Pratibha Indu ki kavita-कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें देकर

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें देकर

(Pratibha indu ki kavita)


कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें देकर

ये जाता साल पुराना है ।

नव उमंग नव उत्साह संजोए

फिर आता वर्ष सुहाना है ।।

ऊपर हमको उठना है

उत्साह हमारा न गिरने पाए ,

लिख दें ऐसा गीत जो

सारी दुनिया ही गा जाए ।

भूलकर बीते क्षणों को नया

मुकाम हमें पाना है ।

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें देकर

ये जाता साल पुराना है ।

नव उमंग नव उत्साह संजोए

फिर आता वर्ष सुहाना है ।।

है बीता जो अशुभ उसे

रखना नहीं है याद हमें ,

 

नव आस लिए नव भाव लिए

करनी है फरियाद हमें।

 

प्रकाशित हो सबका जीवन

हमें ऐसी लौ को जगाना है ।

 

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें देकर

ये जाता साल पुराना है ।

नव उमंग नव उत्साह संजोए

फिर आता वर्ष सुहाना है ।।

स्वस्थ रहें सब सुखी रहें

ऐसी हो अभिलाषाएं,

 

पूरी हों सबकी फिर

उम्मीदों की आशाएं।

 

ले हमको संकल्प अडिग

ये नव वर्ष मनाना है ।

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें

देकर ये जाता साल पुराना है।

 

नव उमंग नव उत्साह संजोए

फिर आता वर्ष सुहाना है ।

प्रतिभा इन्दु
भिवाडी़, राजस्थान

Navvrsh geet/मैं तो वह गुजरा जमाना ढूढ़ती हूं।

मैं तो वह गुजरा जमाना ढूढ़ती हूं।

(Navvrsh geet)


आ गया नववर्ष है लेकिन प्रिए,
मैं तो वह गुजरा जमाना ढूंढ़ती हूं।

तुलसी के चौरे पर मां का सर झुकाना,
और माटी का मुझे चंदन लगाना।

बुदबुदाते होंठ लेकिन स्वर नहीं,
मां का वह मंगल मनाना ढूंढ़ती हूं।

मखमली कुर्ते की जब उधड़ी सिलाई,
और पहनने की थी मैंने जिद मचाई।

सिल दिया था मां ने फिर टांका सितारा,
मैं तो वह कुर्ता पुराना ढूंढ़ती हूं।

कौन आया कौन आया ,कौन आया,
गूंजता था घर में देखो कौन आया।

आज तो दरवाजे बजती डोर वेल,
सांकलों का खटखटाना ढूंढ़ती हूं।

Navvrsh-geet-pushpa-shailee

श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव “शैली”
रायबरेली उत्तर प्रदेश।

पाली चिड़िया/अरविन्द जायसवाल

पाली चिड़िया

(Pali chidiya)


जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है,
जब भी कोई घरौंधे की

दीवार दरकती है,
जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है।१।
कभी कभी अपने ही

अपना शोषण करते हैं,
शोषण भी करते रहते हैं

और मुकरते हैं,
तब चन्चल मन में

एक तीखी टीश् उभरती है,
जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है,
जब भी कोई घरौंधे की

दीवार दरकती है।२।
अश्रुधार नयनों से बहती

हृदय वरण कर लेता,
मोह शोक में द्वन्द मचाता

नजर नहीं कुछ आता,
जब कोई पाली चिड़िया

पिंजरे से उड़ती है,
जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है,
जब भी कोई घरौंधे की

दीवार दरकती है।३।
ब्यथा ब्यथा में द्वंद द्वंद में

रोज बिलखता रहता,
भंवर जाल में फँसता जाता

यह अंतर मन कहता,
चलो कहीं अरविंद

जहाँ रसधारा बहती है,
जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है,
जब भी कोई घरौंधे की

दीवार दरकती है। ४

Pali-chidiya-arvind-jayswal
अरविन्द जायसवाल
moral story in hindi-अपना ध्यान रखना/ आरती जायसवाल

अपना ध्यान रखना ।

(moral story in hindi)

moral-story-hindi
आरती जायसवाल

आरती जायसवाल  रायबरेली जिले  की प्रतिष्ठित  साहित्यकार है  उनके द्वारा विधा – कहानी   अपना ध्यान रखना (moral story in hindi) रचना पाठको के सामने प्रस्तुत है ।
निधि अपनी पाँच वर्ष की बेटी शुभी को सुबह से समझाए जा रही थी –
बेटा विद्यालय में आज तुम्हारा पहला दिन है ,अच्छे से रहना कोई शरारत न करना याद रहे घर और विद्यालय में अन्तर होता है ।
क्या ?माँ!
शुभी ने भोलेपन से पूछा ।
पढ़े : –    भ्रष्टतंत्र का जुआ 
निधि ने शुभी के कपोल को सहलाते हुए प्यार से बताया कि-घर में तुम जो चाहो कर सकते हो किन्तु, विद्यालय में कुछ नियम होते हैं , सभी को उनका पालन करना पड़ता है।
अच्छा ।माँ!
मेरी प्यारी माँ!
हाँ मेरी गुड़िया रानी !
अब चलें
कहकर दोनों विद्यालय की ओर चल पड़े।
moral-story-hindi
 
निधि ने अब तक उसे घर में ही सामान्य ज्ञान करवाया था पाँच वर्ष से कम आयु में ही  बच्चों के पीठ पर भारी- भरकम बस्ता और पाठ्यक्रम देख उसे बड़ा क्रोध आता था यह निजी विद्यालयों
की पढ़ाई का यह चौतरफा भार बच्चों का बचपन तो छीन ही ले रहा है अभिभावक भी आर्थिक भार से सदा दबे ही रहते हैं  उसने अक़्सर सभी को भारी भरकम फ़ीस का रोना रोते देखा है।
वह सबको रोकने का भी प्रयास करती कि क्यों इतनी छोटी आयु में व्यर्थ की कक्षाओं का बोझ उठा रहे हैं आप भी और आप का बच्चा भी ?
पर जो लोग इस भार को भी  आधुनिकता का हिस्सा समझ बैठे हों उन्हें समझा पाना उसके लिए बड़ा कठिन था।
निधि ने अपने घर के निकटतम विद्यालय में शुभी का प्रवेश करवा दिया था वह विद्यालय जाने के नाम पर हर्षोल्लास से भरी उछल-उछल कर विद्यालय की ओर बढ़ रही थी ।
सरकारी विद्यालयों की बदहाल व्यवस्था देख विवशतावश उसने निजी विद्यालय चुना ।
किन्तु;प्रायः विद्यालयों में घट रही वीभत्स दुर्घटनाओं और अप्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा छोटे बच्चों को नित्य-प्रति मिलने वाली मानसिक शारीरिक प्रताड़ना स्मरण कर वह मन ही मन ख़ीज से भर उठी।
उन अप्रशिक्षित कम पढ़े-लिखे शिक्षकों के प्रति जो प्रायः बच्चों को दण्डित करने के भिन्न-भिन्न तरीक़े ढूढ़ लेते हैं काश !इतना दिमाग वे पढ़ाने के तरीकों को ढूँढने में लगाते ।
कितनी बड़ी विडम्बना और विवशता है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदहाल सरकारी व्यवस्था निजी क्षेत्र को जोंकनुमा प्रारूप प्रदान कर रही हैं जो हमें आर्थिक रूप से खोखला कर स्वयं को
समृद्ध और पुष्ट करते हुए दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रही हैं और हम भी निजी विकल्प चुनने हेतु विवश हैं।
तभी शुभी ने उसका ध्यान भंग किया –
माँ!विद्यालय आ गया।
हाँ ।बेटा!
निधि ने उसका माथा चूमते हुए उसे उसकी कक्षा तक छोड़ा वह उसकी कक्षाध्यापिका से भी मिली और उन्हें भी शुभी से परिचित करवाया जाते समय कक्षाध्यापिका के साथ-साथ उसने शुभी से
भी कहा कि -अपना ध्यान रखना बेटा।
ओह!माँ आप तो व्यर्थ चिन्ता करती हो , मैं विद्यालय में हूँ न कि कोई युद्ध लड़ने जा रही हूँ।
फिर भी बेटा हर स्थान पर अपना ध्यान रखना चाहिए।
कहकर वह घर लौट पड़ी सोचने लगी कैसे समझाए इस छोटी सी बच्ची को कि उसे कहाँ-कहाँ ,कैसे कैसे और किन-किन से युद्ध लड़ना होगा।
हर कोना असुरक्षा से घिरा हुआ है ।
पढ़े : प्रेम और स्नेह 
संघर्षमय परिस्थितियों ,योग्यता की अनदेखी ,बढ़ती बेरोज़गारी और शासन-प्रशासन की ढुल-मुल भूमिका सरकार की क्रूर और संवेदनहीन कुनीतियों का शिकार जनमानस अपनी जीविका हेतु
भी मारा-मारा फिर रहा है परिणामतः अधिकांश लोग क्रूर और स्वार्थी होते जा रहे हैं  भ्रष्टाचार चरम पर है, मानवीय मूल्यों का घोर पतन हो रहा है । संवेदना और वात्सल्य के स्थान पर
निर्ममता ने घेरा डाला हुआ है, कब कौन मनुष्य नरपिशाच में बदल जाए और अपने ख़ूनी पंजों से किसी निरीह को दबोच ले क्या भरोसा? मन ही मन काँप बुदबुदा उठी वह
हे ,ईश्वर!
निरीहों की रक्षा करना ।
सबको सद्बुद्धि देना।

poem on river in hindi-नदी/अरविन्द जायसवाल

हिंदी रचनाकार के पाठकों के सामने प्रस्तुत है poem on river in hindi-नदी/अरविन्द जायसवाल  की रचना प्रकृति की महत्पूर्ण उपहार  से जुड़ी है। इस नदी के किनारे हमारे ऋषि -मुनियों को ज्ञान प्राप्त हुआ अरविन्द जायसवाल की रचना प्रकृति से जुड़ी होती है ।नदी के किनारे बड़े- बड़े शहर और महानगर बसे आज भी है मानव सभ्यता का विकास नदी के किनारे ही हुआ है  नदी रचना में सन्देश भी यही है|

नदी

नदी बहती हुई निर्झर,
चली है सिंधु से मिलने।

समेटे    मन   में अपने,
प्रेम के अंकुर भरे सपने।

वो बल खाती हुई जाती,
वो  इठलाती हुई जाती।

सोच करके मिलन प्रिय से,
वो    शर्माती   हुई जाती।

ओढ़ कर लहरिया चुनरी,
भंवर   का घाँघरा पहने।

नदी   बहती हुई निर्झर,
चली है सिंधु से मिलने।१।

कभी मद मस्त सी चलती,
कभी   गजमंजरी बनकर।

रोकने   से   नहीं  रुकती,
चली जाती वो छन छन कर।

मधुर कलकंठ से गाती,
चली है आज बन ठन कर।

चाँद की पहन कर नथनी,
सितारों    से  जड़े गहने।

नदी   बहती हुई निर्झर,
चली है सिंधु से मिलने।२।

पहुँच कर सिंधु के तट पे,
भाव बिहवल् सी हो करके।

ह्रदय की तेज धड़कन से,
प्रेम   के वेग में बहके।

लिये अरविंद अर्पण की,
कामना   है समर्पण की।

प्रति    से  बंद हैं पलकें,
तृप्ति घुल कर लगी बहने।

नदी   बहती  हुई निर्झर,
चली है सिंधु से मिलने।३

poem- on-river- in -hindi
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new year hindi geet -डॉ. रसिक किशोर सिंह नीरज के गीत

  नव वर्ष 

(new year hindi geet )

 

 नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन | 

 

 सद्कर्म करें सतपंथ  चलें 

आलोक दीप बन सदा जलें 

पथ पर नित नव निर्माण करें 

साहस से अभय प्रयाण करें 

हम करें राष्ट्र का आराधन 

नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन | 

 

हम मातृ भूमि को प्यार करें 

जन- जन का हम सत्कार करें 

मानवता का हम गुण गायें 

विपदाओ मे हम मुस्कायें 

हम जियें सदा समरस जीवन 

नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन |


२. नवल वर्ष शतबार बधाई 

नयी दिशा में प्रगति लक्ष्य पर,

शुचि मंगलमय शुभ जीवन हो ,

नवल  वर्ष   शतबार    बधाई ,

तेरा उज्जवलतम यौवन हो |

 

स्वस्थ  विचार बुद्धि में उपजें ,

और ह्रदय में मधुरिम रिश्ते,

छल प्रपंच के ढूह ढहे सब ,

स्वच्छ बने समता के रस्ते |

 

ऐसा मंत्र पढ़ो युग स्वर में,

सभी अपावन भी पावन हो ,

नवल वर्ष शतबार बधाई ,

तेरा उज्जवलतम यौवन हो |

 

बहे पवित्र आचरण धारा ,

धुले कलुष जीवन का सारा ,

भेदभाव मन का मिट जाये ,

तम पर अंकित हो उजियारा |

 

पग-पग पथ पर अनय मिटाता ,

गरिमा  आभामय  जीवन  हो ,

नवल  वर्ष शतबार   बधाई ,

तेरा उज्जवलतम यौवन हो |

 

नवल ज्योति बिखराते आओ ,

जीवन का तम  दूर    हटाओ ,

नव उमंग नव गति लय लाओ ,

नव  आभा  फैलाते  जाओ |

 

हो अवसाद तिरोहित मन का ,

आह्लादित रसमय जीवन हो ,

नवल  वर्ष शतबार   बधाई ,

तेरा उज्जवलतम यौवन हो |


 

naye saal par kavita /वर्ष 2020-प्रेमलता शर्मा

नए साल के आगमन पर  हिंदी की वरिष्ठ लेखिका प्रेमलता शर्मा का naye saal par kavita /वर्ष 2020 पाठकों के सामने प्रस्तुत है –

कविता वर्ष 2020


वर्ष 2020 की विदाई में

कुछ ही समय अब बाकी है
बहुत कड़वे जख्म दिए हैं

जो ना भुलाने वाले हैं
कुछ भी हो पर वर्ष 2020

इतिहास के पन्नों पर
मानव जाति के हत्यारे के रूप में

अपना नाम दर्ज करा गया
लोग इसका दिया हुआ

दर्द कभी ना भूल पाएंगे
हर 1 वर्ष को पीछे छोड़

यह बहुत आगे निकल गया
ऐसा जहर घोला पर्यावरण में
विश्व को श्मशान बना दिया
वर्ष 2020 का हर पल

हर दिन हर महीना
एक नई दहशत का आह्वान किया
मानव जाति इसके आगे

हाथ बांधे निस हाय खड़ा
लेकिन हमने भी इसके आगे

हार नहीं मानी है
इसकी विदा घड़ी आने में

अब कुछ ही देर बाकी है
वर्ष 2021 से लोगों ने

बहुत उम्मीद बांधी है
कि शायद 2021 वर्ष 2020 का

मरहम बन कर आएगा और

सारे जख्मों को भर कर
दुनिया पर अपने

खुशियों का परचम लहराएगा

naye-saal-par-kavita
प्रेमलता शर्मा

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New year poetry 2021-नववर्ष/शैलेन्द्र कुमार

नववर्ष 2021 पर अवध की धरती के सपूत शैलेंद्र कुमार एक प्रतिष्ठित लेखक है। New year poetry 2021-नववर्ष उन्ही रचना में से एक है । आप की रचना समाज को एक नई दिशा और संदेश देती है हिंदी रचनाकार पाठकों और विश्व के हिंदी भाषी लोगों के सामने प्रस्तुत है रचना।

नव वर्ष


साथी कैसे कहूं? क्या कहूं?

नववर्ष तो पिछली बार भी आया था
लेकर वजूद हजार खुशियों का

हृदय में गहराई तक समाया था ।

तुम्हारी वह स्नेहिल दृष्टि

और वह नूतन अहसास

सच कहूंँ यथार्थ की भूमि पर

मेरी कल्पनाओं का महल उतर आया था ।

उन दिनों मैं कितना खोया खोया था ,
कितनी लगन थी सोच नहीं सकता

बमुश्किल उस पंक्ति में

उन भावों को कैसे ला पाया था ।

गर्व था सृजन के क्षणों पर

और लेखनी पर भी ,
आखिर अपनेपन के अहसास को

इतने नजदीक से छू पाया था ।

किस ढंग से लिखा था ‘हैप्पी न्यू ईयर’
कला के इस अनोखे रूप को

 

इतनी सहजता से प्रस्तुत कर पाया था ।

कितनी रसमय थी वह कविता और वह दिन

प्रसाद में माधुर्य लिपटा रहा आद्यान्त

एक गुण और था हर पंक्ति में

तुम्हारा नाम आया था ।

साथी कैसे कहूँ? क्या कहूँ?

नव वर्ष पिछली बार भी आया था।

New-year-poetry
शैलेन्द्र कुमार

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happy new year poem in hindi-क्या सब कुछ बदल जायेगा

डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र की रचना क्या सब कुछ बदल जायेगा (happy new year poem in hindi) हिंदी रचनाकार के पाठको के सामने प्रस्तुत है –

क्या सब कुछ बदल जायेगा

(happy new year poem in hindi)


अपने गर्भ में

तारीख महीनों को पाल रहा

कैलेंडर जानेगा

एक और नया साल

जिसकी रेखा की बुनियाद पर

भविष्यवक्ताओं का

भविष्य टिका है

तो क्या यह मान लिया जाय

यह बदलाव का वर्ष होगा

सब कुछ बदल जायेगा

दिलों पर लगा

ज़ख्म सूख जायेगा

जो उग आया है

नागफनी की तरह

जिसने सीखा है पनपना

विश्वास है विस्तार में जिसका

नहीं उसने सीखा

संसर्ग में रहकर भी

चिरकाल तक

दौड़ता रहा अंधी दौड़

हर बार हारता रहा

बावजूद उसे कुचलता रहा

उसे परम विश्वास था

इस बात का छद्म एहसास था

कि नहीं हो सकता

वह मेरा प्रतिस्पर्धी

क्योंकि

इस कंगूरे की चमक

के लिए कितनी मांगों

का सिंदूर मैंने पिया है

और कितनी सिसकियों

की सीढ़ियों पर चढ़कर

अवस्थित हूं आज मैं

वह निरीह लाचार

कमठ क्या जाने

यह सब कुछ

एक अंतहीन प्रश्न

नववर्ष के जश्न में

आकंठ और आकर्ण डूबे

लोगों से पूछना चाहता हूं कि

क्या सब कुछ बदल जायेगा

दो दिन बाद ?

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डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
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डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र की रचना समाज से जुडी होती है उसी रचना मे से एक happy new year poem in hindi-क्या सब कुछ बदल जायेगा कविता भी समाज को एक सन्देश दे रही है आप अपने सुझाव कमेंट बॉक्स मे अवश्य बताये |

maa par kavita in hindi-माता/प्रेमलता शर्मा

हिंदी की वरिष्ठ लेखिका प्रेमलता शर्मा की रचना  maa par kavita in hindi -माता  हिंदी  रचनाकार  के  पाठको के  सामने  प्रस्तुत है –

माता


कविता का नाम है माता का मान
इस दुनिया में सृजन करता की
सबसे सुंदर रचना माता है
माता के ही चरणों में

सारा ब्रह्मांड समाया है
मां जैसा निश्चल प्रेम कहां
मां के आंचल सी छांव कहां
हृदय जब भी व्यथित होता है
मां शब्द ही अधरों पर आता है
अपना अस्तित्व मिटा कर

माता हमको जीवन देती है
उसके ह्रदय से कभी आह ना निकले

ऐसा अनर्थ ना करना है
हर मनुष्य का माता के प्रति

कर्तव्य यही बस बनता है
इस संसार का हर सुख वैभव
माता के चरणों में अर्पण करना है
एक बात हमेशा दिल में गांठ

बांधकर रखना है
उसके दिल को ठेस न पहुंचे

वरना ईश्वर भी रो पड़ता है

maa-par-kavita-hindiप्रेमलता शर्मा

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