पाली चिड़िया/अरविन्द जायसवाल

पाली चिड़िया

(Pali chidiya)


जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है,
जब भी कोई घरौंधे की

दीवार दरकती है,
जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है।१।
कभी कभी अपने ही

अपना शोषण करते हैं,
शोषण भी करते रहते हैं

और मुकरते हैं,
तब चन्चल मन में

एक तीखी टीश् उभरती है,
जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है,
जब भी कोई घरौंधे की

दीवार दरकती है।२।
अश्रुधार नयनों से बहती

हृदय वरण कर लेता,
मोह शोक में द्वन्द मचाता

नजर नहीं कुछ आता,
जब कोई पाली चिड़िया

पिंजरे से उड़ती है,
जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है,
जब भी कोई घरौंधे की

दीवार दरकती है।३।
ब्यथा ब्यथा में द्वंद द्वंद में

रोज बिलखता रहता,
भंवर जाल में फँसता जाता

यह अंतर मन कहता,
चलो कहीं अरविंद

जहाँ रसधारा बहती है,
जाने क्यूँ मन को

इतनी ठेस पहुँचती है,
जब भी कोई घरौंधे की

दीवार दरकती है। ४

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अरविन्द जायसवाल