झूम कर चांद पर अब तिरंगा कहें | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

झूम कर चांद पर अब तिरंगा कहें | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

झूम कर चांद पर अब तिरंगा कहें,
सबसे उपर हमारा वतन हो गया।
उनके झंडे में बस चांद ही चांद है
मेरे झंडे का घर चांद पर हो गया।

फब्तियां कसने वालों का सूखा गला,
होगा हमसे न कोई अजूबा भला।
तुम बना लो खिलौने के औजार बस,
तुमसे दुनिया से कोई नहीं वास्ता।
ज्ञान,प्रज्ञान की तो समझ चाहिए,
हाय चंदा धरा की नज़र हो गया।
उनके झंडे में बस चांद ही चांद है,
मेरे झंडे का घर चांद पर हो गया।

वो उछलते रहे हांथ दो हांथ बस
ज्यादा उछले तो मिट्टी खिसकने लगी।
गिर गए खा के गश तो उठाना पड़ा,
जिंदगी हाथ से फिर फिसलने लगी।
हम जो उछले तो समझो हवाओं में भी,
जोश का पूरा पूरा असर हो गया।
उनके झंडे में बस चांद ही चांद है,
मेरे झंडे का घर चांद पर हो गया।

देख कर यान को चांद ठिठका रहा,
धीरे धीरे से फिर जा गले लग गया।
ले कर आगोश में प्यार से कह उठा,
मै न जापान का और नहीं रूस का,
अा गए तुम तो समझो ये मामा तेरा,
आज खुशियों से जी तर बतर हो गया।
उनके झंडे में बस चांद ही चांद है,
मेरे झंडे का घर चांद पर हो गया।।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली
रायबरेली।