nahi badlega kuch-नही बदलेगा कुछ/सम्पूर्णानंद मिश्र

nahi badlega kuch

नहीं ‌बदलेगा कुछ


1 जनवरी 2021 को
नहीं ‌बदलेगा कुछ
कुछ ‌नया‌‌ नहीं ‌होगा
काम ‌पर जाएगा सर्वहारा वर्ग
गिट्टियां तोड़ कर ‌आएगा
अट्टालिकाओं के निर्माण हेतु
श्रमसीकर ‌बेचने के बाद
शीतलहर में ठिठुरते हुए
अपनी मुनिया के लिए
भीड़ के धक्के खाते हुए
घर लौटकर आएगा
उसकी मुंहफटी झोली में
आधा किलो ‌आटा,
एक पाव दाल
कुछ हरी मिर्च दो‌ चार आलू
और २५ ग्राम सरसों के तेल ‌से
ज्यादा कुछ नहीं होगा
उम्मीदों में ही
इन लोगों की
जिंदगी कट जायेगी
ऐसे तथाकथित
लोगों की कई पीढ़ी
इसी टकटकी में कि
नया साल आएगा
कुछ नया होगा
कुछ अच्छा हो जाएगा
कितने और नए साल
रक्त प्रवाहित
करते-करते
जांगर बेचते हुए
यमराज की हवेली‌ के ‌सामने
अपनी ‌तार-तार
चिथरी‌ कथरी बिछाएगा !
या यूं कहिए कि
नहीं दिखाई ‌देता है
स्वप्न अब इन्हें रात में सोते समय
अगर कुछ दिखाई ‌देता है ‌
तो अपने मालिक ‌की‌
केवल रक्तिम आंखें‌
भूख से छटपटाती मुनिया ‌का
धूल ‌धूसरित चेहरा
नहीं कुछ भी इसके अलावा
नहीं बदलेगा‌ कुछ 1जनवरी को
नया नहीं होगा कुछ भी !

Nahi-badlega-kuch
डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र

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Antim yatra- अंतिम यात्रा/डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र

अंतिम यात्रा

Antim yatra


Antim- yatra
डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र

नहीं आऊंगा ‌प्रिये मैं लौटकर
धाम ‌पर जा रहा हूं ऐसे
नहीं लौटता जहां से कभी कोई
मत करना इंतजार तुम मेरा
मुझे मिली थी
इतनी ही मोहलत
मंझधार में ‌छोड़ा है
माना कि तुम्हें मैंने
जिंदगी की ज़द्दोजहद ने
इस‌‌ मुकाम पर ‌तोड़ा है
किसी प्रिय को मेरा
इंतजार ‌है वहां
प्रबल विश्वास है इतना
मेरे ‌बिना‌ भी तुम्हारी
शेष जिंदगी ‌कट जायेगी
दुःख ‌की यामिनी
छंट‌ जायेगी
एक रीतापन ‌
जरूर आ गया है
तुम्हारे जीवन में
लेकिन प्रेम‌ की बुनियाद
पर स्मृतियों का
एक‌ भव्य
महल मैंने खड़ा
कर दिया है
तुम्हारी ‌आस्था‌ की‌
‌ जड़ों
को कोई काट न‌‌ सके
धैर्य ‌की शाखाओं को
कोई ‌छांट न‌ सके
राम और श्याम
दोनों की ‌जीवंत
प्रतिमा ‌तुम्हारे हृदय
में ‌स्थापित कर दी है मैंने
योग और वियोग
जन्म और मृत्यु
लाभ और हानि
सुख और दु:ख
निरंतर चलता रहता है
कर्मों का अपने
फल फलित होता रहता है
कभी ‌कमजोर मत होना
कभी दुःखी मत होना ‌
जब‌ भी अतीत तुम्हें रुलायेगा
तुम्हारे सामने तुम्हारा ‌यह प्रिय
वर्तमान बनकर ज़रूरआएगा !

डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874

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My writing journey-मेरा लेखन का सफरनामा/अंजना छलोत्रे

मेरा लेखन का सफरनामा(My writing journey) 

My- writing- journey
अंजना छलोत्रे

बरसात का मौसम , उस पर रिमझिम फुहारे , जंगल से गुजरती मेरी प्राइवेट रोडवेज बस,  उबड़ खाबड़ रास्ते और बस का अपना ही खतरनाक शोर (My writing journey) इन सबके बावजूद बाहर का दृश्य लुभावना,  पेड़ों की हरी पत्तियों पर बूंदों का टपकना और जो सूर्य को अर्घ्य देते उस तरह बूंदों का फिसलना बड़ा भला लग रहा था , आपस में झूमते एक दूसरे को ठेलते,  पेड़ों की टहनियाँ मनो हंसी ठिठोली करते वर्षा का आनंद ले रही थी.

खिड़की से आती वर्षा की बौछार को  मैं अपने आंचल से रोकने का प्रयास कर रही थी,  कितना फर्क था मुझ में और उन वनस्पतियों में,  फिर सोचा उन्हें सर्दी जुखाम जो  नहीं होता……

पढ़े: रानी लक्ष्मी बाई के अंतिम १८ दिन की यात्रा

ठंडी हवा सिरहन पैदा करती जा रही थी  लेकिन बाहर का मनभावन दृश्य मन में अनेकों अनेक उपमायें  उगाने लगा और एक कविता ने जन्म लिया ….मेरे पास कागज नहीं था मैने रास्ते से खरीदी सरिता पत्रिका के  पीछे ही अपनी पहली मासूम कुछ पंक्तियाँ लिखी….. भावनाओं के साथ कागज कलम का रिश्ता शुरू……

बस में मेरे पीछे की सीट पर परिचित सखी के पतिदेव विराजमान थे , जिन्होंने घर जाकर मेरी सखी को बताया कि वह कुछ लिखती हैं , बस फिर क्या था सखी ने वह   पत्रिका मांगी और मेरी कविता यह जा वह जा  हो गई…. और वह मुझे वापस नहीं मिली , लेकिन उस कविता का गुमना,  मेरे अंदर  भावनाओं का अंकुरण  होना , एक साथ हुआ  और मैं लिखने के लिए कटिबद्ध होती चली गई….

उस समय लेखन को घरों में निकृष्ट कार्य समझा जाता था सो लिखने के लिए एकांत की तलाश होती और अपनी कॉपी छुपा कर रखनी पड़ती थी,  जाने कितने वर्षों हमारी कॉपी हमारी अंतरंग सखी रही…..

चोरी छुपे लिफाफा लाना , पोस्ट ऑफिस जाना,  टिकट लगा कर भेज देना,  किसी युद्ध से कम नहीं था . कई बार जो पत्रिकाएँ टिकट लगा लिफाफा भी मंगवाती थी तब तो हरदम वापस लौट आने का डर बना रहता था , उस पर ख़त उस समय आये जब घर में कोई न हो कि ईश्वर से प्रार्थना ….. हाय राम कितने अनोखे दिन थे…..।

पढ़े : धारी माता पर कविता

कई  रचना प्रकृति पर रची गई  फिर श्रृंगार रस और कुछ तो बाल रचनाएँ आई ,  वीर रस का पदार्पण हुआ इसके चलते कई वर्षों तक इन्हीं के बीच मेरी कलम घुमने लगी. कभी -कभी  ही लिख पाती , फिर  लगातार तीन वर्ष प्रतिदिन एक कविता, गीत  ग़ज़ल लिखती थी ….अब ये रचनाएँ 1200 हो गई हैं…

समसामयिक विषयों  पर लिखना शुरू हुआ

(my writing journey)

उस समय न्यूज़ पेपर में विषयों पर कालम के लिए  पाठकों से सामग्री मंगाई जाती थी,  हम  दैनिक भास्कर व अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं में भी  विषयों के अनुसार लेख भेजते रहें और लेख लिखने का सिलसिला वहीं से शुरू हुआ …समसामयिक विषयों  पर लिखना शुरू हुआ ,  खूब छपे, अस्विकृत भी खूब हुए…तो सम्मान भी पाया …पाठकों के पत्रों ने जहाँ सराहा वही कई नये विषय भी दिये…जिनसे हम रूबरू हुये…..

लघु कथा ने ही मुझे कहानी की छोटी दुनिया में प्रवेश कराया.  उस समय जुनून हुआ करता था कि  दोस्तों के साथ परिचित,  अपरिचित कहीं भी कोई  विषय मिला की लघुकथा का ताना-बाना बुनना शुरू …छोटी-छोटी घटनाएँ,  वार्ताएँ  हमें लघु कहानी लिखने की प्रेरणा  देती रही ,  वहीं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी हम छपते रहे और साथ ही रेडियो में रिकॉर्डिंग भी होती रही , काफी समय तक यह दौर चला,  जब संग्रह के लिए एकत्रित किया तो 97 लघुकथाएँ  निकली …जो बाद मैं सौ से ज्यादा हो गई ओर बुक प्रकाशित हो गई।

लघु कथा से निकलकर थोड़ी लंबी कहानियाँ लिखी  जाने लगी,  अब जब लिखने बैठी तो कहानी बढ़ती चली जाती,  समझ नहीं आता कि  यह छोटी कहानियाँ कैसे लिखती चली जा रही हैं और एक ही बैठक में पूरी करने की प्रबल इच्छा  रहती थी,  लगता था की छूट गई तो कल फिर आगे का नहीं सोच पाएंगे तो ……ऐसी कहानियां 250 हो गई.

अब मन छोटी कहानियों से उचटने  लगा ,  कहानियाँ विस्तार लेने लगी और छूटने पर आगे लिख पाने की क्षमता बढ़ने लगी,  कभी चार दिनों में तो कभी आठ से पन्दरह दिनों में, तो  कभी-कभी महीना,  दो महीने में कहानी पूरी होने लगी  अब धैर्य से सोचकर कहानी आगे बढ़ती रहती, लिखकर पढती  तो स्वयं आश्चर्य  होता , हर दिन की सोच अलग-अलग होती थी ..

अब मैंने व्यवसायिक व साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में भेजना शुरू कर दिया. स्विकृत  होने व छपने से हौसला बढ़ने लगा और कहानी दर कहानी लिखी जाने लगी….गृहशोभा,  सरिता,  मनोरमा  व साहित्यिक पत्रिकाओं में छपना अच्छा लगने लगा,  हौसला बढ़ा तो कहानियों ने रफ्तार पकड़ी …उस दौर में 300 कहानियाँ लिखी गई…

सन् 2006 से उपन्यास का जुनून आया

(My writing journey) 

सन् 2006 से उपन्यास का जुनून आया , यह ऐसी महिलाओं पर केंद्रित कहानी हैं जिसमें वे अपने जीवन संघर्ष को बखूबी जीते हुए आगे बढ़ती हैं और अपने होने को प्रमाणित कर रही हैं . जब – जब लिखने का समय मिला,  लिखती गई.  जैसे – जैसे उपन्यास लंबा हुआ,  हर बार शुरू से पढ़ने की प्रक्रिया में कई बार आगे लिखने का कुछ सुझता ही नहीं था.. अभी भी कभी-कभी लिख लिया जाता है …

2010 से समीक्षा का क्षेत्र संभाला इससे दो फायदे  हुए,  पढ़ना तो होता ही था , साथ ही रचना का मूल तत्व समझ आने लगा. कहानियों की किताबों के साथ- साथ. समरलोक पत्रिका जो मेहरून्निसा परवेज भोपाल से निकालती हैं उसकी समीक्षा करने लगी,  जो लगातार जारी है ..जिससे मेरी लेखनी की पकड़ और मजबूत हुई…..

पत्रिका न्यूज़ पेपर से साक्षात्कार के लिए मुझसे कहा गया

(My writing journey) 

इसी बीच पत्रिका न्यूज़ पेपर से साक्षात्कार के लिए मुझसे कहा गया और मैंने साक्षात्कार करने के लिए चुन्नीदा साहित्यकारों की सूची बनाकर,  प्रश्नावली बना ली,  रोचक जानकारियों के साथ मेरे लिए हुए साक्षात्कार  रविवार को जयपुर से छपने लगे.  यह नया विषय,  उस पर वरिष्ठ साहित्यकारों से मिलना , उनके अनुभव जानना और उनके साहित्य सफर से परिचित होना , मेरे लिए रोमांच से कम नहीं था . बहुत सी ऐसी बातें भी पता चली जिसे मैं साक्षात्कार में नहीं दे  सकती थी… मेरे साथ उनकी बाटी हुई अत्यंत  गोपनीय  बातें हुआ करती , एक अलग व्यक्तित्व ,  अलग अनुभव, उनका  सानिध्य  मिलना वाकई अदभूत संसार में विचर रही थी मैं …..

 हमारे पूज्य आदरणीय कवि हुकुम पाल सिंह विकल जी ने मेरी रचनाओं की टोह ली और संग्रह छपवाने पर जोर दिया ……प्रकाशित पुस्तकें…


(1) .मैं अकेली नहीं (कहानी संग्रह  2001),

प्रकाशन…आस्था प्रकाशन41/4सी, साकेत नगर, भोपाल (म.प्र.)

( 2)  फ़रिश्ता (कहानी संग्रह 2006), आशीष प्रकाशन, बालाघाट (म.प्र.)

(3)…शब्द श्रृंगार (कविता संग्रह 2007),

(4) अटल संयोग ( कविता  संग्रह 2008),

(5)   अभिशप्त देव (कहानी संग्रह 2008), प्रकाशक, पेंगुइन प्रकाशन दिल्ली।

(6) लक्ष्मी बाई के ग्वालियर में अन्तिम अठारह दिन (शोधपरक बुक 2010),

( 7) पनाह (कहानी संग्रह 2016), published by WISHWELL , New Delhi ..

(8)  ऊँची उड़ान ( लघुकथा संग्रह 2017 ),आरती प्रकाशन, साहित्य सदन, जड़ सैक्टर, इन्द्रानगर, लालकुआ,नैनीताल(उत्तराखंड)..

(9)  मन का भगड़ा (कविता संग्रह 2018),प्रकाशक साहित्यभूमि, एन-3/5ए, मोहन गार्डन, नई दिल्ली.

(10) लोकतन्त्र की सार्थकता, पंचायती राज और कामकाजी महिलाएँ ( लघुशोध लेख 2019) प्रकाशक साहित्यभूमि, एन-3/ 5 ए, मोहन गार्डन, नई दिल्ली..

(11) भारतीय इतिहास की महान वीरांगनाएँ (एतिहासिक लेख 2020)

(12) 2021 में  ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित होगा।

 उपन्यास “आसमान बुनती औरतें” पर भी काम चल रहा है…..

मैं भाग्यशाली रही कि मेरी कभी आलोचना नहीं हो पाई क्योंकि पहले ही खूब सारा लिखकर रख लिया,  फिर छपी शायद इसलिए….

मेरे लिए सब से प्रमुख खूब  पढ़ना मेरी रुचि है जिसे मैं अपने भोजन की तरह रोजाना लेती हूँ…..

                                अंजना छलोत्रे

                 जी- 48, फॉरच्यून ग्लोरी

        ई-8, एक्सटेंशन बाबडिया कला

               भोपाल (म. प्र.) 462039

शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान के पल-आशा शैली

सन्तान जब असमय साथ छोड़ दे, वह दुख उत्सव में कैसे बदला जा सकता है यह बात कोई साहित्यकारों से सीखे। दिल्ली की ख्याति लब्ध साहित्यकार  सविता चड्ढा जी से सीखे। आप हर वर्ष दिवंगत बेटी शिल्पी के नाम पर बाल साहित्यकारों को सम्मानित करती हैं।

 दिल्ली में शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान के पल।

आशा शैली

कभी कविता प्रतियोगिता कभी लघुकथा या कहानी। इस बार बाल उपन्यास की बारी थी और यह प्रतियोगिता आपकी इस अकिंचन मित्र  के हिस्से में आई। पुरस्कार में शाल, सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह के साथ इक्यावन सौ का चैक लेकर वापस उत्तराखण्ड लौट रही हूँ। शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान के पल। मेरे बाल उपन्यास ‘कलकत्ता से अण्डमान तक’  को पुरस्कार के लिए चयनित करने वाले जज  श्री ओम प्रकाश सपरा जी और आशीष कांधवे के साथ। श्याम किशोर सहाय एडिटर लोकसभा टीवी, सविता चड्ढा, सुरेश नीरव, डॉ लारी आज़ाद, घमंडी लाल अग्रवाल जी एवं अन्य प्रथम पंक्ति के लेखक। उदासियों  को उत्सव में बदलने का नाम है “शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान” – सविता चड्ढा
पढ़े : दरवेश भारती के साथ आखिरी मुलाकात 

उदासियों को उत्सव में बदलने का नाम हैं “शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान।” 

पिछले चार वर्षों से दिए जा रहे शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान के बारे में बताते हुए सविता चड्ढा ने कहा “उदासियों को उत्सव में बदलने का नाम हैं “शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान।”  सविता चड्ढा जन सेवा समिति, दिल्ली द्वारा हिन्दी भवन में आज चार  महत्वपूर्ण सम्मान प्रदान किए गए । अपनी बेटी की याद में शुरू किए सम्मानों में, अति महत्वपूर्ण “हीरों में हीरा सम्मान ” प्रो डॉ लारी आज़ाद को, साहित्यकार सम्मान , श्री घमंडीलाल  अग्रवाल, शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान, श्रीमती आशा शैली  को और  गीतकारश्री सम्मान ,पंडित सुरेश नीरव को  दिया गया. शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान समारोह की संस्थापक एवं महासचिव, एवं साहित्यकार सविता चड्ढा ने श्रीमती आशा शैली को सम्मान के साथ साथ पाँच हज़ार एक सौ रुपए की नकद राशि भी प्रदान की और देश भर से पधारे लेखकों, कवियों का स्वागत किया। देश भर से प्राप्त पुस्तकों में से कुछ पुस्तकों के लेखकों  को  भी  इस अवसर पर सम्मानित किया गया।  संतोष परिहार को उनकी पुस्तक “पेड़ चढ़े पहाड़”,  डा अंजु लता सिंह को ” सारे जमीं पर”, श्रीमती सूक्ष्म लता महाजन को ” नन्हे मुन्ने””,. श्रीमती वीणा अग्रवाल को उनकी पुस्तक ” नन्ही काव्या”,  श्रीमती सुषमा सिंह को उनकी पुस्तक “नन्हा पाखी” और डॉक्टर सुधा शर्मा को उनकी पुस्तक ” तेरे चरणों में” के लिए सम्मानित किया गया।
पढ़े :संस्मरण आशा शैली के साथ
इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्रीश्याम किशोर सहाय , एडिटर लोक सभा टीवी, अध्यक्ष श्री  सुभाष चडढा , सविता चडढा द्वारा पुरस्कार वितरित किये गए। विशिष्ट अतिथि डॉ आशीष कांधवे, आधुनिक साहित्य और गगनांचल  के संपादक और साहित्यकार,  श्री ओम प्रकाश सपरा, सेवानिवृत्त  मेट्रोपोलिटन  मेजिस्ट्रेट  और साहित्यकार , श्री ओम प्रकाश प्रजापति,ट्रू मीडिया चैनल संस्थापक की  इस अवसर पर विशेष उपस्थिति रही। मंच संचालन वरिष्ठ कवि  श्री अमोद कुमार ने किया।
इस अवसर पर  श्री/श्रीमती वीणा अग्रवाल, डॉ कल्पना पांडेय , अंजू भारती  और उनके पति , ब्रह्मदेव शर्मा ,जगदीश चावला , राजेंद्र नटखट, मधु मिश्रा, महेश बसोया , डॉ शक्तिबोध, सुमन कुमारी , उमेश मेहता, किशनलाल, जुगल किशोर,, दिनेश ठाकुर, सुषमा सिंह, सूक्ष्मलता महाजन, डॉ अंजुलता सिंह, सोनल चड्ढा, रोहित कुमार, दीपाली चड्ढा ,अभिराज चड्ढा,  भी शामिल हुए. आपके अलावा और भी मित्र उपस्थित रहे, आप सबका तहे दिल से शुक्रिया।

Aloo paratha gyaanavardhak lekh-आलू पराठा/अंजली शर्मा

आलू पराठा

Aloo- paratha -gyaanavardhak -lekh
अंजली शर्मा

पंजाबी फैमिली और आलू पराठा(Aloo paratha gyaanavardhak lekh) का क्या संबध होता है ये तो आप सभी जानते हैं। परंतु; कोई रोज आलू का पराठा खाये तो! खा भी सकते हैं, क्यों नहीं खा सकते। किसी को रोज नाश्ते में आलू पराठा(Aloo paratha gyaanavardhak lekh)पसंद हो या कोई डिनर में ही रोज आलू पराठा खाना चाहता है तो खाये उसकी अपनी मर्जी। परंतु, यदि, मैं कहूँ कि किसी घर में सिर्फ एक टाइम खाना बनता है और वो भी आलू पराठा और वह भी हर रोज तो! क्या तब भी आपको आश्चर्य नहीं हुआ होगा। भई मुझे तो हुआ था।

पढ़े-रानी लक्ष्मीबाई की 18 दिन की अंतिम यात्रा/अंजना छलोत्रे
वैसे तो हर किसी की अपनी कुछ न कुछ पसंद होती है जिसे वह अक्सर खाना चाहता है परंतु, हर रोज वही एक चीज खाये ऐसा कैसे हो सकता है। खासकर बच्चे, वो भी जब वो दस बारह साल के हों तब वो निश्चित रुप से कुछ अलग खाने की बात जरुर करेंगे। परंतु, ये लोग रोज पता नहीं कब से आलू पराठा (Aloo paratha gyaanavardhak lekh)ही खा रहे हैं, अब तो इनके आलू पराठा का चर्चा पूरे मोहल्ले और हरएक घर में होता है। इनके आलू पराठा( Aloo paratha gyaanavardhak lekh)का चर्चा इतना आम हो गया था कि, अब पूरे मोहल्ले के लिये यही खास चर्चा बना हुआ था। हर कोई इनके आलू पराठा खाने पर ही बात करता।
वैसे यह चर्चा न आम होता न खास लेकिन, इसके खास होने के पीछे क्या वजह जानने के लिये मैं आप लोगों को इस परिवार के बारे में बता दूं। इस परिवार में थे चार लोग, माता-पिता जिनकी उम्र लगभग, पैंतीस से चालीस के बीच और दो बच्चे जिसमें एक लड़का और एक लड़की जिनकी उम्र करीब दस और बारह साल की थी। इनकी एक खास बात थी ये जब भी घर से निकलते चारों एक साथ निकलते। रहन-सहन और बातचीत व तौर तरीका का सलीका बहुत अच्छा होता। देखने में यह फैमिली बहुत तो नहीं लेकिन फिर भी काफी कुछ पढ़ी-लिखी और समझदार नजर आती। एक बात जो और खास थी वो ये कि ये लोग हमेशा एक ही कपड़े में नजर आते, सिर्फ लड़की ही दो अलग-अलग फ्राक में दिखलाई देती थी। आंटी तो हमेशा एक पीले रंग की साड़ी में नजर आती थी और अंकल सफेद कुर्ता और दफेद लुंगी के साथ नीली पगड़ी में नजर आते। लड़का सफेद शर्ट के साथ नीली हाफपैंट में रहता। लेकिन, कपड़े हमेशा साफ-सुथरे ही पहनते थे। आंटी की कमर तज की चोटी लहराती हुई, आधा कानों को ढकती हुई, बालों को चिपका कर उसमें अच्छे से हेयर पिन लगाये रहतीं ताकी बाल बिखरे नहीं। गोरी, लम्बी, नाक थोड़ी गोल सी थी परंतु आँखे बहुत सुंदर थी। कहा जाय तो वहुत सुंदर थी। लड़की भी बहुत सुंदर थी और बच्चा भी बहुत प्यारा था लेकिन वह बहुत अनमने से रहता था। आंटी दो घरों में झाडू़-पोंछा और कपड़ा धोने का काम करती थी। मैंने देखा कि लोगों के बीच इनकी चर्चा तो अक्सर होती थी लेकिन, किसी के भी मन में इनके लिये सहानुभूति दिखाई नहीं देती थी। इसकी वजह इनका रहन-सहन, इनका तौर-तरीका और इनका रोज खाने वाला आलू पराठा। लोग अक्सर कहते कि, घरों में झाडू़-पोंछा करती है और इनके ठाठ देखो, इतना टीप-टॉप रहती है। रोज आलू पराठा खाते हैं, रुखी-सूखी खाकर इनका काम नहीं चलता। लोग तो और भी कई तरह की बातें करते पर, मुझे वो सब बातें न तो ध्यान देने लायक लगतीं और न यकीन करने लायक। परंतु, जितने लोग उतनी बातें। लोगों का तो काम ही होता है कहना और वो कहते रहते हैं वो जो कहते हैं उन्हें कहने दो। वह फैमिली, कुछ इसी अंदाज में चलती थी। इनको कौन क्या कह रहा है से कोई मतलब नहीं होता था।

पढ़े: संस्मरण आशा शैली के साथ

खाना खाने का समय था तो मैने ऐसे ही पूछा बच्चों से~ तुम लोगों ने खाना खा लिया? बच्चों ने हाँ कहकर जवाब दिया। मैने पूछा- क्या खाया? आलू पराठा कहकर दोनों चुप हो गये। मैने आगे पूछा~ तुम लोगों को आलू पराठा बहुत पसंद है! दोनो माँ की तरफ देखने लगे फिर दोनों ने सिर झुका लिया।
आंटी कहने लगी, रोज-रोज किसी चीज खाना किसे पसंद होता है बेटा परंतु, मजबूरी में खा लेते हैं। इतने बड़े-बड़े बच्चे हैं मन तो इनका भी करता होगा कि घर में कुछ और बने। परंतु, क्या करें।
कोई मजबूरी में रोज आलू पराठा खाता होगा ये बात तो शायद किसी को हजम हो। आमतौर पर आलू पराठा बड़े-बड़े लोग खाते हैं या फिर मध्यम वर्गीय परिवारों में भी अक्सर खाया जाता है। परंतु, कोई कहे कि मजबूरी में आलू पराठा खा रहे हैं वो भी रोज!! आंटी ने मुझसे सवाल किया~ बेटा एक बात बताव आलू पराठा बनता कैसे है? आप लोग अपने घरों मे आलू पराठा कैसे बनाते हो? हमारे यहाँ कैसे बनता है आपको पता है! दो आलू को उबालकर उसमें नमक-मिर्ची और हल्दी डालकर हाथ से मसल लेते हैं, आटे की दो-दो लोई बनाते हैं सबके लिये और उसी में आलू भरकर पराठा सेंक लेते हैं जरा-जरा सा तेल लगा कर। वैसे तो आलू पराठा में अच्छे से तेल या घी लगाकर पलट-पलट कर सेंका जाता है परंतु हमारे यहाँ ऐसा नहीं बनता, मक्खन की तो हम सोच भी नहीं सकते। बस ऐसे ही आलू पराठा बनाकर अचार से खा लेते हैं। सब्जी-भाजी खरीदने के लिये पैसे तो होते नहीं, दो आलू से चार लोगों की सब्जी भी ढंग से नहीं बनती फिर सब्जी के लिये मसाले भी चाहिये। एक किलो आलू हफ्ते भर चलता है। हमारे पास बस एक-एक अच्छे कपड़े हैं बस उसी को रोज धो-धोकर पहनते रहते हैं। बेटी के लिये बस, दो फ्राक बनवायी हूँ, वो भी अपनी साड़ी से। अब मेरे पास एक ही साड़ी है पहनने के लिये। घर जाकर गाऊन पहन लेती हूं और इस साड़ी को धोकर डाल देती हूं। पहले सब कुछ ठीक था, तुम्हारे अंकल एक बड़े कपड़े की दुकान पर काम करते थे, अच्छी पगार थी। अचानक तबियत खराब होने से काम छुट गया। थोड़ी-बहुत जमापूंजी थी वह भी खतम हो गयी। कुछ दिनों तक तो घर का सामान बेचकर गुजारा होता रहा लेकिन ऐसे कब तक चलता फिर मैंने दो घरों में झाडू़-पोंछा औेर कपड़ा धोने के काम में लग गयी। अच्छे लोग हैं नौकरानी की तरह नहीं समझते घर जैसे समझ कर काम करती हूं । वैसे तो कई घरों में काम मिल जायेगा लेकिन कभी किया नहीं तो संकोच होता है। बस अब तो भगवान से यही प्रार्थना है कि तुम्हारे अंकल जल्दी ठीक हो जायें। लोग तरह-तरह की बातें करते हैं मुझे सब पता है लेकिन, क्या करें, लोगों के मुँह पे ताला तो नहीं लगा सकते। लोगों को लगता है कि मैं बहुत खूबसूरत हूँ इसलिये मेरे पति मुझे कहीं अकेले नहीं जाने देते, मैं जहाँ भी जाती हूँ सब मेरे साथ चले आते हैं परंतु, सच बात तो ये है कि, तुम्हारे अंकल को अकेले नहीं छोड़ा जा सकता, उनकी तबियत ठीक नहीं है वो ठीक से बोल भी नहीं पाते। बच्चों को भी वहाँ पर अकेले नहीं छोड़ा जा सकता। घर का किवाड़ बहुत पुराना हो गया है , टूट भी गया है लेकिन, घर को वैसे ही छोड़ देते हैं आखिर, घर में है भी क्या, जिसे लोग उठाकर ले जायेंगे।

ज्ञानवर्धक लेख की शिक्षा

कहने लगीं, आजकल लोग किसी की मजबूरी पर तरस नहीं खाते बल्कि, मजबूरी का तमाशा बनाते हैं। इसलिए, हम किसी के सामने अपनी मजबूरी नहीं गिनाते। लोगों को लगता है कि हम रोज आलू पराठा खाकर रोज दावत कर रहे हैं। अगर, लोग ऐसा समझते हैं तो समझें, हम किसी के घर कटोरी लेकर नहीं जाते सब्जी के लिये। एक ही कपड़ा से काम चला लेते हैं लेकिन, किसी के आगे अपना रोना नहीं रोते। लोग हमारी मजबूरी देखकर यदि तरस भी खायेंगे तो क्या, मदद के लिये तो नहीं आयेंगे, सब मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं। इन्हें लगता है कि, हम रोज आलू पराठा खाते हैं तो लगने दो। इन्हें लगता है कि हम सब बनठन कर सब एक साथ घूमने निकलते हैं तो लगने दो। यदि, वे हमारे बारे में गलत सोचकर खुश होते हैं तो होने दो। वो वैसे खुश हैं तो हम ऐसे खुश हैं।

**अंजली शर्मा**
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ ).

bhaasha aur aadamee-भाषा और आदमी/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

bhaasha -aur- aadamee
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र 

भाषा और आदमी (bhaasha aur aadamee) कविता डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र की रचना है बिना भाषा के मानव अपने विचारों को प्रकट नहीं कर सकता है इस कविता मे भी उन्ही भावों को लेखक ने कविता मे प्रकट किया है ।भाषा के बिना आदमी सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा संस्कृति से विछिन्न है ।

भाषा और आदमी

भाषा और आदमी

आदमी और भाषा

अन्योन्याश्रित संबंध है दोनों में

या यूं कहें कि

नहीं रह सकते हैं

दोनों एक दूसरे के बिना

जैसे मीन पानी के बिना

लेकिन आदमी

भाषा की सरिता में

मज्जित होता है जब तक

तभी तक ज़िंदा रहता है

सही अर्थों में

बची रहती है

उसकी मनुष्यता तभी तक

जैसे ही असंपृक्त

होता है भाषा की सरिता से

पशुता का सींग

निकल आता है

उसके सिर पर

भाषा का जल भी

पीकर मरा हुआ है

आदमी आजकल

वह भाषा को ही

टांकने लगा है

जैसे दर्जी टांकता है कपड़े को

फंस गया है वह

भाषा के रीम में

क्योंकि जब तक

सभ्यता एवं

संस्कृति की

वर्णमाला का सही-सही

पहाड़ा नहीं याद होगा

तब तक  यूं ही भटकता रहेगा

भाषा के अरण्य में मनुष्य

और यह भटकाव

छीन लेगा उससे

उसकी आदमियत


डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

प्रयागराज फूलपुर

7458994874

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sansmaran aasha shailee ke saath /संस्मरण आशा शैली

संस्मरण आशा शैली के साथ

sansmaran- aasha- shailee - saath
आशा शैली

मेरे लिए बड़ा रोमांचक क्षण रहा, जब मुझे राजेन्द्र नाथ रहबर जी का फोन आया।(sansmaran aasha shailee ke saath) वे फोन बिना कारण करते ही नहीं इतना तो मैं बहुत पहले से ही जानती हूँ। मेरा और रहबर जी का परिचय 1984 के इण्डोपाक मुशायरे में शिमला के गेयटी थियेटर में हुआ था। उसके बाद पंजाब, हरियाणा और हिमाचल के लगभग हर मुशायरे में इनसे भेंट होती रहती थी।
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उन दिनों जनाब आज़ाद गुलाटी, प्रेम कुमार नज़र, जमीला बानो, मसूदा हयात, बी डी कालिया हमदम, बशीर बद्र, राजेन्द्र नाथ रहबर, अरमान शहाबी, मेहर गेरा वगैरह कुछ ऐसे नाम थे जो हर मुशायरे में मौजूद रहते, चाहे मुशायरा हिमाचल अकादमी कराये, हरयाणा अकादमी कराये या साहित्य मंच जालंधर कराये। राजेन्द्र नाथ रहबर जी उस्ताद शायर होने के नाते हर जगह रहते थे। अब साहित्य मंच जालंधर की हिमाचल शाखा की सचिव के नाते या हिमाचल की एकमात्र उर्दू शायर होने के नाते मुझे भी हाज़र रहने का मौका नसीब हो जाता, फिर भी मुझे याद है कि रहबर साहब ने कभी भी मुझे फ़ोन नहीं किया। बस उन दिनों हमारी बात फोन पर होती थी जब मेरे गुरू प्रोफेसर मेहर गेरा गम्भीर रूप से बीमार चल रहे थे। वे मुझे पल पल की खबर दे रहे थे और एक दिन प्रोफ़ेसर गेरा का सफ़र ख़त्म होने के साथ ही यह सिलसिला भी थम गया। फिर कुछ दिन रहबर साहब से प्रोफेसर मेहर गेरा की किताब खामोशी के बाद के सिलसिले में राबता रहा और बस।
उस दिन सालों बाद भी रहबर साहब का फोन जब आया था तो उन्होंने बताया कि अलवर से तुम्हें फोन आएगा, बात कर लेना। फिर अलवर से एक कांपती सी आवाज़ आई, “हमें पता चला है कि आप ने मेहर गेरा की कोई किताब निकाली है। हम कुछ शोरा पर काम कर रहे हैं आप हमें प्रोफेसर मेहर गेरा के बारे में जितना जानती हैं, बताइए।” इन साहेब ने अपना नाम राधे मोहन राय बताया था।
पढ़े : साहित्य जगत का एक नन्हा सा जुगनू आशा शैली
मैं जो कुछ उनके बारे में जानती थी बता दिया। प्रोफेसर गेरा बहुत कम-गो पर मिलनसार इन्सान थे और उनकी मर्जी के बिना उनसे बात निकलवा लेना टेढ़ी खीर थी, इसलिए जो कुछ मैंने अलवर वालों को बताया वह शायद उन्हें सच नहीं लगा। उन्होंने कुछ और जगहों से भी पता लगाया होगा। नतीजतन अब जब किताब मेरे हाथ में आई तो देखा, बहुत सी बातें छूट गई हैं।
ख़ैर आपने देखा, किताब का उन्वान (शीर्षक) ही महत्वपूर्ण है और अपनी अहमियत दिखा रहा है। हाँ, मैं बताना भूल गयी कि राय साहब ने मेरे बारे में भी दरयाफ़्त किया था। बहुत बड़ा काम हाथ में लिया है राय साहब ने। एक हफ्ता पहले मेरे पास यह किताब आ गयी है। कुल 286 पेज की इस किताब में राधा मोहन राय साहब ने 68 शोरा-कराम को लिया है, जिसमें सात पेज इस नाचीज़ हस्ती को भी दिए हैं।
इस शोध के लिए वक्त, मेहनत, लगन और पैसा सभी कुछ दरकार है। ऐसी ही दस किताबें राय साहब निकाल चुके हैं। मेरा नम्बर नौवें हिस्से में है। सबसे बड़ी और काबिले फख़्र बात मेरे लिए मेरे उस्ताद मोहतरम के बाद उसी किताब में मेरा ज़िक्र होना है। बड़ी बात यह भी है कि आपने किसी से एक पैसे की तलब नहीं रखी और हर शायर को दो-दो कापियाँ बतौर तोहफ़ा भेजी हैं। अयन प्रकाशन से छपी इस किताब की कीमत सिक्कों के बतौर 600/- रुपये है, पर क्या सचमुच रुपयों में इसकी कीमत लगाई जा सकती है?
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hindi kavita shabd pujaaree-शब्द का हूं मै  पुजारी

वरिष्ठ कवि सृष्टि कुमार श्रीवास्तव की’हिंदी कविता शब्द का हूं मै  पुजारी-hindi kavita shabd pujaaree हिंदी रचनाकार के पाठकों के लिए प्रस्तुत है। कविता मे लेखक ने अपने अनुभवों को पक्तियों के माध्यम से हिंदी कविता शब्द का हूं मै  पुजारी-  मे पिरोया है पाठक कविता को समझे और अपने भाव कमेंट के रूप मे व्यक्त करें ।

शब्द का हूं मै  पुजारी (hindi kavita shabd pujaaree)


शब्द का हूं मै  पुजारी

भावना का   सार   हूं।

मै   ऊषा  का गीत हूं

सूर्य   का उपहार  हूं।

अश्रु    मेरे     सूर्यवंशी

चन्द्रवंशी   हैं   व्यथायें

मंत्र    बनकर   गूंजती

जो लिखी मैने ऋचाएं।

तुम हँसे   मै   चुप रहा

ये   समय की   बात है।

ये न समझो मै तुम्हारे

सामने    लाचार     हूं।

बांसुरी बजती नही ती

बांसुरी   को   तोड़ दो।

साथ चलना है कठिन

तो साथ मेरा छोड़  दो।

सुख नही   निर्भर मेरा

रूप के   रति धर्म  पर।

संसार  मे हूं   मै  मगर

मै    नही    संसार   हूं।

राह    मे   कांटे  मिलेंगे

पूर्व  से  मै   जानता  हूं।

मंच का भ्रम   सामने है

सत्य  को पहचानता हूं।

आचरण पर आवरण का

मै  रहा   कब     पक्षधर।

व्यक्ति  मत समझो मुझे

मै   अमृत     विचार   हूं।

hindi- kavita- shabd- pujaaree1
सृष्टि कुमार श्रीवास्तव

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वोट- बैंक घातक बीमारी| poem about voting elections hindi

हिंदी रचनाकार के मंच पर सीताराम चौहान पथिक की चुनाव प्रक्रिया मे जनता के द्वारा दिया जाने वाला वोट -बैंक घातक बीमारी पर हिंदी कविता राष्ट्र को समर्पित है poem about voting and elections in hindi चुनाव एक प्रक्रिया जहां जनता अपने पसंद के प्रतिनिधि को वोट के माध्यम से चुनती है poem about voting and elections in hindi कविता मे लेखक ने अपने भावों को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है 

वोट- बैंक घातक बीमारी(poem on voting in hindi)


टूट रहा है देश- लूटते भ्रष्टाचारी ,

नेता हैं मद-मस्त, देश में मारामारी,

कुछ तो करो उपाय, डूबती नाव संभालो,

देश- द्रोह की फसल, फूंक दो बन चिंगारी ।

प्रजातंत्र गणतंत्र – सुशिक्षित जन पर निर्भर ,

बे – पैन्दी के पात्र , काटते चाॅदी भारी ।

राष्ट्र – भावना , स्वाभिमान जन- जन में जागे ,

शिक्षा के नव- दीप जलाओ ,मिट जाए काली अंधियारी ।

नेताओं की कलाबाजियां, चेतो मेरे भारत वासी ,

कुर्सी हेतु महागठबंधन , वोट – बैंक घातक बीमारी ।।

संविधान में संशोधन से , नेता  कुबेर जनता बेचारी ,

कानून सभी जेब में इनके , हैं यह प्रिंस स्वेच्छाचारी ।

सोए देशवासियों जागो , मंथन करो वोट से पहले ,

किसी विवेकानंद को लाओ – आज सभी की जिम्मेदारी ।

राजनीति के जौहरी बन कर – असली हीरे को पहचानो ,

विश्व- गुरु सोने की चिड़िया ,भारत महान गाएं नर नारी ।

जागो, पढ़ो ज्ञान-ग्रन्थो को , भारतीय आत्मा पहचानो ,

पथिक ऊर्जित होकर इनसे , राष्ट्रीय सरकार बनाओ प्यारी

poem- about- voting- elections- hindi1 
सीताराम चौहान पथिक

आज हमने इस poem about voting and elections in hindi कविता मे सीखा कि चुनाव मे जनप्रतिनिधि को सोचसमझकर चुनना चाहिए जनता का एक वोट राष्ट्र को मजबूत बना सकता है आपको यह कविता अच्छी लगे तो अवश्य शेयर सोशल साइट्स पर कविता पढ़ने के लिए धन्यबाद।

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maa par kavita short-माँ -संपूर्णानंद मिश्र

हिंदुस्तान मे माँ का स्थान महत्पूर्ण है क्योकि इस स्थान को इस संसार मे कोई नहीं ले सकता है हिंदीरचनाकर के मंच पर डॉ संपूर्णानंद मिश्र की maa par kavita short देश की सभी माँ को समर्पित है भारतीय संस्कृति मे चर्चित माताओं के नाम यशोदा,सीता ,पार्वती ,कुन्ती आदि माँ के आदर्श आज भी पूजनीय है maa par kavita short पाठको के प्रस्तुत है

मां


दुनिया की नज़रों से छुपाती थी

मुझे अपने सीने से लगाती थी

तुम्हारे दूध का कोई मोल नहीं

मां तेरी ममता का कोई तोल नहीं

गीले में सोकर

सुखे में सुलाती थी

सारी रात जगकर

लोरियां सुनाती थी

ममता के जल से ही नहलाती थी

रुठने पर सौ- सौ बार मनाती थी

मां आज भी तुम्हारा वही बच्चा हूं

चाहे जितना ही बड़ा हो जाऊं

तुम्हारी नज़रों में अब भी ‌कच्चा हूं

तुम्हारे हाथों से बनी ममता से

सनी चित्तीदार रोटियां

खाए सालों  गुज़र गए

व्यंजन तो बहुत खाए

लेकिन स्वाद न अब वो आए

तुम कहां चली गई हो मां ?

एक बार लौट के तो आ जाओ

हर मुसीबत में खड़ी हो जाती थी

पिता की छड़ी से प्राय: बचाती थी

चट्टान बन कर मुसीबतों की

धारा ही बदल देती थी

मुझे अपने सीने से लगाकर

नव जीवन दे देती थी

क्रूर काल के पंजे ने

तुम्हें छीन लिया था

निष्ठुर नियति ने

मुझे मात्रृहीन कर दिया था

एक बार लौट कर आ जाओ मां

या जिस भी लोक में हो

वहीं से एक बार फिर ममता के

जल से नहला दो मां

मां आज भी तुम्हारा

वही बच्चा हूं

जितना भी बड़ा हो जाऊं तुम्हारी

नज़रों में अब भी कच्चा हूं ।

maa
संपूर्णानंद मिश्र

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हमें विश्वास है कि हमारे लेखक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस वरिष्ठ सम्मानित लेखक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।लेखक की बिना आज्ञा के रचना को पुनः प्रकाशित’ करना क़ानूनी अपराध है |आपकी रचनात्मकता को हिंदीरचनाकार देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है|whatsapp के माद्यम से रचना भेजने के लिए 91 94540 02444,  संपर्क कर कर सकते है।