मुंशीगंज गोलीकांड : रायबरेली में दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड
बहुत ही सच्ची घटनाएं इतिहास के पन्नों में आज भी दफन है। यदि इनका सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाए तो निश्चित रूप से भारत वर्ष सोने की चिड़िया नजर आएगा, परंतु भौतिकवादी युग में ऐतिहासिक धरोहरों से इंसान का सरोकार निरंतर घटता ही जा रहा है। रायबरेली के दक्षिण छोर में सई नदी के तट पर स्थित शहीद स्मारक सीमेंट और कंक्रीट का स्तंभ मात्र नहीं है, वरन बहुत सी माताओं, बहनों, वीर नारियों का सुहाग इस स्मारक के कण-कण में रचा बसा है। मुंशीगंज के इस गोलीकांड में किसी का पुत्र, किसी का भाई, किसी का पति, किसी का पिता अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कुर्बान हो गया है। जब इस शहीद स्मारक की तरफ देखता हूँ तो वक्षस्थल गर्व से चौड़ा हो जाता है कि इन अमर वीर सपूतों की बदौलत हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं, किंतु इस पर्यटक स्थल की बदहाली देख कर मन व्यथित हो जाता है। इस शहीद स्मारक में सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी होने के कारण यह पूज्यनीय धरोहर रूपी स्थल वास्तव में युगल जोड़ों का संगम स्थल बनकर रह गया है।
इस पावन भूमि पर प्रति वर्ष 7 जनवरी को विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, कवि सम्मेलन आदि होते हैं। मेला जैसा हर्ष-उल्लास का वातावरण रहता है। तब जगदंबिका प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ की काव्य पंक्तियाँ सार्थक हो जाती हैं-
“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी ही जमीं होगा अपना ही आसमां होगा।”
भारतीय इतिहास में दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड रायबरेली के मुंशीगंज गोलीकांड को कहा जाता है।
रायबरेली शहर को दक्षिणी क्षेत्रों से जोड़ने के लिए मुंशीगंज के निकट सई नदी पर पुल बना हुआ था जो रायबरेली नगर और मुंशीगंज को जोड़ता था। अंग्रेजों को अधिक कर टैक्स देने और उनकी गुलामी के विरोध में हजारों किसान इसी पुल के दूसरी छोर पर एकत्रित हुए थे। इस आंदोलन में हिस्सा लेने पं.जवाहरलाल नेहरू जी पंजाब मेल से रायबरेली रेलवे स्टेशन पर उतर कर पैदल ही सई नदी के तट पर पहुँच गए थे, जबकि पहले मोतीलाल नेहरू को रायबरेली आना था। किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन को समाप्त करने और अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अंग्रेजों ने 07 जनवरी 1921 को निहत्थे किसानों पर धावा बोल अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दिया, मजबूत कंक्रीट का बना पुल को भी तोड़ दिया गया था। इस पुल के अवशेष रूप में दीवालें आज भी खड़ी हैं, जिस पर वर्तमान समय में लगभग 4 फ़ीट चौड़ा लोहे की रॉड और चद्दर से बना अस्थायी पुल आज भी प्रतिदिन सैकड़ों पैदल और साइकिल यात्रियों को नदी पार कराते हुए थकता नहीं है, बल्कि अपनी गौरवशाली अतीत की याद तरो-ताजा कर देता है। इस स्मारक स्थल को आज भी टूटा पुल के नाम से पुकारा जाता है। इस हत्याकांड में लगभग 700 से अधिक भारतीय किसानों की हत्या की गयी थी और 1200 से ऊपर किसान घायल हुए थे। घायलों में काफी लोगों ने बाद में दम तोड़ दिया था। तब क्रूर अंग्रेजों ने अपने दस्तावेजों में मृतकों की संख्या मात्र तीन ही लिखी थी। इतनी अधिक मौतों के कारण इसे किसान आंदोलन और दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड कहा जाता है।
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आंदोलनकारियों ने चंदनिया में 5 जनवरी 1921 किसान सभा का आयोजन किया
ताल्लुकेदारों और जमींदारों का नया हथकंडा था कि दुकानों और घरों में लूटपाट करने के झूठे आरोपों में भोलीभाली और निरीह जनता को फंसा दो। इस अत्याचार से परेशान होकर किसानों और आंदोलनकारियों ने चंदनिया में 5 जनवरी 1921 किसान सभा का आयोजन किया। पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार 7 जनवरी 1921 को सूर्य की लालिमा के साथ ही हजारों किसान बैलगाड़ियों से आकर मुंशीगंज में एकत्रित होने लगे थे। इस बीच जनता को जवाहरलाल नेहरू के आने की खबर मिल चुकी थी। आम लोगों को उम्मीद हो गयी थी कि नेहरू जे के आते ही मेरे दोनों नेताओं के दर्शन हो जाएंगे। क्योंकि अतिउत्साही जनता अपने नेताओं ‘बाबा जानकी दास और अमोल शर्मा, का दर्शन करना चाहती थी, जिन्हें अंग्रेजों ने 5 जनवरी 1921 को गिरफ्तार करके लखनऊ जेल भेज दिया था। जनता नारे लगा रही थी- जानकीदास, अमोल शर्मा, जिंदाबाद जिंदाबाद.., ‘हरी बेगारी बंद हो।’
शिव बालक अहिंसात्मक आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे
सभी राष्ट्रीय चेतनावादी समाचार पत्रों में मुंशीगंज गोली कांड का मुख्य आरोपी खुरहटी के ताल्लुकेदार सरदार वीरपाल सिंह को ठहराया, क्योंकि तत्कालीन जिला कलेक्टर ए.जी. शेरिफ से वीरपाल की अच्छी खासी दोस्ती थी। वीरपाल सिंह ने कलेक्टर शेरिफ को पं जवाहरलाल नेहरू, रायबरेली जिला कॉंग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पं0 मार्तण्डदत्त वैद्य आदि के खिलाफ भड़काया था कि आम जनता नेहरू से मिलने न पाए, वरना नेहरू के भाषण सुनकर जनता उग्र हो जाएगी, जबकि जनता का उद्देश्य ऐसा कुछ भी नहीं था। खुरहटी निवासी शिवबालक ने सरदार वीरपाल सिंह के खिलाफ आवाज उठाई। शिव बालक अहिंसात्मक आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे। आम जनता पंडित जवाहरलाल नेहरू के दर्शन पाना चाहती थी। इसी समय नदी के तट पर अवसर देखकर वीरपाल सिंह ने कलेक्टर की शह पर शिवबालक से बदला लेने के लिए गोली चला दी, जिसमें शिवबालक की मृत्यु हो गई। गोलियों की आवाज सुनकर ब्रिटिश सिपाहियों ने भी निहत्थे जनता पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।
क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी ने 13 जनवरी 1921 को प्रकाशित अंक में इस गोलीकांड को प्रमुखता से प्रकाशित किया था
कानपुर के प्रसिद्ध पत्रकार, सप्ताहिक पत्र ‘प्रताप’ के संपादक, क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी ने 13 जनवरी 1921 को प्रकाशित अंक में इस गोलीकांड को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। प्रकाशित अंक ‘प्रताप’ में विद्यार्थी जी ने लिखा कि “डायर ने जो कुछ किया था उससे रायबरेली के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने क्या कम किया है। निहत्थे और निर्दोषों पर उसने गोलियां चलवाई, यही काम यहां रायबरेली में किया गया। वहाँ मशीनगन थीं, यहाँ बंदूकें थीं। वहाँ घिरा हुआ बाग था तो यहाँ नदी का किनारा। परंतु निर्दयता और पशुता की मात्रा में कोई कमी न थी। मरने वालों के लिए मुंशीगंज की गोलियां वैसे ही कातिल थी, जैसी जलियांवाला बाग की गोलियां।” पुनः गणेश शंकर विद्यार्थी ने इस गोलीकांड को 19 जनवरी सन 1921 को अपने अखबार ‘प्रताप’ में प्रकाशित किया था।
अंग्रेजों ने गणेश शंकर विद्यार्थी पर मानहानि का केस चलाया
ये खबरें पढ़कर अंग्रेजों ने गणेश शंकर विद्यार्थी पर मानहानि का केस चलाया। गणेश जी के आलेख का समर्थन पंडित जवाहरलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू, सी.एस. रंगाअय्यर आदि ने किया। श्रीमती जनकिया, बुधिया, बसंता आदि 65 लोगों ने गणेश शंकर विद्यार्थी के पक्ष में गवाही दी। पाँच मास लंबी बहस के बाद 30 जुलाई 1921 को मानहानि केस निर्णय के तहत न्यायाधीश मकसूद अली खान ने गणेश शंकर विद्यार्थी को विभिन्न धाराओं में छः माह की जेल और ₹ 1000 जुर्माना की सजा सुनाई। 100 वर्ष पहले के ₹ 1000 की कीमत का आज के समय में अनुमान लगा पाना आसान नहीं है। गणेश शंकर विद्यार्थी की जुर्माना राशि सेठ कंधई लाल अग्रवाल ने भर दिया था। अंग्रेजों का यह निर्दयी कृत्य सिद्ध करता था कि ‘अंग्रेज हैं मनुष्य, परंतु यथार्थ में पशु।’
रायबरेली विकास प्राधिकरण द्वारा शहीद स्मारक को पर्यटक स्थल (पिकनिक स्पॉट) के रूप में स्थापित किया गया था।
इस पवित्र स्थल पर शहीद स्मारक, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी द्वारा रोपित कदम्ब वृक्ष, बच्चों के लिए झूले, नवग्रह वाटिका, शहीदों की सांकेतिक मूर्तियां, जिराफ़, मगरमच्छ, कछुआ जैसे कुछ जलीय जीव सीमेंट और चीनी मिट्टी से बनाये गए, और रंग-विरंगे फूल पौधे रोपे गए थे। छोटा सा टीन शेड बना था।
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अफसोस! शासन-प्रशासन की बदइंतजामी के कारण अराजक तत्वों ने लगभग सब कुछ तोड़-फोड़ दिया है। अराजकतत्वों पर वैधानिक कार्यवाही होनी चाहिए।
इस गोलीकांड के एक सौ वर्ष पूर्ण हो गए हैं, किंतु शहीदों की याद में बना यह पार्क आज भी बदहाली के आँसू रो रहा है। इसी स्थान पर भारत माता का विशालकाय भव्य मंदिर भी बना हुआ है। दुर्भाग्य है कि इस मंदिर में कबूतर, कुत्ते घूम-घूमकर मल मूत्र त्याग कर गंदगी फैलाते हैं। सोंचो! यह सब देखकर शहीदों की आत्मा क्या कहती होगी?
कहा जाता है जब किसानों की हत्याएं हो रही थीं, अंग्रेजी हुक़ूमत की अंधाधुंध गोलियां निहत्थी जनता पर चल रही थीं, तब सई नदी का पानी लाल हो गया था। अब इंतजार है भारत माता का कोई लाल आगे आये और इस पवित्र स्थल का जीर्णोद्धार करा सके.. वन्देमातरम