nahi badlega kuch-नही बदलेगा कुछ/सम्पूर्णानंद मिश्र
nahi badlega kuch
नहीं बदलेगा कुछ
1 जनवरी 2021 को
नहीं बदलेगा कुछ
कुछ नया नहीं होगा
काम पर जाएगा सर्वहारा वर्ग
गिट्टियां तोड़ कर आएगा
अट्टालिकाओं के निर्माण हेतु
श्रमसीकर बेचने के बाद
शीतलहर में ठिठुरते हुए
अपनी मुनिया के लिए
भीड़ के धक्के खाते हुए
घर लौटकर आएगा
उसकी मुंहफटी झोली में
आधा किलो आटा,
एक पाव दाल
कुछ हरी मिर्च दो चार आलू
और २५ ग्राम सरसों के तेल से
ज्यादा कुछ नहीं होगा
उम्मीदों में ही
इन लोगों की
जिंदगी कट जायेगी
ऐसे तथाकथित
लोगों की कई पीढ़ी
इसी टकटकी में कि
नया साल आएगा
कुछ नया होगा
कुछ अच्छा हो जाएगा
कितने और नए साल
रक्त प्रवाहित
करते-करते
जांगर बेचते हुए
यमराज की हवेली के सामने
अपनी तार-तार
चिथरी कथरी बिछाएगा !
या यूं कहिए कि
नहीं दिखाई देता है
स्वप्न अब इन्हें रात में सोते समय
अगर कुछ दिखाई देता है
तो अपने मालिक की
केवल रक्तिम आंखें
भूख से छटपटाती मुनिया का
धूल धूसरित चेहरा
नहीं कुछ भी इसके अलावा
नहीं बदलेगा कुछ 1जनवरी को
नया नहीं होगा कुछ भी !
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