नई दिल्ली : भारतीय महिला शक्ति सम्मान समारोह सावित्तीबाई सेवा फाउंडेशन पुणे अंग जन गण और मेरा गांव मेरा देश फाउंडेशन द्वारा 11 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के परिप्रेक्ष्य में और सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि पर नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में आयोजित किया जा रहा है। यह जानकारी देते हुए सावित्रीबाई सेवा फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रसून लतांत , सचिव हेमलता म्हस्के और अंग जन गण के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा सुधीर मंडल ने कहा कि सावित्री बाई फुले की स्मृति में यह सम्मान इसलिए दिया जाता है क्योंकि वे भारतीय महिलाओं के लिए एक अति उज्ज्वल आदर्श है। उन्होंने देश में तब लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला जब लड़कियों को पढ़ाना पाप समझा जाता था। आज महिलाएं पढ़ लिख कर आगे बढ़ गई हैं लेकिन बहुत से मामलों में उनके साथ भेदभाव बरता जाता है। आज समाज को बार बार यह अहसास दिलाने की जरूरत है कि महिलाएं भी कम नहीं हैं। उन्हें भी उनके अधिकार दिए जाएं उनकी गुणवत्ता और कुशलता को मान सम्मान दिया जाना चाहिए।
यह सम्मान शिखर महिला और पदमश्री डा शीला झुनझुनवाला, के सान्निध्य में पंजाब केशरी न्यूज प्रा लिमिटेड की चेयर पर्सन और मुख्य अतिथि किरण चोपड़ा अतुल प्रभाकर, प्रसिद्ध समाज सेवी इंद्रजीत शर्मा , पदमश्री डा संजय , अज़ीज़ सिद्दिकी ,डा ममता ठाकुर मिल कर देंगें। इस मौके पर वरिष्ठ लेखिका और समाजसेविका डा सविता चड्ढा का सार्वजनिक अभिनंदन किया जाएगा। अनेक सम्मानों और पुरुस्कारों से सम्मानित डा सविता चड्ढा का साहित्य और समाज में योगदान सराहनीय है। महिलाओं के लिए वे आदर्श हैं कि कैसे वे संघर्षों से जूझती हुई अपने मुकाम पर पहुंची। इस समारोह में जिनको भारतीय महिला शक्ति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा उनके नाम इस प्रकार हैं। 1.नंदिनी जाधव – पुणे – महिला सशक्तिकरण 2.रत्ना भदौरिया – दिल्ली – साहित्य 3.सांत्वना श्रीकांत – दिल्ली – साहित्य 4.दीपिका तिर्की – जहारखंड – शिक्षा 5.मनीषा धुर्वे – मध्यप्रदेश – शराबबंदी 6.नूतन पांडेय – दिल्ली – पूर्वोत्तर साहित्य 7.शारदा बेन मगेरा – गुजरात – शिक्षा 8.कपना पांडे नवग्रह – दिल्ली – साहित्य 9.डा.श्र्वेता – बिहार – शिक्षा 10.सिनीवाली गोयल – छत्तीसगढ़ – समाज कल्याण 11.वसुधा कनुप्रिया – दिल्ली- साहित्य एवं समाज सेवा 12 डा.जुही बिरला- उत्तर प्रदेश – शिक्षा 13.पुष्पा राय – दिल्ली – समाज सेवा 14.दमयंती बेन गमेती – गुजरात – लोक गायन 15.डॉ.अनीता कपूर – अपेरिका – साहित्य 16.अंजु खरबंदा – दिल्ली – लेखन 17.डी.एम.एस.मधुभाषिणी कुलसिंह (सुगंधि) – श्रीलंका – हिंदी 18.कल्पना झा- दिल्ली – साहित्य 19.मधु बेरिया साह – उत्तराखंड – लोक गायन 20.बाल कीर्ति- दिल्ली – साहित्य 21.संध्या यादव, मुंबई – साहित्य 22.डॉ.पुष्पा जोशी – उत्तराखंड – महिला सुशक्तिकरण 23.स्मिता जिंदल – पंजाब – बाल शिक्षण 24 मिलन धुर्वे मध्य प्रदेश समाज सेवा 25 नाज़नीन अंसारी, साहित्य, दिल्ली
दिव्य राम छवि धाम सुघर मुसकाते हैं, जन-जन पावन दृष्टि कृपा बरसाते हैं। युग-युग से अवध निहार रहा कब आयेंगे- कण-कण हुआ निहाल राम घर आते हैं।1।
बर्बर नीच लुटेरों ने ऐसे दिन दिखलाया है, कालखण्ड यह देख मुखर मुसकाया है। जीत सदा सच की होती संघर्ष करो-, सुदिन देख धरती पर त्रेता फिर आया है।2।
हे राम सभी निष्काम कर्म करते जायें, उर-मर्यादित भाव धर्म के बढ़ते जायें। खा कर शबरी-बेर,नई इक रीति बनाओ- नवल सृजन-पथ लोग सदा चलते जायें।3।
मोक्ष दायिनी सरयू की जल धारा हो जाये, उत्सर्गित कण-कण अवध दुबारा हो जाये। ध्वजा सनातन पुनि अम्बर अशेष फहरे-, अब विश्व-पूज्य यह भारत प्यारा हो जाये।4।
जैसा चाहो राम कराओ हम तो दास तुम्हारे, अनभिज्ञ सदा छल-छद्मों से मेरी कौन सवॉरे। निष्कपट हृदय अनुसरण तुम्हारा करता निशि दिन-, तेरी चरण-शरण में आया तू ही मुझे उबारे।5।
रघुनाथ तुम्हारे आने की हलचल यहॉ बहुत है, निठुर पातकी जन की धरती खलल यहॉ बहुत है। चाह रहे हैं लोग सभी लिये त्राण की अभिलाषा-, कब धर्म-ध्वजा फहराये उत्कंठा प्रबल बहुत है।6।
पड़ा तुम्हारे चरण में इसे शरण दो नाथ, जब तक करुणा न मिले नहीं उठेगा माथ। युग की प्यास बुझाई है तुमने ही आकर-, मातु जानकी पवनसुत सहित मिलो रघुनाथ।7।
2 .क्यों हिन्दी दिवस मनाते हो?
भारत की प्रिय प्यारी हिन्दी, यथा सुहागन की हो बिन्दी।1। जन्म जात अपनी यह बोली, दीप जलाये खेले होली।2। अधर-अधर मुस्कान बिखेरे, वरद गान कवि चतुर चितेरे।3। सुधा-वृष्टि-तर करती रहती, अंजन बनकर नयन सवॅरती।4। सबको प्रिय मन भाती हिन्दी, विश्व-कुटुम्ब बनाती हिन्दी।5। तुम भी गाओ मैं भी गाऊॅ, हिन्दी का परचम लहराऊॅ।6। धर्म – ध्वजा अम्बर लहराये, वीणावादिनि पथ दिखलाये।7। हिन्दी पढ़ें , पढ़ायें हिन्दी, दुनिया को सिखलायें हिन्दी।8। निज में शर्म , सुधार करो, फिर हिन्दी – ऋंगार करो।9। निज बालक कहॉ पढ़ाते हो? क्यों हिन्दी दिवस मनाते हो?10। नौकरशाह और सरकारी- सेवक से प्रिय हिन्दी हारी।11। शपथ सोच कर लेना होगा, भरत-भूमि-ऋण देना होगा।12। आओ लें संकल्प आज हम, हिन्दी में ही करें काम हम।13। प्रिय राम हमारे हिन्दी में, हर काम सवॉरें हिन्दी में।14। विश्व पूज्य यह हिन्दी होगी, द्वेष-मुक्त प्रिय हिन्दी होगी।15।
सविता चड्ढा के बारे में कुछ कहना छोटा मुंह बड़ी बात होगी । आप संघर्षों की एक जीता- जागता मिसाल हैं। जीवन में आपने कड़वे, खट्टे- मीठे अनुभवों को जिया है पर बांटा सिर्फ़ सुखों को है। आज बहुत ही प्रेम से, आशीर्वाद के रूप में आपने मुझे अपनी कविताओं की पुस्तक ‘ मेरी प्रिय कविताएं’ उपहार में दीं।
मेरे में इतना सामर्थ्य नहीं कि मैं आपकी कविताओं की समीक्षा कर सकूं पर हां! अपने अंतर्मन की बात कहना चाहती हूं जो मुझे आपकी रचनाओं को पढ़ने के बाद महसूस हुआ।
सबसे पहले मैं बात करती हूं पुस्तक के आवरण की। जैसी सौम्यता, सरलता, चिंतन में डूबा व्यक्तित्व आपका दिखाई देता है उसी का सम्मोहक प्रतिबिंब पृष्ठ की शोभा बढ़ा रहा है और उसी का प्रभाव आपकी रचनाओं में भी नज़र आता है। कहते हैं जैसी आप की सोच होगी वैसे ही आपके आचार और विचार भी होंगे। पुस्तक की प्रथम रचना ‘सुख का गुलाब’ जीवन में सकारात्मकता की प्रथम सीढ़ी है। आदरणीया सविता जी ने प्रथम रचना से ही जीवन के लक्ष्य को इंगित किया है। संसार में रहते हुए मुसीबतों के भंवर में डूबते-उतराते हुए भी आनंद के उस एक पल को प्राप्त कर ही लेना है जिसकी सभी को चाह होती है। कवयित्री ने इस रचना के माध्यम से जीवन में हमेशा सुखों के यानी अच्छे संस्कारों के बीज बोकर अच्छाइयों को बढ़ाने की बात की है। जिस दिन अच्छे कर्म नहीं किए वह दिन बेकार गया। बहुत ही ख़ूबसूरत सोच है आपकी।
सामाजिक जीवन में पल-पल के अनुभवों को आपने सीख के रूप में अपनी रचनाओं में संवारा है। नेकी कर दरिया में डाल की उक्ति को रचनाओं में जीवंत करने का सुंदर प्रयास किया है। संभव है, परिवर्तन निश्चित है, अब पहचान ज़रूरी है, मिल जाती है मंज़िल, जैसी रचनाएं जीवन में उदासी, निराशा से हिम्मत नहीं हारने और डटकर उनसे संघर्ष करने की सीख देती हैं । अपने पर भरोसा और विश्वास करने की सीख देते हुए आपकी रचना ‘उठना होगा’ अंतर्मन में आत्मविश्वास का भाव भरती है।
वर्ग-भेद आज भी समाज को किस क़दर लहूलुहान कर रहा है इसकी पीड़ा और संवेदना अमीरी-गरीबी और बहुत दुख होता है जैसी रचनाएं उसके मर्म को अपने अंदर समेटे हुए हैं। शिक्षा जीवन को संवारने का अद्भुत शस्त्र है। ‘मोची’ कविता के माध्यम से शिक्षा को, जीवन को सुंदर बनाने के लिए अचूक वरदान कहा है और अशिक्षा जीवन स्तर को श्रेष्ठ बनाने में बहुत बड़ा अवरोध है। बच्चे भविष्य का कर्णधार हैं ।शिक्षा उनके लिए अनमोल ख़जाना है जो उनके जीवन में उजाला और चमक भर सकता है। आज भी समाज में बचपन, भूख प्यास की तड़प से बेहाल और शरीर अर्धनग्न क्यों है ? बहुत ही ज्वलंत प्रश्न ‘ये बच्चे हैं किसका भविष्य’ के माध्यम से सभी के दिलों को झकझोर देता है। जहां मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो वहां शिक्षा मात्र एक दिखावा हो जाती है। समाज को अपने ऐसे अंधकारपूर्ण भविष्य के प्रति सचेत करती आपकी रचना एक मुखर संदेश देती है।
‘मां’, ‘मां की खुशबू के लिए ‘, ‘स्त्री का घर’ ‘भारत में जन्मी नार हूं’ रचनाएं संपूर्ण स्त्री जाति के सम्मान, स्वाभिमान के प्रति आपकी कटिबद्धता का प्रतिबिंब हैं। अपने स्त्रीत्व की पहचान और सम्मान के लिए स्त्री स्वयं ज़िम्मेदार है। स्त्री और पुरुष रथ के दो पहिए हैं। जिस तरह पुरुष के अस्तित्व में, उसके सम्मान में, उसके स्वत्व में वह स्वतंत्र है उसी तरह एक खबर और, आज़ाद औरत कविता संदेश देती है कि स्त्री को समाज में पहचान स्थापित करने के लिए किसी सहारे की ज़रूरत नहीं। अत्याचारों को सहने, विवश रहने वाली स्त्रियों को ‘भली औरत’ की संज्ञा देने वाले समाज की कुंठित मानसिकता आज भी ज़िंदा है।
सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार को आपने खुली चुनौती दी है। कुछ सरकारी नौकर तरह-तरह की सुख – सुविधाओं का उपभोग करते हुए सिर्फ़ अपनी ज़िंदगी के मज़े उठाते हैं बल्कि समाज की जिस सेवा के लिए उन्हें ज़िम्मेदारी दी गई है उसे भूल कर वे बाकी सारे काम करते हैं। ‘दफ्त़रों में’ ‘आओ बनाएं’ कविता के माध्यम से भ्रष्टाचार में डूबे हुए ऐसे ही सरकारी वातावरण और समाज के विकास नाम पर अधर में लटकी परियोजनाओं और अधिकारियों का उनके प्रति संवेदनहीनता का यथार्थ चित्रण कर समाज की चेतना को जगाने का प्रयास किया है।
आपसी रिश्तों- संबंधों की मज़बूती, उनमें आई दरार को प्रेम से भरने ,अविश्वास को भरोसे में बदलने, जीवन में विनम्रता को अपनाने के प्रति आप सदैव तत्पर हैं। ‘अपनों को अपनों से’, ‘दो रास्ते’, ‘किवाड़ खोलने होंगे’, ‘हाव भाव और व्यवहार’, ‘क्षमा करना’, ‘मां -बेटी’, ‘दिल बचाना सीखिए’ जैसी रचनाएं अनेक सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्तियों से सराबोर हैं आपकी ये अद्भुत पुस्तक भावनाओं का संगम है।
जीवन में संस्कारों का मूल्य, उनका योगदान ,एक परिपूर्ण व्यक्तित्व के लिए नितांत अपरिहार्य है। अच्छे और सुंदर संस्कार न केवल मानसिक सोच में संतुलन और ठहराव लाते हैं बल्कि विपरीत परिस्थितियों का आकलन भी बड़ी ही गहराई व समझदारीपूर्ण ढंग से करते हैं। ‘अपने जीवन से निरर्थकता कम कर लें’, ‘शुभ कर्म ही साथी’, ‘क्षमा करना’, ‘आज से समुद्र हो जा’, ‘अपनी सुगंध’, जैसी कविताओं में आपने अपनी इसी सोच को न केवल परिभाषित किया बल्कि जीवन में सुंदर और अच्छे संस्कारों के प्रभावों को सिद्ध भी किया।
जीवन के प्रति आपका नज़रिया बहुत ही स्पष्ट है। जीवन की हर परिस्थिति को आपने अनुभवों का अथाह सागर माना है। ज़िंदगी में हर पल, हर क्षण जो भी घटित होता है, अनुभव किया जाता है, उससे चिंतन की, परखने की प्रवृत्ति प्रखर हो जाती है। जीवन के लक्ष्य को निर्धारित करते हुए आपने उसे मंथन की एक सतत् प्रक्रिया माना है। एकात्म, सर्वोपरि है मन, दूजे को दुख देने से अपना सुख कम होता है, चलते रहना है, हवा बन जाओ, दृष्टि में बदलाव, जीवन बोध, कविता में सार्थक जीवन जीने के लिए हर पल उसमें मिठास भरते रहने को एक सुंदर पैगाम भरा कदम कहा है।
अच्छाइयों को अगर कोई आपकी कमी समझने लगे तो चुप रहना कवयित्री को कतई बर्दाश्त नहीं। अनाचार को सहना, उसे बढ़ावा देना है। सच को सच बोलना और झूठ के आगे झुकना नहीं यही आपकी जीवनशैली है जो आपकी रचनाओं में आपके व्यक्तित्व को बखूबी प्रदर्शित करती है। हाथ में कलम, खुद से रिश्ता, क्यों डरे, बस यह कहना है, अब तैयारी है,। चुप ही रहने से कुछ नहीं होगा , सच-सच आपके जीवन में इन पहलुओं के प्रति आपकी तटस्थता के प्रतिबिंब हैं।
जिस मिट्टी में हमारा जन्म हुआ है हम उसके ऋणी हैं। उसके प्रति हमारा कर्तव्य सदैव आभार व्यक्त करने वाले होना चाहिए । धड़कनों में वो जज़्बा होना चाहिए जो मर मिटने पर भी उफ़ तक न करे। आपकी धमनियों और शिराओं में लहू का हर क़तरा देश -प्रेम से ओतप्रोत है। राष्ट्र के प्रति समर्पित आप हर स्थिति में राष्ट्र के लिए कुर्बान होने को तत्पर हैं। ऐसी सच्ची साहित्यकारा, समाजसेविका, कर्तव्यनिष्ठ, उदारता की पराकाष्ठा, असीम प्रेम से परिपूर्ण आदरणीया सविता जी को उनके इस महान यज्ञ को, उनकी सुंदर पंक्तियों को, उनकी इस सुंदर पुस्तक को मैं सादर नमन करती हूं। दिल से आपको बधाई देती हूं । नि:संदेह समाज को प्रेरित करती आपकी यह पुस्तक सभी के मन को छू जाएगी।
जब से दुनिया बनी है विज्ञान की भूमिका हम सबके जीवन में प्रारंभ से विद्यमान है । विज्ञान के अनेक रूप भी हमारे आसपास, हमारे सौरमंडल में विचरण करते रहे हैं । हमारे मन में कई जिज्ञासाएं बचपन से बनी रही हैं। सौर मंडल क्या है , ब्रह्मांड क्या है धरती कैसे बनी, चेतन और अवचेतन मन, आने वाले सपने, बादल और चमकती बिजली….अनगिन विषय विज्ञान के दायरे में आते रहे हैं।
बचपन में जब रामायण के कई दृष्टांत सुने तो मुझे लगता था उस समय भी विज्ञान विद्यमान था , नहीं तो पुष्पक विमान कैसे बनता । पवन पुत्र हनुमान जी की यात्रा का उल्लेख भी मुझे बहुत जिज्ञासा में डालता था। बालपन की जिज्ञासाएं यह जानने को सदैव इच्छुक रहती , कैसे श्रीराम और लक्ष्मण जी को अपने कंधों पर बिठाकर ले गए थे पवन पुत्र और जब राम और रावण के युद्ध की बात होती और इसमें प्रयोग किए गएअनेक अस्त्र। मुझे लगता यह सब भी विज्ञान का ही चमत्कार था और विज्ञान आज का नहीं युगों युगों से इस पृथ्वी पर विद्यमान है । पारस को छूने से जब लोहा भी सोना बन जाता है तो क्या यह विज्ञान नहीं है । मैं तो यहां पर यह भी कहना चाहती हूं अगर कोई साधारण मनुष्य, असाधारण व्यक्तियों की छत्रछाया में आकर चमत्कार कर जाता है अपने जीवन में , यह भी तो विज्ञान है । क्या ये मनोविज्ञान है? विज्ञान में भी तो मनोविज्ञान में भी तो विज्ञान है। विज्ञान के जितने भी चमत्कार हुए हैं उसे बनाया तो मनुष्य नहीं है । बहुत ही विस्तृत दायरा है विज्ञान का। विज्ञान के विभिन्न रूपों को देखने का अवसर मुझे मिला एक विज्ञान कविताओं के संग्रह में।
पिछले दिनों” विज्ञान कविताएं ” पुस्तक मेरे हाथ में आई और हाथ में भी इसलिए आई क्योंकि मुझे विज्ञान पर कविताएं लिखने के लिए आमंत्रित किया गया था। मैंने अपनी लिखी कविताओं में से कुछ कविताएं प्रदूषण और पर्यावरण, काश कोई ऐसा यंत्र मिल जाए, जो मनुष्य के मन के आकार को जान सके, पल पल का साथी विज्ञान,एकात्म ऐसे अनेक विषयों पर लिखी मेरी कविताएं इस संग्रह में शामिल है । इस पुस्तक के संपादक सुरेश नीरव जी को मैंने अपनी कविताएं भेज दी, मुझे बहुत हैरानी हुई कि उन्होंने इन कविताओं को विज्ञान कविताएं स्वीकार किया और कहा इन कविताओं में वैज्ञानिकता है । मित्रों मैंने कई कहानियां लिखी है जिसमें मनोविज्ञान और चिकित्सा विज्ञान से संबंधित विषय कहानियों में लिए गए हैं । जब यह पुस्तक तैयार होकर मेरे हाथ में पहुंची और मैंने इसे पढ़ा तो मैंने पाया कि विज्ञान का हमारे समाज में कितना महत्व है और कविताएं एक सशक्त माध्यम है विज्ञान को समाज तक पहुंचाने का ,समाज की जिज्ञासाओं को विज्ञान ही शांत कर सकता है। जब आप इस संग्रह की कविताएं पढ़ेंगे तो आप जान पाएंगे कि सपनों का विज्ञान क्या है, डीएनए, प्राणी और पदार्थ क्या हैं। विज्ञान कविता है क्या ? इन सब के बारे में पंडित सुरेश नीरव जी ने इस पुस्तक में विस्तार से बताया है। डॉक्टर शुभता मिश्रा, अंधकार चंद्रयान की सुंदर पृथ्वी के बारे में बताती हैं और टैबलेट आहार के बारे में बताती हैं। सुरेंद्र कुमार सैनी कहते हैं कि सत्य को पहचानने का नाम है विज्ञान है । नीरज नैथानी वृक्षों के संसार और ऊर्जा प्रदायनी गंगा को लेकर विज्ञान को परिभाषित करते हैं । मंगलयान, खिचड़ी और प्रोटीन एक कदम, विज्ञान पर अपनी बात, विज्ञान से जुड़ी कई बातें यशपाल सिंह यश ने अपनी कविताओं में बताई हैं और अरुण कुमार पासवान ने ,सुबह की सैर ,वृक्षारोपण और महायुद्ध के माध्यम से विज्ञान को हम सबको परोसा है। राकेश जुगरान ने पॉलिथीन,जीवन दर्शन और जंगल के मासूम परिंदे जैसे विषयों पर लिखकर विज्ञान को परिभाषित किया है। मधु मिश्रा ने विज्ञान की बात करते हुए पेड़ों को ऑक्सीजन प्रदाता कहां है और संतुलित भोजन और पेड़ों को बचाने पर अपनी सुंदर रचनाएं प्रस्तुत की है । पंकज त्यागी असीम ने इसरो के माध्यम से और मोबाइल को लेकर अपनी कुछ बातें विज्ञान के साथ जोड़ी है । वहीं डॉक्टर कल्पना पांडेय ने शून्य का गणित और कोविड महामारी और विज्ञान को बहुत ही जादुई बताते हुए विज्ञान को प्रस्तुत किया है । इसी प्रकार सुबोध पुण्डीर कहते हैं कि आज बिजली के सहारे जिंदगी का काम चल रहा है। उन्होंने भी पेड़ों को ऑक्सीजन का भंडार बताया है। रामवरन ओझा इस पुस्तक में विज्ञान के चमत्कारों की बात करते हैं । पंडित सुरेश नीरव पुस्तक के अंत में” तुम गीत लिखो विज्ञान के ” एक बहुत ही सुंदर गीत के साथ प्रस्तुत हुए हैं। इस संग्रह को पढ़ते हुए मैंने पाया कि विज्ञान पर लिखी गई ये कविताएं समाज को विज्ञान के कई रूप प्रस्तुत करती है और यह सिद्ध हो जाता है कि विज्ञान को समाज तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम कविता भी हो सकती है।
हमारा व्यवहार हमारे मानसिक संतुलन को अभिव्यक्त करता है। साधारण लोग इस बात की ओर भले ही ध्यान ना दें लेकिन आप यह जान लें कि हम जो भी करते हैं, कैसे उठते हैं, बैठते हैं, चलते हैं, बात करते समय हमारे चेहरे की भाव भ॔गिमांए अगर कोई ध्यान से देखता है तो वह जान सकता है कि आपके हृदय में क्या चल रहा है, आपके मस्तिष्क की अवस्था कैसी हैं, जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण क्या है ?
आप सोचेंगे ऐसा कैसे संभव है। मैं आपको बहुत सारी बातें बता सकती हूं। मेरी बताई गई बातें आपके मस्तिष्क को परिवर्तित नहीं कर सकती, आपकी सोच को भी बदल नहीं सकती ,हां उसे कुछ समय के लिए प्रकाशित कर सकती हैं और अगर आप निरंतर उस प्रकाश को महसूस करेंगे तो छोटे से छोटे कंकर से बचाव संभव हो सकेगा।
सबसे पहले तो यह जान लेना चाहिए, संसार की सारी बातें सब व्यक्तियों के लिए नहीं होती। उदाहरण के लिए यदि हम कला में स्नातक की डिग्री लेना चाहते हैं या कला में स्नातक की शिक्षा लेना चाहते हैं तो उसके लिए हमें अलग सब्जेक्ट पढ़ने होते हैं और यदि हम कॉमर्स विषय लेते हैं तो उसके लिए हम अलग शिक्षा लेते हैं। इसी प्रकार चिकित्सा, विज्ञान या जीवन में शिक्षा के क्षेत्र में लिए जाने वाले सभी विषयों के लिए, हमें अलग अलग तरह से उसका चयन करना पड़ता है। इसी प्रकार ईश्वर ने हमें हमारे मस्तिष्क को जिस प्रकार बना दिया है हमें केवल वही बातें पसंद आती हैं और हम उसी के अनुसार ही अपना वातावरण चुनते हैं। अपने संगी साथी पसंद करते हैं। हमें अपने ही सोच वाले व्यक्ति पसंद आते हैं। मस्तिष्क का निर्धारण कोई व्यक्ति नहीं कर सकता, इसे हम कुछ पल के लिए बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर पानी को गर्म किया जाए तो वह कुछ समय के पश्चात शीतल हो जाता है अर्थात जो उसका वास्तविक स्वभाव है वह उसमें बदल ही जाता है। इसी प्रकार ईश्वर द्वारा प्रदत्त मस्तिष्क में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हो सकता लेकिन इसे धीरे धीरे नकारात्मकता से सकारात्मकता की और स्थाई रूप से लाया जा सकता है।
जैसे किसी ने पहले बी. ए. पास कोर्स में दाखिला लिया बाद में उसे लगा कि कॉमर्स की शिक्षा अधिक उपयोगी है तो वह किसी दूसरे संस्थान में, अपनी दूसरी पुस्तकों के साथ उपस्थित होता है और लगातार उसीका अध्ययन करता है तो वह इस शिक्षा में भी उतीर्ण हो सकता है अर्थात ईश्वर द्वारा प्रदत मस्तिष्क को पूर्ण रूप से बदलने के लिए हमें अपने हृदय का सहारा इसमें मिल सकता है। यह सहारा कोई भी हो सकता है, पुस्तकें भी हो सकती हैं ,व्यक्ति भी हो सकता है। उनका सहारा लेकर आप अपने जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकते हैं बशर्ते आपका मस्तिष्क उसे स्वीकार करने के लिए उपस्थित हो। ये विषय बहुत विस्तृत है और इस पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है।
Short Story of Savita Chaddha- लघुकथा / सविता चड्ढा
गलत संगत
बेटे कुंदन की मौत के 50 वर्ष बाद अब उसके पिता की हाल ही में मृत्यु हुई है । इन 50 वर्षों में कुंदन के पिता हर रोज सोचते रहे कि मैं अपने बेटे को क्यों नहीं समझा पाया कि वह बुरी संगत छोड़ दें और अपनी पढ़ाई में ध्यान दें। दो चार गलत मित्रों की संगत में वह ऐसा फंसा कि उसने अपने सोने जैसी जिंदगी को एक दिन ईट कंक्रीट से बनी, रेगिस्तान सी गर्म सड़क पर तड़प तड़प कर दम तोड़ दिया।
उसकी लाश भी कई दिन के बाद मां-बाप को मिली थी।
कुंदन की मां तो आज भी जीवित है और वह चीख चीख कर हर रोज सबको कहती फिरती है कि अपने माता पिता के कहे में रहो । जब उम्र पढ़ने की हो तो सिर्फ पढ़ो, गलत संगत में मत पड़ो।
वह जानती है उसका कुंदन वापस नहीं आएगा, फिर भी वह हर बेटे में अपना कुंदन देखती है और भगवान के आगे भी यही बड़बड़ाती है और रोती है।
राखी का दिन था। मां की मौत के बाद बहन मानसी भाई के दरवाजे पर खड़ी थी। उसने तीन चार बार डोर बेल बजाई लेकिन दरवाजा नहीं खुला। वह दरवाजे के बाहर बने चबूतरे पर बैठ गई। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और भाई ने दरवाजे पर बहन को बैठा देख कहा “ये टाईम है आने का, मुझे दुकान पर जाना है और तेरी भाभी वैसे ही बीमार है।” कहते हुए भाई ने सकुटर स्टार्ट किया और बोला” कोई जरुरत नहीं है राखी की।”
बहन समझ गई थी, मां रही नहीं अब कैसे त्योहार और कैसे रिश्ते। मानसी ने साथ लाया मिठाई का डिब्बा दरवाजे पर रखा और भरी आंखों से वापस लौट गई, शायद कभी न आने के लिए।
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जब किसी नुकीले प्रश्न को मेरी कलम ने उछाल दिया आसमानी सितारों ने मुझे मुश्किलों से निकाल लिया।
– सविता चडढा
मुझे कलम से इतना प्यार हो गया कि मैं जहां भी जाती , सुंदर, आकर्षक, रंग-बिरंगे पैन देखती और उन्हें खरीद लेती थी। महंगे से महंगा और सस्ते से सस्ता पैन अपने पास रखना मेरी आदत में शुमार हो गया था । मुझे याद है एक बार राष्ट्रपति भवन में डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा जी के हाथ में मैंने एक खूबसूरत पेन देखा था जिससे उन्होंने मेरी पुस्तक पर हस्ताक्षर किए थे। मैं उनसे तो वह पेन नहीं मांग पाई लेकिन बाद में मैं नेपाल में एक यात्रा के दौरान मैंने वैसा ही एक पेन दुकान पर देखा ।उस समय उस पेन की कीमत 700 थी । मैंने वह पेन खरीद लिया मेरे साथ मेरे और मित्र भी थे और मेरा बेटा भी था । उन्होंने कहा इतना महंगा पहन खरीदने की क्या जरूरत है। मेरे बेटे सोनल शंटी ने मेरे जवाब देने से पहले ही उन्हें कह दिया था” अंकल शौक की कोई कीमत नहीं होती, मम्मी को सुंदर पैन खरीदने का शौक है ।”
इसी प्रकार जब एक बार श्रीमान साहब सिंह वर्मा , जो दिल्ली के मुख्यमंत्री थे उनके निवास पर एक भव्य साहित्यिक समारोह था और मैंने उन्हें अपनी एक पुस्तक भेंट की तो उन्होंने अपने जेब से मुझे एक खूबसूरत पैन निकालकर दे दिया था। वह पेन भी मेरे पास आज सुरक्षित है। इसी प्रकार पंजाब केसरी के महेंद्र खन्ना भी एक बार मेरे लिए बहुत खूबसूरत पैन लेकर आए थे। समय-समय पर गोष्ठियों में, मित्रों से मुझे बहुत सारे कलम(पैन) मिले हैं और मैंने उन्हें सहेज कर रख लिया है । हालांकि उनमें से कई मैंने उपयोग कर लिए और कई भेंट भी कर दिए हैं।
मित्रों अगर हम कलम की बात करते हैं, कलम की प्रशंसा करते हैं, कलम हमें रास्ता दिखाती है, कलम हमारे लिए भगवान के समान है तो हमें कलम से लिखे जाने वाले एक-एक शब्द को सोच विचार कर लिखना चाहिए। कलम की नोक को सदा सुनहरा और साफ रखना भी हमारा ही उत्तरदायित्व है न ?
मिलती रही मुश्किलें, आंधियां पग पग पर कलम ने कभी भी होने नहीं बेहाल दिया।
आपको सविता चड्ढा का अनुभव – कलम की शक्ति संस्मरण कैसा लगा , पसंद आये तो समाजिक मंचो पर शेयर करे इससे रचनाकार का उत्साह बढ़ता है।हिंदीरचनाकर पर अपनी रचना भेजने के लिए व्हाट्सएप्प नंबर 91 94540 02444, 9621313609 संपर्क कर कर सकते है। ईमेल के द्वारा रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है|
कनिका को जब से यह सूचना मिली है कि उसके पिता को अपने कारोबार मेंं काफी बड़ा घाटा हो गया है और वे बहुत परेशान हैं। उसे ये भी बताया गया है कि उसके पिता द्वारा प्रेषित सामान को गुणवत्ता के आधार पर खरा नहीं पाया गया । इसलिऐ उस माल का भुगतान नहीं किया गया और कंपनी ने वह सारा माल भी वापस लौटा दिया है । बात इससे भी अधिक यह हो गई कि उसके पिता को अब आगे से वह कंपनी कभी माल बनाने का ऑर्डर भी नहीं देगी। कनिका मन पर बोझ लिए, विचार करने लगी। उसकी अंतरात्मा ने उसे झकझोरा, वह सोचने लगी “मेरे दादी कहां करती थी, जब बेटियां अपने ससुराल का जानबूझकर कोई नुकसान करती हैं तो उसका खामियाजा उसके मायके वालों को भुगतना पड़ सकता है।”
कनिका के मन से पता नहीं कैसी हूक उठी, कई दिन से वह वैसे भी आत्मग्लानि से जूझ रही थी। वह उठी और अपनी सास से जोर जबरदस्ती से हस्ताक्षर कराए मकान के कागज, उनसे हथियाए हुए सोने के जेवरात उन्हें वापस कर दिए , ये कहते हुए
” जब आप अपनी इच्छा से मुझे देना चाहेंगी मैं ले लूंगी, अभी आप रख लीजिए।”
कनिका को पूरा विश्वास है अब उसके मायके में सब ठीक हो जाएगा।
आपको short story kar bhala to ho bhala / सविता चड्ढा द्वारा रचित लघुकथा कैसी लगी, पसंद आये तो समाजिक मंचो पर शेयर करे इससे रचनाकार का उत्साह बढ़ता है।हिंदीरचनाकर पर अपनी रचना भेजने के लिए व्हाट्सएप्प नंबर 91 94540 02444, 9621313609 संपर्क कर कर सकते है। ईमेल के द्वारा रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है|
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सन्तान जब असमय साथ छोड़ दे, वह दुख उत्सव में कैसे बदला जा सकता है यह बात कोई साहित्यकारों से सीखे। दिल्ली की ख्याति लब्ध साहित्यकार सविता चड्ढा जी से सीखे। आप हर वर्ष दिवंगत बेटी शिल्पी के नाम पर बाल साहित्यकारों को सम्मानित करती हैं।
दिल्ली में शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान के पल।
कभी कविता प्रतियोगिता कभी लघुकथा या कहानी। इस बार बाल उपन्यास की बारी थी और यह प्रतियोगिता आपकी इस अकिंचन मित्र के हिस्से में आई। पुरस्कार में शाल, सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह के साथ इक्यावन सौ का चैक लेकर वापस उत्तराखण्ड लौट रही हूँ। शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान के पल। मेरे बाल उपन्यास ‘कलकत्ता से अण्डमान तक’ को पुरस्कार के लिए चयनित करने वाले जज श्री ओम प्रकाश सपरा जी और आशीष कांधवे के साथ। श्याम किशोर सहाय एडिटर लोकसभा टीवी, सविता चड्ढा, सुरेश नीरव, डॉ लारी आज़ाद, घमंडी लाल अग्रवाल जी एवं अन्य प्रथम पंक्ति के लेखक। उदासियों को उत्सव में बदलने का नाम है “शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान” – सविता चड्ढा पढ़े : दरवेश भारती के साथ आखिरी मुलाकात
उदासियों को उत्सव में बदलने का नाम हैं “शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान।”
पिछले चार वर्षों से दिए जा रहे शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान के बारे में बताते हुए सविता चड्ढा ने कहा “उदासियों को उत्सव में बदलने का नाम हैं “शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान।” सविता चड्ढा जन सेवा समिति, दिल्ली द्वारा हिन्दी भवन में आज चार महत्वपूर्ण सम्मान प्रदान किए गए । अपनी बेटी की याद में शुरू किए सम्मानों में, अति महत्वपूर्ण “हीरों में हीरा सम्मान ” प्रो डॉ लारी आज़ाद को, साहित्यकार सम्मान , श्री घमंडीलाल अग्रवाल, शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान, श्रीमती आशा शैली को और गीतकारश्री सम्मान ,पंडित सुरेश नीरव को दिया गया. शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान समारोह की संस्थापक एवं महासचिव, एवं साहित्यकार सविता चड्ढा ने श्रीमती आशा शैली को सम्मान के साथ साथ पाँच हज़ार एक सौ रुपए की नकद राशि भी प्रदान की और देश भर से पधारे लेखकों, कवियों का स्वागत किया। देश भर से प्राप्त पुस्तकों में से कुछ पुस्तकों के लेखकों को भी इस अवसर पर सम्मानित किया गया। संतोष परिहार को उनकी पुस्तक “पेड़ चढ़े पहाड़”, डा अंजु लता सिंह को ” सारे जमीं पर”, श्रीमती सूक्ष्म लता महाजन को ” नन्हे मुन्ने””,. श्रीमती वीणा अग्रवाल को उनकी पुस्तक ” नन्ही काव्या”, श्रीमती सुषमा सिंह को उनकी पुस्तक “नन्हा पाखी” और डॉक्टर सुधा शर्मा को उनकी पुस्तक ” तेरे चरणों में” के लिए सम्मानित किया गया। पढ़े :संस्मरण आशा शैली के साथ इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्रीश्याम किशोर सहाय , एडिटर लोक सभा टीवी, अध्यक्ष श्री सुभाष चडढा , सविता चडढा द्वारा पुरस्कार वितरित किये गए। विशिष्ट अतिथि डॉ आशीष कांधवे, आधुनिक साहित्य और गगनांचल के संपादक और साहित्यकार, श्री ओम प्रकाश सपरा, सेवानिवृत्त मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट और साहित्यकार , श्री ओम प्रकाश प्रजापति,ट्रू मीडिया चैनल संस्थापक की इस अवसर पर विशेष उपस्थिति रही। मंच संचालन वरिष्ठ कवि श्री अमोद कुमार ने किया। इस अवसर पर श्री/श्रीमती वीणा अग्रवाल, डॉ कल्पना पांडेय , अंजू भारती और उनके पति , ब्रह्मदेव शर्मा ,जगदीश चावला , राजेंद्र नटखट, मधु मिश्रा, महेश बसोया , डॉ शक्तिबोध, सुमन कुमारी , उमेश मेहता, किशनलाल, जुगल किशोर,, दिनेश ठाकुर, सुषमा सिंह, सूक्ष्मलता महाजन, डॉ अंजुलता सिंह, सोनल चड्ढा, रोहित कुमार, दीपाली चड्ढा ,अभिराज चड्ढा, भी शामिल हुए. आपके अलावा और भी मित्र उपस्थित रहे, आप सबका तहे दिल से शुक्रिया।