मेरे जीवन की प्रतिमूर्ति :मेरे गुरु

मेरे जीवन में कोई एक अध्यापक नहीं बल्कि अनेकों गुरुओं का योगदान रहा है और मैं मानती भी हूं कि वो हर व्यक्ति गुरु होता है जिससे हम कुछ न कुछ सीखते हैं। लेकिन कुछ गुरु विशेष हैं मेरे जीवन में जो कुछ न कुछ नहीं बल्कि सभी कुछ सिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उनका बस चले तो गूगल की तरह हर चीज सिखा दें।

अब वो विशेष हैं तो यहां नाम लेना भी विशेष है -मेरी मां और पिता, संतलाल सर, मन्नू भंडारी, सुधा अरोड़ा, ममता कालिया, अशीष श्रीवास्तव,इन विशेष गुरुओं ने आज मुझे जिस मुकाम तक पहुंचाया है कि अगर जीवन में यहां से लडखडाऊं तो भी जमीन पर गिर कर बिथरुंगी नहीं बल्कि नीचे धीमी गति से और संभलते हुए उतरूंगी। आशीष सर की एक बात बार- बार याद आ रही है।

जब मैं नौवीं कक्षा में पढ़ती थी तब अशीष सर हमारे कक्षा अध्यापक होने के साथ -साथ हिन्दी के अध्यापक और गांव के रहने वाले। इत्तफाक उनका खेत मेरे घर के सामने ही जब कभी खेतों की तरफ आते मेरी मम्मी या पापा से शिक़ायत कर जाया करते कि ये पढ़ती नहीं है बिल्कुल भी। मैं हर दिन मुंह बिचकाते हुए पता नहीं सर इधर आते ही क्यों हैं? इनके पास कोई काम ही नहीं। हर शाम दरवाज़े पर दुबकी किताब लेकर बैठती महज सर के डर से की शायद पढ़ता हुआ देख शिकायत नहीं करेंगे लेकिन फिर भी ——-।

मम्मी का भी यही था हर दिन ग़लती निकालना तब अच्छा नहीं लगता था लेकिन आज ग़लती नही सही है यह चीज मम्मी या किसी के मुंह से सुनकर बहुत अच्छा लगता है और मम्मी की बात भी याद आती है कि उस समय ——।

संतलाल सर, सुधा अरोड़ा, मन्नू भंडारी सबने साहित्यिक जीवन के साथ -साथ व्यक्तिगत जीवन से जुड़े हर पहेलू में मेरी मदद के साथ -साथ बेहतरीन से बेहतरीन काम को करने की सीख दी। सभी को धन्यवाद के साथ -साथ शिक्षक दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं। आप सब हमेशा स्वस्थ रहें और यूं ही मेरा मार्गदर्शन करते रहें।