maa par kavita in hindi-माता/प्रेमलता शर्मा

हिंदी की वरिष्ठ लेखिका प्रेमलता शर्मा की रचना  maa par kavita in hindi -माता  हिंदी  रचनाकार  के  पाठको के  सामने  प्रस्तुत है –

माता


कविता का नाम है माता का मान
इस दुनिया में सृजन करता की
सबसे सुंदर रचना माता है
माता के ही चरणों में

सारा ब्रह्मांड समाया है
मां जैसा निश्चल प्रेम कहां
मां के आंचल सी छांव कहां
हृदय जब भी व्यथित होता है
मां शब्द ही अधरों पर आता है
अपना अस्तित्व मिटा कर

माता हमको जीवन देती है
उसके ह्रदय से कभी आह ना निकले

ऐसा अनर्थ ना करना है
हर मनुष्य का माता के प्रति

कर्तव्य यही बस बनता है
इस संसार का हर सुख वैभव
माता के चरणों में अर्पण करना है
एक बात हमेशा दिल में गांठ

बांधकर रखना है
उसके दिल को ठेस न पहुंचे

वरना ईश्वर भी रो पड़ता है

maa-par-kavita-hindiप्रेमलता शर्मा

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new year poem /नव- वर्ष से अपेक्षाएं ।

नववर्ष २०२१ पर हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार सीताराम चौहान पथिक की नववर्ष पर रचना नव- वर्ष से अपेक्षाएं(new year poem ) विश्व के हिंदी भाषी लोगो के  लिए प्रस्तुत है । 

नव- वर्ष से अपेक्षाएं ।


नव- वर्ष की स्वर्णिम प्रभा ,

जीवन को सुख- समॄद्धि दे ।

हे     ईश ,   मेरे   देश   के  ,

स्वाभिमान को अभिवॄद्धि दे ।

 

देश    का  हर  नागरिक ,

सच्चरित्र   निष्ठावान  हो ।

धर्म और संस्कृति का रक्षक ,

सद्गुणों   की  खान   हो   ।

 

सीमाओं  पर  दुश्मन  पड़ोसी ,

खेल   खूनी  खेलता   है   ।

गर्दन   पकड़   मरोड़     दो ,

हर बात में जो  ऐंठता   है  ।

 

नव – वर्ष  में  सेना  प्रबल  ,

दे  ईंट  का  पत्थर  जवाब ।

चीन – पाकिस्तान   दोनों  ,

छोड़  दें  बिल्ली के ख्वाब।

 

शिक्षा  सुसंस्कृति  में  युवा ,

स्थापित  करें नव कीर्तिमान।

भारत    बने पुनः विश्वगुरु,

हो शंख ध्वनि से कीर्ति गान।

 

क्यों अन्न – दाता  देश का  ,

अधिकार हित पथ पर पड़ा ॽ

गणतंत्र  उसका  ऋणी  है  ,

माटी  का  वह  हीरा  जड़ा  ।

 

नव वर्ष कॄषक- श्रमिक  के ,

सौभाग्य  का नव -वर्ष  हो  ।

फूले- फले  किसान  और  ,

खलिहान अन्न  समॄद्ध  हो ।

 

नव -वर्ष रोगों से रहित  हो ,

स्वस्थ  नर – नारी  सभी  ।

प्रगति  का पहिया चले जब ,

लौटें  पथिक खुशियां सभी।

new-year-poem

सीताराम चौहान पथिक

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video hindi story – वीडियो /संतोष कुमार विश्वकर्मा

मेरे बचपन की यादें”से संकलित कहानी

(video hindi story)

वीडियो”

पूरे गांव में हल्ला मच गया कि ठाकुर साहब की बेटी की शादी में वीडियो लगेगा, और पूरा गांव क्या,आसपास के दो चार गांव में   यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई।
बूढ़े, बच्चे, जवान सब अपना बोरिया बिस्तरा लेकर वीडियो देखने को उमड़ पड़े।
घेरर्राउ काका ने बताया कि वीडियो बारातियों के तंबू के सामने लगेगा, आखिर बाराती है उनका सम्मान पहले किया जाएगा, सो वीडियो देखने वालों की भीड़ बारातियो के तंबू के आसपास मंडराने लगी।
उस समय किसी के यहाँ शादी विवाह या अन्य किसी समारोह में वीडियो लगना बहुत अच्छा इंतजाम, और प्रतिष्ठा का विषय था।
बारातियों में कुछ लोग जो “बसंती”का आलिंगन कर चुके थे वो कुछ ज्यादा ही आतुर हो रहे थे और बीच बीच मे शोले फ़िल्म के धर्मेंद्र बन रहे थे और हंगामे का वातावरण बनाने में भरपूर सहयोग कर रहे थे।
तभी अचानक लुकमान ने पूछा,” कौन कौन पिक्चर आया है”।ये भी एक चिंता का विषय था,यदि दो कैसेट आयी है,तो मजा पचास प्रतिशत तुरंत कम हो जाता था ,और अगर तीन कैसेट आयी है, तो बढ़िया और यदि चार, तो सोने पे सुहागा।
तभी सिकंदर भाई ने कहा, मैं पता लगा के आता हूं कौन कौन सी फिलिम,और कितनी कैसेट आयी है।
जो वीडियो चलाने वाला आया था उसका तो अलग ही जलवा और भोकाल था ,गांव के लड़के उसे भरपूर से ज्यादा सम्मान दे रहे थे।मेज पर टीवी सेट लगाते हुए वो अपने आप को किसी हीरो से कम नही समझ रहा था।
लुकमान ने एक बार उससे फ़िल्म के बारे में पूछा तो उसने लुकमान को डांटकर भगा भी दिया था।
आखिर सिकंदर भाई के “आशिकी”गुटके ने कमाल दिखाया और वीडियो चलाने वाले ने उनको बताया तीन कैसेट आयी है, मिथुन, अमिताभ बच्चन और सनी देओल की ,इतना सुनते ही दर्शकों की टोली खुशी से झूम पड़ी। क्या क्रेज था उस टाइम मिथुन का, बहुत लोकप्रिय थे।

उनका बोला डायलॉग,”अबे ओय”  “कोई शक” और “तेरी जात का बैदा मारुं” आज भी बहुत प्रसिद्ध है और आवारा टाइप के लड़कों के मुंह से आज भी सुनाई पड़ जाता है।
खैर तभी अचानक हलचल तेज हो जाती है और पता चलता है कि वीडियो चालू होने वाला है, वीडियो वाले ने जैसे ही “श्री राम होंडा” का पोर्टेबल जनरेटर स्टार्ट किया, दर्शकों के दिलों की धड़कने भी उसी रफ्तार से तेज हो गयी और फिर लगी पहली कैसेट,मिथुन की “दाता”दर्शको में घोर आंनद की प्राप्ति, किसी मारधाड़ वाले सीन पर बीच बीच में “मार सारे का” भी सुनाई पड़ रहा था।
गंगा जमुना सरस्वती फ़िल्म में अमिताभ बच्चन जब मगरमच्छ को अपनी पीठ पर लादकर लाये और हंसराज की जो सुताई की ,मजा आ गया।
तभी अचानक जनरेटर घरघरा के बंद हो गया चारों तरफ सन्नाटा, क्या हुआ ,क्या हो गया, पता चला कि जनरेटर में पेट्रोल ही खत्म हो गया है,सभी दर्शको का दिल बैठ गया।
ठाकुर काका जिन की बेटी की शादी थी वो भी फिलिम का आनंद ले रहे थे, वीडियो चलाने वाले को बिगड़ गए बोले एक पैसा नही दूँगा ।वीडियो चलाने वाले की घोर बेज्जती हुई ,सारा हिरोपना निकल गया।
एलान हुआ कि सब अपने घर जाओ अब फिलिम नही चलेगी,तभी कुछ लड़कों ने कहा फौजी काका के “हीरो मैजेस्टिक”(विक्की)से पेट्रोल मिल सकता है और फौरन से पेश्तर, चार लड़के फौजी काका के घर रवाना हो गए।
रात के दो बजे के आसपास फौजी काका ने आने की वजह पूछी तो लड़को ने बताया कि वीडियो चल रहा था जनरेटर में पेट्रोल खत्म हो गया है आपकी बिक्की से पेट्रोल चाहिए ।
इतना सुनते ही फौजी काका आगबबूला हो गए और एक हजार गाली दी और बोले, चले जाओ हरगिज नही दूंगा।
लेकिन फिलिम देखने के जुनून के आगे ये अपमान कुछ भी ना था आखिर पेट्रोल लेकर ही लौटे ,ये बात अलग है कि फौजी काका ने पेट्रोल का दाम दुगना वसूल किया।
एक बार फिर से वीडियो चालू हुआ और फिर लगी “विश्वात्मा”   “सात समुंदर पार मै तेरे पीछे पीछे आ गई” बहुत  लोकप्रिय हुआ और आज भी उसका कोई तोड़ नही।।

मेरे बचपन की यादें”

आप में से बहुत लोगो को शायद ये याद होगा, बहुत लोग भूल भी गए होंगे, थोड़ा बहुत मैं लिखता हूं सोचा आप सबको याद दिला दूं, थोड़ी आपके चेहरे पे मुस्कान ला दूं।
video -hindi -story
संतोष कुमार विश्वकर्मा के संकलन का अन्य भाग पढ़े :

Short poem on republic day-मेरा वतन/पुष्पा श्रीवास्तव शैली।

रायबरेली की प्रसिद्ध लेखिका पुष्पा श्रीवास्तव शैली का इस गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र को समर्पित रचना मेरा वतन Short poem on republic day,इस वर्ष हम ७३ गणतंत्र दिवस हिंदुस्तान मे मनाएँगे। हिंदी रचनाकार के माध्यम से हिंदी भाषी लोगों के लिए  प्रस्तुत है रचना  –

मेरा वतन।

गीत गाकर वतन का धरा से गये,
बांकुरों को हृदय से नमन कीजिये।
छोड़िए बात नफरत की अब दोस्तों,
बैर को आग में अब दफन कीजिये।

देखना घर उजड़ने ना पाये कोई,
आंख से आँसू अब ना गिराये कोई।
बुझते चेहरे पड़े स्याह थे अब तलक,
देखना फिर ना उनको जलाये कोई।

वादियां हँस के फिर मुकुराने लगे।
सोचिये दिल से अब वो जतन कीजिये।

राखियाँ जाने कितनी वहाँ सो गयीं,
रंग सिंदूर और चूड़ियाँ खो गयीं।
माँ ने ममता लुटा दी न रोयी तनिक,
आँख लेकिन पिता की धुआँ हो गयी।

जल गयी अनगिनत बालपन की हँसी,
कैसे बच पाएंगी अब मनन कीजिए।

थक ना जाना अभी दौड़ना है तुम्हे,
मुँह नदी का अभी मोड़ना है तुम्हें।
यह प्रबल वेग है पाँव उखड़ेंगे तो,
किंतु सागर से अब जोड़ना है तुम्हे।

खिलखिलायेगा अब तो हमारा चमन,
हिन्द जय हिंद शेरे वतन कीजिये।।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली

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baba kalpnesh ke geet- कलम मेरी गही माता/बाबा कल्पनेश

कलम मेरी गही माता 

(baba kalpnesh ke geet)

कलम मेरी गहो माता सदा उर नेह की दाता।

चले यह नित्य करुणा पथ यही मुझको सदा भाता।।

भरम यह तोड़ती जग का उठाए प्रेम का छाता।

जगाए राष्ट्र भारत को बढ़ाए आत्म का नाता।।

निबलता देश की टूटे बनें सब वीर व्रत धारी।

चलें सब साथ होकर के सजे यह राष्ट्र फुलवारी।।

महक आकाश तक फैले यशी हों साथ नर-नारी।

मनुजता मूल्य पाए निज हटे जो मोह भ्रम भारी।।

सभी का श्रम बने सार्थक सभी को मूल्य मिल पाए।

नहीं  हों दीन भारत में कलम यह गीत लिख गाए।।

सुने नित विश्व सारा ही सभी को गीत यह भाए।

भरत का देश जागा है समय शुभ लौट कर आए।।

पुरातन शौर्य वह जागे भरत जब शेर से खेला।

वही यह राष्ट्र प्यारा है बनाकर विश्व को चेला।।

भरा करता रहा सब में मनुज के भाव का रेला।

लगे संगम किनारे जो अभी भी देख लें  मेला।।

नहीं कोई करे ऐसा यहाँ निंदित पड़े होना।

जगत अपमान दे भारी मिला जो मान हो खोना।।

जगे फिर दीनता हिय में पड़े एकांत में रोना।

लुटेरे लूट लें सारा हमारी निधि खरा सोना।।

जगे यह राष्ट्र-राष्ट्री सब सभी सम्पन्नता  पाएं।

सभी जन राष्ट्र सेवा में श्रमिक सा गीत  रच गाएं।।

निकल निज देश के हित में स्वयं अवदान ले आएं।

सदा हर जीव का मंगल रचें कवि गीत-कविताएं।।


२. हे राम

(baba kalpnesh ke geet )


 

हे राम जैसे आप हैं, यह जग कहाँ-कब मानता।

निज कल्पना के रूप में, कल्पित तुम्हे  है तानता।।

व्यवहार कर कुछ और ही,प्रवचन करे कुछ और ही।

जो वेद का व्याख्यान है, इस जगत लागे बौर ही।।

यह वेद को पढ़ता भले,पर कामना रत नित्य ही।

निज मापनी आकार में, निज को कहे आदित्य ही।।

यह ज्ञान का भंडार है, उर में सदा ही ठानता।

हे राम जैसे आप हैं, यह जग कहाँ है मानता।।

सम्मान दे माता-पिता,आचरण वैसा अब नहीं।

दुत्कार दे बैठे रहो,आदर नही कोई कहीं।।

आदेश कैसे मानता,ज्ञानी हुआ हर पूत है।

हनुमान को लड्डू खिला,बनता स्वयं हरि दूत है।।

यह देखता टीवी भले,निज बाप कब पहचानता।

हे राम जैसे आप हैं, यह जग कहाँ है मानता।।

ओंकार अथवा राम ही,जपता भले कर माल ले।

आशय नहीं पर मानता,गुरुदेव वाणी भाल ले।।

चंदन भले माला भले,आजान का स्वर तान ले।

कर्तव्य अपना जान ले,जो शास्त्र सम्मति मान ले।।

गुरु वाग केवल बोलता, पर कुछ कहाँ  है जानता।

हे राम जैसे आप हैं, यह जग कहाँ-कब मानता।।


  ३.  साध्य


कविता हमारी साध्य हो,साधन करें जो आज हो।

साधन हमारी भावना,हमको उसी की लाज हो।।

संसार सारा निज सखे,आओ इसे हम प्यार दें।

बोले सभी यह संत हैं, जिसपर हमें अति नाज हो।।

सब कुछ यहाँ परमात्मा, कुछ भिन्न जानो है नहीं। 

बस एक ही यह ज्ञान है,इस ज्ञान से ही काज हो।।

जो मंत्र गुरुवर से मिला,उसको हृदय में धार लें।

तब धन्य जीवन धन्य हो, निज शीश पर जग ताज हो।।

जो योग है वह जान लें, निज आत्म को विस्तार दें।

पाकर जिसे हर आदमी, मेटे उसे जो खाज हो।।

यह जीव-जीवन क्यों मिला,यह प्रश्न उत्तर खोज लें।

इस जग चराचर क्या भरा,हम जान लें जो राज हो।।

आओ लिखें वह गीतिका, जिसमें सरित सी धार हो।

हिय की कलुषता सब बहे,ऐसा सरस अंदाज हो।।

baba-kalpnesh-ke-geet

बाबा कल्पनेश

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Adhurapan-अधूरापन/कल्पना अवस्थी

अधूरापन

Adhurapan


Adhurapan-kalpana-awasthi
कल्पना अवस्थी

राधा कृष्ण के प्रेम की अधूरी कहानी क्यों हैं
कहीं मुस्कुराहट की चमक तो

कहीं आंखों में पानी क्यों है।

खुशियों में वक्त इतनी जल्दी गुजरता क्यों है
और दुख के पलों में आकर ठहरता क्यों है
कभी मिल जाता है रास्ते में

कोई अंजान अपना बनकर
कभी कोई अपना उस

रास्ते पर बिछड़ता क्यों है
बिखरी -बिखरी सी लगी जिंदगानी क्यों है
राधा कृष्ण के प्रेम की अधूरी कहानी क्यों है।

घूम रहा है सुकून की तलाश में हर कोई
फिर वो इतना भी बेसकून क्यों है

मौत ही सच है जीवन का तो

फिर जीने का जुनून क्यों है

एक ख्वाहिश पूरी होने के बाद

दूसरी तैयार क्यों है
एक और चैन है मन में तो

दूसरी और मन बेकरार क्यों है
गाड़ियों के शोर मे उलझी ,

जीवन की रफ्तार क्यों है
सामने फूलों की माला ,

पीठ पीछे तलवार क्यों है।

एक- एक चीज जोड़कर तैयार करता है

इंसान अपने सपनों का महल
‘कल्पना’ फिर वही चीज,

इस दुनिया में रह जाती क्यों है
राधा कृष्ण के प्रेम की अधूरी कहानी क्यों है
कहीं मुस्कुराहट की चमक तो

कहीं आंखों में पानी क्यों है।

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हमें विश्वास है कि हमारे लेखक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस वरिष्ठ सम्मानित लेखिका  का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।लेखिका  की बिना आज्ञा के रचना को पुनः प्रकाशित’ करना क़ानूनी अपराध है |आपकी रचनात्मकता को हिंदीरचनाकार देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है|whatsapp के माद्यम से रचना भेजने के लिए 91 94540 02444,  संपर्क कर कर सकते है।

Child labour poem in hindi-भूख से छटपटाते हुए नौनिहाल

Child labour poem in hindi

भूख से छटपटाते हुए नौनिहाल


यह प्रश्न
अंतहीन है
बार-बार
असंख्य बार
अनगिनत बार
अनंत बार
उत्तर की अपेक्षा में खड़ा है
न होली न दिवाली
न छठ न रामनवमी
न ईद न संक्रांति
असंख्य बिलखते बच्चे
भूख से छटपटाते हुए
नौनिहाल
मां के कलेजे से चिपके हुए
रोटी और प्याज की भी जुगत
न कर पाए पिता की
असहृय वेदना की आंखों में
शेष टिकी हुई अंतिम
आशाओं से अब भी
निवालों के लिए
अपलक निहार रहे हैं
महानगरों की मरती
संवेदनाओं की तराजू पर
ग़रीब गर्भवती गांव की महिलाएं
रोटी के टुकड़े के लिए
जोखी जा रही हैं
उधर पूंजीवाद के प्रतीक
अपनी- अपनी प्रिया के साथ
रनिवास में निद्रारत हैं
जिंदा रहने की
आखिरी उम्मीद लिए
यह सर्वहारा वर्ग
स्वयं बैल बनकर
अपनी-अपनी गृहस्थी
उस पर लादे
हिंदुस्तान की दूरियों को
अपने हौसले
एवं पुरुषार्थ की
बांहों में समेटे
राजपथ से गांव की
ओर जा रहा है

Child-labour-poem-in-hindi
डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र 

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Jigyasa-जिज्ञासा/सीताराम चौहान पथिक

Jigyasa

जिज्ञासा


कब जीवन की संध्या होगी ॽ
कब जीवन का नव – प्रभात ।
यह अनन्त का गूढ़ प्रश्न है ,
समाधान अब तक अज्ञात ।

चेतन तत्व आत्मा जिसका ,
आदि- ॳत ना ओर ना छोर।
तन विशाल से उड़ा गगन में ,
हुआ विलीन विराट की ओर।

तन्त्र – मंत्र आध्यात्म सभी ,
मानव के आत्म-तत्व पर मौन
कैसी है रहस्यमयी आत्मा ॽ
मॄत्यु बाद ॽ सब साधे मौन ।

कैसा है वह अमर तत्व ॽ
गीता ने परम ब्रह्म बतलाया।
वहीं तत्व मानव में – यद्यपि ,
मानव अमर नहीं बन पाया।

तन निर्जीव — तत्व जब छूटा ,
विज्ञान दीखता है निरुपाय ।
कोई यन्त्र श्वास लौटा दे ,
वैज्ञानिक कर रहे उपाय ।

विज्ञान – यन्त्र कोई ना बना,
जो प्राण – तत्व को लौटा दे।
तन में तन की अद्भुत रचना ,
कैसे सम्भव ॽ यह समझा दे ।

ऐसे अबूझ अनगिनत प्रश्न ,
विज्ञान – शोध चल रही मगर।
कुछ अधर बीच कुछ अनसुलझे ,
जिज्ञासाओं की कठिन डगर।

Jigyasa 
सीताराम चौहान पथिक

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nahi badlega kuch-नही बदलेगा कुछ/सम्पूर्णानंद मिश्र

nahi badlega kuch

नहीं ‌बदलेगा कुछ


1 जनवरी 2021 को
नहीं ‌बदलेगा कुछ
कुछ ‌नया‌‌ नहीं ‌होगा
काम ‌पर जाएगा सर्वहारा वर्ग
गिट्टियां तोड़ कर ‌आएगा
अट्टालिकाओं के निर्माण हेतु
श्रमसीकर ‌बेचने के बाद
शीतलहर में ठिठुरते हुए
अपनी मुनिया के लिए
भीड़ के धक्के खाते हुए
घर लौटकर आएगा
उसकी मुंहफटी झोली में
आधा किलो ‌आटा,
एक पाव दाल
कुछ हरी मिर्च दो‌ चार आलू
और २५ ग्राम सरसों के तेल ‌से
ज्यादा कुछ नहीं होगा
उम्मीदों में ही
इन लोगों की
जिंदगी कट जायेगी
ऐसे तथाकथित
लोगों की कई पीढ़ी
इसी टकटकी में कि
नया साल आएगा
कुछ नया होगा
कुछ अच्छा हो जाएगा
कितने और नए साल
रक्त प्रवाहित
करते-करते
जांगर बेचते हुए
यमराज की हवेली‌ के ‌सामने
अपनी ‌तार-तार
चिथरी‌ कथरी बिछाएगा !
या यूं कहिए कि
नहीं दिखाई ‌देता है
स्वप्न अब इन्हें रात में सोते समय
अगर कुछ दिखाई ‌देता है ‌
तो अपने मालिक ‌की‌
केवल रक्तिम आंखें‌
भूख से छटपटाती मुनिया ‌का
धूल ‌धूसरित चेहरा
नहीं कुछ भी इसके अलावा
नहीं बदलेगा‌ कुछ 1जनवरी को
नया नहीं होगा कुछ भी !

Nahi-badlega-kuch
डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र

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Antim yatra- अंतिम यात्रा/डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र

अंतिम यात्रा

Antim yatra


Antim- yatra
डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र

नहीं आऊंगा ‌प्रिये मैं लौटकर
धाम ‌पर जा रहा हूं ऐसे
नहीं लौटता जहां से कभी कोई
मत करना इंतजार तुम मेरा
मुझे मिली थी
इतनी ही मोहलत
मंझधार में ‌छोड़ा है
माना कि तुम्हें मैंने
जिंदगी की ज़द्दोजहद ने
इस‌‌ मुकाम पर ‌तोड़ा है
किसी प्रिय को मेरा
इंतजार ‌है वहां
प्रबल विश्वास है इतना
मेरे ‌बिना‌ भी तुम्हारी
शेष जिंदगी ‌कट जायेगी
दुःख ‌की यामिनी
छंट‌ जायेगी
एक रीतापन ‌
जरूर आ गया है
तुम्हारे जीवन में
लेकिन प्रेम‌ की बुनियाद
पर स्मृतियों का
एक‌ भव्य
महल मैंने खड़ा
कर दिया है
तुम्हारी ‌आस्था‌ की‌
‌ जड़ों
को कोई काट न‌‌ सके
धैर्य ‌की शाखाओं को
कोई ‌छांट न‌ सके
राम और श्याम
दोनों की ‌जीवंत
प्रतिमा ‌तुम्हारे हृदय
में ‌स्थापित कर दी है मैंने
योग और वियोग
जन्म और मृत्यु
लाभ और हानि
सुख और दु:ख
निरंतर चलता रहता है
कर्मों का अपने
फल फलित होता रहता है
कभी ‌कमजोर मत होना
कभी दुःखी मत होना ‌
जब‌ भी अतीत तुम्हें रुलायेगा
तुम्हारे सामने तुम्हारा ‌यह प्रिय
वर्तमान बनकर ज़रूरआएगा !

डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874

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