सौगात – अरविंद जायसवाल

सौगात

आज आजाद हैं हम खुले आसमां,
पंक्षियों की तरह हम गगन छू रहे।
खत्म हैं बंदिशें बेकरारी नहीं,
आज अपने वतन से गले मिल रहे।
आज आजाद हैं हम खुले आसमां,
पंक्षियों की तरह हम गले मिल रहे।
आज का दिन समर्पण सुहाना तुम्हें,
आज मिट जाने दो सारे शिकवे गिले।
जिन शहीदों ने हमको ये सौगात दी,
 हर वर्ष दीप उनके लिये ही जले।
आज आजाद हैं हम खुले आसमां,
पक्षियों की तरह हम गगन छू रहे।
 करते अरविंद ईश्वर से यह प्रार्थना,
जन्म जब भी मिले तो यहीं पर मिले।
मेरे भारत का झंडा तिरंगा सदा,
नित नई ज्योंति से जगमगाता रहे।
 आज आजाद हैं हम खुले आसमां,
पंक्षियों की तरह हम गगन छू रहे।
हमें विश्वास है कि हमारे लेखक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस वरिष्ठ सम्मानित लेखक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।लेखक की बिना आज्ञा के रचना को पुनः प्रकाशित’ करना क़ानूनी अपराध है |आपकी रचनात्मकता को हिंदीरचनाकार देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है|