मुस्कराहट पर कविता-डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र
मुस्कराहट
मुस्कराहट भर देती है
एक नई ऊर्जा मनुष्य में
नहीं होने देती है विचलित
मनुष्य को प्रतिकूलताओं में भी यह
समूल नाश करती है कुंठा,
हताशा और निराशा
जैसे संवेगात्मक भावों का
स्वस्थ रखती है तन मन को
नहीं आने देती है
किसी प्रकार के तनाव,
अवसाद को अपने भीतर कभी भी
पार कर लेता है मनुष्य आपदाओं की
गहरी दरिया को भी
इस नाव पर सवार होकर
नहीं होता है कभी अधीर
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह
घोर अंधेरे में ढूंढ़ लेता है
प्रकाश की किरणों को
बना लेती है दिलों में
जगह अरिदल के केवल
एक मंदहास भी
नहीं कुछ खर्च होता है मुस्कराने में
मुस्कराहट के गर्भ से तो
सृजनशीलता ही जन्म लेती है
और निर्मित हो जाता है
एक नव प्रेम-परिधान
इसके धागे से ही।
लेकिन संजीवनी यह
एक ऐसी है मुस्कराहट
जो प्राण फूंक देती है
मृतकों में भी !
संपूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर