सविता चडडा की प्रिय कविताएं- भावपूर्ण अभिव्यक्ति और अद्भुत भावनाओं का संगम है ये काव्य संग्रह : डाॅ कल्पना पाडेंय

सविता चड्ढा के बारे में कुछ कहना छोटा मुंह बड़ी बात होगी । आप संघर्षों की एक जीता- जागता मिसाल हैं। जीवन में आपने कड़वे, खट्टे- मीठे अनुभवों को जिया है पर बांटा सिर्फ़ सुखों को है। आज बहुत ही प्रेम से, आशीर्वाद के रूप में आपने मुझे अपनी कविताओं की पुस्तक ‘ मेरी प्रिय कविताएं’ उपहार में दीं।

मेरी प्रिय कविताएं’

मेरे में इतना सामर्थ्य नहीं कि मैं आपकी कविताओं की समीक्षा कर सकूं पर हां! अपने अंतर्मन की बात कहना चाहती हूं जो मुझे आपकी रचनाओं को पढ़ने के बाद महसूस हुआ।

सबसे पहले मैं बात करती हूं पुस्तक के आवरण की। जैसी सौम्यता, सरलता, चिंतन में डूबा व्यक्तित्व आपका दिखाई देता है उसी का सम्मोहक प्रतिबिंब  पृष्ठ की शोभा बढ़ा रहा है और उसी का प्रभाव आपकी रचनाओं में भी नज़र आता है। कहते हैं जैसी आप की सोच होगी वैसे ही आपके आचार और विचार भी होंगे। पुस्तक की प्रथम रचना ‘सुख का गुलाब’ जीवन में सकारात्मकता की प्रथम सीढ़ी है। आदरणीया सविता जी ने प्रथम रचना से ही जीवन के लक्ष्य को इंगित किया है। संसार में रहते हुए मुसीबतों के भंवर में डूबते-उतराते हुए भी आनंद के उस एक पल को प्राप्त कर ही लेना है जिसकी सभी को चाह होती है। कवयित्री ने इस रचना के माध्यम से जीवन में हमेशा सुखों के यानी अच्छे संस्कारों के बीज बोकर अच्छाइयों को बढ़ाने की बात की है।  जिस दिन अच्छे कर्म नहीं किए वह दिन बेकार गया। बहुत ही ख़ूबसूरत सोच है आपकी।

सामाजिक जीवन में पल-पल के अनुभवों को आपने सीख के रूप में अपनी रचनाओं में संवारा है। नेकी कर दरिया में डाल की उक्ति को रचनाओं में जीवंत करने का सुंदर प्रयास किया है। संभव है, परिवर्तन निश्चित है, अब पहचान ज़रूरी है, मिल जाती है मंज़िल, जैसी रचनाएं जीवन में उदासी, निराशा से हिम्मत नहीं हारने और डटकर उनसे संघर्ष करने की सीख देती हैं । अपने पर भरोसा और विश्वास करने की सीख देते हुए आपकी रचना ‘उठना होगा’ अंतर्मन में आत्मविश्वास का भाव भरती है।

वर्ग-भेद आज भी समाज को किस क़दर लहूलुहान कर रहा है इसकी पीड़ा और संवेदना अमीरी-गरीबी और बहुत दुख होता है जैसी रचनाएं उसके मर्म को अपने अंदर समेटे हुए हैं। शिक्षा जीवन को संवारने का अद्भुत शस्त्र है। ‘मोची’ कविता के माध्यम से शिक्षा को, जीवन को सुंदर बनाने के लिए अचूक वरदान कहा है और अशिक्षा जीवन स्तर को श्रेष्ठ बनाने में बहुत बड़ा अवरोध है। बच्चे भविष्य का कर्णधार हैं ।शिक्षा उनके लिए अनमोल ख़जाना है जो उनके जीवन में उजाला और चमक भर सकता है। आज भी समाज में बचपन, भूख प्यास की तड़प से बेहाल और शरीर अर्धनग्न क्यों है ? बहुत ही ज्वलंत प्रश्न ‘ये बच्चे हैं किसका भविष्य’ के माध्यम से सभी के दिलों को झकझोर देता है। जहां मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो वहां शिक्षा मात्र एक दिखावा हो जाती है। समाज को अपने ऐसे अंधकारपूर्ण भविष्य के प्रति सचेत करती आपकी रचना एक मुखर संदेश देती है।

 ‘मां’, ‘मां की खुशबू के लिए ‘, ‘स्त्री का घर’ ‘भारत में जन्मी नार हूं’ रचनाएं संपूर्ण स्त्री जाति के सम्मान, स्वाभिमान के प्रति आपकी कटिबद्धता का प्रतिबिंब हैं। अपने स्त्रीत्व की पहचान और सम्मान के लिए स्त्री स्वयं ज़िम्मेदार है। स्त्री और पुरुष रथ के दो पहिए हैं। जिस तरह पुरुष के अस्तित्व में, उसके सम्मान में, उसके स्वत्व में वह स्वतंत्र है उसी तरह  एक खबर और, आज़ाद औरत कविता संदेश देती है कि स्त्री को समाज में पहचान स्थापित करने के लिए किसी सहारे की ज़रूरत नहीं। अत्याचारों को सहने, विवश रहने वाली स्त्रियों को ‘भली औरत’ की संज्ञा देने वाले समाज की कुंठित मानसिकता आज भी ज़िंदा है।

सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार को आपने खुली चुनौती दी है। कुछ सरकारी नौकर तरह-तरह की सुख – सुविधाओं का उपभोग करते हुए सिर्फ़ अपनी ज़िंदगी के मज़े उठाते हैं बल्कि समाज की जिस सेवा के लिए उन्हें ज़िम्मेदारी दी गई है उसे भूल कर वे बाकी सारे काम करते हैं।  ‘दफ्त़रों में’ ‘आओ बनाएं’ कविता के माध्यम से भ्रष्टाचार में डूबे हुए ऐसे ही सरकारी वातावरण और समाज के विकास नाम पर अधर में लटकी परियोजनाओं और अधिकारियों का उनके प्रति संवेदनहीनता का यथार्थ चित्रण कर समाज की चेतना को जगाने का प्रयास किया है। 

आपसी रिश्तों- संबंधों की मज़बूती, उनमें आई दरार को प्रेम से भरने ,अविश्वास को भरोसे में बदलने, जीवन में विनम्रता को अपनाने के प्रति आप सदैव तत्पर हैं। ‘अपनों को अपनों से’, ‘दो रास्ते’, ‘किवाड़ खोलने होंगे’, ‘हाव भाव और व्यवहार’, ‘क्षमा करना’, ‘मां -बेटी’, ‘दिल बचाना सीखिए’ जैसी रचनाएं अनेक सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्तियों से सराबोर हैं आपकी ये अद्भुत पुस्तक भावनाओं का संगम है।

जीवन में संस्कारों का मूल्य, उनका योगदान ,एक परिपूर्ण व्यक्तित्व के लिए नितांत अपरिहार्य है। अच्छे और सुंदर संस्कार न केवल मानसिक सोच में संतुलन और ठहराव लाते हैं बल्कि विपरीत परिस्थितियों का आकलन भी बड़ी ही गहराई व समझदारीपूर्ण ढंग से करते हैं। ‘अपने जीवन से निरर्थकता कम कर लें’, ‘शुभ कर्म ही साथी’, ‘क्षमा करना’, ‘आज से समुद्र हो जा’, ‘अपनी सुगंध’, जैसी कविताओं में आपने अपनी इसी सोच को न केवल परिभाषित किया बल्कि जीवन में सुंदर और अच्छे संस्कारों के प्रभावों को सिद्ध भी किया।

जीवन के प्रति आपका नज़रिया बहुत ही स्पष्ट है। जीवन की हर परिस्थिति को आपने अनुभवों का अथाह सागर माना है। ज़िंदगी में हर पल, हर क्षण जो भी घटित होता है, अनुभव किया जाता है, उससे चिंतन की, परखने की प्रवृत्ति प्रखर हो जाती है। जीवन के लक्ष्य को निर्धारित करते हुए आपने उसे मंथन की एक सतत् प्रक्रिया माना है। एकात्म, सर्वोपरि है मन, दूजे को दुख देने से अपना सुख कम होता है, चलते रहना है, हवा बन जाओ, दृष्टि में बदलाव, जीवन बोध, कविता में सार्थक जीवन जीने के लिए हर पल उसमें मिठास भरते रहने को एक सुंदर पैगाम भरा कदम कहा है।

अच्छाइयों को अगर कोई आपकी कमी समझने लगे तो चुप रहना कवयित्री को कतई बर्दाश्त नहीं। अनाचार को सहना, उसे बढ़ावा देना है। सच को सच बोलना और झूठ के आगे झुकना नहीं यही आपकी जीवनशैली है जो आपकी रचनाओं में आपके व्यक्तित्व को बखूबी प्रदर्शित करती है। हाथ में कलम, खुद से रिश्ता, क्यों डरे, बस यह कहना है, अब तैयारी है,। चुप ही रहने से कुछ नहीं होगा , सच-सच आपके जीवन में इन पहलुओं के प्रति आपकी तटस्थता के प्रतिबिंब हैं।

जिस मिट्टी में हमारा जन्म हुआ है हम उसके ऋणी हैं। उसके प्रति हमारा कर्तव्य सदैव आभार व्यक्त करने वाले होना चाहिए । धड़कनों में वो जज़्बा होना चाहिए जो मर मिटने पर भी उफ़ तक न करे। आपकी धमनियों और शिराओं में लहू का हर क़तरा देश -प्रेम से ओतप्रोत है। राष्ट्र के प्रति समर्पित आप हर स्थिति में राष्ट्र के लिए कुर्बान होने को तत्पर हैं। ऐसी सच्ची साहित्यकारा, समाजसेविका, कर्तव्यनिष्ठ, उदारता की पराकाष्ठा, असीम प्रेम से परिपूर्ण आदरणीया सविता जी को उनके इस महान यज्ञ को, उनकी सुंदर पंक्तियों को, उनकी इस सुंदर पुस्तक को मैं सादर नमन करती हूं। दिल से आपको बधाई देती हूं । नि:संदेह समाज को प्रेरित करती आपकी यह पुस्तक सभी के मन को छू जाएगी।

डॉ. कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’

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