डिजिटल भारत – बदलाव की पहल: उभरते मुद्दे और चुनौतियां | डाॅ अशोक कुमार गौतम

डिजिटल भारत – बदलाव की पहल: उभरते मुद्दे और चुनौतियां

‘डिजिटल भारत‘ की बात जब भी मन में आती है, ‘सूचना प्रौद्योगिकी‘ शब्द मन में कौंधने लगता है। आँखों के सामने सम्पूर्ण विश्व की तस्वीर उभर कर आ जाती है। ऐसा लगता है सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड मुट्ठी में आ गया है। डिजिटल इण्डिया के विषय में जब भी चिंतन करते हैं तो मन में चैटिंग, साइबर कैफै, आनलाइन व्यापारिक कारोबार, विद्यार्थियों के लिये आनलाइन पाठ्य सामग्री, सभी कार्यालयों की जानकारी उभरकर सामने आ जाती है। एक पल में कोई भी प्रोग्राम या आवश्यकताओं का हल खोज लेते हैं। डिजिटल क्षेत्र में टेलीफोन, मोबाइल, पेजर, कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि की अहम भूमिका होती है।

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’’डिजिटल युग की देन है आज हम घर बैठे अमेरिका, फ्रांस, जापान, ब्रिटेन आदि देशों के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों से घर बैठे पढ़ाई करके डिग्री प्राप्त कर सकते हैं, वह भी नाम मात्र की फीस में। सम्भावना है कि भविष्य में कम्प्यूटर स्वयं ही किताबों को पढ़कर सूचना देने लगे। सरकार ने विद्यावाहिनी योजना के माध्यम से इस दिशा में कदम भी उठाया है।’’

डिजिटल इण्डिया प्रोजेक्ट (Digital India Project) का विमोचन 1 जुलाई सन् 2015 ई0 को इन्दिरा गांधी स्टेडियम नई दिल्ली में हुआ था। डिजिटल इण्डिया प्रोजेक्ट के उद्घाटन अवसर पर रिलायंस, विप्रो, टाटा, भारती ग्रुप आदि के सी0ई0ओ0 ने भाग लिया था। इसके तहत सभी क्षेत्रों को इलेक्ट्रानिक मीडिया से जोड़ा जायेगा। डिजिटल इण्डिया सरकार का अहम प्रोजेक्ट है। इसके माध्यम से भारत की सभी 2,20,000 ग्राम पंचायतों को एक साथ जोड़ा जायेगा। शहरी क्षेत्र के लोग इन्टरनेट को अच्छी तरह से समझ चुके हैं, फिर भी ई-स्टडी, ई बुक्स, ई-टिकट, ई- बैंकिग, ई- शापिंग आदि का सर्वाधिक प्रयोग महानगरों के लोग करते हैं। भारत की 35% आबादी आज भी इण्टरनेट की पहुंच से दूर है।

प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) महत्वपूर्ण अभियान है, इसके तहत देश के 6 करोड़ घरों को 2019 तक डिजिटल रूप से साक्षर बनाने का उद्देश्य है। कौशल विकास प्रोजेक्ट (Skill Devlopment Project) 2017 से प्रारम्भ हो चुका है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य शहरी, ग्रामीण, पिछड़े लोगों को सैद्धान्तिक और व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षण प्रदान करके स्वावलम्बी बनाना है, जिसके लिये तकनीकी, डिजिटल जानकारी दी जाती है।

C.S.C. (Common service Centre) अर्थात् आम सेवा केन्द्र, यह प्रोग्राम राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्स योजना का रणनीतिक आधार है। इसे मई 2006 में भारत सरकार के इलेक्ट्राॅनिक एवं आईटी मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। जिसका उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, टिकट, विभिन्न प्रमाणपत्र बनवाना, बिल भुगतान और अन्य जानकारी उपलब्ध कराना था। आज यह सेवा भारत में बृहद् स्तर पर कार्य कर रही है। इस डिजिटल युग में कम्प्यूटर बनाम मानव (Computer v/s Human) में श्रेष्ठ कौन है।इस सम्बन्ध में आम जनता में भी अक्सर चर्चाएं हुआ करती हैं।

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’’कम्प्यूटर के सम्बन्ध में यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिये कि कम्प्यूटर की अपनी कोई बुद्धिमत्ता नहीं होती, न ही इसमें सोचने बिचारने की समझ या निर्णय लेने या तर्क करने की शक्ति होती है। यह शक्ति उसे मानव द्वारा प्रदान की जाती है। अतः कम्प्यूटर मानव की ही कृति है, इसलिये वह मानव से श्रेष्ठ नहीं हो सकता है, लेकिन किसी मानव से श्रेष्ठ कार्य करने में सक्षम अवश्य हो सकता है।’’

’डिजिटल भारत’ सरकार की एक पहल है, जिसके तहत सभी सरकारी विभागों को देश की जनता से जोड़ना है। इसका प्रमुख उद्देश्य बिना कागज (paperless) के इस्तेमाल के सरकारी सेवाएं जनता तक आसानी से इलेक्ट्राॅनिक रूप से पहुंचाना है। इस परियोजना को ग्रामीण क्षेत्रों की जनता तक पहुंचाने के लिए त्रिस्तरीय प्रोग्राम बनाया गया है- (1) डिजिटल आधारभूत ढ़ांचे का निमार्ण करना, (2) इलेक्ट्राॅनिक रूप से सेवाओं को जनता तक पहुंचाना, (3) डिजिटल साक्षरता। इस योजना को वर्ष 2019 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है, इससे सेवा प्रदाता और उपभोक्ता दोनों को प्रत्यक्ष लाभ होगा।
भारत निरन्तर प्रगति के पथ पर चल रहा है। डिजिटल भारत का सपना 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी ने देखा था जो पूर्णरूपेण आज चरितार्थ हो रहा है। भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी उज्ज्वल भारत के भविष्य का सपना साकार कर रहे हैं।

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सरकार ने डिजिटल इण्डिया के माध्यम से अमीर-गरीब के खाई पाट दी है। फिर भी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह खाई आज भी बनी है, जिसे ’ 4जी बनाम 2जी ’ कहा जा सकता है, अब तो 5G की पीढ़ी आ गयी है। जरूरत है हम इन सम्भावनाओं और सुरक्षा के सवालों के बारे में सजग रहें। ई-टेन्डर, ई-टिकट, ई-बिल आदि को जितना प्रयोग में लाया जायेगा उतना ही भष्टाचार में लगाम लगेगी। हमारे देश में नेटवर्क की बहुत समस्या थी, जिसका उदाहरण दूरदर्शन है। पहले हम छत पर चढ़कर एन्टीना घुमाया करते थे, अब सेटटाॅप बाक्स के माध्यम से साफ चित्र देख सकते हैं। ’आज भारत का नेटवर्क इतना स्लो है कि भारत का दुनिया में 115वां स्थान है। जाहिर है सरकार इन उद्देश्यों को आसानी से हांसिल नहीं कर सकती।’ (source NDTV)


भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी ने 8 नबम्बर 2016 को नोटबन्दी का आदेश पारित किया था। जिसके बाद से निरन्तर कैशलेस ट्रांजेक्शन पर जोर दिया जा रहा है। इस डिजिटल युग में मोबाइल यकीनन बटुआ के समान हो गया है। इसे ई-वाॅलेट नाम भी दिया गया है, पर इसका उपयोग आसान नहीं है। साइबर अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। अब सवाल उठता है क्या वाकई मौजूदा हालातों में देश की अर्थ व्यवस्था पूर्णरूपेण डिजिटल हो सकती हैघ् क्या लो-इण्टरनेट कनेक्टीविटी, साइवर क्राइम, तकनीकी जानकारी का अभाव, डिजिटल इण्डिया प्रोग्राम की प्रगति में बाधक हैघ् क्या भारत जैसे देश में कैशलेस इण्डिया का सपना पूरा करना आसान हैघ् इसके लिये अनेक चुनौतियों का सामना भारत को करना पड़ेगा।


डिजिटल इण्डिया का लाभ जनता को परोक्ष रूप से मिल रहा है, वहीं कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है। जिससे निपटने में कुछ वक्त लगेगा। 90 करोड़ गरीब, अशिक्षित लोगों के पास इन्ड्रायड मोबाइल नही है, वे लोग BHIM Apps का लाभ कैसे उठायेंगेघ? ऊपर से साइबर अपराधियों की नजरें Apps पर निरन्तर रहती। इन्ड्रायड मोबाइल के माध्यम से सोशल मीडिया पर झूठी अफवाहें फैलती रहती हैं, जिसे रोक पाना प्रशासन के लिये भी चुनौती है। इस मोबाइल से अँाख, कान खराब हो रहे हैं, वहीं कम निन्द्रा ले पाने के कारण पेट सम्बन्धी समस्याएं बढ़ रही हैं। फिर भी डिजिटल इण्डिया के सपने को आइए हम सब मिलकर सफल बनायंें, जिससे सशक्त राष्ट्र का निर्माण हो सके।

डाॅ अशोक कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर
रायबरेली (उ0प्र0)
मो0 9415951459

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हमारी आवाज | रत्ना भदौरिया

इंसानियत ख़त्म हो गई है इस बात से बिल्कुल नकारा नहीं जा सकता। मैं तो इस बात को चीख चीखकर कहती हूं। अगर इंसानियत होती तो हम बार बार स्त्री होने के नाम पर पिस्ते नहीं देखो न कभी मणिपुर कभी राजस्थान कभी हाथरस मुझे नहीं लगता कि देश का कोई भी कोना बचा होगा जहां हम नहीं पिसे हो।पिसना, शर्मसार, घटिया, दुखदायी ये सारे शब्द मुझे ऐसी घटनाओं के आगे बहुत फीके और छोटे लगते हैं।

ऐसी घटनाओं के लिए जो शब्द इस्तेमाल करना चाहिए वो तो वर्णमाला में भी नहीं मिलते क्योंकि वर्णमाला को भी शर्म आती होगी ऐसे शब्दों को अपने बीच पाते हुए। कल राजस्थान में एक औरत की मात्र इतनी ही तो बात थी कि वो दूसरे आदमी के साथ रहना चाहती थी। मैं पूछती हूं उन तमाम महिलाओं को जब पुरुषों के द्वारा कभी दहेज के लिए तो कभी वो दिखने में सुंदर माडर्न नहीं है कभी क्या,कभी क्या कहकर छोड़ दिया जाता है,जला दिया जाता है तब कहां चले जाते हैं?

ये बड़े -बड़े दांत दिखाने वाले लोग जो आज उस महिला की नग्न अवस्था देखकर निकाल रहे थे। खैर पुरुष का छोड़ो यहां पर वो बात भी बहुत सत्य साबित होती है घर का भेदी लंका ढाही। क्योंकि महिलाओं के दांत भी वहां कम छोटे नहीं दिख रहे थे उस महिला को नग्न देखकर ।कमसे कम हमें तो जगना होगा। लेखक , विचारक , प्रचारक, राजनीतिक, सामाजिक और सोसल मीडिया का तो क्या ही कहना —-?

अरे फालोवर्स बढ़ाकर चुप क्यों हो जाते हैं इसलिए की दूसरे मुद्दे पर फालोवर्स बढ़ाना है या फिर इसलिए की इस मुद्दे से झोली भर गयी । मैं पूछती हूं की जब हम महिलाओं को ही खत्म कर दिया जायेगा तो आप सब आयेंगे कहां से क्योंकि बनाया तो हमनें ही है आप सबको भी । और ये फालोवर्स बढ़ाने वाले लोग ——–। तो सब मिलकर तब तक फालोवर्स बढ़ाते रहिए जब तक हमारी समस्या का समाधान ना हो जाए।

एक बात और कहना चाहती हूं कि एक लड़की या औरत जब कपड़ा छोटा पहन लिया तो वो मर्यादा या संस्कार भूल गयी । महिलाओं को जो निर्वस्त्र किया गया उसके खिलाफ आपके मुंह बंद क्यों और यदि खुले हुए हैं तो चुप्पी क्यों?

रत्ना भदौरिया रायबरेली उत्तर प्रदेश

मेरे जीवन की प्रतिमूर्ति :मेरे गुरु

मेरे जीवन में कोई एक अध्यापक नहीं बल्कि अनेकों गुरुओं का योगदान रहा है और मैं मानती भी हूं कि वो हर व्यक्ति गुरु होता है जिससे हम कुछ न कुछ सीखते हैं। लेकिन कुछ गुरु विशेष हैं मेरे जीवन में जो कुछ न कुछ नहीं बल्कि सभी कुछ सिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उनका बस चले तो गूगल की तरह हर चीज सिखा दें।

अब वो विशेष हैं तो यहां नाम लेना भी विशेष है -मेरी मां और पिता, संतलाल सर, मन्नू भंडारी, सुधा अरोड़ा, ममता कालिया, अशीष श्रीवास्तव,इन विशेष गुरुओं ने आज मुझे जिस मुकाम तक पहुंचाया है कि अगर जीवन में यहां से लडखडाऊं तो भी जमीन पर गिर कर बिथरुंगी नहीं बल्कि नीचे धीमी गति से और संभलते हुए उतरूंगी। आशीष सर की एक बात बार- बार याद आ रही है।

जब मैं नौवीं कक्षा में पढ़ती थी तब अशीष सर हमारे कक्षा अध्यापक होने के साथ -साथ हिन्दी के अध्यापक और गांव के रहने वाले। इत्तफाक उनका खेत मेरे घर के सामने ही जब कभी खेतों की तरफ आते मेरी मम्मी या पापा से शिक़ायत कर जाया करते कि ये पढ़ती नहीं है बिल्कुल भी। मैं हर दिन मुंह बिचकाते हुए पता नहीं सर इधर आते ही क्यों हैं? इनके पास कोई काम ही नहीं। हर शाम दरवाज़े पर दुबकी किताब लेकर बैठती महज सर के डर से की शायद पढ़ता हुआ देख शिकायत नहीं करेंगे लेकिन फिर भी ——-।

मम्मी का भी यही था हर दिन ग़लती निकालना तब अच्छा नहीं लगता था लेकिन आज ग़लती नही सही है यह चीज मम्मी या किसी के मुंह से सुनकर बहुत अच्छा लगता है और मम्मी की बात भी याद आती है कि उस समय ——।

संतलाल सर, सुधा अरोड़ा, मन्नू भंडारी सबने साहित्यिक जीवन के साथ -साथ व्यक्तिगत जीवन से जुड़े हर पहेलू में मेरी मदद के साथ -साथ बेहतरीन से बेहतरीन काम को करने की सीख दी। सभी को धन्यवाद के साथ -साथ शिक्षक दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं। आप सब हमेशा स्वस्थ रहें और यूं ही मेरा मार्गदर्शन करते रहें।

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शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान-2023 प्रविष्ठियाँ आमंत्रित

शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान-2023 प्रविष्ठियाँ आमंत्रित

New Delhi : प्रत्येक वर्ष की भांति, इस वर्ष भी 12 दिसम्बर, 2023 को ‘’शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान’’ हिंदी भवन, दिल्ली में दिये जाने है। भारत वर्ष में रहने वाले, किसी भी आयु वर्ग के, महिला-पुरूष, लेखक इसमें भाग ले सकते हैं।

  • शिल्पी चडढा स्मृति सम्मान में भाग लेने के लिए संबंधों पर आधारित, (दिसंबर 2022 से नवंबर 2023 के दौरान प्रकाशित ) पुस्तकें आमंत्रित हैं (मां, पिता, देश, भाई, बहन आदि शीर्षक पर ),संबंधों पर प्रकाशित (किसी भी विधा पर ,काव्य संग्रह, लेख संग्रह,नाटक, उपन्यास, कहानी संग्रह आदि ) अपनी पुस्तक की दो प्रतियां कृपया निम्नलिखित पते पर भिजवांंये: सविता चड्ढा जन सेवा समिति (रजि), E.51, Deep Vihar, Rohini Sec.24 (आदर्श हॉस्पिटल के पास ), दिल्ली 110042.पर स्पीड पोस्ट /डाक से भेज सकते हैं। पुस्तक भेजने की सूचना, अपने परिचय और फोन नंबर, संपर्क पते के साथ मेल करना अनिवार्य है। (मेल savitawriter@gmail.com ).

आपकी पुस्तक मिलने के पश्चात आपको मेल पर पुष्टि कर दी जाएगी कि आपकी पुस्तक सम्मान हेतु प्राप्त हो गई है ।

  • शिल्पी चड्डा स्मृति सम्मान के अंतर्गत चयनित एक पुस्तक को सम्मान स्वरूप नकद धनराशि 5100 रूपये के साथ , प्रतीक चिन्ह, अंगवस्त्रम आदि गरिमामय समारोह में प्रदान किया जायेगा। प्राप्त पुस्तकों में से चुनी गई 10 अन्य पुस्तकों के लेखकों को भी इस सम्मान समारोह में सम्मानित किया जाएगा।

समारोह के बारे में सूचना आपको 15 नवम्बर, 2023 तक दे दी जायेगी।

  • उपरोक्तानुसार आप अपनी पुस्तकें अधिकतम 15 अक्टूबर , 2023 तक भेज सकते हैं।

डाँ. सविता चडढा
संस्थापक: शिल्पी चड्डा स्मृति सम्मान समारोह

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फैसला | रत्ना भदौरिया | Hindi Short Story

फैसला | रत्ना भदौरिया | Hindi Short Story

इंतजार की हद होती है ये बात खूब सुनी थी और हर दिन सोचता भी की मेरे इंतजार का ——-?हर दिन वो यही कहती की आज नहीं कल बता दूंगी और उसका कल आता ही नहीं बस हर दिन आज होता। मैं उसके कल वाला वो दिन जब मेरे दिल की बात समझकर मुझसे कुछ कहेगी इसी इंतजार में घर से हर दिन उसके स्कूल जाने के समय पर आकर सड़क पर खड़ा हो जाता। इसी वजह से कभी -कभी मैं स्कूल देर से पहुंचता तब प्रिंसिपल कहते अगर अध्यापक ही समय से स्कूल नहीं आयेंगे तो बच्चों का क्या होगा? सर कल से ध्यान रखूंगा कहकर कक्षा में चला जाता।समय व्यतीत हो रहा था लेकिन उसका कल नहीं आया। इसी बीच नया साल आया मैंने उस दिन लम्बी चौड़ी चिट्ठी लिखी -मै जानता हूं प्रिय की तुम मुझे जवाब क्यों नहीं दे रही हो ।शायद और लड़कों की तरह तुम भी मुझे आवारा आशिक समझती हो पर सच मेरे दिल में सिर्फ़ तुम्हीं हो।

वैसे तो मैं भी कह दूं की चांद से तारे तोड़ लाऊंगा लेकिन मैं वहीं कहूंगा जो कर सकता हूं क्योंकि कहने पर विश्वास नहीं करता,कहने पर विश्वास करता हूं। तो प्रिय दिल से मेरी इस बात को सुनना और दिमाग से सोचकर जवाब जरूर दें देना । पुनः कह रहा हूं आप ही मेरे दिल में हो आप ही हमेशा रहोगी। एक बात और वादा -इस दिल में तेरे शिवाय कोई और नहीं आयेगा। मैं आई —यू लिखकर छोड़ रहा हूं पूरा करने का फैसला तुम्हारे हाथ में—-। ये चिट्ठी लेकर नयी साल की सुबह नये उम्मीद के साथ सड़क पर जैसे ही निकला वो स्कूल जा रही थी मैं भी पीछे-पीछे चल पडा दो सौ मीटर की दूरी पर जाकर मैंने उनकी साइकिल के सामने गाड़ी रोक दी और चिट्ठी पकड़ाते हुए कहा- ये ले लो एक बार पढ़कर ज़वाब दे दो प्लीज़। इस चिट्ठी में भी वही लिखा होगा जो तुम रोज कहते हो। उसने कहा!

फिर तुम जवाब क्यों नहीं देती । देखो आज तो नया साल है और हम ——। मैं अभी पूरी बात कह भी नहीं पाया कि वो बोल पड़ी इससे क्या हुआ अगले साल फिर आयेगा और कोई फिर आकर कह दे देखो नया साल है ——। अब मेरा जवाब सुनों तुम बिना मतलब पीछे मत पड़ो। उसका नकारना मन को कचोट तो रहा था लेकिन दूसरी तरफ़ ख़ुशी भी की उसका कल तो आया। मैंने वहीं से गाड़ी मोड़ी और घर वापस आ गया इस सवाल के साथ की कभी ना कभी वापस आयेगीं। उसी दिन से इसी सवाल को लेकर जीने लगा। समय व्यतीत होता गया मेरी शादी हुई और कुछ साल के बाद उसकी भी शादी हो गई। दोनों गृहस्थ जीवन में व्यस्त हो गए मैं भी जिंदगी की गाड़ी को गुडकाने के लिए स्कूल की नौकरी छोड़कर दिल्ली चला आया क्योंकि प्राइवेट स्कूल में मिलने वाली तनख्वाह से पेट भर भरना दूभर हो गया था। बच्चे भी हो गये थे सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था।

आज जब पन्द्रह साल बाद उसकी फ्रेंड रिक्वेस्ट देखी तो आश्चर्यचकित हो गया लेकिन दूसरी तरफ सवार ने धक्का मारा और मैं आश्चर्यता को दरकिनार कर उसी फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली। हाल चाल के बाद हमारी बातें शुरू हुई। लेकिन आज मैं नहीं वो ज्यादा बोल रही थी। उसने कहा कि मैं माफी चाहूंगी की उस समय के आज को नहीं समझ पायी हमेशा कल में बदलती रही । क्या अब हम बात कर सकते हैं? उसकी बात करने की बात सुन मैं फिर प्रश्नवाचक हो गया क्या? कैसी बातें कर रही हो आप ? अब तो शायद बहुत देर कर दी काश ! तब समझ जाती तो मैं यहां वीरान सा सिर्फ जिंदगी की गाड़ी को गुडकाने में नहीं बल्कि दोनों साथ मिलकर दौड़ाने में लगे होते। ऐसा क्यों आपकी शादी हो गई आप अपनी बीबी के साथ भी ——-। उसकी इस बात से मैं मुस्कुराया और बोला- तुम्हारी भी तो शादी हो गयी है फिर‌ तुमने इस बात को अब क्यों समझा ?

छोड़ो ना जो बीत गया सो बात गया अब हम बात करते हैं और हां सभी तो कहते हैं जब जागो तभी सवेरा वाली बात से नयी शुरुआत करते हैं।

नयी शुरुआत शब्द सुनकर कुछ छड़ के लिए मैं चुप हो गया और सोचने लगा नयी शुरुआत ——। नहीं नहीं बिल्कुल नहीं मेरे दिल में तो पन्द्रह साल पहले की पुरानी शुरुआत अभी भी है जो कभी शुरू ही नहीं हुई थी तो नयी शुरुआत कैसी ? क्या ?तुम आज भी —-!उसने कहा। और तुम ——-वो कुछ नहीं बोली थोड़ी देर तक सन्नाटा पसरा रहा फिर ——।

सजल |बेटे-बहू नातियों को मैं कोने का सामान हो गया | डाॅ०अनिल गहलौत

बेटे-बहू, नातियों को मैं, कोने का सामान हो गया।
धीरे-धीरे अपना ही घर, मुझको चूहेदान हो गया ।।

नौते-पानी, चाल-चलन सब, होते सबकी मन-मर्जी से।
मैं बूढ़ा क्या हुआ सभी का, सफर बहुत आसान हो गया।।

चूर-चूर अभिमान एक दिन, कर देता है समय बली यह।
एक केंचुए-सा बुढ़ाँत में, लचर कड़क-संज्ञान हो गया।।

नहीं धमक वह रही, न वैसा, रुतबा रहा गाँव में अपना।
राम-राम, बंदगी-दुआ का, बदला रूप-विधान हो गया।।

बड़ा न कोई कुनबे में कोई, बचे सभी छोटे हैं मुझसे।
पास न आते, कतराते सब, जीवन उच्च मचान हो गया।

जब हम बूढ़े हो जाएँगे, तब वट-वृक्ष कहे जाएँगे।
सीचेंगे सब हमें प्यार से, मिथ्या गर्दभ-गान हो गया।।

जग समझा ही‌ नहीं सृष्टि का, शाश्वत सत्य विधान आज तक।
भव्य भवन हो ग‌ए खंडहर, देख दुखी मन म्लान हो गया।।
—डाॅ०अनिल गहलौत

रक्षाबंधन | रश्मि लहर | रक्षाबंधन पर छोटी सी कविता | Poem On Raksha Bandhan In Hindi

रक्षाबंधन | रश्मि लहर | रक्षाबंधन पर छोटी सी कविता | Poem On Raksha Bandhan In Hindi

रक्षाबंधन

मेरी कलाई को सहेजे
यह रक्षासूत्र मेरी संपूर्णता को
अपनी दुआओं से नवाजता रहता है!
संवेदनाओं से गलबहियाॅं करता हुआ
यह बन्धन जब-तब मुझे
निखारता रहता है, सॅंभालता रहता है!

कभी शैशव की मुस्कराती नोंक-झोंक में उलझाता है,
तो कभी यर्थाथ की कटु यातनाओं से बाहर निकाल लाता है
और स्वयमेव ही मेरे ‘स्व’ से परिचय करवाता है!

बाल-सखा से हम! कब एक-दूसरे के
पथ-प्रदर्शक बन चुके होते हैं, पता ही नहीं चलता।
मेरे असंख्य सपनों में रंग भरता है
तुम्हारी रोली-अक्षत से सजा मेरे माथे का टीका।

मेरे भावों के ऑंगन में सिमटी मेरी ज़िम्मेदारियों को
तुम्हारी रंग-बिरंगी कल्पनाएं और
खिलखिलाती चुहलबाज़ियाॅं सहज बना देती हैं!

सुनो बहना!
मैं उम्र के अंतिम पड़ाव तक
तुम्हारा हाथ अपने मस्तक पर चाहूॅंगा।
तुम्हारे रॅंगोली रचे भाव,
तुम्हारी नज़रें उतारती सी ऑंखें
और मेरी कलाई को सहेजे यह रक्षासूत्र!
मेरी संभावनाओं का अनूठा सहारा है।
तुम जानती हो न?
मुझे यह रिश्ता हर रिश्ते से प्यारा है!

रश्मि लहर
इक्षुपुरी कालोनी,
लखनऊ

झूम कर चांद पर अब तिरंगा कहें | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

झूम कर चांद पर अब तिरंगा कहें | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

झूम कर चांद पर अब तिरंगा कहें,
सबसे उपर हमारा वतन हो गया।
उनके झंडे में बस चांद ही चांद है
मेरे झंडे का घर चांद पर हो गया।

फब्तियां कसने वालों का सूखा गला,
होगा हमसे न कोई अजूबा भला।
तुम बना लो खिलौने के औजार बस,
तुमसे दुनिया से कोई नहीं वास्ता।
ज्ञान,प्रज्ञान की तो समझ चाहिए,
हाय चंदा धरा की नज़र हो गया।
उनके झंडे में बस चांद ही चांद है,
मेरे झंडे का घर चांद पर हो गया।

वो उछलते रहे हांथ दो हांथ बस
ज्यादा उछले तो मिट्टी खिसकने लगी।
गिर गए खा के गश तो उठाना पड़ा,
जिंदगी हाथ से फिर फिसलने लगी।
हम जो उछले तो समझो हवाओं में भी,
जोश का पूरा पूरा असर हो गया।
उनके झंडे में बस चांद ही चांद है,
मेरे झंडे का घर चांद पर हो गया।

देख कर यान को चांद ठिठका रहा,
धीरे धीरे से फिर जा गले लग गया।
ले कर आगोश में प्यार से कह उठा,
मै न जापान का और नहीं रूस का,
अा गए तुम तो समझो ये मामा तेरा,
आज खुशियों से जी तर बतर हो गया।
उनके झंडे में बस चांद ही चांद है,
मेरे झंडे का घर चांद पर हो गया।।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली
रायबरेली।

वह बूढ़ा पेड़ | सम्पूर्णानंद मिश्र

वह बूढ़ा पेड़

गांव की ड्योढ़ी पर आज
वह बूढ़ा पेड़ नहीं दिखा मुझे

जिसकी डालियों की देह पर
चींटियां इत्मीनान से अपना निवाला निर्विघ्न लेकर आती थी

किसी आगत ख़तरे में
उन पेड़ों के कोटर में
गिलहरियां छुप जाया करती थी

गांव की सुहागिन
लड़कियां सावन में
पेड़ की लचीली डालियों पर
झूलते हुए‌ प्रिय के पास अपनी प्रेम- पाती पहुंचाती थी

वह बूढ़ा पेड़ गांव के
बच्चों को संस्कारों का ककहरा सिखाता था

बूढ़ों की खिलखिलाहट
उसी पेड़ में बसती थी

न जाने कितनी विधवाओं की मांगों में सिंदूरी रंग डाला था
पंचायत ने उसी बूढ़े पेड़ के निर्णय पर

उस बूढ़े पेड़ के
हस्ताक्षर के बिना
गांव का कोई मांगलिक कार्य सम्पन्न नहीं होता था

वह बूढ़ा पेड़
मानों गवाह था
गांव के शुभ और अशुभ कर्मों का

लेकिन वह बंद रखता था
हमेशा अपना मुंह

राग और द्वेष से
मुक्त था वह

गांव के सबल लोग
कभी- कभी
अनायास उससे टकराते थे

क्योंकि
उस बूढ़े पेड़ ने
अपने पेट में न जाने गांव के कितने श्वेत चेहरों के पापों की गठरियों को छिपाए हुए था

न जाने कौन सी आंधी
कल रात आई

कि उस बूढ़े पेड़ की आंखें
आज नीली हो गई

सैकड़ों कौओं से
वह बूढ़ा पेड़ आज घिरा हुआ था

छोटी- बड़ी चिटियां निष्कंटक उसकी देह पर चहलकदमी कर रही थी

आज वह बूढ़ा नहीं जगा!

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

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खुशबू | संस्मरण | रत्ना भदौरिया

खुशबू | संस्मरण | रत्ना भदौरिया

खुशबू आज भी आयी थी लेकिन आज की खुशबू में हवा ज्यादा थी इसलिए नाक के अंदर प्रवेश करते- करते गुम हो गयी । लेकिन मेरे दिमाग में पुरानी यादों को ताजा कर गयी थी। मेरे हिसाब से यादें पुरानी नहीं होती बस हम नयी यादों में इतना मशगूल हो जाते हैं कि पहले की यादें पुरानी लगने लगती हैं। हां तो अब उस याद पर आते हैं आज से लगभग दस पहले जब हम ज़िंदगी की आपाधापी से कोसों दूर खेलकूद की आपाधापी और त्योहार आते ही उसके उत्साह में व्यस्त रहते। ना कोई थकान होती ना कोई चिंता। आज तो खाने के हर कौर में यही चिंता रहती है की कहीं शुगर न बढ़ जाए या ब्लड प्रेशर बढ़ गया तो क्या होगा?अरे कुछ लोग कहते हैं कि ज्यादा तेल खाने से हार्ट की समस्या आ जाती है।

सब छोड़ो ये बात खूब याद रखो की वजन बढ़ जायेगा इसलिए लाइट खाना खाओ । मुझे ये बात थोड़ी कम जमती और त्योहार आते ही मेरा दिमाग घर में बन रहे पूड़ी,कचौड़ी, पुलाव ,पनीर , मिठाई और होली पर तेल में भुने पापड़ों की तो क्या बात ?जिसे आज के दौर में वजन ना बढ़ाने के लिए भूनकर खाया जाता है मैं तो तेल पापड़ के दौर में पतली थी भुने पापड़ों के दौर में खूब मोटी हो रही हूं पता नहीं क्यों? ये सवाल भी बराबर हिलोरें मारता रहता है। होली और नागपंचमी के त्योहार में हमारे यहां गुझिया बनाने का बड़ा रिवाज है। जोकि हर तबके के लोगों के यहां बनती है चाहे गरीब हो या अमीर।

अब जब अपनी यादों को ताजा कर ही हूं तो आप सबको एक मजेदार बात बताती हूं जब मैं करीब सात -आठ साल की थी तो होली के त्योहार में बनी गुझिया जिन्हें मांगने पर मम्मी एक दे देती और कहती बाद में खाना सब एक साथ नहीं। एक से भला होता नहीं,दूसरी तुरन्त मांगने पर मिलती नहीं थी। एक दिन मैंने और मेरे भाई बहन तीनों ने ज्यादा खाने की योजना बनाई। मम्मी की गुझिया अलमारी में रखी थी जोकि मेरे से ऊंचाई में बड़ी थी। तीनों मेज को सरका कर लें गये आलमारी तक और खूब गुझिया खायी कुछ पाकेट में भी रख ली।

दुर्भाग्य मम्मी खडी -खडी सब देख रही थी। कार्यक्रम खत्म होते ही सबसे पहले मुझे मार पड़ी इन शब्दों के साथ की चोरी घर से सीखते हैं खाना था तो बताया क्यों नहीं ? मम्मी के पिटाई के बाद धीरे-धीरे दिन बीतते गए और मैं नौकरी के सिलसिले में घर से बाहर आ गयी। अब तो अक्सर त्योहार पर बाहर ही रहती हूं। मम्मी फोन पर ही बता देती हैं क्या- क्या बनाया और मैं सुनकर ही पकवानों का आनंद लें लेती हूं। लेकिन गुझिया की बात सुनते ही बचपन की वो पिटाई जरुर याद आ जाती है।

मम्मी ने कल भी बता दिया था कि नागपंचमी का त्योहार है आज पकवान बता दिये मैं फोन से ही आनंद लें रही हूं। जो घर पर हैं वो सौभाग्यशाली हैं की उनकी खुश्बू बराबर नाक में जा रही होगी और देर तक थमी रहेगी । लेकिन जो मेरे जैसे घर के बाहर हैं उनको पकवानों की खुशबु आयी होगी लेकिन चाहे कुछ छड़ के लिए ही गुम हुई हो लेकिन हुई जरुर होगी। मैं तो इसी में खुश हूं कि ख़ुशबू आयी तो सही आप भी——— शुक्रिया।

रत्ना भदौरिया