फैसला | रत्ना भदौरिया | Hindi Short Story
फैसला | रत्ना भदौरिया | Hindi Short Story
इंतजार की हद होती है ये बात खूब सुनी थी और हर दिन सोचता भी की मेरे इंतजार का ——-?हर दिन वो यही कहती की आज नहीं कल बता दूंगी और उसका कल आता ही नहीं बस हर दिन आज होता। मैं उसके कल वाला वो दिन जब मेरे दिल की बात समझकर मुझसे कुछ कहेगी इसी इंतजार में घर से हर दिन उसके स्कूल जाने के समय पर आकर सड़क पर खड़ा हो जाता। इसी वजह से कभी -कभी मैं स्कूल देर से पहुंचता तब प्रिंसिपल कहते अगर अध्यापक ही समय से स्कूल नहीं आयेंगे तो बच्चों का क्या होगा? सर कल से ध्यान रखूंगा कहकर कक्षा में चला जाता।समय व्यतीत हो रहा था लेकिन उसका कल नहीं आया। इसी बीच नया साल आया मैंने उस दिन लम्बी चौड़ी चिट्ठी लिखी -मै जानता हूं प्रिय की तुम मुझे जवाब क्यों नहीं दे रही हो ।शायद और लड़कों की तरह तुम भी मुझे आवारा आशिक समझती हो पर सच मेरे दिल में सिर्फ़ तुम्हीं हो।
वैसे तो मैं भी कह दूं की चांद से तारे तोड़ लाऊंगा लेकिन मैं वहीं कहूंगा जो कर सकता हूं क्योंकि कहने पर विश्वास नहीं करता,कहने पर विश्वास करता हूं। तो प्रिय दिल से मेरी इस बात को सुनना और दिमाग से सोचकर जवाब जरूर दें देना । पुनः कह रहा हूं आप ही मेरे दिल में हो आप ही हमेशा रहोगी। एक बात और वादा -इस दिल में तेरे शिवाय कोई और नहीं आयेगा। मैं आई —यू लिखकर छोड़ रहा हूं पूरा करने का फैसला तुम्हारे हाथ में—-। ये चिट्ठी लेकर नयी साल की सुबह नये उम्मीद के साथ सड़क पर जैसे ही निकला वो स्कूल जा रही थी मैं भी पीछे-पीछे चल पडा दो सौ मीटर की दूरी पर जाकर मैंने उनकी साइकिल के सामने गाड़ी रोक दी और चिट्ठी पकड़ाते हुए कहा- ये ले लो एक बार पढ़कर ज़वाब दे दो प्लीज़। इस चिट्ठी में भी वही लिखा होगा जो तुम रोज कहते हो। उसने कहा!
फिर तुम जवाब क्यों नहीं देती । देखो आज तो नया साल है और हम ——। मैं अभी पूरी बात कह भी नहीं पाया कि वो बोल पड़ी इससे क्या हुआ अगले साल फिर आयेगा और कोई फिर आकर कह दे देखो नया साल है ——। अब मेरा जवाब सुनों तुम बिना मतलब पीछे मत पड़ो। उसका नकारना मन को कचोट तो रहा था लेकिन दूसरी तरफ़ ख़ुशी भी की उसका कल तो आया। मैंने वहीं से गाड़ी मोड़ी और घर वापस आ गया इस सवाल के साथ की कभी ना कभी वापस आयेगीं। उसी दिन से इसी सवाल को लेकर जीने लगा। समय व्यतीत होता गया मेरी शादी हुई और कुछ साल के बाद उसकी भी शादी हो गई। दोनों गृहस्थ जीवन में व्यस्त हो गए मैं भी जिंदगी की गाड़ी को गुडकाने के लिए स्कूल की नौकरी छोड़कर दिल्ली चला आया क्योंकि प्राइवेट स्कूल में मिलने वाली तनख्वाह से पेट भर भरना दूभर हो गया था। बच्चे भी हो गये थे सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था।
आज जब पन्द्रह साल बाद उसकी फ्रेंड रिक्वेस्ट देखी तो आश्चर्यचकित हो गया लेकिन दूसरी तरफ सवार ने धक्का मारा और मैं आश्चर्यता को दरकिनार कर उसी फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली। हाल चाल के बाद हमारी बातें शुरू हुई। लेकिन आज मैं नहीं वो ज्यादा बोल रही थी। उसने कहा कि मैं माफी चाहूंगी की उस समय के आज को नहीं समझ पायी हमेशा कल में बदलती रही । क्या अब हम बात कर सकते हैं? उसकी बात करने की बात सुन मैं फिर प्रश्नवाचक हो गया क्या? कैसी बातें कर रही हो आप ? अब तो शायद बहुत देर कर दी काश ! तब समझ जाती तो मैं यहां वीरान सा सिर्फ जिंदगी की गाड़ी को गुडकाने में नहीं बल्कि दोनों साथ मिलकर दौड़ाने में लगे होते। ऐसा क्यों आपकी शादी हो गई आप अपनी बीबी के साथ भी ——-। उसकी इस बात से मैं मुस्कुराया और बोला- तुम्हारी भी तो शादी हो गयी है फिर तुमने इस बात को अब क्यों समझा ?
छोड़ो ना जो बीत गया सो बात गया अब हम बात करते हैं और हां सभी तो कहते हैं जब जागो तभी सवेरा वाली बात से नयी शुरुआत करते हैं।
नयी शुरुआत शब्द सुनकर कुछ छड़ के लिए मैं चुप हो गया और सोचने लगा नयी शुरुआत ——। नहीं नहीं बिल्कुल नहीं मेरे दिल में तो पन्द्रह साल पहले की पुरानी शुरुआत अभी भी है जो कभी शुरू ही नहीं हुई थी तो नयी शुरुआत कैसी ? क्या ?तुम आज भी —-!उसने कहा। और तुम ——-वो कुछ नहीं बोली थोड़ी देर तक सन्नाटा पसरा रहा फिर ——।