moral story in hindi-अपना ध्यान रखना/ आरती जायसवाल
अपना ध्यान रखना ।
(moral story in hindi)
आरती जायसवाल रायबरेली जिले की प्रतिष्ठित साहित्यकार है उनके द्वारा विधा – कहानी अपना ध्यान रखना (moral story in hindi) रचना पाठको के सामने प्रस्तुत है ।
निधि अपनी पाँच वर्ष की बेटी शुभी को सुबह से समझाए जा रही थी –
बेटा विद्यालय में आज तुम्हारा पहला दिन है ,अच्छे से रहना कोई शरारत न करना याद रहे घर और विद्यालय में अन्तर होता है ।
क्या ?माँ!
शुभी ने भोलेपन से पूछा ।
पढ़े : – भ्रष्टतंत्र का जुआ
निधि ने शुभी के कपोल को सहलाते हुए प्यार से बताया कि-घर में तुम जो चाहो कर सकते हो किन्तु, विद्यालय में कुछ नियम होते हैं , सभी को उनका पालन करना पड़ता है।
अच्छा ।माँ!
मेरी प्यारी माँ!
हाँ मेरी गुड़िया रानी !
अब चलें
कहकर दोनों विद्यालय की ओर चल पड़े।
निधि ने अब तक उसे घर में ही सामान्य ज्ञान करवाया था पाँच वर्ष से कम आयु में ही बच्चों के पीठ पर भारी- भरकम बस्ता और पाठ्यक्रम देख उसे बड़ा क्रोध आता था यह निजी विद्यालयों
की पढ़ाई का यह चौतरफा भार बच्चों का बचपन तो छीन ही ले रहा है अभिभावक भी आर्थिक भार से सदा दबे ही रहते हैं उसने अक़्सर सभी को भारी भरकम फ़ीस का रोना रोते देखा है।
वह सबको रोकने का भी प्रयास करती कि क्यों इतनी छोटी आयु में व्यर्थ की कक्षाओं का बोझ उठा रहे हैं आप भी और आप का बच्चा भी ?
पर जो लोग इस भार को भी आधुनिकता का हिस्सा समझ बैठे हों उन्हें समझा पाना उसके लिए बड़ा कठिन था।
निधि ने अपने घर के निकटतम विद्यालय में शुभी का प्रवेश करवा दिया था वह विद्यालय जाने के नाम पर हर्षोल्लास से भरी उछल-उछल कर विद्यालय की ओर बढ़ रही थी ।
सरकारी विद्यालयों की बदहाल व्यवस्था देख विवशतावश उसने निजी विद्यालय चुना ।
किन्तु;प्रायः विद्यालयों में घट रही वीभत्स दुर्घटनाओं और अप्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा छोटे बच्चों को नित्य-प्रति मिलने वाली मानसिक शारीरिक प्रताड़ना स्मरण कर वह मन ही मन ख़ीज से भर उठी।
उन अप्रशिक्षित कम पढ़े-लिखे शिक्षकों के प्रति जो प्रायः बच्चों को दण्डित करने के भिन्न-भिन्न तरीक़े ढूढ़ लेते हैं काश !इतना दिमाग वे पढ़ाने के तरीकों को ढूँढने में लगाते ।
कितनी बड़ी विडम्बना और विवशता है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदहाल सरकारी व्यवस्था निजी क्षेत्र को जोंकनुमा प्रारूप प्रदान कर रही हैं जो हमें आर्थिक रूप से खोखला कर स्वयं को
समृद्ध और पुष्ट करते हुए दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रही हैं और हम भी निजी विकल्प चुनने हेतु विवश हैं।
तभी शुभी ने उसका ध्यान भंग किया –
माँ!विद्यालय आ गया।
हाँ ।बेटा!
निधि ने उसका माथा चूमते हुए उसे उसकी कक्षा तक छोड़ा वह उसकी कक्षाध्यापिका से भी मिली और उन्हें भी शुभी से परिचित करवाया जाते समय कक्षाध्यापिका के साथ-साथ उसने शुभी से
भी कहा कि -अपना ध्यान रखना बेटा।
ओह!माँ आप तो व्यर्थ चिन्ता करती हो , मैं विद्यालय में हूँ न कि कोई युद्ध लड़ने जा रही हूँ।
फिर भी बेटा हर स्थान पर अपना ध्यान रखना चाहिए।
कहकर वह घर लौट पड़ी सोचने लगी कैसे समझाए इस छोटी सी बच्ची को कि उसे कहाँ-कहाँ ,कैसे कैसे और किन-किन से युद्ध लड़ना होगा।
हर कोना असुरक्षा से घिरा हुआ है ।
पढ़े : प्रेम और स्नेह
संघर्षमय परिस्थितियों ,योग्यता की अनदेखी ,बढ़ती बेरोज़गारी और शासन-प्रशासन की ढुल-मुल भूमिका सरकार की क्रूर और संवेदनहीन कुनीतियों का शिकार जनमानस अपनी जीविका हेतु
भी मारा-मारा फिर रहा है परिणामतः अधिकांश लोग क्रूर और स्वार्थी होते जा रहे हैं भ्रष्टाचार चरम पर है, मानवीय मूल्यों का घोर पतन हो रहा है । संवेदना और वात्सल्य के स्थान पर
निर्ममता ने घेरा डाला हुआ है, कब कौन मनुष्य नरपिशाच में बदल जाए और अपने ख़ूनी पंजों से किसी निरीह को दबोच ले क्या भरोसा? मन ही मन काँप बुदबुदा उठी वह
हे ,ईश्वर!
निरीहों की रक्षा करना ।
सबको सद्बुद्धि देना।