कोहरा | Hindi Kavita | दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

कोहरा

कोहरे में सनें शहर- गांव,
लगता है चारों तरफ छांव।
दूर तक धुंधलापन दिखता,
धरती का नया रूप खिलता।
जिधर देखो धुआं- धुआं है,
पास का नहीं कुछ भी दिखता।
सूरज ने सबको दिया दांव,
कोहरे में सनें शहर- गांव।
ठंडक नें रूप है दिखाया,
जैसे मेहमान नया आया।
सर्दी से बचने की खातिर,
लोगों ने आग है जलाया।
ठंडक से जकड़े हाथ पांव,
कोहरे में सनें शहर- गांव।
चौपाये ठंड से हैं कांपते,
पक्षी भी घोसलों से झांकते।
कहीं अगर जाने की सोचो,
नज़र नहीं आते हैं रास्ते।
नदिया में चलती नहीं नाव,
कोहरे में सनें शहर- गांव।
नीचे को गिर रहा पारा,
अब केवल आग का सहारा।
कैसे कटेगी रात मेरी,
सोचता है बुधिया बेचारा।
दूसरा नहीं कोई ठांव,

कोहरे में सनें शहर- गांव ।

दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

सिलवटें | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

सिलवटें | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

मन की चादर पर पड़ी जो सिलवटें,
उम्र देकर ही मिटाती रह गई।
गिर गए कुछ पल सुनहरी मोतियों के,
ढूंढ कर उनको उठाती रह गई।

एक कोने में जला दी रोशनी अब
की अंधेरा अब न भरने पाएगा।
खिड़कियां भी खोल दी मन के जिरह पर,
अब तो झोंका संदली हो आएगा।

कुछ गुलाबी सी किरन भी आ गई तो,
मन गुलाबों सा खिला हो जायेगा।
बारिशें भी हो गईं तो पूछना क्या?
घर से आंगन तक धुला हो जाएगा।

जाग जाती काश सोई भीतियां सब,
तालियां ही मैं बजाती रह गई।
और निंदिया का हिडोला आन उतरे,
लोरियां मन को सुनाती रह गई।

आ गई है नींद किंतु मोतियां तो,
आज भी बिखरी हुई हैं जिंदगी में ।
सिलवटें सुधरी न चादर ही बदल कर,
सुरमई संध्या बुलाती रह गई।।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली

जनकवि सुखराम शर्मा सागर की कविता | हिंदी रचनाकार

अभी सवेरा यतन कीजिए

अभी सवेरा यतन कीजिए

जो बचा है उसको जतन कीजिए
बने हैं राजा रंक यहां पर
दिलों में दीपक जला दीजिए
मिली जो शोहरत नहीं मुकम्मल
कौन है अपना नहीं है मुमकिन
बोया है जैसा वही मिलेगा
अजीब करिश्मा समझ लीजिए
दिलों में दीपक जला दीजिए
माता-पिता है जहां में भगवन
प्रकृति का मकसद समझ लीजिए
सागर की लहरें आती है जाती
मैल दिलों के समन कीजिए
उम्मीद तुमसे किया जो अपने
वही करे जो फर्ज समझिए
नापूरी होगी ख्वाहिश सभी की
माया की नगरी समझ लीजिए
जो बचा है उसका जतन कीजिए
अभी सवेरा यतन कीजिए

जनकवि सुखराम शर्मा सागर

मर्म


सुख दुख के भव सागर में
अपने मन की प्यास छिपाए
तन मन हारा हारा है
फर्ज हमारा मर्म तुम्हारा
जब था सब कुछ पास हमारे
अपना बनाया बन सबके प्यारे
बिरले दुख में बने है साथी
हकदार बने अब सभी बाराती
अपनों ने मजधार में मारा
फर्ज हमारा मर्म तुम्हारा
अपने प्रसाद में बने प्रवासी
भ पसीना था सपन संजोया
जेसीबी हो अब नियति तुम्हारी
माया में किया को जरा
अपनों से ही अपनों ने हार
फर्ज हमारा मर्म तुम्हारा
बसंत सुहाना आए जाए
पतझड़ से ना विस्मित हो जाए
यस अपयस रह जाए सारा
सुखसागर ही एक सहारा
अपनों ने मजधार में मारा
फर्ज हमारा मर्म तुम्हारा

जनकवि सुखराम शर्मा सागर

शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान शाहाना परवीन को मिला
  • कला-संस्कृति,साहित्य और सामाजिक सरोकारों को समर्पित सविता चड्ढा जन सेवा समिति ने दिए चार सम्मान
  • हीरों में हीरा सम्मान प्रसून लतांत
  • साहित्यकार सम्मान डॉ संजीव कुमार
  • शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान शाहाना परवीन
  • गीतकारश्री सम्मान रंजना मजूमदार

नयी दिल्ली : सविता चड्ढा जन सेवा समिति, दिल्ली द्वारा हिन्दी भवन में चार महत्वपूर्ण सम्मान प्रदान किए गए । अपनी बेटी की याद में शुरू किए सम्मानों में, अति महत्वपूर्ण “हीरों में हीरा सम्मान” इस बार गांधीवादी विचारक प्रसून लतांत को, साहित्यकार सम्मान साहित्यकार एवं प्रकाशक डॉ संजीव कुमार और शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान शाहाना परवीन और रंजना मजूमदार को गीतकारश्री सम्मान महामहोपाध्याय आचार्य इंदु प्रकाश और इंद्रजीत शर्मा के कर कमलों से प्रदान किया गया। अनिल जोशी और राजेश गुप्ता की उपस्थिति ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की । शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान समारोह की संस्थापक एवं महासचिव, एवं साहित्यकार सविता चड्ढा ने  शाहाना परवीन को सम्मान के साथ साथ पाँच हज़ार एक सौ रुपए की नकद राशि भी प्रदान की और देश भर से पधारे लेखकों, कवियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि ये सम्मान माँ और बेटी के मधुर संबंधों को समर्पित है।

अपनी बेटी के लिए पिछले सात साल से प्रारम्भ इन सम्मानों के लिए सविता चड्ढा की सराहना 

इस अवसर पर प्रसून लतांत ने स्वयं को हीरों मे हीरा सम्मान दिये जाने पर समिति का आभार व्यक्त किया और सभा को संबोधित करते इन सम्मानों को दिए जाने को साहित्य में सकारात्मकता के रूप में लिए जाना कहा। अपनी बेटी के लिए पिछले सात साल से प्रारम्भ इन सम्मानों के लिए सविता  की सराहना की । इस अवसर पर डॉ.संजीव कुमार, डॉ स्मिता मिश्रा। शकुंतला मित्तल ने अपने विचार रखें और इन सम्मानों की निष्पक्षता और चुने जाने की प्रक्रिया अपनी बात कही ।

इस वर्ष प्राप्त पुस्तकों में से अन्य 14 लेखकों की पुस्तकों का चयन भी किया था। इस अवसर पर डॉ विनय सिंघल निश्छल को उनकी पुस्तक, संबंध, व्यक्त अव्यक्त,  नाज़रीन अंसारी को ,मां और लफ्जों का संगम पुस्तक के लिए ,. अर्चना कोचर, को तपती ममता में गूंजती किलकारियां संग्रह के लिए , आशमा कौल को स्मृतियों की आहट के लिए ,. राही राज को उनकी पुस्तक पिता के लिए,. कमल कपूर को जिएं तो गुलमोहर के तले, के लिए  रत्ना भादोरिया को “सामने वाली कुर्सी” के लिए ,डॉ पुष्पा सिंह बिसेन को उनके उपन्यास “भाग्य रेखा” के लिए,. अंजू कालरा दासन ‘नलिनी’ को उनके संग्रह “आईना सम्बन्धों का” के लिए , यति शर्मा को उनकी पुस्तक “आधी रात की नींद”,  हेमलता म्हस्के को “”अनाथों की माँ सिंधुताई” के लिए शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान समारोह ” में सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर जापान, लंदन, अमेरिका के आलावा दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, मध्य प्रदेश, लखनऊ,आगरा, राजस्थान, मुरादाबाद, इंदौर,बैंगलोर , पंजाब, नोएडा और दिल्ली के साहित्यकार और गणमान्य उपस्थित थे । कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ कल्पना पांडेय ने किया ।

वर्तमान स्थिति में लव मैरिज बेहतर क्यों और कैसे?

शादी का मौसम चल रहा है , सभी अपने सगे सबंधी के शादी समारोह के लिए शॉपिंग करते हुए आपको बाज़ारों में दिख जायेंगे। कुछ दिनों पहले अख़बार में मैंने पढ़ा कि इस वर्ष शादी समारोह में पांच लाख करोड़ का रेवेन्यू आएगा जो भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा। भारत में दो चीजे ऐसी है जिन पर पैसा लगाओ कम ही है, एक घर बनाना दूसरा शादी , हमने भारत में शादी के बदलते कल्चर को देखा है पहले बाराती पांच छः दिन रूकती थी। अब कुछ घंटो में बाराती चल देते है शादी में सगे- सबंधी कुछ समय पहले रुकते थे , आपस में मेल- जोल बढ़ता था। साथ में भोजन की व्यवस्था होती थी। हलवाई मिठाई बनाता था , बड़े बुजर्ग अपने सामने साफ सफाई से पूरा खाना पीना तैयार करते थे। अब वो दौर चला गया , अब होटल ,रेस्टोरेंट ने उसकी जगह ले ली है , वो खाने का स्वाद भी फीका सा लगता है , अब हम अपने टॉपिक पर आते है कि ये संस्मरण मैंने अपने अनुभवों को देखते हुए लिखा है , जो वर्तमान स्थिति से लिया गया है।

1 . लव मैरिज से दहेज प्रथा पर लगेगा लगाम

आज फिर एक बेटी दहेज़ के कारण आत्महत्या को मजबूर हो गयी , सुबह ही अख़बार में मैंने पढ़ा। सभी पढ़े लिखे लोग थे , पढ़े लिखे लोगो में डॉक्टर उनका पेशा था , जिस देश में नवरात्रि में देवी की पूजा होती है , उसी देश में घर आने वाली देवी को ख़रीदा जाता है , ये प्रथा को पढ़े लिखे लोग ही बढ़ावा दे रहे है , मैंने कुछ समय एक वेबसाइट पढ़ी थी जिस पर आईएएस , बैंकिंग, रेलवे सरकारी नौकरी वालों के दहेज़ के रेट लगे थे , जिस पर बोली लगती है। अब जब प्रेम विवाह की बात करे तो इस विवाह में प्रेमी और प्रेमिका एक दूसरे को जानते है ,इस परिस्थिति में मंदिर , कोर्ट में विवाह को करते हुये देखा गया है। बाद में दोनों पक्ष रिसेप्शन पार्टी भी दे देते है , जिससे दोनों पक्ष खुश रहते है।

2 . अरेंज मैरिज के दौरान बढ़ते खर्चे

इसी साल में अपने रिश्तेदार की शादी में गया , इस दौरान पांच से छः फंक्शन हुए लड़की के पिताजी ने इस शादी में एक करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किये , पिता ने अपनी बेटी के लिए जो वर चुना था , वो सरकारी अधिकारी था फिर भी उसने दहेज़ लिया , ये देखा गया अरेंज मैरिज में लोग ज्यादा खर्चा करते है ये आंकड़े बोल रहे है आने वाले चार महीने में चार लाख करोड़ अर्थव्यवस्था में शादी समारोह से आएगा करीब 38 लाख शादी भारत में होगी , भारत में 75 % लोग अरेंज मैरिज करना पसंद करते है ये आंकड़ा है ये बदल रहा है। वही लव मैरिज में ख़र्चे कम होते है ये आपने महसूस किया होगा।

3 . लिव इन रिलेशनशिप बनाम लव मैरिज

कुछ समय पहले लिव इन रिलेशनशिप की एक घटना ने पूरे भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया है , ये भारत वर्ष में एक रोग की तरह सामने आ रहा है , जिसमे हमारी युवा पीढ़ी को शिकार बनाया है। जो डेवलप देश है वहां विवाह तो नाम मात्र है वहां इस तरह के रिवाजो के चलते युवा पिता नहीं बनाना चाह रहे है , जिसके चलते पहले रिश्तो में ब्रेकअप और फिर तलाक होता है , इस लिव इन रिलेशनशिप के दौरान पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है तो नया शब्द आया है सिंगल पेरेंट्स जिसमे माँ को ही बच्चे की परवरिश करनी पड़ती है, इस दौरान समाज के ताने भी सुनने पड़ते है। इन्ही रिवाजो के चलते विकसित देश में बुजुर्गो की संख्या में बढ़ोतरी देखी गयी है। इसलिए कहा जा सकता है भारत में आप आपसी सहमति से विवाह करे या प्रेम विवाह करे , दोनों को स्थान है पर लिव इन रिलेशनशिप समाज का अभिशाप है , ये नैतिक दृष्टि से बिलकुल सनातन संस्कृति के विरुद्ध है।

4 . अंतिम समय में निर्णय सही नहीं होते ये कोई बॉलीवुड मूवी नहीं है

आपने हिंदी मूवी देखी होगी वहां प्रेम विवाह पर पूरी मूवी केंद्रित होती है , लेकिन जब प्रेमी और प्रेमिका एक दूसरे को चुनते है तो वहां पिता और माँ को विलन दिखा दिया जाता है। आखिर में होता है शादी के दौरान प्रेमिका जहर खा लेती है या प्रेमी के साथ भाग जाती है। पिछले दो दशकों में गांव में रोज ही ये घटनाये देखने को मिल रही है शहरों में 1980 के बाद प्रेम विवाह प्रांरभ हो चुके थे ,यहाँ हम हाल ही एक केस स्टडी से समझते है आजकल यूट्यूब पर मनोज दे जो फेमस यूटूबर है मनोज ने प्रेम विवाह किया दोनों यूटूबर थे , भाग के कलकत्ता में शादी की , फिर आ कर परिवार से सॉरी बोला , दोनों परिवार राजी , इसी घटना से एक कहावत याद आती है मिया बीबी राजी तो क्या करेगा काजी। प्रेम विवाह में माँ बाप को बता देना ठीक होता है , अंतिम समय में जब बताया जाता है माँ बाप की सामाजिक प्रतिष्ठा ख़राब होती है साथ ही माँ बाप की जमा पूंजी खर्च हो जाती है। 2023 में आज की पीढ़ी तो बता देती है , जिस कारण प्रेम विवाह सफल भी हो रहे है।

5 . परिवार का सपोर्ट न करना प्रेम विवाह की सबसे कमजोर कड़ी है

जब प्रेम विवाह होता है ज्यादा देखा गया है भाग कर शादी होती है , जिस कारण माता पिता , सगे संबंधी नाता तोड़ लेते है। इस दौरान फाइनेंसियल सपोर्ट ख़त्म हो जाता है। प्रेमी और प्रेमिका को जॉब या बिज़नेस करना पड़ता है। साथ ही समाज से सुनना पड़ता है , लेकिन ये नजरिया भी बदल रहा है अगर आप माँ या पिता में से एक को इस प्रेम के बारे में बताये तो फाइनेंसियल सपोर्ट होता है। प्रेम विवाह के दौरान सपोर्ट लेकर चले नहीं तो आने वाली समस्याएं आपके रिश्ते को कमजोर कर सकती है।

6 . प्रेम विवाह किया है कोई पाप नहीं

प्रेम विवाह में प्रेम ही सबसे बड़ी चीज है , प्रेम के बिना रिश्ता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। प्रेम विवाह तो भगवान श्री कृष्णा ने भी किया , पर आज की पीढ़ी सुंदरता पक्ष देखकर प्रेम करती है ये सच्चा प्रेम नहीं है , प्रेम को हम गोपियों से सीख़ सकते है , ये ही पक्ष प्रेम को निश्छल बनाता है। प्रेम विवाह करिये लेकिन गोपियों जैसा त्याग भी अपने चरित्र में अपनाइए।

आशा है कि ये लेख आपको पसंद आया होगा ,प्रस्तुत लेख मैंने अपने संस्मरणों पर तैयार किया। ये लेखक की निजी राय है , इसका कोई उद्देश्य नहीं है पाठको को आहात करना है।

मैंने ऐसी प्रीति देखी है | हिंदी गीत | डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज

मैंने ऐसी प्रीति देखी है | हिंदी गीत | डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज

मैंने ऐसी प्रीति देखी है
जिससे लाज सॅवर जाती है
मैंने ऐसी रीति देखी है
नैया बीच भ‌ॅवर जाती है ।

बादल भी कुछ ऐसे देखे
जो केवल गरजा करते हैं
उनमें कुछ ऐसे भी देखे
जो केवल वर्षा करते हैं ।

कहीं-कहीं तो हमने देखा
अपनों के ख़ातिर मरते हैं
अपनों को कुछ ऐसा देखा
अपने ही मारा करते हैं ।

सोचा कुछ अनसोचा देखा
दूर बहुत कुछ पास से देखा
जैसा दिखता वैसा ना वह
झूठी लेकिन आस से देखा ।

इसको उसको सबको देखा
नीरज जीवन भर है देखा
देखा कुछ अनदेखा देखा
रहे सुनिश्चित हर क्षण है लेखा ।

डॉ.रसिक किशोर सिंह नीरज
गीतकार रायबरेली

जिन्दगी | अवधी कविता | इन्द्रेश भदौरिया

जिन्दगी | अवधी कविता | इन्द्रेश भदौरिया

रंग कइसा देखावत हवै जिन्दगी।
रंक राजा बनावत हवै जिन्दगी।

आजु आये हवौ काल्हि जइहौ चले,
एकु दिन सबका बोलावत हवै जिन्दगी।

जबै चाभी भरै तो खेलउना चलै,
जानी का? का? करावत हवै जिन्दगी।

जउनि दुस्मन रहे मेलु उनते करै,
मेली दुस्मन बनावत हवै जिन्दगी।

जिनका पहिले धरा पर गिराइसि रहै,
आजु उनका उठावत हवै जिन्दगी।

कुछौ हम ना करी कुछौ तुमना करौ,
काम सबकुछ करावत हवै जिन्दगी।

काम अच्छे करौ नेक इंसान बन,
यहै सबका बतावत हवै जिन्दगी।

हमतौ वहै बकेन जउन जानत रहेन,
नहीं आगे बतावत हवै जिन्दगी।

इन्द्रेश भदौरिया रायबरेली

गंगा | दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

गंगा | दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

हे पतित पावनी गंगा,
तेरी जय हो।
हे पापनाशिनी,
गंगा तेरी जय हो।
पर्वत से चलकर,
तू धरती पर आई।
तू आई तो धरती पर,
रौनक छाई।
मैं तेरा ही गुण गाऊं,
तेरी जय हो।
अमृत जैसा तेरा जल,
सबको भाया।
मानव पीने को,
तेरे तट पर आया।
हे मोक्षदायिनी गंगा,
तेरी जय हो।
अंत समय में सबको,
तू अपनाती है।
अपनी गोदी में फिर,
उसे सुलाती है।
जन्म-मरण की साक्षी,

तेरी जय हो।

दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’
रायबरेली

कहानी | ठंडा पड़ गया शरीर | सम्पूर्णानंद मिश्र

कहानी | ठंडा पड़ गया शरीर | सम्पूर्णानंद मिश्र

चाय का कप लेकर बेडरूम में जैसे ही दीप्ति पहुंचती है वैसे ही सुमित के मोबाइल की घंटी घनघना उठती है।‌ सुमित हड़बड़ाकर बिस्तर से उठता है उस समय घड़ी सुबह के नौ बजा रही थी उसे लगा कि आज फिर दफ़्तर के लिए लेट हो जाऊंगा। उसने अपनी पत्नी को डांटते हुए कहा कि तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं आज बास फिर डांटेंगे हो सकता है कि अंकित का फ़ोन हो! आज हम दोनों को दफ़्तर में जल्दी बुलाया गया था हे भगवान ! अब क्या होगा। इसी उधेड़बुन में मोबाइल के घण्टी की घनघनाहट बंद हो गई। लेकिन जैसे ही मिस्ड काल को सुमित ने देखा तो वह थोड़ा सकपका गया उसे लगा कि चाचा तो कभी मुझे याद नहीं करते थे आज क्या बात है।‌ उसने अनमने भाव से चाचा को काल किया तो चाचा ने कहा कि बेटा तुम्हारे पापा अस्पताल में भर्ती हैं उन्हें रक्त की बहुत ज़रूरत है उनका प्लेटलेट्स बन नहीं रहा है।‌

स्वास्थ्य उनका गिरता जा रहा है तुम दो चार दिन की छुट्टी लेकर आ जाओ। उसने कहा कि चाचा उन्होंने मेरे लिए किया ही क्या है! बिजनेस के लिए उस समय पचास हजार रुपए मांगा था तो उन्होंने किस तरह से मुझे फटकारा था और कहा कि तुम्हें देने के लिए मेरे पास एक पाई नहीं है और किस तरह से उस घर में मेरे साथ भेदभाव किया गया था मैं नहीं भूल सकता हूं बड़े भैया के बेटे सिब्बू को एक लाख रुपए देकर बड़े शहर में पढ़ाने के लिए भेजे थे। कलक्टरी की पढ़ाई के लिए तो फिर मुझसे क्यों उम्मीद करते हैं वे जिएं या मरें मुझसे मतलब नहीं है। चाचा ने कहा बेटा वो तुम्हारे पिता हैं अगर तुम्हें कुछ कड़वी बात कह दी हो तो दिल पर मत लगाओ। इस समय पुत्र के दायित्व का निर्वहन करो। यह कठिन समय है अतीत की बातों को घोट जाओ। एक बार आ जाओ ! शायद तुम्हें और तुम्हारे बेटे अर्थ को देखने की उनकी बहुत इच्छा है।‌ उसने कहा कि चाचा मेरे और मेरी पत्नी के साथ उन्होंने बहुत दुर्व्यवहार किया है मुझसे किसी चीज की उम्मीद न करें ।

मेरा उनसे किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं रह गया है।‌ मां जब मेरी पत्नी दीप्ति के बालों को घसीट कर धक्का देकर घर से निकाल रही थी, तब वो कहां थे‌ उस समय तो वो भीष्म पितामह बने हुए थे। मैं नहीं आऊंगा! चाचा ने कहा बेटा समझाना मेरा काम था, बाकी तुम्हारी इच्छा। दरअसल कामता प्रसाद सिंचाई विभाग के आफिस सुपरिटेंडेंट पद से 2000 में सेवानिवृत्त हो गए थे। घर में खुशियां ही खुशियां थीं। दो बेटे और दो बेटियां थीं। भरा पूरा परिवार था किसी चीज की कमी नहीं थी बड़ी बिटिया सुरेखा का हाथ उन्होंने आज के तीस साल पहले ही पीला कर दिया था।‌ अच्छे घर में वह चली गई थी खाता पीता परिवार था। किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं थी। उनके जीवन के आंगन में खुशियों का हरा भरा बगीचा बहुत दिनों तक लहकता रहा। लेकिन न जाने किसकी नज़र उस परिवार पर पड़ी कि पूरा परिवार बिखर गया। दूसरी बिटिया की असामयिक मौत पीलिया से हो गई । कामता प्रसाद और उनकी पत्नी सुशीला पूरी तरह से टूट गए ।

आज भी रह रहकर वह दर्द उभर आता है। धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य हो ही रही थीं कि उनका बड़ा बेटा सुशील जो धीर गंभीर था। माता- पिता की सेवा में हमेशा लगा रहता था। सारे रिश्तेदार उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे। एक दिन अपने दोनों बच्चों और पत्नी को छोड़कर किसी आश्रम में चला गया। बाद में पता चला कि वह साधु बन गया। न जाने कौन सी आंधी आई कि कामता प्रसाद की खुशियों की मंड़ई को उड़ाक चली गई। सुशीला के ऊपर विपत्तियों ने ऐसा बज्र गिराया कि जहां से निकलना पूरी तरह से असंभव था। इधर अस्पताल में कामता प्रसाद जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे थे। एक दिन उनका साधु बेटा उन्हें देखने आया तो लोगों ने घर चलने का आग्रह किया लेकिन उसने कहा कि साधु और घर में छत्तीस का आंकड़ा है। पिता के स्नेह ने उसे यहां तक खींचकर तो लाया लेकिन भावनाओं की बेड़ियों को वह तुड़ाकर दूसरे ही दिन चला गया। उसी साधु का बेटा सिब्बू दिन -रात दादा की सेवा करता रहा।‌अस्पताल से एक मिनट के लिए नहीं हटता था। साथ में उसकी बुआ भी थी जो अपनी गृहस्थी को छोड़कर पिता की सेवा लगी रही।‌


कामता प्रसाद अपने नौकरी पीरियड में बहुतों का उद्धार किया। किसी की नौकरी लगवाई तो किसी की बेटी की शादी के लिए बहुत दूर तक चले जाते थे अपने कष्ट की परवाह किए।‌ जहां तक होता था सबकी मदद करते थे लेकिन आज जब उन्हें ज़रूरत है तो उनके संबंधी और उनसे अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों ने उन्हें मझधार में छोड़ दिया। कामता प्रसाद का शरीर आज कुछ ठंडा पड़ गया। कल ही उन्हें जनरल वार्ड से आई०सी० यू० में स्थानांतरित किया गया था।‌ चिकित्सकों ने अथक प्रयास किया लेकिन उन्हें नहीं बचा सके।
मृत्यु का समाचार सुनकर भी उनके दोनों बेटे नहीं आए।
उनके पौत्र सिब्बू ने ही मुखाग्नि दी और मृत्यु के बाद की सारी क्रियाएं, लोकाचार और लोकरीतियों का उसने ही निर्वहन किया। सिब्बू आज सदमे में है क्योंकि दादा के पेंशन से ही घर चल रहा था।

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

डिजिटल भारत – बदलाव की पहल: उभरते मुद्दे और चुनौतियां | डाॅ अशोक कुमार गौतम

डिजिटल भारत – बदलाव की पहल: उभरते मुद्दे और चुनौतियां

‘डिजिटल भारत‘ की बात जब भी मन में आती है, ‘सूचना प्रौद्योगिकी‘ शब्द मन में कौंधने लगता है। आँखों के सामने सम्पूर्ण विश्व की तस्वीर उभर कर आ जाती है। ऐसा लगता है सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड मुट्ठी में आ गया है। डिजिटल इण्डिया के विषय में जब भी चिंतन करते हैं तो मन में चैटिंग, साइबर कैफै, आनलाइन व्यापारिक कारोबार, विद्यार्थियों के लिये आनलाइन पाठ्य सामग्री, सभी कार्यालयों की जानकारी उभरकर सामने आ जाती है। एक पल में कोई भी प्रोग्राम या आवश्यकताओं का हल खोज लेते हैं। डिजिटल क्षेत्र में टेलीफोन, मोबाइल, पेजर, कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि की अहम भूमिका होती है।

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’’डिजिटल युग की देन है आज हम घर बैठे अमेरिका, फ्रांस, जापान, ब्रिटेन आदि देशों के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों से घर बैठे पढ़ाई करके डिग्री प्राप्त कर सकते हैं, वह भी नाम मात्र की फीस में। सम्भावना है कि भविष्य में कम्प्यूटर स्वयं ही किताबों को पढ़कर सूचना देने लगे। सरकार ने विद्यावाहिनी योजना के माध्यम से इस दिशा में कदम भी उठाया है।’’

डिजिटल इण्डिया प्रोजेक्ट (Digital India Project) का विमोचन 1 जुलाई सन् 2015 ई0 को इन्दिरा गांधी स्टेडियम नई दिल्ली में हुआ था। डिजिटल इण्डिया प्रोजेक्ट के उद्घाटन अवसर पर रिलायंस, विप्रो, टाटा, भारती ग्रुप आदि के सी0ई0ओ0 ने भाग लिया था। इसके तहत सभी क्षेत्रों को इलेक्ट्रानिक मीडिया से जोड़ा जायेगा। डिजिटल इण्डिया सरकार का अहम प्रोजेक्ट है। इसके माध्यम से भारत की सभी 2,20,000 ग्राम पंचायतों को एक साथ जोड़ा जायेगा। शहरी क्षेत्र के लोग इन्टरनेट को अच्छी तरह से समझ चुके हैं, फिर भी ई-स्टडी, ई बुक्स, ई-टिकट, ई- बैंकिग, ई- शापिंग आदि का सर्वाधिक प्रयोग महानगरों के लोग करते हैं। भारत की 35% आबादी आज भी इण्टरनेट की पहुंच से दूर है।

प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) महत्वपूर्ण अभियान है, इसके तहत देश के 6 करोड़ घरों को 2019 तक डिजिटल रूप से साक्षर बनाने का उद्देश्य है। कौशल विकास प्रोजेक्ट (Skill Devlopment Project) 2017 से प्रारम्भ हो चुका है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य शहरी, ग्रामीण, पिछड़े लोगों को सैद्धान्तिक और व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षण प्रदान करके स्वावलम्बी बनाना है, जिसके लिये तकनीकी, डिजिटल जानकारी दी जाती है।

C.S.C. (Common service Centre) अर्थात् आम सेवा केन्द्र, यह प्रोग्राम राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्स योजना का रणनीतिक आधार है। इसे मई 2006 में भारत सरकार के इलेक्ट्राॅनिक एवं आईटी मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। जिसका उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, टिकट, विभिन्न प्रमाणपत्र बनवाना, बिल भुगतान और अन्य जानकारी उपलब्ध कराना था। आज यह सेवा भारत में बृहद् स्तर पर कार्य कर रही है। इस डिजिटल युग में कम्प्यूटर बनाम मानव (Computer v/s Human) में श्रेष्ठ कौन है।इस सम्बन्ध में आम जनता में भी अक्सर चर्चाएं हुआ करती हैं।

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’’कम्प्यूटर के सम्बन्ध में यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिये कि कम्प्यूटर की अपनी कोई बुद्धिमत्ता नहीं होती, न ही इसमें सोचने बिचारने की समझ या निर्णय लेने या तर्क करने की शक्ति होती है। यह शक्ति उसे मानव द्वारा प्रदान की जाती है। अतः कम्प्यूटर मानव की ही कृति है, इसलिये वह मानव से श्रेष्ठ नहीं हो सकता है, लेकिन किसी मानव से श्रेष्ठ कार्य करने में सक्षम अवश्य हो सकता है।’’

’डिजिटल भारत’ सरकार की एक पहल है, जिसके तहत सभी सरकारी विभागों को देश की जनता से जोड़ना है। इसका प्रमुख उद्देश्य बिना कागज (paperless) के इस्तेमाल के सरकारी सेवाएं जनता तक आसानी से इलेक्ट्राॅनिक रूप से पहुंचाना है। इस परियोजना को ग्रामीण क्षेत्रों की जनता तक पहुंचाने के लिए त्रिस्तरीय प्रोग्राम बनाया गया है- (1) डिजिटल आधारभूत ढ़ांचे का निमार्ण करना, (2) इलेक्ट्राॅनिक रूप से सेवाओं को जनता तक पहुंचाना, (3) डिजिटल साक्षरता। इस योजना को वर्ष 2019 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है, इससे सेवा प्रदाता और उपभोक्ता दोनों को प्रत्यक्ष लाभ होगा।
भारत निरन्तर प्रगति के पथ पर चल रहा है। डिजिटल भारत का सपना 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी ने देखा था जो पूर्णरूपेण आज चरितार्थ हो रहा है। भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी उज्ज्वल भारत के भविष्य का सपना साकार कर रहे हैं।

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सरकार ने डिजिटल इण्डिया के माध्यम से अमीर-गरीब के खाई पाट दी है। फिर भी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह खाई आज भी बनी है, जिसे ’ 4जी बनाम 2जी ’ कहा जा सकता है, अब तो 5G की पीढ़ी आ गयी है। जरूरत है हम इन सम्भावनाओं और सुरक्षा के सवालों के बारे में सजग रहें। ई-टेन्डर, ई-टिकट, ई-बिल आदि को जितना प्रयोग में लाया जायेगा उतना ही भष्टाचार में लगाम लगेगी। हमारे देश में नेटवर्क की बहुत समस्या थी, जिसका उदाहरण दूरदर्शन है। पहले हम छत पर चढ़कर एन्टीना घुमाया करते थे, अब सेटटाॅप बाक्स के माध्यम से साफ चित्र देख सकते हैं। ’आज भारत का नेटवर्क इतना स्लो है कि भारत का दुनिया में 115वां स्थान है। जाहिर है सरकार इन उद्देश्यों को आसानी से हांसिल नहीं कर सकती।’ (source NDTV)


भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी ने 8 नबम्बर 2016 को नोटबन्दी का आदेश पारित किया था। जिसके बाद से निरन्तर कैशलेस ट्रांजेक्शन पर जोर दिया जा रहा है। इस डिजिटल युग में मोबाइल यकीनन बटुआ के समान हो गया है। इसे ई-वाॅलेट नाम भी दिया गया है, पर इसका उपयोग आसान नहीं है। साइबर अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। अब सवाल उठता है क्या वाकई मौजूदा हालातों में देश की अर्थ व्यवस्था पूर्णरूपेण डिजिटल हो सकती हैघ् क्या लो-इण्टरनेट कनेक्टीविटी, साइवर क्राइम, तकनीकी जानकारी का अभाव, डिजिटल इण्डिया प्रोग्राम की प्रगति में बाधक हैघ् क्या भारत जैसे देश में कैशलेस इण्डिया का सपना पूरा करना आसान हैघ् इसके लिये अनेक चुनौतियों का सामना भारत को करना पड़ेगा।


डिजिटल इण्डिया का लाभ जनता को परोक्ष रूप से मिल रहा है, वहीं कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है। जिससे निपटने में कुछ वक्त लगेगा। 90 करोड़ गरीब, अशिक्षित लोगों के पास इन्ड्रायड मोबाइल नही है, वे लोग BHIM Apps का लाभ कैसे उठायेंगेघ? ऊपर से साइबर अपराधियों की नजरें Apps पर निरन्तर रहती। इन्ड्रायड मोबाइल के माध्यम से सोशल मीडिया पर झूठी अफवाहें फैलती रहती हैं, जिसे रोक पाना प्रशासन के लिये भी चुनौती है। इस मोबाइल से अँाख, कान खराब हो रहे हैं, वहीं कम निन्द्रा ले पाने के कारण पेट सम्बन्धी समस्याएं बढ़ रही हैं। फिर भी डिजिटल इण्डिया के सपने को आइए हम सब मिलकर सफल बनायंें, जिससे सशक्त राष्ट्र का निर्माण हो सके।

डाॅ अशोक कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर
रायबरेली (उ0प्र0)
मो0 9415951459