vivashata ek kavita/कल्पना अवस्थी
हिंदीरचनाकर की प्रतिभाशाली लेखिका कल्पना अवस्थी की रचना vivashata ek kavita /विवशता ये कविता उन्होंने अपने भाई को समर्पित की है जो अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी यादें और उनके उत्कृष्ट कार्य सभी की यादों में रहेंगे | हिंदीरचनाकर परिवार की तरफ से उनके भाई के लिए विन्रम श्रद्दांजलि और ईश्वर उनको शक्ति दे कि वह भाई के अधूरे कार्यो को पूरा करे |
विवशता एक कविता /कल्पना अवस्थी
vivashata ek kavita /विवशता
तुझे भुलाना ये जिंदगी आसान नहीं है
मैं जिंदा तो हूं, पर मुझ में जान नहीं है
कभी सोचा भी ना था कि
जिंदगी का यह फैसला होगा
जिंदा रहूंगी मैं
तेरी मौत का सिलसिला होगा
भूलने की कोशिश इसलिए की थी,
कि सब खुश रहें तेरे साथ
कभी सोचा इक भी बार कि
क्या होगा तेरे बाद?
माना कि तेरा दिल तोड़ा था मैंने
अधूरे रास्ते में तुझे छोड़ा था मैंने
पर इतना कौन रूठ जाता है
अधूरे सफर में साथ छूट जाता है
जिंदगी दांव पर लग गई
कोई इम्तिहान नहीं है
मैं जिंदा तो हूं पर मुझ में जान नहीं है
जहां तुम हो वही बुला लो मुझे
मैं जी ना पाऊं ऐसी ना सजा दो मुझे
ऐसे नाराज होकर जाता कौन है?
अपनी जिंदगी को भुलाता कौन है?
मां- पापा कैसे जिएंगे सोचा होता,
तुम बिन भैया अकेले हो गए,
खुद को रोका होता
वह रोते हैं, कि वह मेरा सहारा था
मैं नहीं वो बहुत प्यारा था
मुझे तो इतना प्यार दिया तुमने कि
कोई नहीं दे सकता
तुम्हें ले गया वह तो
मेरी जान क्यों नहीं ले सकता
तुम्हें ले गया वो तो
मेरी जान क्यों नहीं ले सकता
गए थे तो यादें भी ले जाते
यह मुझे मार देंगी
ना तुम्हारी तरह गले लगाएंगे
न तुम जैसा प्यार देंगी
अब मेरी भी जिंदगी, वीरान नजर आती है
कुछ बचा नहीं इसमें, शमशान नजर आती है
अब कुछ कर गुजरने का अरमान नहीं है
मैं ज़िंदा तो हूं पर मुझमें जान नहीं है
अब मेरी भी ज्यादा दिन की कहानी नहीं है
क्योंकि तेरे सिवा कोई चीज
याद अपनी नहीं है
लौट आओ ना किसी बहाने से
अच्छा नहीं लगता कुछ तुम्हारे दूर जाने से
इंतजार रहेगा कि किसी रूप में
मेरे पास आओगे
अपनी लाडो को ऐसे ना भूल जाओगे
तेरे बिना कल्पना का
ये सफर आसान नहीं है
मैं जिंदा तो हूं पर मुझमें जान नहीं है|
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