poem on river in hindi-नदी/अरविन्द जायसवाल

हिंदी रचनाकार के पाठकों के सामने प्रस्तुत है poem on river in hindi-नदी/अरविन्द जायसवाल  की रचना प्रकृति की महत्पूर्ण उपहार  से जुड़ी है। इस नदी के किनारे हमारे ऋषि -मुनियों को ज्ञान प्राप्त हुआ अरविन्द जायसवाल की रचना प्रकृति से जुड़ी होती है ।नदी के किनारे बड़े- बड़े शहर और महानगर बसे आज भी है मानव सभ्यता का विकास नदी के किनारे ही हुआ है  नदी रचना में सन्देश भी यही है|

नदी

नदी बहती हुई निर्झर,
चली है सिंधु से मिलने।

समेटे    मन   में अपने,
प्रेम के अंकुर भरे सपने।

वो बल खाती हुई जाती,
वो  इठलाती हुई जाती।

सोच करके मिलन प्रिय से,
वो    शर्माती   हुई जाती।

ओढ़ कर लहरिया चुनरी,
भंवर   का घाँघरा पहने।

नदी   बहती हुई निर्झर,
चली है सिंधु से मिलने।१।

कभी मद मस्त सी चलती,
कभी   गजमंजरी बनकर।

रोकने   से   नहीं  रुकती,
चली जाती वो छन छन कर।

मधुर कलकंठ से गाती,
चली है आज बन ठन कर।

चाँद की पहन कर नथनी,
सितारों    से  जड़े गहने।

नदी   बहती हुई निर्झर,
चली है सिंधु से मिलने।२।

पहुँच कर सिंधु के तट पे,
भाव बिहवल् सी हो करके।

ह्रदय की तेज धड़कन से,
प्रेम   के वेग में बहके।

लिये अरविंद अर्पण की,
कामना   है समर्पण की।

प्रति    से  बंद हैं पलकें,
तृप्ति घुल कर लगी बहने।

नदी   बहती  हुई निर्झर,
चली है सिंधु से मिलने।३

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