वोट- बैंक घातक बीमारी| poem about voting elections hindi

हिंदी रचनाकार के मंच पर सीताराम चौहान पथिक की चुनाव प्रक्रिया मे जनता के द्वारा दिया जाने वाला वोट -बैंक घातक बीमारी पर हिंदी कविता राष्ट्र को समर्पित है poem about voting and elections in hindi चुनाव एक प्रक्रिया जहां जनता अपने पसंद के प्रतिनिधि को वोट के माध्यम से चुनती है poem about voting and elections in hindi कविता मे लेखक ने अपने भावों को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है 

वोट- बैंक घातक बीमारी(poem on voting in hindi)


टूट रहा है देश- लूटते भ्रष्टाचारी ,

नेता हैं मद-मस्त, देश में मारामारी,

कुछ तो करो उपाय, डूबती नाव संभालो,

देश- द्रोह की फसल, फूंक दो बन चिंगारी ।

प्रजातंत्र गणतंत्र – सुशिक्षित जन पर निर्भर ,

बे – पैन्दी के पात्र , काटते चाॅदी भारी ।

राष्ट्र – भावना , स्वाभिमान जन- जन में जागे ,

शिक्षा के नव- दीप जलाओ ,मिट जाए काली अंधियारी ।

नेताओं की कलाबाजियां, चेतो मेरे भारत वासी ,

कुर्सी हेतु महागठबंधन , वोट – बैंक घातक बीमारी ।।

संविधान में संशोधन से , नेता  कुबेर जनता बेचारी ,

कानून सभी जेब में इनके , हैं यह प्रिंस स्वेच्छाचारी ।

सोए देशवासियों जागो , मंथन करो वोट से पहले ,

किसी विवेकानंद को लाओ – आज सभी की जिम्मेदारी ।

राजनीति के जौहरी बन कर – असली हीरे को पहचानो ,

विश्व- गुरु सोने की चिड़िया ,भारत महान गाएं नर नारी ।

जागो, पढ़ो ज्ञान-ग्रन्थो को , भारतीय आत्मा पहचानो ,

पथिक ऊर्जित होकर इनसे , राष्ट्रीय सरकार बनाओ प्यारी

poem- about- voting- elections- hindi1 
सीताराम चौहान पथिक

आज हमने इस poem about voting and elections in hindi कविता मे सीखा कि चुनाव मे जनप्रतिनिधि को सोचसमझकर चुनना चाहिए जनता का एक वोट राष्ट्र को मजबूत बना सकता है आपको यह कविता अच्छी लगे तो अवश्य शेयर सोशल साइट्स पर कविता पढ़ने के लिए धन्यबाद।

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शैतान की मौत – हिंदी कविता

सीता राम चौहान पथिक दिल्ली की कलम से लिखी हिंदी कविता

शैतान की मौत 


देख कर जलती चिता को ,
एक उठता है  सवाल  ।
क्या यही इनसान  है    ॽ
जिसने  मचाया था बवाल ।
क्या  यही  औकात  है  ,
इनसान  के  तामीर की ।
खुद  पे  इतराता   रहा  ,
आवाज़  सुन  ज़मीर की ।
जब तलक  जिन्दा  रहा ,
ना खुद जिया – जीने दिया ।
नफ़रतो के  बीज  बोए  ,
ज़हर   पीने  को   दिया  ।
क्या  नहीं  ये  जानता  था ,
है ये  दौलत   बे वफ़ा  ॽ
खाने  पीने  में  मिलावट ,
जिन्दगी  कर  दी  तबाह ।
अब  ना  दौलत – हैकडी  ,
बस ख़ाक है इसका बिछौना ।
नेक नामी  की   नहीं   ,
अब तो  दामन  भी  घिनौना ।
अब  भी  ये  इनसान ,
क्यों  अंजाम  से है  बे-खबर ।
  बे -तहाशा  लूटता  है ,
लूट कर  भी  बे – सबर   ।
अब  तो  बन्दे ,  होश कर ,
 कुछ  नेकनामी  तो  कमा ।
सच्ची  दौलत  है  यही  ,
 खाते   में  इसको  कर  जमा ।
वरना तेरी  शान – शौकत  ,
धूल में  मिल  जाएगी  ।
 काफिला  लेकर  चला  है ,
शाम  कब  ढल  जाएगी  ।
अपनी बद – नियत से ,
अपने  पाक – दामन को बचा ।
आखिरी  ताकीद   है   ,
 खुद  को  बचा  या  पा  सज़ा ।
तेरे  हाथों में  खुदा  ने ,
ज़हर  – अमॄत  है  थमाए  ।
फैसला  तूझको  है  करना ,
पथिक अक्ल तुझको  आ जाए ।
  सीता राम चौहान पथिक दिल्ली