली हो ,
हो ऐसा हिन्दुस्तान मेरा
हर देश-भक्त भारतवासी ,
ध्वज पथिक तिरंगा फहराये ,
ना कहीं कोई बदहाली हो ।।
सीताराम चौहान पथिक
दिल्ली
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