bhaasha aur aadamee-भाषा और आदमी/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

bhaasha -aur- aadamee
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र 

भाषा और आदमी (bhaasha aur aadamee) कविता डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र की रचना है बिना भाषा के मानव अपने विचारों को प्रकट नहीं कर सकता है इस कविता मे भी उन्ही भावों को लेखक ने कविता मे प्रकट किया है ।भाषा के बिना आदमी सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा संस्कृति से विछिन्न है ।

भाषा और आदमी

भाषा और आदमी

आदमी और भाषा

अन्योन्याश्रित संबंध है दोनों में

या यूं कहें कि

नहीं रह सकते हैं

दोनों एक दूसरे के बिना

जैसे मीन पानी के बिना

लेकिन आदमी

भाषा की सरिता में

मज्जित होता है जब तक

तभी तक ज़िंदा रहता है

सही अर्थों में

बची रहती है

उसकी मनुष्यता तभी तक

जैसे ही असंपृक्त

होता है भाषा की सरिता से

पशुता का सींग

निकल आता है

उसके सिर पर

भाषा का जल भी

पीकर मरा हुआ है

आदमी आजकल

वह भाषा को ही

टांकने लगा है

जैसे दर्जी टांकता है कपड़े को

फंस गया है वह

भाषा के रीम में

क्योंकि जब तक

सभ्यता एवं

संस्कृति की

वर्णमाला का सही-सही

पहाड़ा नहीं याद होगा

तब तक  यूं ही भटकता रहेगा

भाषा के अरण्य में मनुष्य

और यह भटकाव

छीन लेगा उससे

उसकी आदमियत


डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

प्रयागराज फूलपुर

7458994874

सम्पूर्णानंद मिश्र की अन्य कविता पढ़े :

आपको bhaasha aur aadamee-भाषा और आदमी/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र की हिंदी कविता कैसी लगी अपने सुझाव कमेन्ट बॉक्स मे अवश्य बताए अच्छी लगे तो फ़ेसबुक, ट्विटर, आदि सामाजिक मंचो पर शेयर करें इससे हमारी टीम का उत्साह बढ़ता है।
हिंदीरचनाकार (डिसक्लेमर) : लेखक या सम्पादक की लिखित अनुमति के बिना पूर्ण या आंशिक रचनाओं का पुर्नप्रकाशन वर्जित है। लेखक के विचारों के साथ सम्पादक का सहमत या असहमत होना आवश्यक नहीं। सर्वाधिकार सुरक्षित। हिंदी रचनाकार में प्रकाशित रचनाओं में विचार लेखक के अपने हैं और हिंदीरचनाकार टीम का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।|आपकी रचनात्मकता को हिंदीरचनाकार देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है| whatsapp के माद्यम से रचना भेजने के लिए 91 94540 02444, ९६२१३१३६०९ संपर्क कर कर सकते है।