हमारी आवाज | रत्ना भदौरिया
इंसानियत ख़त्म हो गई है इस बात से बिल्कुल नकारा नहीं जा सकता। मैं तो इस बात को चीख चीखकर कहती हूं। अगर इंसानियत होती तो हम बार बार स्त्री होने के नाम पर पिस्ते नहीं देखो न कभी मणिपुर कभी राजस्थान कभी हाथरस मुझे नहीं लगता कि देश का कोई भी कोना बचा होगा जहां हम नहीं पिसे हो।पिसना, शर्मसार, घटिया, दुखदायी ये सारे शब्द मुझे ऐसी घटनाओं के आगे बहुत फीके और छोटे लगते हैं।
ऐसी घटनाओं के लिए जो शब्द इस्तेमाल करना चाहिए वो तो वर्णमाला में भी नहीं मिलते क्योंकि वर्णमाला को भी शर्म आती होगी ऐसे शब्दों को अपने बीच पाते हुए। कल राजस्थान में एक औरत की मात्र इतनी ही तो बात थी कि वो दूसरे आदमी के साथ रहना चाहती थी। मैं पूछती हूं उन तमाम महिलाओं को जब पुरुषों के द्वारा कभी दहेज के लिए तो कभी वो दिखने में सुंदर माडर्न नहीं है कभी क्या,कभी क्या कहकर छोड़ दिया जाता है,जला दिया जाता है तब कहां चले जाते हैं?
ये बड़े -बड़े दांत दिखाने वाले लोग जो आज उस महिला की नग्न अवस्था देखकर निकाल रहे थे। खैर पुरुष का छोड़ो यहां पर वो बात भी बहुत सत्य साबित होती है घर का भेदी लंका ढाही। क्योंकि महिलाओं के दांत भी वहां कम छोटे नहीं दिख रहे थे उस महिला को नग्न देखकर ।कमसे कम हमें तो जगना होगा। लेखक , विचारक , प्रचारक, राजनीतिक, सामाजिक और सोसल मीडिया का तो क्या ही कहना —-?
अरे फालोवर्स बढ़ाकर चुप क्यों हो जाते हैं इसलिए की दूसरे मुद्दे पर फालोवर्स बढ़ाना है या फिर इसलिए की इस मुद्दे से झोली भर गयी । मैं पूछती हूं की जब हम महिलाओं को ही खत्म कर दिया जायेगा तो आप सब आयेंगे कहां से क्योंकि बनाया तो हमनें ही है आप सबको भी । और ये फालोवर्स बढ़ाने वाले लोग ——–। तो सब मिलकर तब तक फालोवर्स बढ़ाते रहिए जब तक हमारी समस्या का समाधान ना हो जाए।
एक बात और कहना चाहती हूं कि एक लड़की या औरत जब कपड़ा छोटा पहन लिया तो वो मर्यादा या संस्कार भूल गयी । महिलाओं को जो निर्वस्त्र किया गया उसके खिलाफ आपके मुंह बंद क्यों और यदि खुले हुए हैं तो चुप्पी क्यों?
रत्ना भदौरिया रायबरेली उत्तर प्रदेश