रक्षाबंधन | रश्मि लहर | रक्षाबंधन पर छोटी सी कविता | Poem On Raksha Bandhan In Hindi
रक्षाबंधन | रश्मि लहर | रक्षाबंधन पर छोटी सी कविता | Poem On Raksha Bandhan In Hindi
रक्षाबंधन
मेरी कलाई को सहेजे
यह रक्षासूत्र मेरी संपूर्णता को
अपनी दुआओं से नवाजता रहता है!
संवेदनाओं से गलबहियाॅं करता हुआ
यह बन्धन जब-तब मुझे
निखारता रहता है, सॅंभालता रहता है!
कभी शैशव की मुस्कराती नोंक-झोंक में उलझाता है,
तो कभी यर्थाथ की कटु यातनाओं से बाहर निकाल लाता है
और स्वयमेव ही मेरे ‘स्व’ से परिचय करवाता है!
बाल-सखा से हम! कब एक-दूसरे के
पथ-प्रदर्शक बन चुके होते हैं, पता ही नहीं चलता।
मेरे असंख्य सपनों में रंग भरता है
तुम्हारी रोली-अक्षत से सजा मेरे माथे का टीका।
मेरे भावों के ऑंगन में सिमटी मेरी ज़िम्मेदारियों को
तुम्हारी रंग-बिरंगी कल्पनाएं और
खिलखिलाती चुहलबाज़ियाॅं सहज बना देती हैं!
सुनो बहना!
मैं उम्र के अंतिम पड़ाव तक
तुम्हारा हाथ अपने मस्तक पर चाहूॅंगा।
तुम्हारे रॅंगोली रचे भाव,
तुम्हारी नज़रें उतारती सी ऑंखें
और मेरी कलाई को सहेजे यह रक्षासूत्र!
मेरी संभावनाओं का अनूठा सहारा है।
तुम जानती हो न?
मुझे यह रिश्ता हर रिश्ते से प्यारा है!
रश्मि लहर
इक्षुपुरी कालोनी,
लखनऊ