कलम की शक्ति सबसे अधिक शक्तिशाली है- सविता चडढा

कलम की शक्ति सबसे अधिक शक्तिशाली है- सविता चडढा

सविता चडढा, वरिष्ठ साहित्यकार को आप जानते ही हैं, पढ़िए उनके जीवन का महत्वपूर्ण अनुभव जब उन्हें कैंसर ने जकड़ लिया, उन्हीं की कलम से।

बहुत ही अद्भुत जीवन है मेरा ।

बचपन में पांच भाई बहनों में सबसे बड़ी बेटी के रूप में परिवार में रहना और मध्यवर्गीय परिवार की कठिनाइयों को देखते हुए बड़े होना । थोड़ा बड़े होने पर शिक्षा को अपना लक्ष्य बनाते हुए पढ़ाई करना और 20 वर्ष से पूर्व ही सरकारी नौकरी पा लेना । आज यह सब एक सपना सा लगता है। जीवन में बहुत ही उतार-चढ़ाव आए अगर उन सब का वर्णन करुंगी तो आप भी मेरे साथ , कई बार पहाड़ की चोटी पर चढ़ेंगे और फिर उतरेंगे ।मुझे लगता है इस प्रक्रिया में आपको बहुत थकान हो सकती है । मैं उस प्रक्रिया से आप को बचाने की कोशिश में हूं। मैं आपको केवल अपने जीवन से जुड़ा एक अनुभव बता रही हूं।
2007 में अपने बगल में एक गांठ का पता चलने के पश्चात जब उसका परीक्षण करवाया गया तो पता चला कि यह गांठ मेलिगनेंट अर्थात कैंसर युक्त है। यह सूचना बहुत डरा देने वाली थी । आप जानते हैं कि मैं डर के साथ दोस्ती करने वाली नहीं थी।‌ मैंने डर को अपने से थोड़ा दूर कर दिया और इस समस्या के समाधान में जुट गई थी। उसके लंबी प्रक्रिया का बखान भी मैं नहीं करना चाहती । आप सब जानते हैं कैंसर के बाद मनुष्य किन कठिनाइयों से खेलता है।

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अक्टूबर 2007 में राजीव गांधी अस्पताल में मेरी उस गांठ की सर्जरी हुई

कठिनाइयों से खेलने की बात पर आप हैरान भी हो सकते हैं पर कठिनाइयों से जूझना अलग बात है और कठिनाइयों से खेलना अलग बात है । जब हम किसी चीज से खेलते हैं तो उसे खेल खेल में जीत भी सकते हैं। अक्टूबर 2007 में राजीव गांधी अस्पताल में मेरी उस गांठ की सर्जरी हुई । उस समय मैं पंजाब नेशनल बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक राजभाषा के रूप में कार्यरत थी । कई बार ध्यान में आता है अगर मैं बैंक में कार्य न करती होती तो मैं अपनी किताबों की संख्या में कुछ वृद्धि भी कर सकती थी। दूसरी ओर में सोचती हूं अगर मैं बैंक में नौकरी ना कर रही होती तो शायद इस बीमारी का इलाज कराने में मैं सफल भी नहीं हो पाती। कुछ बीमारियों को महारोग कहा गया है अर्थात इस पर खर्चा भी बहुत अधिक होता है और यह बीमारी व्यवस्थित भी बहुत मुश्किल से होती है । खैर, अपने संस्थान पंजाब नेशनल बैंक की मैं बहुत ही शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे मानो नया जीवन दिया।

मित्रों जीवन है तो कठिनाइयां भी है । मैं कई बार एक उदाहरण दिया करती हूं, यदि हमें वैष्णो देवी की यात्रा करनी है तो हमारे पास दो विकल्प हैं या तो हम पैदल जाएं या हम खच्चर की सवारी करें।(यह दूसरी बात है आज तीसरा विकल्प भी विद्यमान है पर वह सभी के लिए उपलब्ध नहीं हो सकता)।
मित्रों दोनों ही विकल्पों में कष्ट है हम कौन सा कष्ट झेल सकते हैं, कितनी देर तक जेल सकते हैं ,ये हम पर निर्भर करता है और हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। पैदल जाएंगे तो भी रास्ते की कठिनाइयां है और यदि खच्चर पर यात्रा करते हैं तो भी अलग तरह की कठिनाइयां सामने आती हैं । जो लोग ये यात्रा कर चुके हैं उन्हें भी ये जानकारी होगी।
मैंने अपने संपूर्ण इलाज के दौरान , अपना समर्पण भगवान को और डाक्टरों को कर दिया था। आज मैं बहुत याद करने की कोशिश करती हूं तो मुझे आपको यह बताते हुए बहुत अच्छा लग रहा है कि 5 वर्ष चले अपने इस इलाज के दौरान, मुझे बिल्कुल भी किसी भी दुख या कठिनाई का एहसास नहीं हुआ । ईश्वर हमेशा ही मानो मेरे साथ साथ रहा और उसने मेरे सारे दुख बिल्कुल समाप्त कर दिए । डॉक्टरों के कहे अनुसार बस दवाई खानी पड़ी और 5 वर्ष दवाई खाने के बाद में 2012 में मेरी दवाई भी बंद हो गई। आज मैं आप सब के आशीर्वाद से बिल्कुल ठीक हूं, स्वस्थ हूं और आप जानते ही हैं ऐसा क्यों हो पाया । भगवान, डॉक्टरों के साथ साथ कलम की शक्ति मेरे पास थी, कलम की शक्ति सब शक्तियों से ऊपर है । इसने मुझे बहुत हौंसला दिया और मेरे भीतर का सारा अवसाद मानो मेरी कलम के रास्ते पिघलता रहा बाहर आता रहा।”

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