Aloo paratha gyaanavardhak lekh-आलू पराठा/अंजली शर्मा
आलू पराठा
पंजाबी फैमिली और आलू पराठा(Aloo paratha gyaanavardhak lekh) का क्या संबध होता है ये तो आप सभी जानते हैं। परंतु; कोई रोज आलू का पराठा खाये तो! खा भी सकते हैं, क्यों नहीं खा सकते। किसी को रोज नाश्ते में आलू पराठा(Aloo paratha gyaanavardhak lekh)पसंद हो या कोई डिनर में ही रोज आलू पराठा खाना चाहता है तो खाये उसकी अपनी मर्जी। परंतु, यदि, मैं कहूँ कि किसी घर में सिर्फ एक टाइम खाना बनता है और वो भी आलू पराठा और वह भी हर रोज तो! क्या तब भी आपको आश्चर्य नहीं हुआ होगा। भई मुझे तो हुआ था।
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वैसे तो हर किसी की अपनी कुछ न कुछ पसंद होती है जिसे वह अक्सर खाना चाहता है परंतु, हर रोज वही एक चीज खाये ऐसा कैसे हो सकता है। खासकर बच्चे, वो भी जब वो दस बारह साल के हों तब वो निश्चित रुप से कुछ अलग खाने की बात जरुर करेंगे। परंतु, ये लोग रोज पता नहीं कब से आलू पराठा (Aloo paratha gyaanavardhak lekh)ही खा रहे हैं, अब तो इनके आलू पराठा का चर्चा पूरे मोहल्ले और हरएक घर में होता है। इनके आलू पराठा( Aloo paratha gyaanavardhak lekh)का चर्चा इतना आम हो गया था कि, अब पूरे मोहल्ले के लिये यही खास चर्चा बना हुआ था। हर कोई इनके आलू पराठा खाने पर ही बात करता।
वैसे यह चर्चा न आम होता न खास लेकिन, इसके खास होने के पीछे क्या वजह जानने के लिये मैं आप लोगों को इस परिवार के बारे में बता दूं। इस परिवार में थे चार लोग, माता-पिता जिनकी उम्र लगभग, पैंतीस से चालीस के बीच और दो बच्चे जिसमें एक लड़का और एक लड़की जिनकी उम्र करीब दस और बारह साल की थी। इनकी एक खास बात थी ये जब भी घर से निकलते चारों एक साथ निकलते। रहन-सहन और बातचीत व तौर तरीका का सलीका बहुत अच्छा होता। देखने में यह फैमिली बहुत तो नहीं लेकिन फिर भी काफी कुछ पढ़ी-लिखी और समझदार नजर आती। एक बात जो और खास थी वो ये कि ये लोग हमेशा एक ही कपड़े में नजर आते, सिर्फ लड़की ही दो अलग-अलग फ्राक में दिखलाई देती थी। आंटी तो हमेशा एक पीले रंग की साड़ी में नजर आती थी और अंकल सफेद कुर्ता और दफेद लुंगी के साथ नीली पगड़ी में नजर आते। लड़का सफेद शर्ट के साथ नीली हाफपैंट में रहता। लेकिन, कपड़े हमेशा साफ-सुथरे ही पहनते थे। आंटी की कमर तज की चोटी लहराती हुई, आधा कानों को ढकती हुई, बालों को चिपका कर उसमें अच्छे से हेयर पिन लगाये रहतीं ताकी बाल बिखरे नहीं। गोरी, लम्बी, नाक थोड़ी गोल सी थी परंतु आँखे बहुत सुंदर थी। कहा जाय तो वहुत सुंदर थी। लड़की भी बहुत सुंदर थी और बच्चा भी बहुत प्यारा था लेकिन वह बहुत अनमने से रहता था। आंटी दो घरों में झाडू़-पोंछा और कपड़ा धोने का काम करती थी। मैंने देखा कि लोगों के बीच इनकी चर्चा तो अक्सर होती थी लेकिन, किसी के भी मन में इनके लिये सहानुभूति दिखाई नहीं देती थी। इसकी वजह इनका रहन-सहन, इनका तौर-तरीका और इनका रोज खाने वाला आलू पराठा। लोग अक्सर कहते कि, घरों में झाडू़-पोंछा करती है और इनके ठाठ देखो, इतना टीप-टॉप रहती है। रोज आलू पराठा खाते हैं, रुखी-सूखी खाकर इनका काम नहीं चलता। लोग तो और भी कई तरह की बातें करते पर, मुझे वो सब बातें न तो ध्यान देने लायक लगतीं और न यकीन करने लायक। परंतु, जितने लोग उतनी बातें। लोगों का तो काम ही होता है कहना और वो कहते रहते हैं वो जो कहते हैं उन्हें कहने दो। वह फैमिली, कुछ इसी अंदाज में चलती थी। इनको कौन क्या कह रहा है से कोई मतलब नहीं होता था।
खाना खाने का समय था तो मैने ऐसे ही पूछा बच्चों से~ तुम लोगों ने खाना खा लिया? बच्चों ने हाँ कहकर जवाब दिया। मैने पूछा- क्या खाया? आलू पराठा कहकर दोनों चुप हो गये। मैने आगे पूछा~ तुम लोगों को आलू पराठा बहुत पसंद है! दोनो माँ की तरफ देखने लगे फिर दोनों ने सिर झुका लिया।
आंटी कहने लगी, रोज-रोज किसी चीज खाना किसे पसंद होता है बेटा परंतु, मजबूरी में खा लेते हैं। इतने बड़े-बड़े बच्चे हैं मन तो इनका भी करता होगा कि घर में कुछ और बने। परंतु, क्या करें।
कोई मजबूरी में रोज आलू पराठा खाता होगा ये बात तो शायद किसी को हजम हो। आमतौर पर आलू पराठा बड़े-बड़े लोग खाते हैं या फिर मध्यम वर्गीय परिवारों में भी अक्सर खाया जाता है। परंतु, कोई कहे कि मजबूरी में आलू पराठा खा रहे हैं वो भी रोज!! आंटी ने मुझसे सवाल किया~ बेटा एक बात बताव आलू पराठा बनता कैसे है? आप लोग अपने घरों मे आलू पराठा कैसे बनाते हो? हमारे यहाँ कैसे बनता है आपको पता है! दो आलू को उबालकर उसमें नमक-मिर्ची और हल्दी डालकर हाथ से मसल लेते हैं, आटे की दो-दो लोई बनाते हैं सबके लिये और उसी में आलू भरकर पराठा सेंक लेते हैं जरा-जरा सा तेल लगा कर। वैसे तो आलू पराठा में अच्छे से तेल या घी लगाकर पलट-पलट कर सेंका जाता है परंतु हमारे यहाँ ऐसा नहीं बनता, मक्खन की तो हम सोच भी नहीं सकते। बस ऐसे ही आलू पराठा बनाकर अचार से खा लेते हैं। सब्जी-भाजी खरीदने के लिये पैसे तो होते नहीं, दो आलू से चार लोगों की सब्जी भी ढंग से नहीं बनती फिर सब्जी के लिये मसाले भी चाहिये। एक किलो आलू हफ्ते भर चलता है। हमारे पास बस एक-एक अच्छे कपड़े हैं बस उसी को रोज धो-धोकर पहनते रहते हैं। बेटी के लिये बस, दो फ्राक बनवायी हूँ, वो भी अपनी साड़ी से। अब मेरे पास एक ही साड़ी है पहनने के लिये। घर जाकर गाऊन पहन लेती हूं और इस साड़ी को धोकर डाल देती हूं। पहले सब कुछ ठीक था, तुम्हारे अंकल एक बड़े कपड़े की दुकान पर काम करते थे, अच्छी पगार थी। अचानक तबियत खराब होने से काम छुट गया। थोड़ी-बहुत जमापूंजी थी वह भी खतम हो गयी। कुछ दिनों तक तो घर का सामान बेचकर गुजारा होता रहा लेकिन ऐसे कब तक चलता फिर मैंने दो घरों में झाडू़-पोंछा औेर कपड़ा धोने के काम में लग गयी। अच्छे लोग हैं नौकरानी की तरह नहीं समझते घर जैसे समझ कर काम करती हूं । वैसे तो कई घरों में काम मिल जायेगा लेकिन कभी किया नहीं तो संकोच होता है। बस अब तो भगवान से यही प्रार्थना है कि तुम्हारे अंकल जल्दी ठीक हो जायें। लोग तरह-तरह की बातें करते हैं मुझे सब पता है लेकिन, क्या करें, लोगों के मुँह पे ताला तो नहीं लगा सकते। लोगों को लगता है कि मैं बहुत खूबसूरत हूँ इसलिये मेरे पति मुझे कहीं अकेले नहीं जाने देते, मैं जहाँ भी जाती हूँ सब मेरे साथ चले आते हैं परंतु, सच बात तो ये है कि, तुम्हारे अंकल को अकेले नहीं छोड़ा जा सकता, उनकी तबियत ठीक नहीं है वो ठीक से बोल भी नहीं पाते। बच्चों को भी वहाँ पर अकेले नहीं छोड़ा जा सकता। घर का किवाड़ बहुत पुराना हो गया है , टूट भी गया है लेकिन, घर को वैसे ही छोड़ देते हैं आखिर, घर में है भी क्या, जिसे लोग उठाकर ले जायेंगे।
ज्ञानवर्धक लेख की शिक्षा
कहने लगीं, आजकल लोग किसी की मजबूरी पर तरस नहीं खाते बल्कि, मजबूरी का तमाशा बनाते हैं। इसलिए, हम किसी के सामने अपनी मजबूरी नहीं गिनाते। लोगों को लगता है कि हम रोज आलू पराठा खाकर रोज दावत कर रहे हैं। अगर, लोग ऐसा समझते हैं तो समझें, हम किसी के घर कटोरी लेकर नहीं जाते सब्जी के लिये। एक ही कपड़ा से काम चला लेते हैं लेकिन, किसी के आगे अपना रोना नहीं रोते। लोग हमारी मजबूरी देखकर यदि तरस भी खायेंगे तो क्या, मदद के लिये तो नहीं आयेंगे, सब मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं। इन्हें लगता है कि, हम रोज आलू पराठा खाते हैं तो लगने दो। इन्हें लगता है कि हम सब बनठन कर सब एक साथ घूमने निकलते हैं तो लगने दो। यदि, वे हमारे बारे में गलत सोचकर खुश होते हैं तो होने दो। वो वैसे खुश हैं तो हम ऐसे खुश हैं।
**अंजली शर्मा**
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ ).