Navvrsh geet/मैं तो वह गुजरा जमाना ढूढ़ती हूं।
मैं तो वह गुजरा जमाना ढूढ़ती हूं।
(Navvrsh geet)
आ गया नववर्ष है लेकिन प्रिए,
मैं तो वह गुजरा जमाना ढूंढ़ती हूं।
तुलसी के चौरे पर मां का सर झुकाना,
और माटी का मुझे चंदन लगाना।
बुदबुदाते होंठ लेकिन स्वर नहीं,
मां का वह मंगल मनाना ढूंढ़ती हूं।
मखमली कुर्ते की जब उधड़ी सिलाई,
और पहनने की थी मैंने जिद मचाई।
सिल दिया था मां ने फिर टांका सितारा,
मैं तो वह कुर्ता पुराना ढूंढ़ती हूं।
कौन आया कौन आया ,कौन आया,
गूंजता था घर में देखो कौन आया।
आज तो दरवाजे बजती डोर वेल,
सांकलों का खटखटाना ढूंढ़ती हूं।
श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव “शैली”
रायबरेली उत्तर प्रदेश।